जैव-विविधता,खनिज संपदा, जल संसाधन |Biodiversity,Mineral Resources,water resources in MP}

जैव-विविधता,खनिज संपदा, जल संसाधन {Biodiversity,Mineral Resources,water resources in MP}
जैव-विविधता,खनिज संपदा, जल संसाधन 
{Biodiversity,Mineral Resources,water resources in MP}

  • राज्य में जैव-विविधता के संरक्षण, इसके घटकों से सही उपयोग तथा जैविक संसाधनों के बेहतर उपयोग के उद्देश्य से जैव-विविधता विभाग का गठन वर्ष 2001 में किया गया। विभाग के अंतर्गत कार्यरत संस्थानों में म.प्र. राज्य जैव-विविधता बोर्ड तथा म.प्र. जैव-प्रौद्योगिकी परिषद् हैं। 

म.प्र. राज्य जैव-विविधता बोर्ड 
  •  जैव-विविधता अधिनियम, 2001 के प्रावधनों के तहत राज्य में म.प्र. राज्य जैव-विविधता बोर्ड का गठन किया गया। विभाग द्वारा पन्ना राष्ट्रीय उद्यान को बायोस्फीयर रिजर्व घोषित करने के लिए केन्द्र शासन को प्रस्ताव भेजने के लिए रिपोर्ट तैयार की गई है। मंडला एवं डिंडौरी जिलों की वानस्पतिक, कृषि, जलीय जैव-विविधता का दस्तावेजीकरण एक परियोजना में माध्यम से किया जा रहा है। 

 म.प्र. जैव-प्रौद्योगिकी परिषद
  • परिषद् का पंजीकारण वर्ष 2005 में किया गया। परिषद् का मुख्य दायित्व जैव-प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने वाले उद्योनों की स्थापना करना, जैव-प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं शिक्षा को बढ़ावा देना आदि है। 

खनिज संपदा 

  • खनिज उत्पादन के राष्ट्रीय परिदृश्य पर मध्य प्रदेश का महत्वपूर्ण स्थान है। खनिज संपदा की दृष्टि से राष्ट्र के आठ खनिज संपन्न राज्यों में मध्य प्रदेश का स्थान बना हुआ है। देश में मध्य प्रदेश अकेला ऐसा राज्य है जहाँ हीरा पाया जाता है। पन्ना के अलावा बुंदेलखण्ड के छतरपुर जिले में भी हीरा मिलने की संभावना है। खनिजों के दोहन से मिलने वाली राजस्व आय में मध्य प्रदेश की राजकोषीय आय में पाँचवाँ स्थान प्राप्त है। वित्तीय वर्ष 2008-09 में खनिज विभाग ने 1360.71 करोड़ रूपए का राजस्व राज्य की संचित निधि में जमा कराया। प्रदेश में खनिज राजस्व का एक बड़ा हिस्सा कोयले और चूना-पत्थर से प्राप्त होता है। मध्य प्रदेश में खनिजों की खोज के कार्य में आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। 1 अप्रैल, 2006 की स्थिति में प्रदेश में हीरा, सोना, चाँदी, प्लेटिनम, ताँबा, जिंक, निकिल आदि महुमूल्य खनिजों की अत्याधुनिक तकनीक से खोज के लिए आठ रिकोनेन्सेस परमिट जारी किये गये हैं। किकोनेन्सस कार्य में मेसर्स रियो टिन्टों द्वारा छरतपुर और 
  • पन्नों जिलों में 15 किम्बरलाइट पाइप की खोज की गई है। प्रदेश में ऊर्जा के क्षेत्र में नए स्त्रोतों के पता लगाने के लिए चार कंपनियों को लायसेंस जारी किए गए हैं। ये चार कंपनियाँ कोल बेड मिथेन गैस की खोज के लिए शहडोल, अनूपपुर और छिंदवाड़ा जिलों में कार्य कर रही हैं। प्रदेश की नई औद्योगिक नीति के तहत इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि खनिज आधारित उद्योगों का विकास और मूल्य संवर्द्धन प्रदेश में ही हो। इस नीति के अंतर्गत कटनी जिले में स्टोन पार्क की स्थापना की गई है।

