Madhya Pradesh Ki Janjati Evam Kala | मध्यप्रदेश की जनजाति एवं कला


मध्यप्रदेश की जनजाति एवं कला

प्रश्न- जनजातियों की विशेषतायें बताइये। 




उत्तर-जनजातियों की प्रमुख विशेषतायें इस प्रकार हैं:- 

1. जनजातियों समाज में सर्वोत्तम कार्यात्मक निर्भरता मिलती है। 
2. पिछड़ी हुयी आर्थिक परिस्थितियों के कारण इनका मुख्य आर्थिक कार्य प्राकृतिक संसाधनों का दोहन है। 
3. भौगोलिक परिस्थितियों के कारण ये चारों ओर के प्रदेश और अधिवासों से कटे हुये हैं। परंतु अब सरकारी प्रयासों से इनकी स्थिति परिर्वतन दिखायी देने लगा है। 
4. प्रत्येक जनजातियों की एक बोली होती है, उसका कोई लिखित रूप या व्याकरण नहीं होता है। 
5. अनु 366 (25) जनजातियों से संबंधित है, जिन्हें अनुच्छेद 342 के अधीन अनुसूचित किया गया है। 
6. जनजातियां राजनैतिक दृष्टि से संगठित होती हैं। इस समुदाय की पंचायत एक प्रभावशाली संघ होता है। 
7. जनजातियों का अपना परम्परागत सामाजिक कानून होता है। 
8. जनजातियों में परिवर्तन एवं विकास का आग्रह नहीं होता। ये परम्परागत रीति रिवाज व अंधविश्वासों से ग्रस्त रहते हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मध्यप्रदेश में लगभग 1 करोड़ 53 लाख 16 हजार से ज्यादा व्यक्ति अनुसूचित जनजाति वर्ग के निवासरत जो प्रदेश की कुल जनसंख्या का 21.10 प्रतिशत है। भारत की कुल जनसंख्या में अनुसूचित जनजातियों का हिस्सा 8.6 प्रतिशत है। 

प्रश्न-विशेष पिछड़ी जनजातियां किसे कहते हैं और मध्यप्रदेश की विशेष पिछड़ी जनजातियों की विशेषतायें बताइये। 


उत्तर- सामान्यतया यह माना जाता है कि जनजातीय लोग समाज की मुख्य धारा से पृथक जंगलों में निवास करते हैं, परंतु जनजातीय समाज में भी अति पिछड़ी जनजातियां भी हैं। अति पिछड़ी जनजाती घोषित करने हेतु निम्नलिखित मापदण्डों का निर्धारण किया गया हैः- 
  
1. खेती की पुरातन पद्धतियां। 
2. साक्षरता का कम प्रतिशत। 
3. स्थिर अथवा घटती जनसंख्या। 
4. दूरगामी अथवा दूरस्थ भौगोलिक क्षेत्रों में निवास। 

उक्त मापदण्डों के आधार पर मध्यप्रदेश में तीन विशेष पिछड़ी जनजातियां भारिया, बैगा, सहरिया समेत अन्य जनजातियां आदि निवास करती हैं। जिनकी 2011 में कुल जनसंख्या 12 लाख 22 हजार 714 है। जो कि प्रदेश की कुल जनसंख्या का 7.96 प्रतिशत है। 

बैगा जनजाति  Baigaj Janjati

म.प्र. में बैगा जनजाति की जनसंख्या 4.15 लाख है, जो राज्य की कुल अनुसूचित जनजाति जनसंख्या का 2.71 प्रतिशत है। यह मुण्डा या कोल वर्ग की आदिम जनजाति है। पूर्वी सतपुड़ा व बघेलखंड में बैगा शहडोल, उमरिया, मण्डला, डिण्डौरी, सीधी तथा सिगरौली जिले में फैले हैं। 

शारीरिक विशेषतायें 

बैगाओं रंग काला, त्वचा सूखी व नाक चपटी होती है। 

पहनावा 
पुरूष कमीज व लगोंटी तथा महिलायें धोती पहनती हैं। महिलाओं को आभूषण व गोदना प्रिय होता है। गौमांस खाना वर्जित है। सुबह के भोजन को बासी, दोपहर के भोजन को पेज और शाम के भोज को बियारी कहते हैं। 

