भारतीय इतिहास प्रमुख पुस्तकें वन लाइनर | Indian History One Liner GK

History One LIner GK

भारतीय इतिहास वन लाइनर 

  • 1857 के विद्रोह के पश्चात् अंग्रेज़ों ने यह महसूस किया कि उन्हें भारत पर अपना शासन मज़बूत करने के लिये यहाँ के लोगों के रीति-रिवाज़ों और सामाजिक व्यवस्थाओं का अध्ययन करना होगा।
  • क्रिश्चियन मिशनरियों ने भारतीय लोगों का धर्म परिवर्तन करने के लिये उनके धर्म की दुर्बलताओं को जानना आवश्यक समझा, ताकि वे धर्म परिवर्तन करा सकें और उनके द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य को मज़बूत बनाया जा सके।
  • भारतीय विद्या के अध्ययन को सबसे अधिक बढ़ावा जर्मनी के विद्वान एफ. मैक्स मूलर ने दिया। उन्होंने "सेक्रेड बुक्स ऑफ इ ईस्ट सीरीज़" को कुल मिलाकर पचास खंडों में प्रकाशित करवाया।
  • अंग्रेज़ों द्वारा भारतीय इतिहास के अध्ययन के फलस्वरूप भारत के लोगों को स्वेच्छाचारी शासन का आदी तथा परलौकिक समस्याओं में डूबे रहने वाले और जाति-प्रथा व वर्ण-व्यवस्था के सामाजिक कुचक्र में फँसा हुआ बताया है।
  • मनुस्मृतिको सबसे प्राचीन और प्रामाणिक माना जाता है। सबसे पहले 1776 में इसका अंग्रेज़ी भाषा में अनुवाद हुआ था।
  • 1785 में प्रसिद्ध धार्मिक ग्रन्थ भगवद्गीता का अंग्रेज़ी अनुवाद विल्किन्स ने किया था।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी के सर विलियम जोन्स ने 1784 में कलकत्ता में एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल नामक शोध संस्थान की स्थापना की थी।
  • सर विलियम जोन्स ने 1789 में अभिज्ञानशाकुंतलम् नामक नाटक का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया था।
  • विंसेन्ट आर्थर स्मिथ की पुस्तक अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया में उन्होंने प्राचीन भारत का इतिहास 1904 में तैयार किया था।
  • भारतीय विद्वानों ने, विशेषकर वे जो पाश्चात्य शिक्षा पाए हुए थे, अंग्रेज़ों द्वारा भारतीय इतिहास को तोड़-मरोड़ कर भारत के अतीत की छवि धूमिल किये जाने से क्रोधित थे। उन्होंने इंग्लैंड के फलते-फूलते औपनिवेशिक शासन के विरोध में भारतीय इतिहास का पुनर्निर्माण करने के लिये अध्ययन किया।।
  • भारतीय विद्वान समाज को केवल सुधारना ही नहीं चाहते थे बल्कि भारत के प्राचीन इतिहास का पुनर्निर्माण इस प्रकार करना चाहते थे कि उससे समाज को सुधारने में मदद मिले और यह कार्य भारत के लोगों को भारत के इतिहास का ज्ञान करवाकर ही संभव था।
  • भारतीय विद्वानों ने भारत के लोगों को भारत के स्वर्णिम इतिहास के बारे में अवगत करवाकर स्वराज प्राप्त करने हेतु प्रेरित किया।

रामकृष्ण गोपाल भंडारकर 

  • महाराष्ट्र के रामकृष्ण गोपाल भंडारकर और विश्वनाथ काशीनाथ राजवाड़े समर्पित विद्वान थे। उन्होंने देश के सामाजिक और राजनीतिक इतिहास का पुनर्निर्माण किया। आर.जी. भंडारकर ने सात वाहनों के दक्कन के इतिहास का और वैष्णव संप्रदायों के इतिहास का पुनर्निर्माण किया। उल्लेखनीय है कि दोनों महान समाज सुधारक थे और अपने शोधों से विधवा-विवाह का समर्थन किया और जाति-प्रथा एवं बाल-विवाह जैसे कुप्रथा का खंडन किया था।

