ग्राम्य खाना बदोशी |Pastoral Nomadism in Hindi

 

 ग्राम्य खाना बदोशी  (Pastoral Nomadism  in Hindi)

ग्राम्य खानाबदोशी | पूर्व पाषाण काल अवधि और आदि मानव | Pastoral Nomadism  in Hindi



ग्राम्य खाना बदोशी (Pastoral Nomadism )

 

ग्राम्य खानाबदोशी प्रस्तावना (Introduction )

 

  • इस समय से हमें मनुष्य के हाथों द्वारा निर्मित पत्थर के तथा अन्य प्रकार के बहुत से औजार मिलते हैंजो हमें पृथ्वी के तत्कालीन स्वामी अर्थात् हमारे पूर्वजों की क्षमता तथा उनके जीवन के सम्बन्ध में प्रचुर प्रकाश डालते हैं।

 

  • पृथ्वी पर अधिकाधिक विकसित मस्तिष्क वाले मनुष्य पैदा हो रहे थे। जावा का मनुष्यपेकिंग का मनुष्यहाइडलबर्ग का मनुष्यपिल्टडाउन का मनुष्यनिअण्डर्थल का मनुष्यक्रोमोग्नन मानव और रोडेशियन मानव का इतिहास इस बात की पुष्टि करता है कि इस काल में मनुष्य धीरे-धीरे अधिकाधिक बुद्धि सम्पन्न होता जा रहा था।

 

  • प्राचीन मानव की सभ्यता और उसके इतिहास का काल विभाजन उनके औजारों के आधार पर किया जाता है। प्राचीन काल में मनुष्य पत्थर के औजार बनाता थाअत: इतिहास के इस काल को पाषाण काल कहा जाता है। इस काल में आरम्भ में जो पत्थर के औजार बनते थेउनको न ठीक से काटा-छाँटा जाता था और न उन्हें चिकना किया जाता था। इस काल के अनगढ़ औजारों के आधार पर ही इसे पूर्व पाषाण काल (Palesolithic Age) कहा जाता है। किन्तु धीरे-धीरे अच्छे किस्म के औजार बनने लगे। इनको रगड़ या घिस कर पैना कर लिया जाता था और उनका रूप भी औजार जैसा दिखाई पड़ता था। इसी आधार पर इस काल को नव पाषाण काल (Neolithic Age) कहा जाता है। सम्पूर्ण पाषाण काल सामान्यतया लगभग पाँच लाख वर्ष ई. पू. से लगभग 5000 वर्ष ई. पू. तक माना जाता है।

 

पूर्व पाषाण काल (Pre-Paleolithic Period)

 

पूर्व पाषाण काल अवधि

 

  • पूर्व पाषाण काल बहुत लम्बा था। मानव जातियों के अवशेष पाँच लाख वर्ष पुराने भी पाये गए हैं। इन अवशेषों में उषा - पाषाण (Eoliths ) भी मिलते हैंजो बड़े महत्त्वपूर्ण हैं। यह काल एक नाटक के समान था जिसमें बार-बार पर्दा गिरता और उठता था और हर नवीन दृश्य में नवीन पात्र उपस्थित होते थे। ये अवशेष हमें यह बतलाते हैं कि मानव की शुरू की जातियाँ उत्पन्न हो रही थींबढ़ रही थीं तथा नष्ट हो जाती थीं। इस काल के अन्त में सपिअन मानव रंगमंच पर आया। यह उन्नति करता गया। धीरे-धीरे उसकी उन्नति इतनी अधिक हो गई कि वह पाषाण के हथियारों और औजारों पर निर्भर न रहा। उसने खेतीकपड़ा बुनना आदि ऐसे नये काम आरम्भ कर दिये कि पूर्व पाषाण काल ही समाप्त हो गया और नव पाषाण काल आरम्भ हो गया। यह घटना दस-बारह हजार वर्ष पहले की है । इस प्रकार पूर्व पाषाण काल अब से लगभग पाँच लाख वर्ष पहले आरम्भ हुआ और लगभग दस-बारह हजार वर्ष पहले समाप्त हो गया।

