सातवाहन राज्य वन लाइनर | Saatvahan Vansh One Liner GK

 

सातवाहन राज्य वन लाइनर

Saatvahan Vansh One Liner GK


  • सातवाहन शासकों ने कण्वों को पराजित कर मध्य भारत और दक्कन में सत्ता स्थापित की थी।
  • सातवाहनों की राजकीय भाषा प्राकृत थी। इनके सभी अभिलेख प्राकृत भाषा में और ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं।
  • गाथाहासत्तसई (गाथासप्तशती) हाल नामक सातवाहन राजा की रचना है। इसमें सभी सात सौ श्लोक प्राकृत भाषा में लिखे गए हैं।
  • आरंभिक सातवाहन शासकों का राज्य उत्तरी महाराष्ट्र में था, जहाँ उनके प्राचीनतम सिक्के और अधिकांश आरंभिक अभिलेख मिले हैं। उन्होंने अपनी सत्ता ऊपरी गोदावरी घाटी में स्थापित की।
  • सातवाहन राज्य का विस्तार कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में था। उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी शक थे। शकों का राज्य दक्कन और पश्चिमी भारत में स्थापित हुआ।
  • सातवाहन राज्य का उदय ऊपरी गोदावरी घाटी में हुआ था। वहाँ पर लोहे के फाल का प्रयोग, धान-रोपण विधि से धान का प्रचुर उत्पादन होता था। नगरीकरण में अमरावती व नागार्जुनकोंड प्रमुख नगर तथा लेखन कला आदि सातवाहन राज्य के उदय की विशेषताएँ थीं।
  • गौतमीपुत्र सातकर्णि ने सातवाहन वंश के ऐश्वर्य को फिर से स्थापित किया था। उसने अपने आपको एकमात्र ब्राह्मणकहा था। उसने क्षहरात वंश के शासक नहपान को हराया था। उल्लेखनीय है कि नहपान के 8000 से अधिक चांदी के सिक्के नासिक के पास मिले हैं, उन पर सातवाहन राजा द्वारा फिर से ढलाए जाने के चिह्न हैं। उसके समय में शासन उत्तर में मालवा से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तक फैला हुआ था।
  • वासिष्ठीपुत्र पुलुमायिन्  काल में सातवाहन साम्राज्य की राजधानी आंध्र प्रदेश के औरंगाबाद ज़िले में गोदावरी नदी के किनारे पैठन या प्रतिष्ठान बनी। सौराष्ट्र (काठियावाड़) के शक शासक रुद्रदामन प्रथम ने उसे दो बार पराजित किया था।
  • सातवाहन राजा यज्ञश्री सातकर्णि व्यापार और जलयात्रा का प्रेमी था। इसके सिक्कों पर जहाज़ का चित्र अंकित है,जो जलयात्रा और समुद्री व्यापार के प्रति उसके प्रेम का परिचायक है।
  • सातवाहनों ने स्वर्ण का प्रयोग बहुमूल्य धातु के रूप में किया था। उन्होंने कुषाणों की तरह सोने के सिक्के नहीं चलाए। इनके सिक्के अधिकांश सीसे (लेड) के बने होते थे। इसके अलावा पोटीन, तांबे और काँसे की मुद्राएँ भी इन्होंने चलाई।
  • सातवाहन दक्कन में कपास का उत्पादन करते थे। विदेशी विवरणों में आंध्र प्रदेश कपास के उत्पाद के लिये प्रसिद्ध था। दक्कन के बड़े हिस्से में परम उन्नत ग्रामीण अर्थव्यवस्था विकसित हुई।
  • शक शासक रुद्रदामन प्रथम ने सातवाहन शासक वासिष्ठीपुत्र पुलुमायिन् को दो बार पराजित किया था, परंतु वैवाहिक संबंध होने के कारण उसका नाश नहीं किया। दक्कन के लोगों ने उत्तरी भारत से सिक्के, पकी ईंट, छल्लेदार कुएँ और लेखन कला आदि का प्रयोग सीखा।
  • करीमनगर ज़िले के पेड्डबंकुर में पकी ईंट तथा द्वितीय शताब्दी ईसवीं के ईंटों के बने बाइस कुएँ पाए गए हैं।
