बाजीराव प्रथम ऐतिहासिक व्यक्तित्व | Barirao Pratham Historical personality


 Barirao Pratham Historical  personality

बाजीराव प्रथम  ऐतिहासिक व्यक्तित्व  

बाजीराव प्रथम मराठा सामा्रज्य के महान् सेनानायक थे, वह बालाजी विश्वनाथ और राधाबाई के बड़े पुत्र थे. राजा शाहू ने बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु हो जाने के बाद उन्हें अपना दूसरा पेशवा (1720-1740) नियुक्त किया, जिससे बालाजी विश्वनाथ के परिवार में पेशवा का पद वंशानुगत (पैतृक) हो गया।

बाजीराव प्रथम के संबंध में प्रमुख तथ्य

  • बाजीराव प्रथम के अधीन मराठा शक्ति अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई।
  • बाजीराव प्रथम को बाजीराव बल्लालतथा थोरले बाजीरावके नाम से भी जाना जाता है।
  • उन्होंने मराठा साम्राज्य के विस्तार के लिए उत्तर दिशा में आगे बढ़ने की नीति का सुत्रपात किया ताकि मराठों की पताका कृष्णा से लेकर अटक तक फहराए।
  • बाजीराव प्रथम को शिवाजी के बाद गुरिल्ला युद्ध का सबसे बड़ा प्रतिपादक कहा गया।
  • बाजीराव प्रथम, मुगल साम्राज्य के तेजी से हो रहे पतन और विघटन से परिचित थे तथा वे इस अवसर का पूरा लाभ उठाना चाहते थे।
  • मुगल साम्राज्य के प्रति अपनी नीति की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि  हमें इस जर्जर वृक्ष के तने पर आक्रमण करना चाहिए, शाखाएं तो स्वयं गिर जाएंगी‘‘
  • इसी के काल में मराठों के गायकावाड़, होल्कर, सिंधिया और भोंसले परिवारों ने प्रमुखता प्राप्त की।
  • बाजीराव प्रथम ने 1733 ई. में जंजीरा की सीदियों के विरूद्ध एक लम्बा शक्तिशाली अभियान आरंभ किया और अन्तोगत्वा उन्हें मुख्य भूमि से निकाल बाहर कर दिया गया।
  • बाजीराव प्रथम विस्तारवारी प्रवृत्ति का व्यक्ति था, उसने हिन्दू जाति की कीर्ति को विस्तृत करने के लिए हिन्दू पद पदशाही के आदर्श को फैलाने का प्रयत्न किया।
  • 23 जून, 1724 ई. में शूकरखेड़ा के युद्ध में मराठों की मदद से निजामुल-मुल्क ने दक्कन के मुगल सूबेदार मुबारिज खॉ को परास्त करके दक्कन में अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित की।
  • निजामुल-मुल्क ने अपनी स्थिति मजबूत होने पर पुनः मराठों के खिलाफ कार्यवाही शुरू कर दिया तथा चौथ देने से इंकार कर दिया परिणामस्वरूप 1728 ई. में बाजीराव ने निजामुल-मुल्क को पालखेड़ा के युद्ध में पराजित किया।
  • युद्ध में पराजित होने पर निजामुल-मुल्क संधि के लिए बाध्य हुआ।
  • 6 मार्च 1728 ई. में दोनों के बीच मुंशी शिवगॉव की संधि हुई, जिसमें निजाम ने मराठों को चौथ और सरदेशमुखी देना स्वीकार कर लिया इस संधि में दक्कन में मराठों की सर्वोच्चता स्थापित हो गई।
  • बाजीराव प्रथम के समय ही मराठा मंडल की स्थापना हुई, जिसमें ग्वालियर के शिन्दे, बड़ौदा के गायकवाड़, इंदौर के होल्कर, और नागपुर के भोंसले शासक शामिल थे।
  • जब 1740 ई. में बाजीराव प्रथम की मृत्यु हुई तब तक मालवा, गुजरात और बुंदेलखण्ड के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।

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