विभाग 
  • मध्य प्रदेश में खनिजों के अन्वेषण, दोहन और विकास का कार्य खनिज साधन विभाग के अंतर्गत किया जा रहा है। इस विभाग के तहत संचालनालय भौतिकी तथा खनिकर्म, राजधानी भोपाल में कार्यरत हैं। क्षेत्रीय कार्यालय इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और रीवा में कार्यरत हैं। एक हीरा कार्यालय पन्ना में स्थापित किया गया है, इसके अलावा राज्य के सभी 50 जिलों में कलेक्टरों के निर्देशन में खनिज शाखा कार्यरत है। 
  • मैसूर सर्विसेज (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड द्वारा सीधी में सोना एवं निकिल, कटनी में सोना, शहडोल में सोना-कॉपर एवं बैतूल जिले में प्लेटिनम पैलेडियम की खोज की गई है। 

प्रमुख खनिज भण्डार 
  • लौह-अयस्क - मंडला और बालाघाट के कुछ क्षेत्रों में लौह अयस्क के भंडार है। ग्वालियर, जबलपुर में भी अल्प मात्रा में इसके भंडार हैं। 
  • चूना-पत्थर - कटनी में मुडवारा, बढ़मारा, मेहगाँव व मैसूर में इसके भंडार हैं। श्योपुर कला, सतना (पगरा) और झाबुआ जिले के डाबरी-खाटी क्षेत्र में भी इसका उत्पादन होता है। 
  • फास्फोराइट (रॉक फॉस्फेट) - इसकी खदानों मुख्य रूप से झाबुआ जिले में हैं। सागर तथा छतरपुर जिले में भी इसके भंडार हैं। सागर जिले के हीरापुर में इसका उत्पादन होता है। 

खनिज नीति - राष्ट्रीय खनिज नीति के परिप्रेक्ष्य में राज्य ने भी खनिज नीति बनाई है। 
खनिज निगम -
  • मध्य प्रदेश शासन खनिज साधन विभाग के उपक्रम दि एम.पी.स्टेट माइनिंग कार्पोरेशन (मध्य प्रदेश राज्य खनिज विभाग) की स्थापना 1962 में हुई । खनिज विभाग प्रदेश में मुख्य खनिजों एवं गौण खनिजों के दोहर पर कार्य कर रहा है। 

जल संसाधन 

  • प्रदेश में जल संसाधनों की प्रचुरता है। उपलब्ध जल संसाधनों के समुचित एवं समन्वित विकास के लिए 1956 में जल संसाधन विभाग की स्थापना की गई है। राज्य की अधिकतम सिंचाई क्षमता करीब 112.50 लाख हेक्टेयर आँकी गई है। इसमें अनुमान है कि सतही जल (प्रवाह जल) द्वारा 60.9 लाख हेक्टेयर तथा भू-जल द्वारा सिंचाई की क्षमता 52 लाख हेक्टेयर है। राज्य के औसत सतही जल प्रवाह 81.5 लाख हेक्टेयर मीटर में से 56.8 लाख हेक्टेयर मीटर का उपयोग राज्य करता है, शेष जल अंतर्राष्ट्रीय समझौते के तहत 24.7 लाख हेक्टेयर मीटर जल पड़ोसी राज्यों को आवंटित हैं। दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-2007) के लक्ष्य 3.40 लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई क्षमता निर्मित की गई। इस प्रकार ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के प्रारंभ तक कुल 24.63 लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई क्षमता निर्मित की गई है। ग्याहरवीं पंचवर्षीय योजना के प्रथम   वर्ष  2007-08 के लिये 1500 करोड़ रूपये की राशि का प्रावधान है और 1.28 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई क्षमता निर्मित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 

भारत निर्माण कार्यक्रम - 
  • भारत निर्माण कार्यक्रम का लक्ष्य देश में एक करोड़ हैक्टेयर क्षेत्र में अतिरिक्त सिंचाई क्षमता का निर्णय करना है। इसके तहत म.प्र. राज्य में 13 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता निर्मित करने के लिए वृहद योजना बनाई गई है। 

निर्माणाधीन प्रमुख वृहद परियोजनाएँ
बाणसागर परियोजना -
  • अंतर्राज्यीय वृहद परियोजना जो 1978 में प्रारंभ हुई थी। 1.53 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता वाली इस परियोजना से राज्य के चार जिले सीधी, सतना,  शहडोल तथा रीवा के किसानों को लाभ मिल रहा है। उ.प्र., म.प्र. बिहार की संयुक्त परियोजना है। 

बावनथड़ी परियोजना -
  •  मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र की अंतर्राष्ट्रीय वृहद परियोजना राजीव सागर परियोजना (बावनथड़ी ) दोनों राज्यों के आधे-आधे वित्तीय सहयोग से निर्मित है। इस परियोजना से राज्य के बालाघाट जिले के 29,412 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई प्रस्तावित है। 


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