बैगाओं में पांच प्रकार होते हैं- मुकडमंद, दीवान, समरथ, कोटवार और दवात
  • बैगाओं के प्रमुख देवता बूढ़देव हैं, जो शाज के वृक्ष पर निवास करते हैं। भूमि के देवता ठाकुर देव हैं ओर ये बीमारियों से सुरक्षा के लिये दूल्हादेव की पूजा करते हैं। यह जनजाति जादू-टोने में विश्वास करती है। 
  • मगनी विवाह, चढ़ विवाह, उठवा विवाह , चोर विवाह, पेठुल विवाह, लमसेना विवाह, उधरिया विवाह आदि इनके विवाह के विभिन्न प्रकार हैं। 
भारिया 
यह गोंड जनजाति की एक शाखा है। भारिया का शाब्दिक अर्थ भार ढोने वाला होता है। भारिया जनजाति विशेष रूप से छिंदवाड़ा जिले की तामिया तहसील में स्थित पातालकोट के कारण प्रसिद्ध है। इसके अलावा यह सिवनी, मंडला  आदि जिलों में पाई जाती है। 

शारीरिक बनावट 
भारिया लोगों का कद मध्यम, रंग काला, आंखें छोटी, होठ पतले और नाक चौड़ी होती है। 

भूमिया 
  • भूमिया और पडियार इनकी प्रमुख उपजातियां हैं। भड़म, सेतम, करमा व शैला प्रमुख नृत्य हैं। बूढ़ादेव, दूल्हादेव और नागदेव देवता इनके प्रमुख देवता हैं। 
  • विदरी पूजा, नवाखनी, जवारा, दीवाली और होली इनके प्रमुख त्यौहार हैं। 
सहरिया जनजाति 
  • सहरिया मध्यप्रदेश की अति पिछड़ी जनजाति है, जो श्योपुर, मुरैना भिण्ड, ग्वालियर, शिवपुरी, गुना आदि जिलों में पायी जाती है। यह कोलेरियन परिवार की जनजाति है। सहरका अर्थ जंगलहोता है। यह लोग जड़ी-बूटी एकत्रित करने जंगल जाते हैं, इसलिए इन्हें सहरिया कहा जाता है। सहरिया का एक और अर्थ शेर के साथ रहने वाले हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार सहरिया जनजाति की जनसंख्या मध्यप्रदेश में 6.14 लाख है, जो राज्य की अनुसूचित जनजाति का 4.01 प्रतिशत है। इनकी वेशभूषा पर राजस्थानी संस्कृति का प्रभाव होता है। 
  • सहरिया की परिवारिक इकाई कुटुम्ब कहलाती है। समतल मैदान में इनके घर पंक्तिबद्ध एक कतार में होते हैं, जिसे सहराना कहते हैं। सहरिया जनजाति में खासतौर से कुपोषण की समस्या विद्यमान है। 

 प्रश्न-मध्यप्रदेश की जनजातियों की प्रमुख विशेषता बताइये


उत्तर- मध्यप्रदेश में प्रमुख रूप से गोंड, भील, कोरकू, कोल, बैगा, सहरिया, भारिया, अगरिया, पारदी पनिका आदि जनजातियां निवास करती हैं। 

इन सभी जनजातियों की कुछ प्रमुख विशेषतायें एक समान हैं, जो इस प्रकार है- 
1. पितृसत्तात्मक 
2. गोदना प्रिय 
3. वधू मूल्य 
4. विवाह विच्छेद 
5. विधवा विवाह 
6. समगौत्रीय विवाह का निषेध 

