पाषाण युग सामान्य ज्ञान | Pashan Yug One Liner GK

 पाषाण युग सामान्य ज्ञान

 Pashan Yug One Liner GK

Pashan Yug One Liner GK


पुरापाषाण युग

  • आरम्भिक पुरापाषाण युग का मानव पत्थर के अनगढ़ और अपरिष्कृत औज़ारों का इस्तेमाल कर शिकार और खाद्य-संग्रह पर जीवित रहता था।
  • इस युग के औज़ारों में कुल्हाड़ी (हैंड-एक्स), विदारणी (क्लीवर) और खंडक (चॉपर) का उपयोग होता था।
  • इस युग के स्थल पाकिस्तान में स्थित पंजाब की सोअन/सोहन नदी की घाटी में पाए जाते हैं। इसके अलावा कई अन्य स्थल कश्मीर और थार मरुभूमि में मिले हैं।
  • राजस्थान का दिदवाना क्षेत्र, बेलन और नर्मदा की घाटियों में तथा मध्य प्रदेश के भीमबेटका में इनके निवास स्थल के अवशेष मिले हैं।
  • ऊपरी पुरापाषाण युग में आर्द्रता कम हो गई थी। इस युग में आधुनिक प्रारूप के मानव (होमोसेपिएंस) का उदय हुआ था।
  • इस युग में नए चकमक उद्योग की स्थापना हुई थी तथा भारत में फलकों और तक्षणियों (ब्लेड्स और ब्युरिन्स) का इस्तेमाल होने लगा था।

मध्यपाषाण काल

  • मध्यपाषाण स्थल राजस्थान, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, मध्य और पूर्वी भारत में पाए जाते हैं तथा दक्षिण में इसका फैलाव कृष्णा नदी के दक्षिण तक है। 
  • इस युग में सुक्ष्म पाषण(माईक्रोलिथ्स) औजारों का प्रयोग होता था. 
  • मध्यपाषाण युग के लोग शिकार करके, मछली पकड़कर खाद्य वस्तुओं का संग्रह करते थे। वे लोग आगे चलकर पशुपालन भी करने लगे थे।
  • राजस्थान के बागोर तथा मध्य प्रदेश के आदमगढ़ में पशुपालन के प्राचीन साक्ष्य मिले हैं।
  •  मध्य-पुरापाषाण युग में मुख्य उद्योग पत्थर की पपड़ी से बनी वस्तुओं का था। इनके मुख्य औज़ार फलकवेधनीछेदनी और खुरचनी थेजो कि पपड़ियों से बने होते थे।

पुरापाषाण और मध्यपाषाण युग के कलाकृति

  • इस काल में अनाज पर उन पशु और पक्षियों के चित्र पाए जाते थे, जिनका शिकार करके वे अपना जीवन निर्वाह करते थे। 
  • इस युग के लोग चित्र बनाते थे। मध्य प्रदेश की भीमबेटका गुफा इसका अद्भुत उदाहरण है। यह दक्षिण में विंध्यपर्वत पर अवस्थित है। इसके 10 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 500 से भी छयादा चित्र बनाए गए हैं।

नवपाषाण काल

  • नवपाषाण काल खाद्य-उत्पादक काल था। सर्वप्रथम मनुष्य ने इसी काल में कृषि करना शुरू किया था।
  • पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में मेहरगढ़ से चावल, गेहूँ तथा जौ के अवशेष मिले हैं। यहाँ के निवासी कृषि करने में उन्नत थे।
  • इस काल के लोग पॉलिशदार पत्थर के औज़ारों और हथियारों का प्रयोग करते थे। वे खास तौर पर पत्थर की कुल्हाड़ियों का इस्तेमाल किया करते थे। 
  • कश्मीर में नवपाषाण संस्कृति के गर्तावास (गड्ढा-घर) के उदाहरण मिलते हैं। कश्मीर के बुर्जहोम में इसके अवशेष मिले हैं। 
  • इस काल में कुंभकारी शुरू हो गयी थी। 
  • आरंभ में हाथ से बनाए गए मृदभांड मिलते थे तथा बाद में मिट्टी के बर्तन चाक पर बनने लगे। इन बरतनों में पॉलिशदार काला मृदभांड तथा धूसर मृदभाण्ड शामिल हैं।
  • कश्मीर स्थित बुर्जहोम से प्राप्त कब्रों में पालतू कुत्तों को मालिक के साथ दफनाने के अवशेष मिले हैं। 
  • उल्लेखनीय है कि गुफकराल, जिसका अर्थ होता है कुलाल अर्थात कुम्हार की गुहा। यहाँ के लोग कृषि और पशुपालन दोनों कार्य करते थे। 
  • नवपाषाण काल में भारी तकनीकी प्रगति हुई, क्योंकि इसी अवधि में लोगों ने खेती, बुनाई, कुंभकारी, भवन-निर्माण, पशुपालन, लेखन आदि का कौशल विकसित किया।
  • मेहरगढ़ में बसने वाले नवपाषाण युग के लोग अधिक उन्नत थे। वे गेहूँ, जौ और रुई उपजाते थे तथा कच्ची ईटों के घरों में रहते थे। उल्लेखनीय है कि इस काल में लोग मिट्टी और सरकंडों के बने गोलाकार या आयताकार घरों में भी रहते थे।
  • नवपाषाण युग के लोग जो दक्षिण भारत में गोदावरी नदी के दक्षिण में ग्रेनाइट की पहाड़ियों के ऊपर बसे थे; वे फिगरिन्स (आग में पकी मिट्टी की मूर्तिकाएँ) में गाय, बैल, भेड़ और बकरी की मूर्तिकाएँ बनाते थे।

