हिन्दी गद्य साहित्य की विविध विधाएँ । हिन्दी साहित्य की विविध विधाएँ । Hindi Sahitya Ki Vidhayen

 हिन्दी गद्य साहित्य की विविध विधाएँ

हिन्दी गद्य साहित्य की विविध विधाएँ । हिन्दी साहित्य की विविध विधाएँ । Hindi Sahitya Ki Vidhayen


 

साहित्य शब्द का अर्थ 

 

  • साहित्य शब्द का प्रयोग आज बहुत व्यापक अर्थों में होता है। जब हम किसी विषय के ग्रंथ की बात करते हैं तो वह ग्रंथ उस विषय का साहित्य कहलाता है। जैसे हम 'इतिहास-साहित्य कहें तो इसका अर्थ हुआ इतिहास विषय से संबंधित पुस्तकें । इसी प्रकार जब हम 'राजनीति साहित्य' 'दर्शन-साहित्यया 'विज्ञान-साहित्य' कहते हैं तो इसका अर्थ होता है राजनीति, दर्शन एवं विज्ञान विषय से संबंधित पुस्तकें । वस्तुतः इस प्रकार के साहित्य के लिए "वाङ्मय" शब्द का प्रयोग अधिक उपयुक्त है। यहाँ वाङ्मय एवं साहित्य के अंतर को जान लेना चाहिए ।

 

'वाङ्मय' के अन्तर्गत सभी प्रकार की रचनाएँ आ जाती हैं, पर साहित्य में कुछ विशिष्ट रचनाएँ आती है । साहित्य में केवल उन्हीं रचनाओं की गणना की जाती है जिनसे पाठक को आनंद की प्राप्ति होती है। वाङ्मय और साहित्य के इस अन्तर को 'मानक हिन्दी कोश' में इन शब्दों में समझाया गया है:

 वाङ्मय और साहित्य में मुख्य अंतर

  • "समस्त प्रकार की रचना को वाङ्मय कहते हैं। वाङ्मय और साहित्य में मुख्य अंतर यह है कि वाङ्मय के अन्तर्गत तो ज्ञान राशि का वह सारा संचित भंडार आता है जो मानव को नई दृष्टि देता है और उसे जीवन संबंधी सत्यों का परिज्ञान कराता है। परन्तु साहित्य उक्त समस्त भंडार का वह विशिष्ट अंश है जो मनुष्य को एक अंतर्दृष्टि देता है जिससे रचनाकार किसी प्रकार की रचना करके आत्मोपलब्धि करता है और रसिक लोग उस कला का आस्वादन करके लोकोत्तर आनंद का अनुभव करते हैं।" ("मानक हिन्दी कोश", संपादक रामचंद्र वर्मा, हिन्दी साहित्य सम्मलन, प्रयाग )

 

'वाङ्मय' और 'साहित्य के अन्तर को आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की पुस्तक 'साहित्य सहचर की सहायता से और सरलता से समझा जा सकता है। उन्होंने अपने इस ग्रंथ में समस्त प्रकार की रचनाओं को तीन वर्गों में बाँटा है:

 

सूचनात्मक साहित्य, विवेचनात्मक साहित्य तथा सृजनात्मक या रचनात्मक साहित्य आइए इन तीनों का  अंतर जानें

 

i) सूचनात्मक साहित्य : 

  • इसके अंतर्गत ऐसी रचनाएँ आती है जिनके द्वारा हमें अनेक नयी बातों की जानकारी प्राप्त होती है। ऐसी रचनाओं को पढ़कर हम उनसे प्राप्त जानकारी से ही संतुष्ट हो जाते हैं। उदाहरण के लिए विश्वकोश, संदर्भ ग्रंथ आदि ।

 

ii) विवेचनात्मक साहित्य 

  • इसके अंतर्गत ऐसी रचनाएँ आती हैं जिनके द्वारा हमारा ज्ञान तो बढ़ता ही है, हमारी बोधन-शक्ति भी जागरूक बनी रहती है अर्थात् हमारे अंदर और अधिक जानने की इच्छा पैदा होती है। दर्शन, विज्ञान एवं गणित की पुस्तकें इस प्रकार के साहित्य के अंतर्गत आती है।

 

iii) रचनात्मक या सृजनात्मक 

  • साहित्य इस प्रकार की रचनाओं में ऐसी पुस्तकें शामिल हैं जिनमें लेखक हमारी जानी हुई बात को कुछ इस ढंग से कहता है कि हमारे अंदर उसे पढ़ने की ललक बढ़ती है । इस प्रकार की रचनाओं को पढ़कर हमें ऐसा लगता है मानों उसमें कही गयी बातें हमारी अपनी ही हों उदाहरण के लिए आप प्रेमचंद के उपन्यास "गोदान" को लें। इस उपन्यास का मुख्य पात्र होरी है । उसके सुख-दुःख के साथ हम भी जुड़ जाते हैं अर्थात् हम भी उसके सुख-दुख में शामिल हो जाते है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के शब्दों में, "इस प्रकार की रचनाएँ हमें सुख-दुःख की व्यक्तिगत संकीर्णता और दुनियावी झगड़ों से ऊपर ले जाती हैं और संपूर्ण मनुष्य जाति के और भी आगे बढ़कर प्राणि-माात्र से सुख-दुःख, राग-विराग, आहलाद- आमोद को समझ की सहानुभूतिमय दृष्टि देती हैं।" ('साहित्य सहचर", हजारीप्रसाद द्विवेदी, पृ०-2) कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास, निबंध आदि इसी श्रेणी की रचनाएँ हैं।

 

  • समस्त प्रकार की रचनाओं के जो तीन वर्ग बताए गये हैं, उन्हें 'वाङ्मय' के अन्तर्गत उनमें से तीसरा "सृजनात्मक साहित्य" ही साहित्य शब्द के विशिष्ट अर्थ का बोधक है। सकते हैं पर इस पाठ में हम "साहित्य" शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में करेंगे ।

 

हिन्दी गद्य की विभिन्न विधाएँ

  

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.