प्रश्न- भील जनजाति की विशेषतायें बताइये

उत्तर- भील जनजाति 

  • यह जनसंख्या की दृष्टि से मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति है। जनगणना के अनुसार राज्य में भीलों की जनसंख्या 59.9 लाख है। भील शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा के बीलशब्द से हुयी है, जिसका अर्थ धनुष होता है। 
  • भीलों का कद नाटा, रंग गेहूंआ तथा नाक चपटी होती है। चेहरा चौड़ा और बाल घुंघराले होते हैं। शरीर छोटा, पतला किंतु सुगठित होता है। 
  • भीलों के घर एक-दूसरे से अनिश्चित दूरी पर बसे होते हैं, जिन्हें फाल्याकहते हैं। इनके गांव पाल तथा खेती चिमाता कहलाती है। 
  • भालों का प्रमुख त्यौहार भगोरिया होता है। जो फागुन माह में झाबुआ में मनाया जाता है। इसमें वधू मूल्य प्रथा का सर्वाधिक प्रचलन पाया जाता है। इसके अलावा परीक्षा विवाह की प्रथा गोलगधेडोंका प्रचलन भी है। 
  • भीलों के प्रमुख देवता राजपंथा है तथा वह हिन्दुओं के सभी देवी देवताओं को मानते हैं। भीली, भगोरिया, बड़वा घूमर, गोरी आदि इनके प्रमुख नृत्य हैं। 
  • बारेला, भिलाला, कोटवार तथा पुजारो इनकी प्रमुख उपजातियां हैं 

 प्रश्न- गोंड तथा कोरकू जनजाति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये। 


उत्तर- 
गोंड जनजाति 
  • गोंड मध्यप्रदेश की एक प्रमुख आदिम जनजाति है, जिसका संबंध प्राक् द्रविड़ समूह से माना जाता है। यह जनसंख्या की दृष्टि से भारत की सबसे बड़ी जनजाति है। गोंड जनजाति मध्यप्रदेश के सभी जिलों में फैली हुई है, लेकिन नर्मदा के दोनों ओर विंध्य और सतपुड़ा के पहाड़ी क्षेत्रों में इसका अधिक सकेन्द्रण है।
  • गोंड जनजाति के लोगों का रंग काला, सिर-गोल तथा चेहरे पर कम बाल होते हैं। इनका परिवार पितृसत्तात्मक होता है। स्त्रियों को आभूषण प्रिय होता है व उनमें गोदना का प्रचलन पाया जाता है। 2011 की जनगणना के अनुसार मध्यप्रदेश में इनकी जनसंख्या 50.93 लाख है। सर्वाधिक जनसंख्या 6.2 लाख छिन्दवाड़ा में है। 
  • विवाह गोंडों में पलायन विवाह को लमझनाकहा जाता हैं वधू मूल्य को दूध बंद कहते हैं। सेवा विवाह को लामनाई कहा जाता है। मामा-बुआ के बच्चों में संबंध को दूध लोटावाकहा जाता है। इसे सर्वश्रेष्ठ विवाह माना जाता है। 
  • प्रमुख देवता-बूढ़ादेव के अलावा सूर्यदेव, नारायण देव। 
  • गोंड शब्द का अर्थ पर्वतवासी मनुष्य होता है। इनकी जीविका का प्रमुख साधन कृषि व मजदूरी है। शौला, कर्मा, बढ़ोनी, गिरधा, सुआ आदि इनके प्रमुख नृत्य हैं। गोडों की प्रमुख उपजनजातियां इस प्रकार हैंः-
  • अगरिया- लोहे का काम करने वाले गोंड होते हैं। 
  • प्रधान-मुखिया 
  • ओझा- झाड-फूंक करने वाले गोंड कोइला भुतिस- नृत्य करने वाले गोंड। 
कोरकू जनजाति 
  • यह मुण्डा या कोल समूह की एक जनजाति है। मध्यप्रदेश में कोरकू जनजाति की कुल जनसंख्या 7.31 लाख है। सतपुड़ा के मध्य भाग में कोरकू जनजातिका अधिकांश संकेंद्रण है, जिनमें छिन्दवाड़ा, बैतूल, होशंगाबाद, हरदा और खंडवा जिले प्रमुख हैं। कोरकू जनजाति में दो वर्ग पाये जाते हैं- राजकोरकू तथा पठारिया। राजकोरकू भूमि के स्वामी होते हैं तथा सामाजिक दृष्टि से उच्च वर्ग के माने जाते हैं। 
  • शारीरिक विशेषता- जनजाति के लोगों का रंग काला, नाक चपटी होठ मोटे और चेहरा गोल होता है। 
  • कोरकू समाज टोटम आधारित समाज है। इनमें मृत्यु के बाद गाड़ने की परंपरा है। इनमें सिडोली प्रथा पाई जाती है। 
  • कोरकू लोगों के घर दुर्गम क्षेत्रों में परंतु अत्यधिक प्राकृतिक सौंदर्य वाले स्थान पर होते हैं। ये प्राकृतिक सौन्दर्य प्रिय होते हैं। यह समूह में रहते हैं। तथा अपना गांव बसाना अधिक पसंद करते हैं। 
  • प्रमुख विवाह प्रकार- घर दामाद, लमझना, राजी-बाजी प्रथा, तलाक एवं विधवा विवाह। देवदशहरा, माघदशहरा, जिरोती, आखातीज और मेघनाद पूजन इनके प्रमुख पर्व हैं। 