 

मध्यपाषाण काल आखेटक और पशुपालक था। ऐसे पशुपालन के साक्ष्य मध्य प्रदेश के आदमगढ़ तथा राजस्थान के बागोर में प्राप्त हुए हैं।

प्रागैतिहासिक गुफा शैलचित्र का उदाहरण मध्य प्रदेश के भोपाल के पास भीमबेटका में मिले हैं।


ताम्रपाषाण काल


ताम्रपाषाण युग को कैल्कोलिथिक युग भी कहा जाता है। जिन संस्कृतियों में तांबे के औज़ारों के साथ-साथ पत्थर के बने हुए उपकरणों का प्रचलन मिलता हैउन्हें प्रायः ताम्रपाषाणिक संस्कृति कहा जाता है।

  • ताम्रपाषाण काल के लोग मुख्यतः ग्रामीण समुदाय बना कर रहते थे और देश के ऐसे विशाल भागों में फैले थे जहाँ पहाड़ी ज़मीन और नदियाँ थीं। 
  • मध्य और पश्चिमी भारत की मालवा ताम्रपाषाण संस्कृति की एक विलक्षणता है मालवा मृदभांड, जो ताम्रपाषाण मृदभांड में उत्कृष्टतम् माना गया हैं. 
  • अहाड़ और गिलुंद दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में स्थित ताम्रपाषाण काल के महत्त्वपूर्ण स्थल हैं।
  • ताम्रपाषाण काल में सर्वप्रथम तांबे से औज़ार बनाने की शुरुआत हुई थी। इस काल में पत्थर एवं औज़ारों का साथ-साथ प्रयोग किया गया था।
  • इस काल के लोग गेहूँ, चावल के अलावा बाजरे की खेती भी करते थे।
  • उल्लेखनीय है कि वे लोग मसूर, उड़द और मूँग आदि सहित कई प्रकार के दलहन और मटर पैदा करते थे।
  • अहाड़ का प्राचीन नाम तांबवती अर्थात् तांबावाली है। अहार के लोगों को तांबा पास में मिलने के कारण धातुकर्म की जानकारी थी।
  • ताम्रपाषाण काल के लोग चाक पर बने काले व लाल मृदभांड का प्रयोग और चित्रित मृदभाण्डों का भी प्रयोग करते थे। 
  • दक्कन की काली मिट्टी में कपास की पैदावार की जाती थी।
  • ताम्रपाषाण युग के लोग प्रायः पक्की ईंटों से परिचित नहीं थे। ये अपना घर कच्ची ईंटों से बनाते थे, परन्तु अधिकतर मकान गीली मिट्टी थोप कर बनाते थे। परन्तु अहाड़ के लोग पत्थर के बने घरों में रहते थे।
  • महाराष्ट्र में कपास, सन और सेमल की रुई से बने धागे भी मिले हैं। इससे सिद्ध होता है कि वे लोग वस्त्र-निर्माण से सुपरिचित थे।
  • इनामगाँव ताम्रपाषाण युग की एक बड़ी बस्ती थी। इसमें सौ से भी अधिक घर और कई कब्रें पाई गई हैं। यह बस्ती किलाबन्द और खाई से घिरी हुई थी।
  • ताम्रपाषाण काल में महाराष्ट्र के लोग मृतक को कलश में रखकर अपने घर में फर्श के अंदर उत्तर-दक्षिण स्थिति में दफनाते थे।
  • इस काल में कब्र में मृत्तक के साथ मिट्टी की हंडिया और तांबे की कुछ वस्तुएँ भी रखी जाती थीं। उन लोगों का मानना था कि ये वस्तुएँ परलोक में मृतक के इस्तेमाल के लिये होती थीं।
  • ताम्रपाषाण काल में मातृ-देवी की पूजा की जाती थी, इस काल की मिट्टी की स्त्री-मूर्तियाँ बड़ी संख्या में पाई गई हैं।
  • इस काल में वृषभ (साँड़) को धार्मिक पशु माना जाता था। मालवा और राजस्थान में मिली रूढ़ शैली में बनी मिट्टी की वृषभ-मूर्तिकाओं से यह साबित होता है कि वृषभ (साँड़) धार्मिक पंथ का प्रतीक था।
  • इनामगाँव में मातृ-देवी की प्रतिमा मिली है जो पश्चिमी एशिया में पाई जाने वाली ऐसी प्रतिमाओं से मिलती है।
  • ताम्रपाषाण काल में बस्ती के ढाँचे और शव-संस्कार विधि दोनों से पता चलता है कि ताम्रपाषाण समाज में असमानता आरंभ हो चुकी थी।
  • उल्लेखनीय है कि पश्चिमी महाराष्ट की चंदौली और नेवासा बस्तियों में पाया जाता है कि कुछ बच्चों के गलों में तांबे के मनकों का हार पहना कर दफनाया गया है, जबकि अन्य बच्चों की कब्रों में सामान के तौर पर कुछ बरतन मात्र हैं।
  • इस काल में सरदार और उसके नातेदार आयताकार मकानों में बस्ती के केन्द्र स्थल में रहते थे।
  • इनामगाँव में शिल्पी या पंसारी लोग पश्चिमी छोर पर रहते थे। आयताकार मकानों में सरदार वर्ग तथा गोल झोपड़ियों में सामान्य वर्ग के लोग रहते थे।