  • हेमचन्द्र राय चौधरी ने महाभारत काल से (ईसा-पूर्व दसवीं सदी) लेकर गुप्त साम्राज्य के अंत तक प्राचीन भारत के इतिहास का पुनर्निर्माण किया।
  • वी.ए. स्मिथ ने अपने इतिहास लेखन में सिकन्दर के आक्रमण के बारे में वर्णन किया है तथा इतिहासकार के.पी. जायसवाल ने सिद्ध किया कि प्राचीन काल में यहाँ गणराज्यों का अस्तित्व था; जो अपना शासन स्वयं चलाते थे।
  • ए.एस. अल्तेकर और के.पी. जायसवाल जैसे कुछ विद्वानों ने देश को शकों और कुषाणों के शासन से मुक्त कराने में भारतीय राजवंशों की भूमिका का वर्णन किया है। इतिहासविद् के.ए. नीलकंठ शास्त्री ने ए हिस्ट्री ऑफ साउथ इंडियाका लेखन किया है।
  • पांडुरंग वामन काणे संस्कृत के प्रकांड पंडित और समाज-सुधारक हुए। उनका विशाल कीर्तिस्तंभ हिस्ट्री ऑफ धर्मशास्त्रजो पाँच खंडों में प्रकाशित हुआ है, सामाजिक नियमों और आचारों का विश्वकोश है।
  • देवदत्त रामकृष्ण भंडारकर ने भारत के राजनीतिक इतिहास का गंभीर अध्ययन किया है। उन्होंने अशोक पर तथा प्राचीन भारत की राजनैतिक संस्थाओं पर कई पुस्तकों का लेखन किया है।
  • डी.डी. कोसंबी ने भारतीय इतिहास को नया रास्ता दिखलाया। वे अपना इतिहास विवेचन कार्ल मार्क्स के लेखों के अनुसार करते थे। उन्होंने प्राचीन भारतीय समाज के आर्थिक और सांस्कृतिक इतिहास को उत्पादन की शक्तियों और संबंधों के विकास में अभिन्न अंग के रूप में प्रस्तुत किया।
  • बाणभट्ट के हर्ष चरित में राजा हर्षवर्धन के आरम्भिक जीवन का वृत्तांत है। यह गद्य काव्य है। विल्हण द्वारा रचित विक्रमांकदेव चरित में कल्याण के चालुक्य राजा विक्रमादित्य पंचम का वर्णन किया गया है। अतुल की रचना मूषिक वंश में मूषिक राजवंश का वृत्तांत है जिसका शासन उत्तरी केरल में था। संध्याकर नंदी के रामचरित में कैवर्त्त जाति के किसानों और पाल वंश के राजा रामपाल के बीच की लड़ाई का वर्णन किया गया है।
  • संगम साहित्य के पद्य 30,000 पंक्तियों में मिलते हैं, जो एट्टत्तोकै (आठ) संकलनों में विभक्त हैं। उल्लेखनीय है कि, पद्य सौ-सौ के समूहों में संगृहीत हैं, जैसे पुरनानूरू।
  • संगम साहित्य के दो मुख्य समूह हैं: पटिनेडिकल पट्टिनेनकील कणक्कु (अठारह निम्न संग्रह) और पत्त पाट्ट (दस गीत) पहला समूह दूसरे से पुराना माना जाता है। इसलिये इसे लौकिक साहित्य के लिये महत्त्वपूर्ण समझा जाता है।
  • चौदहवीं सदीं में फिरोज़शाह तुगलक ने अशोक के दो स्तंभलेखों में एक मेरठ से और दूसरा हरियाणा के टोपरा नामक स्थान से दिल्ली मंगवाया था।
  • एकल दक्षिण भारत में पत्थरों से मंदिर बनाए जाते थे। इनके बचे हुए अवशेष उस युग का स्मरण कराते हैं, जब देश के दक्षिणी भाग में भारी संख्या में इनका निर्माण हुआ था।
  • पूर्वी भारत में ईंटों के विहारों का निर्माण होता था।
  • उल्लेखनीय है कि अधिकांश भौतिक अवशेषों जो कि टीलों के नीचे दबे हुए मिले हैं, इन टीलों में एकल-संस्कृति, मुख्य-संस्कृति और बहु-संस्कृति मिलती है।
  •  दक्षिण भारत के कुछ लोग मृत व्यक्ति के शव के साथ औजार, हथियार, मिट्टी के बर्तन आदि चीज़ें भी कब्र में गाड़ते थे और इसके ऊपर एक घेरे में बड़े-बड़े पत्थर खड़े कर दिये जाते थे। ऐसे स्मारकों को महापाषाण (मेगालिथ) कहते हैं।
  •  प्राचीन भारत में कागज की मुद्रा का प्रचलन नहीं था, परन्तु धातु मुद्रा (धातु के सिक्कों) का चलन था। पुराने सिक्के तांबे, चांदी, सोने और सीसे के बनते थे। प्राचीन काल के लोगों के भौतिक जीवन के बारे में जानकारी जिस स्रोत से मिलती है उसे पुरातत्त्व/आर्किअलॉजी कहते है।
  • रेडियो कार्बन काल निर्धारण विधि में जब तक कोई वस्तु जीवित रहती है तो C14 के क्षय की प्रक्रिया के साथ हवा और भोजन की खुराक से उस वस्तु में C14 का समन्वय भी होता रहता है, परन्तु जब वस्तु निष्प्राण हो जाती है तब उसमें विद्यमान C14 के क्षय की प्रक्रिया समान गति से जारी रहती है लेकिन हवा और भोजन से C14 लेना बंद कर देती है। किसी प्राचीन वस्तु में विद्यमान C14 में आई कमी को माप कर उसके समय का निर्धारण किया जा जाता है।
  • अशोक के अभिलेख राज्यादेश के रूप में जारी किये जाते थे । अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा तथा ब्राह्मी लिपि में हैं जबकि अफगानिस्तान से प्राप्त अभिलेख आरामाइक तथा ग्रीक दोनों लिपियों में हैं।
  • अभिलेख के अध्ययन को पुरालेख शास्त्र (एप्रिग्राफी) कहते हैं।
  • अभिलेख और पुराने दस्तावेज़ों की प्राचीन तिथि के अध्ययन को पुरालिपि शास्त्र (पेलिओग्राफी) कहते हैं।
