भारत की न्यायपालिका | Judiciary of India in Hindi

Judiciary of India in Hindi

जिला न्यायाधीश

जिला स्तर पर प्रधान न्यायाधिकारी होता है। वह दीवानी और फौजदारी दोनोँ प्रकार के वादों की सुनवाई करता है और उसे जिला एवं सत्र न्यायाधीश कहते हैं।
  • 1 अप्रैल, 2014 से फास्ट ट्रक कोर्ट (न्यायालय) अस्तित्व में आए हैं।
  • भारत मेँ सर्वप्रथम पारिवारिक न्यायालय जयपुर मेँ स्थापित किया गया।
निचली अदालतेँ
  • निचली अदालतोँ का कामकाज और उसका ढांचा देशभर मेँ कमोबेश एक जैसा ही है। अदालतों का दर्जा इनके कामकाज को निर्धारित करता है। ये अदालतें अपने अधिकारोँ के आधार पर सभी प्रकार के दीवानी और आपराधिक मामलोँ का निपटारा करती हैं। ये अदालतें नागरिक प्रक्रिया संहिता-1908 और अपराध प्रक्रिया संहिता-1973, इन दो प्रमुख संहिताओं के आधार पर काम करती हैं।
राष्ट्रीय न्याय अकादमी
  • न्यायिक अधिकारियों को सेवा के दौरान प्रशिक्षण देने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी की स्थापना की है। इसका पंजीकरण 17 अगस्त, 1993 को सोसायटीज रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1860 के तहत हुआ है।
  • यह अकादमी भोपाल मेँ स्थित है, जिसका पंजीकृत कार्यालय दिल्ली मेँ है। राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति ने 5 सितंबर, 2002 को किया था।
कानूनी सहायता
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39क में सभी के लिए न्याय सुनिश्चित किया गया है और गरीबों तथा समाज के कमजोर वर्गो के लिए निःशुल्क कानूनी सहायता की व्यवस्था की गई है। संविधान के अनुच्छेद 14 और 22 (1) मेँ राज्य के लिए यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह सबके लिए समान अवसर सुनिश्चित करेँ।
  • 1987 में विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम पास किया गया। इसी के अंतर्गत राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) का गठन किया गया। इसका काम कानूनी सहायता कार्यक्रम लागू करना और उसका मूल्यांकन एवं निगरानी करना है। साथ ही, इस अधिनियम के अंतर्गत कानूनी सेवाएं उपलब्ध कराना भी इसका काम है।
  • हर राज्य मेँ एक राज्य कानूनी सहायता प्राधिकरण, हर उच्च न्यायालय मेँ एक उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति गठित की गई है।
लोक अदालतें
  • लोक अदालतें ऐसा मंच है, जहाँ विवादों/अदालतों में लंबित मामलों या दायर किये जाने से पहले ही वादों का सद्भावनापूर्ण ढंग से निपटारा किया जाता है। लोक अदालतोँ को कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अंतर्गत कानूनी दर्जा दिया गया।
  • लोक अदालतेँ कानूनी सेवा प्राधिकरणों / समितियों द्वारा सामान्य तरीके से अर्थात कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम की धारा 19 के अंतर्गत आयोजित की जाती हैं।
  • लोक अदालतों का गठन सर्वप्रथम महाराष्ट्र मेँ हुआ।
कानूनी व्यवसाय
  • देश मेँ कानूनी व्यवसाय से संबंधित कानून अधिवक्ता अधिनियम, 1961 और देश की बार काउंसिल द्वारा निर्धारित नियमों के आधार पर संचालित होती है। कानून के क्षेत्र मेँ काम करने वाले पेशवरों के लिए यह एक स्वनिर्धारित कानूनी संहिता है।
अधीनस्थ न्यायालय,लोक अदालतें
अधीनस्थ न्यायालय
  • भारत मेँ तीन प्रकार के अधीनस्थ न्यायालय होते हैं-
  1. फौजदारी न्यायालय – लड़ाई-झगड़े, मारपीट, हत्या, चोरी, जालसाजी आदि के विवाद।
  2. दीवानी न्यायालय - धन संबंधी वाद।
  3. राजस्व न्यायालय - लगान संबंधी मामलोँ की सुनवाई। राज्य की सबसे बड़ी अदालत मंडल होती है, इसके निर्णय की अपील राज्य के उच्च न्यायालय मेँ की जा सकती है।
लोक अदालतें
विधिक सेवा प्राधिकार अधिनियम, 1987 (Legal Service Authorities Act, 1987) के तहत लोक अदालतोँ को संवैधानिक (statutory) दर्जा दिया गया है। लोक अदालतों के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
  • समाज के कमजोर वर्गोँ के लिए न्याय सुनिश्चित करना।
  • खर्च व समय की बचत हैतु वादों का बड़ी संख्या मेँ सामूहिक निपटारा करना।