प्राचीन संस्कृति महत्वपूर्ण तथ्य 

  • मालवा संस्कृति नवदाटोली, एरण और नगदा में पाई जाती थी। 
  • जोरवे संस्कृति जो अंशतः विदर्भ और कोंकण को छोड़कर सारे महाराष्ट्र में फैली हुई थी। यह देश के दक्षिणी और पूर्वी भागों में ताम्रपाषाण बस्तियाँ हड़प्पा संस्कृति से स्वतंत्र रही थी।
  • कायथा संस्कृति जो हड़प्पा संस्कृति की कनिष्ठ समकालीन है, इसके मृदभांड में कुछ प्राक्-हड़प्पीय लक्षण हैं और साथ ही इस पर हड़प्पाई प्रभाव भी दिखाई देता है।
  • गणेश्वर संस्कृति को उसके सूक्ष्म पाषाण वस्तुओं तथा अन्य पाषाण उपकरणों को देखते हुए प्राक् हड़प्पाई ताम्रपाषाण संस्कृति कहा जा सकता है। 
  • ताम्रपाषाण अवस्था में अनाज, भवन, मृदभांड आदि में क्षेत्रीय अंतर भी दिखाई देते हैं। पूर्वी भारत चावल उपजाता था तो पश्चिमी भारत जौ और गेहँ। 
  • मध्य प्रदेश में कायथा और एरण की और पश्चिमी महाराष्ट्र में इनामगाँव की बस्तियाँ किलाबंद थीं।
  • नवदाटोली, मध्य प्रदेश का एक महत्त्वपूर्ण ताम्र-पाषाणिक पुरास्थल है जो नर्मदा नदी के तट पर बसा है। इस स्थान पर अब तक सबसे अधिक अनाज के भण्डार पाए गए हैं।
  • ताम्रपाषाण काल के लोग लिखने की कला नहीं जानते थे। उल्लेखनीय है कि वे नगरों में न रहकर ग्रामीण समुदाय में रहते थे। जबकि काँस्य युग के लोग नगरवासी हो गए थे।
  • ताम्रपाषाण युग को कैल्कोलिथिक युग भी कहा जाता है। जिन संस्कृतियों में तांबे के औज़ारों के साथ-साथ पत्थर के बने हुए उपकरणों का प्रचलन मिलता है, उन्हें प्रायः ताम्रपाषाणिक संस्कृति कहा जाता है।
  • जोरवे संस्कृति ग्रामीण थी। 
  • जोरवे संस्कृति मुख्य रूप से पश्चिमी महाराष्ट्र में पाई जाती थी। इस संस्कृति के निम्न पुरास्थल हैं- अहमदनगर ज़िले में जोरवे, नेवासा और दैमाबाद, पुणे ज़िले में चंदौली, सोनगाँव और इनामगाँव, प्रकाश और नासिक। 
  • जोरवे संस्कृति दैमाबाद और इनामगाँव में नगरीकरण के स्तर तक पहुँच गई थी। 

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