विपिन चंद्र पाल ऐतिहासिक व्यक्तित्व |Vipin Chandra Pal Historical Personality
विपिनचंद्र पाल Vipin Chandra Pal
भारत में ‘‘क्रांतिकारी विचारों के जनक‘‘ विपिन चंद्र पाल का जन्म 7 नवंबर 1858 को वर्तमान बांग्लादेश के हबीबगंज
जिले के पोइल नामक गॉव में एक धनी हिन्दू वैष्णव परिवार में हुआ था। इनके पिता
रामचंद्र पाल एक फारसी विद्धान तथा एक छोटे से जमीदार थे। एक समृद्ध परिवार से
संबंध होने के परिणामस्वरूप उनकी शिक्षा दीक्षा उच्च कोटि की हुई।
विपिनचंद्र पाल प्रमुख तथ्य
- विपिनचंद्र पाल लाल लाजपत , बाल गंगाधर तिलक तथा महर्षि अरविंद के दर्शन, कार्य तथा आध्यात्मिक विचारों से अत्यंत प्रभावित थे, उन्हीं का अनुसरण करते हुए उन्होंने भी अपना जीवन स्वतंत्रता संग्राम के महायज्ञ में अर्पित करने का निर्णय लिया।
- देश में स्वराज की अलख जगाने के लिए उन्होंने कई अखबार भी निकाले तथा उनके माध्यम से पूर्ण स्वराज, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार तथा स्वदेशी अपनाओ की भावना आम जनमानस के अंदर जगाई।
- उन्होंने देशवासियों का यह विचार दिया कि ‘विदेशी उत्पादों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था खराब हो रही है और बेरोजगारी बढ़ रही है‘ अतः विदेशी चीजों का बहिष्कार करें और स्वदेशी चीजों का उपयोग करें।
- उन्होंने अपनी लेखन शक्ति से आम जनमानस में सामाजिक जागरूकता और राष्ट्रवाद की भावना जागृत किया और इसके लिए उन्होंने पत्रकारिता के मार्ग को अपनाया। उनकी प्रमुख पुस्तकों में ‘राष्ट्रीयता और साम्राज्य‘, ‘भारतीय राष्ट्रवाद‘, ‘स्वराज और वर्तमान स्थिति‘, ‘द सोल ऑफ इंडिया‘, ‘द बेसिस ऑफ सोशल रिफार्म‘, ‘द हिंदुइज्म‘ और ‘ द स्परिट‘ आदि सम्मिलत हैं।
- उन्होंने ‘डेमोक्रेसी‘ तथा ‘स्वतंत्र‘ आदि अनेक पत्रिकाओं का संपादन भी किया ‘न्यू इंडिया‘, ‘वंदे मातरम‘ और ‘स्वराज‘ उनकी महत्वपूर्ण पत्रिकाएं हैं।
- ‘अमृत बाजार पत्रिका‘ में भी उन्होंने अपना योगदान दिया। 1906 में उन्हें वंदेमातरम पत्र के द्वारा अंग्रेजों के विरूद्ध जनमत तैयार करने और अरविंद घोष पर चल रहे राजद्रोह के मुकदमे पर गवाही देने के कारण 6 माह का कारावास भी हुआ।
- निर्भीक व स्पष्ट वक्ता विपिन चंद्र पाल का
कहना था कि ‘दासता मानवीय आत्मा के विरूद्ध है, भगवान ने समस्त प्राणियों को स्वतंत्र
बनाया है।‘‘
- ब्रिटिश सरकार के प्रति गांधी जी के रवैये से असहमत होने पर वे गांधी जी की आलोचना भी कर चूके। वे ऐेसे प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने गांधी या गांधीपंथ की आलोचना करने का साहस किया।
- उन्होंने गांधी जी को ‘तार्किक की बाजाय जादुई विचारों वाला कहकर उनकी आलोचना की।
- 1920 में स्वेच्छा से उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया, परंतु वे आजीवन राष्ट्रीय समस्याओं पर अपने विचार व्यक्त करते रहे।
- स्वतंत्रता संग्राम के इस सेनानी ने भारत की स्वतंत्रता का स्वप्न ऑखों में संजोए 20 मई, 1932 को सदैव के लिए ऑखेँ मूंद ली।
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