India's judicial system in hindi |संघ की न्यायपालिका,केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण

संघ की न्यायपालिका,केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण
परिचय
  • भारत की न्याय व्यवस्था इकहरी और स्वीकृत है, जिसके सर्वोच्च शिखर पर भारत का उच्चतम न्यायालय है, उच्चतम न्यायालय दिल्ली मेँ स्थित है।
  • उच्चतम न्यायालय के गठन संबंधी प्रावधान अनुच्छेद-124 मेँ किया गया है।
  • उच्चतम न्यायालय मेँ एक मुख्य न्यायाधीश न्यायाधीश होते है इन न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।
उच्चतम न्यायालय
  • उच्चतम न्यायालय की स्थापना, गठन, अधिकारिता, शक्तियों के विनियमन से संबंधित विधि निर्माण की शक्ति भारतीय संसद को प्राप्त है।
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश एक बार नियुक्त हो जाने के पशचात 62 वर्ष की आयु तक अपने पद पर बना रहता है।
  • उच्चतम न्यायालयों के न्यायाधीश साबित कदाचार तथा असमर्थता के आधार पर संसद के प्रत्येक  सदन मेँ विरोध बहुमत से पारित समावेदन के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा हटाए जा सकते हैं।
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की योग्यताएं-
  1.  उसे भारत का नागरिक होना चाहिए।
  2. वह किसी उच्च न्यायालय अथवा दो या दो से अधिक न्यायालयों मेँ लगातार 5 वर्षोँ तक न्यायाधीश के रुप मेँ कार्य कर चुका हो।
  3. या किसी उच्च न्यायालय मेँ 10 वर्षोँ तक अधिवक्ता रह चुका हो।
  4. राष्ट्रपति की दृष्टि मेँ कानून का उच्च कोटि का ज्ञाता हो।
  5. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के पश्चात भारत मेँ किसी भी न्यायालय या किसी भी अधिकारी के सामने वकालत नहीँ कर सकते हैं।
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को पद एवं गोपनीयता की शपथ राष्ट्रपति दिलाता है।
  • भारत के मुख्य न्यायधीश को 90 हजार प्रतिमाह तथा अन्य न्यायाधीशों को 80 हजार रुपए प्रति माह वेतन मिलता है। इसके अतिरिक्त निःशुल्क सुसज्जित आवास या दस हजार रुपया मासिक आवास भत्ता, बिजली, पानी, टेलीफोन, स्वास्थ्य सुविधाएं देश के भीतर कहीँ भी यात्रा, कुछ विशेषाधिकार,  अवकाश ग्रहण के बाद पेंशन आदि उपलब्ध होते हैं।
  • मुख्य न्यायधीश पर महाभियोग केवल कदाचार के आधार पर लगाया जा सकता है।
  • महाभियोग की कार्यविधि  निश्चित करने का अधिकार संसद को प्राप्त है।
  • महाभियोग का प्रस्ताव दोनो सदनोँ मेँ पृथक-पृथक तक कुल सदस्योँ के बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्योँ के दो तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए।
  • दोनो सदनों द्वारा महाभियोग पारित होने के पश्चात राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति उसी आधार पर न्यायाधीशों को पदच्युति का आदेश देता है।
उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार
  • भारत संघ तथा एक या एक से अधिक राज्योँ के मध्य उत्पन्न विवादों में।
  • भारत संघ तथा कोई एक राज्य या अनेक राज्य और एक या एक से अधिक राज्योँ के बीच विवादो मेँ।
  • दो या अधिक दो से अधिक राज्योँ के बीच ऐसे विवाद मेँ, जिसमेँ अनेक वैधानिक अधिकारोँ का प्रश्न निहित है।
  • प्रारंभिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय उसी विवाद को निर्णय के लिए स्वीकार करेगा, जिसमें तथ्य या विधि का प्रश्न शामिल है।
  • अपीलीय क्षेत्राधिकार – देश का सबसे बड़ा अपीलीय न्यायालय उच्चतम न्यायालय है।
  • इसके अंतर्गत तीन प्रकार के मामले आते है-
  1. संवैधानिक
  2. दीवानी
  3. फौजदारी
  • परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार - राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह सार्वजनिक महत्व के विवादों पर उच्चतम न्यायालय का परामर्श मांग सकता है, अनुच्छेद 148।
  • न्यायालय के परामर्श को स्वीकार या अस्वीकार करना राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है।
  • पुनर्विचार संबंधी क्षेत्राधिकार - संविधान के अनुछेद 137 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि वह स्वयं द्वारा दिए गए आदेश रात पर पुनर्विचार कर सकें।
  • अभिलेख न्यायालय संविधान का अनुच्छेद 129 उच्चतम न्यायालय को अभिलेख न्यायालय का स्थान प्रदान करता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 32 मेँ विशेष रुप से प्रावधान है कि वह मौलिक अधिकारोँ को लागू कराने के लिए आवश्यक कार्यवाही करेँ।
