दक्षिण भारत के इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य | Dakshin Bharat Ka Itihas One Liner GK

 दक्षिण भारत के इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

दक्षिण भारत के इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य


  • तमिलनाडु के दक्षिणी ज़िलों में रहने वाले महापाषाणिक लोगों द्वारा मृतक के अस्थिपंजर को लाल कलश में डालकर गड्ढों में दफनाए थे; यही कलश शवाधान कहलाता था
  • महापाषाण कब्रों में वस्तुओं के साथ त्रिशूल भी रखा जाता था जिसका संबंध बाद में शिव के साथ जुड़ गया।
  • महापाषाण कब्रों में तथा प्रायद्वीपीय भारत की कब्रों में खेती के औजार कम मात्रा में दफनाए जाते थे, इसमें युद्ध और शिकार के हथियार अधिक होते थे। इससे संकेत मिलता है कि महापाषाणिक लोग उन्नत खेती नहीं करते थे। प्रायद्वीपीय भारत में कई तरह के मृद्भाण्डों का प्रयोग किया जाता था, जिनमें लाल मृद्भांड भी शामिल है।
  • अशोक के अभिलेखों में चोल, पांड्य और चेर (केरलपुत्र) शासकों के उल्लेख मिलते हैं।
  • पांड्य राज्य भारतीय प्रायद्वीपीय के सुदूर दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी भाग में अवस्थित था। इसमें तमिलनाडु के आधुनिक तिन्नवेल्ली, रामनद और मदुरा ज़िले शामिल हैं। उसकी राजधानी मदुरा थी।
  • पांड्यों का उल्लेख सर्वप्रथम मेगास्थनीज़ ने किया है। और उसने इसे मोतियों का देश कहा है।
  • मेगास्थनीज के अनुसार पांड्य राज्य में शासन स्त्री के हाथों में थी जिससे यह लक्षित होता है कि पांड्य समाज में कुछ मातृसत्तात्मक प्रभाव था।
  • पांड्य राजाओं ने रोमन सम्राट ऑगस्टस के दरबार में राजदूत भेजे। उल्लेखनीय है कि यह राज्य रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार में लाभ की स्थिति में था जिससे यह धनवान और समृद्ध था।
  • चोल राज्य पेन्नार और वेलार नदियों के बीच पांड्य राज्य क्षेत्र के पूर्वोत्तर में स्थित था। यह मध्यकाल के आरंभ में चोलमंडलम् (कोरोमंडल) कहलाता था।
  • उसकी राजधानी पुहारथी जिसकी पहचान कावेरीपट्टनम से की गई है।
  • पुहार की स्थापना दूसरी सदी के प्रख्यात चोल राजा कारैकाल ने की थी।
  • ईसा-पूर्व दूसरी सदी के मध्य में एलारा नामक चोल राजा ने श्रीलंका को जीतकर पचास वर्षों तक शासन किया था। उरैयूर उनकी राजनीतिक सत्ता का केंद्र था।
  • यह सूती कपड़े के व्यापार के लिये प्रसिद्ध था चूँकि चोलों के वैभव का मुख्य स्रोत सूती कपड़े का व्यापार था। उनके पास कुशल नौसेना थी।
  • चेर या केरल देश पांड्य क्षेत्र के उत्तर-पश्चिम में स्थित था जो आधुनिक केरल राज्य और तमिलनाडु के बीच एक सँकरी पट्टी के रूप में था।
  • चेर राजा सेंगुट्टुवन को लाल या भला चेर भी कहा जाता था।
  • वल्लाल- धनी किसान,. अरसर- शासक वर्ग,. कडैसियर- खेत मजदूर के नाम से जाने जाते थे ।
  • पांड्य राज्य में अश्व  समुद्र के रास्ते से मंगवाए जाते थे
  • एनाडिकी उपाधि सेनाध्यक्षों को औपचारिक अनुष्ठान के साथ दी जाती थी
  • परियार लोग खेत मजदूर थे, साथ ही ये लोग पशु चर्म का कार्य भी करते थे, और चटाई के रूप में इनका इस्तेमाल करते थे।
  • संगम तमिल कवियों का संघ या सम्मेलन है, जो मदुरै में राजाश्रय में आयोजित होते थे।
  • संगम साहित्य में आख्यानात्मक ग्रंथों को वीरगाथा काव्य कहते हैं, जिसमें वीर पुरुषों की कीर्ति और युद्धों का वर्णन किया गया है।
  • संगम को मोटे तौर पर दो समूहों में बाँटा जा सकता है-आख्यानात्मक और उपदेशात्मक। आख्यानात्मक ग्रंथ मेलकणक्कु अर्थात् अठारह मुख्य ग्रंथ और उपदेशात्मक ग्रंथ कीलकणक्कु अर्थात् अठारह लघु ग्रंथ कहलाते हैं।
  • तमिल देश में ईसा सन् की आरंभिक सदियों में जो राज्य स्थापित हुए थे उनका विकास ब्राह्मण संस्कृति के प्रभाव से हुआ। राजा वैदिक यज्ञ करते थे,
  • संगम राज्यों में इन राज्यों में शवदाह की प्रथा आरम्भ हुई, परंतु महापाषाण अवस्था से चली आ रही दफनाने की प्रथा भी चलती रही।
  • पहाड़ी प्रदेशों के लोगों के मुख्य स्थानीय देवता मुरुगन थे, जो आरम्भिक मध्यकाल में सुब्रामनियम या सुब्रह्मण्यम कहलाने लगे।
  • स्मारक को वीरकल कहा जाता था, चूँकि गाय या अन्य वस्तुओं के लिये लड़कर मरने वाले वीरों के सम्मान में वीरकल अर्थात् स्मारक-स्वरूप प्रस्तर खड़ा किया जाता था।
  • संगम साहित्य तोलकाप्पियम ग्रंथ व्याकरण और अलंकार शास्त्र कहलाता है।
  • तिरुकुरल में दार्शनिक विचार और सूक्तियाँ हैं।
  • तमिल काव्य में दो प्रसिद्ध महाकाव्य हैं जिनके नाम हैं- सिलप्पदिकारम और मणिमेकलै। इन दोनों की रचना ईसा की छठी सदी के आसपास हुई।
  • सिलप्पदिकारम एक प्रेमकथा है जिसमें कोवलन नामक व्यापारी और माधवी नामक गणिका के प्रेम-प्रसंग का वर्णन है। मणिमेकलै में कोवलन और माधवी की कन्या के साहसिक जीवन का वर्णन किया गया है।

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