 प्रश्न- मध्यप्रदेश के विभिन्न कला प्रारूपों पर विस्तार से चर्चा कीजिये। 

उत्तर
मध्यप्रदेश की कला

शिल्पकला 
मध्यप्रदेश भारत की विभिन्न संस्कृतियों का सम्मिलन बिंदु है, अतः यह कला समृद्ध क्षेत्र है। कला विविधता और संपन्नता के कारण इसे कलाओं का घर कहा जाता है। मध्यप्रदेश की विभिन्न कलाओं का विवरण इस प्रकार हैः- 

कंघी शिल्प 
कंघी शिल्प बनाने का श्रेय बंयारा जनजाति को है। प्रदेश में कंघी शिल्प के प्रमुख केन्द्र उज्जैन, रतलाम नीमच हैं। आदिवासियों द्वारा कंघियों पर अलंकरण, गोदना और भित्ति चित्रों का निर्माण किया जाता है।
गुडि़या शिल्प 
प्रदेश में नयें-पुराने वस्वों एवं कागजों से गुडि़या बनाने की लोक परम्परा है। ग्वालियर अंचल तथा झाबुआ भीली गुडि़या के लिए प्रसिद्ध है। मिट्ठी शिल्प-झाबुआ, मण्डला, बैतूल के कुम्हारों द्वारा बनाये गये। 

खराद कला 
श्योपुर कला, बुधनी घाट, रीवा के सुपारी के खिलौने और मुरैना के खराद की कला प्रसिद्ध है। इस कला में खिलौने व सजावट की समाग्री बनायी जाती है। 

बांस शिल्प 
झाबुआ, मण्डला, में बांस से विभिन्न बर्तन व सजावटी सौंदर्य की वस्तुयें बनाई जाती है। 

पत्ता शिल्प
पत्ता शिल्प के कलाकार झाड़ू बनाने वाले होते हैं। 

काष्ठ शिल्प 
मध्यप्रदेश में कोरकू व भील जनजातीय क्षेत्र में काष्ठ कला समृद्ध अवस्था में विद्यमान है। 

कठपुतली शिष्ठ 
मध्यप्रदेश के सभी अंचलों में कठपुतली शिल्प भी प्रचलित है। 

छीपा शिल्प 
उज्जैन का छीपा शिल्प भेरूगढ़ के नाम से देश एवं विदेश में विख्यात है। 

महेश्वरी साड़ी 
  • महेश्वर के पारम्परिक बुनकारों द्वारा बुनी गयी सूती और रेशमी साडि़यां सुंदर टिकट और पक्के रंग की होती है। जिन पर जरी और केल के धागे से छोटे बेल बूटे काढ़े जाते हैं। महेश्वरी साड़ी की प्रमुख विशेषता छोटी चौकड़ी, मनमोहक पल्लू हल्के गहरे चमकदार चाँदी और स्वर्णित रंगों में जरी रेशम से हाथ से की गयी कढ़ाई है। 
 प्रदेश  के प्रस्तर शिल्प का विकास मंदसौर व रतलाम जिले में हुआ है। 

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