 

पूर्व पाषाण काल के औजार

 

  • हाइडलबर्ग मानव के हथियार और औजार पहले के मानव के औजारों से कहीं अधिक विशाल थे। इस मानव के समय का एक विचित्र औजार मिला हैयह है एक हाथी की छेददार हड्डी जिसको घिसकर बल्ले के समान बनाया गया है।

 

  • इंग्लैंड में पिल्टडाउन में जिस मानव की खोपड़ी तथा जबड़े की हड्डी मिली थी उसके हथियार पहले के हथियारों से अच्छेभली प्रकार घिसे हुए और चिकने हैं। इस मानव के अवशेषों के साथ गेंडे के दाँतहिप्पों की अस्थियाँ और हिरन की टाँगों की हड्डियाँ भी मिलीं जिनसे इस 'उषा मानव' (Dawn Man) के जीवन की झाँकी दिखलाई पड़ती है।

 

  • इस उषा मानव के पश्चात् का कोई और मानव-अवशेष हमें सहस्रों वर्ष तक नहीं प्राप्त होतापरन्तु हथियारों- औजारों के अवशेष प्राप्त होते हैं जिनमें क्रमशः होती हुई उन्नति स्पष्ट है। ये सब अवशेष पाषाण ही के हैं। इन औजारों में पत्थर के चाकूछेद करने व खुरचने के औजारफेंककर मारने के पत्थर आदि स्पष्ट और सुघड़ दिखाई पड़ने लगते हैं।

 

  • इस प्रकार अब हम 50,000 या 60,000 वर्ष पहले मानव के हथियारों और अवशेषों तक आ पहुंचते हैं। यह काल नेअण्डर्थल मानव (Homo Neanderthalensis) का काल है। इस समय मानव गुफाओं में निवास करने लगा था जहाँ इसके और इसकी वस्तुओं के अनेक अवशेष मिले हैं। इस काल के मानव को अग्नि जलाना और उसकी रक्षा करना आता था।

 

  • केवल नेअण्डर्थल मानव ही गुफाओं में रहने वाला प्राणी नहीं था। उस काल के शेररीछ बाघ आदि भी गुफाओं में घुस कर विश्राम करना चाहते थे। परन्तु मानव के पास सबसे बड़ा शस्त्र था आग। इस आग से डराकर वह इन पशुओं को सरलता से गुफाओं से निकाल बाहर कर सकता था तथा फिर उन्हें बाहर ही रहने पर बाध्य कर सकता था। गुफाओं के भीतर प्रकाश करने के लिए मशालें थीं। उस काल का मनुष्य गुफा के द्वारों पर लकड़ी आदि से रोक लगा लेता था जिससे भयानक पशु बाहर ही रहें। गुफा के द्वार पर भी आग जला देता था ताकि जंगली पशु गुफा में न घुसें । गुफा में वह अपने काम के औजारईंधन और भोजन एकत्रित रखता था। इन औजारों में लकड़ी के भालेमुग्दर और पाषाण के नुकीले टुकड़े थे। ऐसा प्रतीत होता है कि वह पत्थर की कुल्हाड़ियों का भी प्रयोग करता था।
  • नेअण्डर्थल मानव के लगभग साथ ही साथ सपिअन मानव का विकास हो रहा था। सपिअन मानव के शस्त्रास्त्र और औजार आदि अधिक सुघड़ थे। वे पाषाण के बने हुएपरन्तु बड़े चिकने थे। हड्डिों की बनी सुइयाँपिनभालेहारपूनफेंकने के दंडबूमरेंग जैसे प्रारम्भिक अस्त्र आदि अद्भुत कारीगरी से युक्त थे। इन औजारों तथा गुफाओं की दीवारों पर चित्रकला का समारम्भ दिखाई पड़ता है।

 