उच्चतम न्यायालय
  1. यह किसी एक उच्च न्यायालय में चल रहे मुकदमे को दुसरे उच्च न्यायालय में भिजवा सकता है।
  2. यह किसी अदालत का मुकदमा अपने पास मंगवा सकता है।
  3. इसके फैसले सभी अदालतों को मानने होते हैं।
  4. अपने अधीनस्थ अदालतों का पर्यवेक्षण और नियंत्रण करता है।
  5. निचली अदालतों के फैसले पर की गयी अपील की सुनवाई कर सकता है।
प्रशासनिक अधिकरण
  • 1976 के 42 वेँ संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा अनुच्छेद 323क का समाविष्ट किया गया, जो केंद्र व राज्य की सरकारी सेवाओं मेँ नियुक्ति, पदोन्नति एवं स्थानांतरण व सेवा दशाओं संबंधी मामलोँ के विनिश्चय हैतू केंद्रीय व राज्य प्रशासनिक अधिकारणों की स्थापना का प्रावधान करता है।
  • इस प्रावधान के पालन हैतु संसद ने 1985 के प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम को पारित किया, ताकि केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) की स्थापना की जा सके।
  • कई राज्यों मेँ भी राज्य प्रशासनिक अधिकरण हैं।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के कर्मचारियोँ से सम्बद्ध संबंध मामलोँ को केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण या राज्य प्रशासनिक अधिकरण के तहत विज्ञप्ति के द्वारा लाया जा सकता है (जैसी आवश्यकता हो)। अधिकरण के सभापति तथा उप सभापति को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समकक्ष दर्जा प्राप्त होता है और उनकी सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष होती है।
  • अन्य सदस्यों जो प्रशासन से लिए जाते हैं के सेवानिवृत होने की आयु 62 वर्ष होती है।
  • निम्नलिखित श्रेणी के कर्मचारियो को प्रशासनिक अधिकारणों के दायरे से उन्मुक्ति प्राप्त होती है-
  1. उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय के कर्मचारियो को
  2.  सैन्य बल कर्मचारियों को
  3. राज्य सभा व लोक सभा सचिवालय के कर्मचारियो को
  • अधिकरणों का उद्देश्य न्यायालय के कार्यभार को कम करना व न्याय प्रक्रिया को तीव्र करना है।
  • 42वेँ संविधान संशोधन अधिनियम के अनुसार सेवा संबंधी मामलोँ की सुनवाई सिर्फ उच्चतम न्यायालय कर सकता है।
  • राष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श कर केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण और राज्य प्रशासनिक अधिकरण के सभापति व अन्य सदस्योँ की नियुक्ति करता है।
  • इसका सभापति बनने वाला व्यक्ति या तो किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश अवश्य होना चाहिए या कम से का 2 वर्षों तक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्यरत अवश्य रहा हो अथवा अधिकरण का उपसभापति रहा हो।
केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण
  • केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना 1985 मेँ संसदीय प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम, 1985 के तहत की गई। अतः यह एक संवैधानिक निकाय है।
  • यह नियुक्ति व सभी सेवा संबंधी मामलोँ के विवादों का निपटारा करता है।
  • इसका उद्देश्य सिविल सेवकों को शीघ्र व सस्ता न्याय उपलब्ध कराना है।
  • यह एक बहु सदस्यीय निकाय है, जिसमे एक सभापति, 16 उपसभापति तथा 49 अन्य सदस्य होते हैं।
  • सभापति तथा उपसभापति का कार्यकाल 5 वर्षोँ का अथवा 65 वर्ष की आयु पूरी करने तक जो भी पहले हो होता है।
  • अन्य सदस्योँ की पदावधि 5 वर्ष या 62 वर्ष की आयु पूरी करने तक (जो भी पहले हो) होती है।
  • वे पुनर्नियुक्त नहीँ हो सकते।
  • उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • वे न्यायिक व प्रशासनिक दोनो क्षेत्रों लिए जाते है।
  • केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण 1908 की सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) से बाध्य नहीँ होता।
  • इसका क्षेत्राधिकार अखिल भारतीय सेवाओं (AIS) तथा केंद्रीय सेवाओं (CS) व पदों तक विस्तृत होता है।
  • केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (Department od Personnel & Traning) के प्रशासनिक नियंत्रण मेँ कार्य करता है, जो कि कार्मिक, लोक शिकायतें और पेंशन मंत्रालय (Ministry of Personnel, Public Grievance & Pensions) के तीन विभागोँ मेँ से एक है।

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