  • सातवाहन काल के मिले रोमन सिक्कों से सातवाहन-रोमन के बीच बढ़ते व्यापार के संकेत मिलते हैं।
  • सातवाहनों ने सर्वप्रथम ब्राह्मणों को भूमि अनुदान के रूप में देने की प्रथा चलाई थी। वे ब्राह्मणों और बौद्ध भिक्षुओं को कर मुक्त ग्राम दान में देते थे।
  • सातवाहनों में हमें मातृसत्तात्मक समाज का आभास मिलता है। उनके राजाओं के नाम उनकी माताओं के नाम पर रखने की प्रथा थी, परंतु सारतः सातवाहन राजकुल पितृसत्तात्मक था, क्योंकि राजसिंहासन का उत्तराधिकारी पुत्र ही होता था। इस काल में शिल्प और वाणिज्य में प्रगति व्यापक पैमाने पर हुई। वणिक लोग अपने-अपने नगर का नाम अपने नाम से जोड़ने लगे।
  • सातवाहन साम्राज्य में प्रशासनिक इकाइयाँ मौर्यों के समान थी। इनके समय में ज़िले के लिये आहार शब्द, जो अशोक के समय प्रयुक्त होता था तथा उनके अधिकारी मौर्य काल की तरह अमात्य और महामात्य कहलाते थे।
  • सातवाहनों के प्रशासन में कुछ विशेष सैनिक और सामंतवादी लक्षण दिखाई पड़ते हैं। सेनापति को प्रांत का शासनाध्यक्ष या गर्वनर बनाया जाता था, ताकि दक्कन के जनजातीय लोगों को प्रशासनिक नियंत्रण में रखा जा सके।
  • गौल्मिक ग्राम का प्रधान कहलाता था। इसे ग्रामीण क्षेत्रों के प्रशासन का काम सौंपा जाता था। यह एक सैनिक टुकड़ी का प्रधान होता था, जिसमें नौ रथ, नौ हाथी, पच्चीस घोड़े और पैंतालीस पैदल सैनिक होते थे। वह ग्रामीण क्षेत्रों में शांति व्यवस्था बनाए रखता था।
  • सातवाहन काल में ब्राह्मणों और बौद्धों को कर-मुक्त भूमि दी गई। दोनों को समान संरक्षण प्राप्त था। महाराष्ट्र पश्चिमी दक्कन के नासिक और जुनार क्षेत्रों में व्यापारियों से संरक्षण प्राप्त कर बौद्ध धर्म फूला-फला।
  • सातवाहन शासक ब्राह्मण थे और उन्होंने ब्राह्मणवाद के विजयाभियान का नेतृत्व किया। आरंभ से ही राजाओं और रानियों ने अश्वमेध, वाजपेय आदि वैदिक यज्ञ किये इस काल में बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय का उत्कर्ष हुआ था।
  • सातवाहन राज्य में सामंतों की तीन श्रेणियाँ थी। पहली श्रेणी का सामंत राजा कहलाता था। द्वितीय श्रेणी का महाभोज तथा तृतीय श्रेणी का सेनापति। आंध्र प्रदेश के नागार्जुनकोंड और अमरावती नगर सातवाहनों के उत्तराधिकारी इक्ष्वाकुओं के शासन में बौद्ध संस्कृति के महत्त्वपूर्ण केंद्र बने।
  • सातवाहन काल के चैत्य और विहार ठोस चट्टनों को काट बनाए जाते थे। यह विशाल शिला-वास्तुकला का प्रभावोत्पादक उदाहरण है। चैत्य अनेकानेक स्तंभों पर खड़ा हॉल जैसा होता था और विहार में एक केंद्रीय शाला होती थी, जिसमें सामने के बरामदे की ओर एक द्वार रहता था। चैत्य बौद्धों के मंदिर का काम करता था और विहार भिक्षु निवास का। विहार चैत्यों के पास बनाए गए। उनका उपयोग वर्षाकाल में भिक्षुओं के निवास के लिये होता था।
  • सातवाहनों के उत्तराधिकारी इक्ष्वाकुओं के काल में उत्कर्ष के शिखर पर थे। 
  • अमरावती के स्तूपों में भित्ति-प्रतिमाएँ मिलती हैं। इनमें बुद्ध के जीवन के विभिन्न दृश्य चित्रित हैं।
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