  • अभिलेखों को अनेक कोटियों में बाँटा गया है। सम्राट अशोक के अभिलेख राज्यादेशों की कोटि में आते हैं। उनके अभिलेखों में अधिकारियों और जनता के लिये सामाजिक, धार्मिक तथा प्रशासनिक राज्यादेशों और निर्णयों की सूचनाएँ रहती थीं।
  • अभिलेखों की दूसरी कोटि में आनुष्ठानिक अभिलेख है; जिन्हें बौद्ध, जैन, वैष्णव तथा शैव आदि संप्रदायों के अनुयायियों ने भक्तिभाव से स्थापित स्तम्भों, प्रस्तरफलकों, मंदिरों और प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण करवाया है।
  • अभिलेखों की तीसरी कोटि में वे प्रशस्तियाँ हैं, जिनमें राजाओं और विजेताओं के गुणों और कीर्तिओं का वर्णन है ,परन्तु उनकी पराजयों औरकमज़ोरियों का कोई वर्णन नहीं मिलता |समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्तिअभिलेख इसी कोटि में आता है |
  • अशोक के अभिलेखों को पढ़ने में सर्वप्रथम सफलता 1837 में जेम्स प्रिंसेप को मिली थी, वे उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में थे।
  • प्राचीन भारत में पाण्डुलिपियाँ भोजपत्रों और तालपत्रों पर लिखी मिलती है, परन्तु मध्य एशिया में जहाँ भारत से प्राकृत भाषा फैल गई थी, ये पाण्डुलिपियाँ मेषचर्म तथा काष्ठफलकों पर लिखी गई है।
  • वैदिक मूलग्रंथ का अर्थ समझ में आए इसके लिये वेदांगों अर्थात् वेद के अंगभूत शास्त्रों का अध्ययन करना आवश्यक था, इसलिये इनकी रचना हुई थी। उल्लेखनीय है कि ये वेदांग हैं- शिक्षा (उच्चारण-विधि) कल्प (कर्मकांड), व्याकरण, निरुक्त (भाषा विज्ञान), छन्द और ज्योतिष।
  • व्याकरणकी रचना पाणिनी ने 400 ई.पू. के आस-पास की थी। व्याकरण के नियमों का उदाहरण देने के क्रम में पाणिनि ने अपने समय के समाज, अर्थव्यवस्था और संस्कृति पर अमूल्य प्रकाश डाला है।
  • सूत्र में साहित्य गद्य नियमपूर्वक लिखे जाते थे। संक्षिप्त होने के कारण ये नियम सूत्र कहलाते हैं।
  • शुल्व सूत्र में यज्ञवेदी के निर्माण के लिये विविध प्रकार के मापों का विधान है। ज्यामिति और गणित का अध्ययन यहीं से आरम्भ हुआ है।
  • उल्लेखनीय है कि ऐसे सूत्र जिनमें विधि और नियमों का प्रतिपादन किया जाता है, कल्पसूत्र कहलाते हैं। कल्पसूत्रों के तीन भाग हैं- श्रोत्र सूत्र, गृह्य सूत्र और धर्म सूत्र।
  • जातक-कथा एक प्रकार की लोक कथा है। बुद्ध के पूर्वजन्मों की कथाओं को जातक कहा जाता है। ये जातक-कथा ईसा-पूर्व पाँचवीं सदी से दूसरी सदी ई. सन् तक की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर प्रकाश डालती है। प्रसंगवश ये कथाएँ बुद्धकालीन राजनीतिक घटनाओं की जानकारी देती हैं।
  • कौटिल्य का अर्थशास्त्रएक राजनीतिक ग्रंथ है। यह पंद्रह अधिकरणों में विभक्त है, जिसमें दूसरा और तीसरा अधिक पुराने हैं। इसमें मौर्यकालीन समाज और अर्थतंत्र का वर्णन मिलता है।
  • कालिदास ने अनेक काव्य और नाटक लिखे हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध है अभिज्ञानशाकुंतलम्। इन महान सर्जनात्मक कृतियों में गुप्तकालीन उत्तरी और मध्य भारत के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन की झलक मिलती है।
  • संगम साहित्य प्राचीनतम तमिल ग्रंथ है। राजाओं द्वारा संरक्षित विद्या केन्द्रों में एकत्र होकर कवियों और भाटों ने तीन-चार सदियों में इस साहित्य का सृजन किया था। ऐसी साहित्यिक सभा को संगम कहते थे।यह आरंभिक सदियों में प्रायद्वीपीय तमिलनाडु के लोगों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन के अध्ययन के लिये संगम साहित्य एकमात्र स्रोत है।
  • संगम साहित्य मुक्तकों और प्रबन्ध काव्यों की रचना बहुत सारे कवियों ने की है।
  • मेगास्थनीज सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था। वह चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में चौदह वर्षों तक रहा। उसके द्वारा रचित इण्डिकामें मौर्ययुगीन समाज एवं संस्कृति का विवरण मिलता है।
  • यूनानी विवरणों में चन्द्रगुप्त मौर्य और सान्द्रोकोत्तस जिनके राज्यारोहण की तिथि 322 ई.पू. निर्धारित की गई है, एक ही व्यक्ति था।
  • ह्वेनसांग सातवीं सदी में हर्ष के शासनकाल में भारत आया था। उल्लेखनीय है कि वह भारत में 16 वर्षों तक रहा। 6 वर्ष तक उसने नालन्दा विश्वविद्यालय में अध्ययन किया।
  • फाहियान और ह्वेनसांग दोनों बौद्ध थे और बौद्ध तीर्थों का दर्शन करने तथा बौद्ध धर्म का अध्ययन करने भारत आए थे।