  • विधिक सेवा अधिनियम मेँ प्रावधान है लोक अदालतों का गठन राज्य या जिला स्तरीय प्राधिकारोँ के द्वारा किया जाएगा और लोक अदालतों को उनका प्राधिकार भी राज्य/जिला निकाय प्रदान करते हैं।
  • लोक अदालतोँ का क्षेत्राधिकार व्यापक होता है, जिसमे सिविल, आपराधिक, राजस्व अदालतों या अधिकरणों के तहत आने वाले कोई भी मामले सम्मिलित हो सकते हैं।
  • कोई भी वाद लोक अदालतों तक तभी जाता है जब दोनों पक्षकार इसके लिए समझोते हैतु संयुक्त आवेदन दें।
  • लोक अदालत का निर्णय सभी पक्षकारों पर बाध्यकारी होते हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि उन्हें सिविल न्यायालयों की शक्ति दी गई है।
  • उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय ने समय-समय पर लोक अदालतों के माध्यम से हजारोँ मामलोँ का निपटारा किया है। 2 अक्टूबर 1996 को एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम का प्रारंभ किया गया कि लोक अदालतों के द्वारा 10 लाख मामले निपटाए जाएंगे।
  • वर्तमान मेँ देश के सभी न्यायालयों को मिलाकर लगभग 2.5 लाख मामले लंबित हैं।
  • विवादों के निपटारे के लिए एक वैकल्पिक माध्यम के रुप मेँ लोक अदालतें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
उच्च न्यायालय,उच्च न्यायालयों के कार्य क्षेत्र और स्थान
उच्च न्यायालय
  • संविधान के अनुछेद 214 के अनुसार प्रत्येक राज्य का एक उच्च न्यायालय होगा।
  • अनुच्छेद 231 के अनुसार संसद विधि द्वारा दो या दो से अधिक राज्योँ और किसी संघ राज्य क्षेत्र के लिए एक ही उच्च न्यायालय स्थापित कर सकती है।
  • वर्तमान मेँ भारत मेँ 21 उच्चं न्यायालय हैं।
  • केंद्र शासित प्रदेशोँ मेँ से केवल दिल्ली मेँ उच्च न्यायालय है।
  • प्रत्येक उच्च न्यायालय का गठन एक मुख्य न्यायाधीश तथा ऐसे अन्य न्यायाधीशों से मिलकर किया जाता है।
  • इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है।
  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यताएँ
  1. वह भारत के नागरिक हो।
  2. कम से कम 10 वर्ष तक न्यायिक पर धारण कर चुका हो, अथवा किसी उच्च न्यायालय मेँ एक या एक से अधिक न्यायालयों मेँ लगातार 10 वर्षोँ तक अधिवक्ता रहा हो।
  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उस राज्य, जिसमेँ जिसमें उच्च न्यायालय स्थित है, राज्यपाल उसके पद की शपथ दिलाता है।
  • उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का वेतन 90 हजार रूपये प्रतिमाह है। एवं अन्य न्यायाधीशों का वेतन 80 हजार रुपए प्रतिमाह है।
  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशोँ का अवकाश ग्रहण करने की अधिकतम उम्र सीमा 62 वर्ष है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अपने पद से, राष्ट्रपति को संबोधित कर कभी भी त्यागपत्र दे सकता है।
उच्च न्यायालयों के कार्य क्षेत्र और स्थान
नामस्थापना वर्षप्रदेशीय-कार्यक्षेत्रस्थान
इलाहाबाद1866उत्तर प्रदेशइलाहाबाद (लखनऊ में
 न्यायपीठ)
आन्ध्र प्रदेश1954आन्ध्र प्रदेशहैदराबाद
मुंबई1862महाराष्ट्र, गोवा, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीवमुंबई (पीठ-नागपुर, पणजी और औरंगाबाद)
कोलकाता1862पश्चिम बंगालकोलकाता (सर्किट बेंच पोर्ट ब्लेयर)
छत्तीसगढ़2000विलासपुरविलासपुर
दिल्ली1966दिल्लीदिल्ली
गुवाहाटी1948असम, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेशगुवाहाटी (पीठ कोहिमा,
 इम्फाल, आइजोल,
 शिलांग, अगरतला एवं
इटानगर)
गुजरात1960गुजरातअहमदाबाद
हिमाचल प्रदेश1971हिमाचल प्रदेशशिमला
जम्मू एवं कश्मीर1928जम्मू एवं कश्मीरश्रीनगर और जम्मू
झारखण्ड2000झारखण्डरांची
कर्नाटक1884कर्नाटकबंगलुरु
केरल1958केरल और लक्षद्वीपएर्णाकुलम
मध्य प्रदेश1956मध्य प्रदेशजबलपुर (पीठ-ग्वालियर
 एवं इंदौर)
मद्रास1862तमिलनाडु और पुडुचेरीचेन्नई (पीठ-मदुरई)
उड़ीसा1948उड़ीसाकटक
पटना1916बिहारपटना
पंजाब और हरियाणा1966पंजाब हरियाणा और चंडीगढ़चंडीगढ़
राजस्थान1949राजस्थानजोधपुर (पीठ-जयपुर)
सिक्किम1975सिक्किमगंगटोक
उत्तराखंड2000उत्तराखंडनैनीताल

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