 

भारतीय इतिहास प्रमुख पुस्तकें

 लेखक      रचनाएँ 

मेगास्थनीज इंडिका

टॉलेमी     ज्योग्राफी

प्लिनी     नेचुरल हिस्टोरिका  

बाणभट्ट     हर्ष चरित

विल्हण     विक्रमांकदेवचरित

संध्याकार नंदी     रामचरित

 

वैदिक साहित्य का सही क्रम इस प्रकार है-


वैदिक संहिताएँ > ब्राह्मण > आरण्यक > उपनिषद

 

  • सम्राट अशोक के शिलालेख प्राकृत भाषा के अलावा खरोष्ठी और आरामाइक लिपियों में है | पश्चिमोत्तर और अफगानिस्तान में इनकी भाषा और लिपि आरामाइक और यूनानी दोनों हैं।
  • हिमालय से कन्याकुमारी तक, पूर्व में ब्रह्मपुत्र की घाटी से पश्चिम में सिंधु-पार तक अपना राज्य फैलाने वाले राजाओं को चक्रवर्ती राजा कहा जाता था।
  • सम्राट अशोक ने अपना साम्राज्य सुदूर दक्षिणांचल को छोड़कर सारे देश में फैलाया तथा समुद्रगुप्त की विजय-पताका गंगा की घाटी से तमिल देश के छोर तक पहुँची,इस प्रकार दोनों चक्रवर्ती राजा कहलाते थे ।
  • आर्य सांस्कृतिक उपादान उत्तर के वैदिक और संस्कृतमूलक संस्कृति के आए है
  • प्राक् आर्य जातीय उपादान दक्षिण की द्रविड़ और तमिल संस्कृति के अंग हैं।
  • प्राचीन भारत के अनेकानेक मानव-प्रजातियों का संगम रहा है। इनमें आर्य > यूनानी > शक > हूण > तुर्क आदि अनेक प्रजातियाँ शामिल थीं। ये सभी समुदाय और इनके सारे सांस्कृतिक वैशिष्ट्य आपस में इस तरह नीरक्षीरवत् हो गए कि आज उनमें से किसी को भी उनके मूल रूप से साफ-साफ पहचा नहीं सकते हैं।

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