  • सपिअन मानव के सम्बन्ध में कहा जाता है कि इसने धनुष-बाण भी बना लिए थे। अनुमान है कि पूर्व पाषाण काल के लगभग अन्त में धनुष-बाण का प्रयोग आरम्भ हुआ होगा। कुल्हाड़ी का प्रयोग होता थाइस बात के प्रमाण हैं। इस समय मानव को पत्थरों व हड्डियों में छेद करने की विधि का भी ज्ञान हो चुका था। कोमाग्नान मानव तो औजार बनाने की कला में काफी दक्ष हो गया था। उसने कुछ ऐसे औजार बना लिए थे जिनकी मदद से वह पत्थरों को घिस कर उन्हें चिकना और पैना बना लेता था या पत्थरों में छेद कर लेता था।

 

  • औजारों के विकास के दूसरे चरण में बड़े नुकीलेकई-कई नोक वालेलम्बेबड़े और तेज धार वाले औजार बनने लगे। भालेबर्धी आदि ऐसे ही औजार थे। इन औजारों से जहाँ मानव को अपनी रक्षा करने में अधिक सामर्थ्य प्राप्त हो गया वहीं उसे शिकार में भी अधिक सुविधा प्राप्त हो गई। 

पूर्व पाषाण काल के मानव की दिनचर्या 

  • विद्वानों ने तत्कालीन मानव के अनेक अवशेषों और शस्त्रास्त्रों औजारों को देखकर उसके जीवन के विषय में अनुमान लगाकर उसका सजीव वर्णन किया है। इस वर्णन से हमें मानव-जीवन के आरम्भिक रूप का पता चलता है और हम यह समझ सकते हैं मानव के सामने उन्नति का कितना लम्बा मार्ग थाजो उसे तय करना था।

 

  • तत्कालीन मानव घड़े या मिट्टी के अन्य बर्तन बना नहीं सकता था। अतः वह पानी भर कर नहीं रख सकता था। इसलिए पानी पीने के लिए उसे नदी या झरने पर जाना पड़ता था। ऐसी स्थिति में उसने नदी या झरने के आस-पास ही अपने रहने या उठने-बैठने के स्थान बनाये थे। वह घर बनाना भी नहीं जानता था। अतः गुफाओं में रहता था। बैठने या रहने के स्थान के बीच अग्नि जला देता था क्योंकि उन दिनों ठंडी हवा चलती रहती थी और रात को पाला पड़ता था। अग्नि ही उसे भयानक जीवों से बचा सकती थी। मानव-झुण्ड के सब सदस्य बच्चेस्त्रियाँ और झुण्ड का पुरुष नेता-पत्तों और बारीक टहनियों के बने फर्श पर अग्नि के समीप बैठकर काम करते थे। स्त्रियाँ खालों से मांस साफ करती थींपुरुष पाषाण के टुकड़ों को नुकीला बनाते थे। स्त्रियाँ और बच्चे मिलकर ईंधन इकट्ठा करते थे।

 

  • झुण्ड का नेता केवल पुरुष होता थाशेष स्त्रियाँकन्याएँ और बालक होते थे। जैसे ही कोई बालक बड़ा हो जाता थापुरुष नेता उसे मार डालता था या झुण्ड से निकाल देता था। ऐसे निकाले हुए पुरुषों के साथ कभी-कभी कन्याएँ भी चली जाती थीं। जब पुरुष नेता चालीस वर्ष या उससे अधिक अवस्था तक पहुंच कर दुर्बल हो जाता था तो झुंड का कोई नवयुवक उसको मारकर स्वयं झुंड का नेता बन जाता था।

 

पूर्व पाषाण काल के मानव का भोजन 

  • आदिम काल का मानव पहले शाकाहारी था। अनेक प्रकार के वृक्षों के फल-फूल और कंद आदि खाकर वह गुजारा करता था। कुछ पौधों की जड़ें नरम तथा स्वादिष्ट होती थीं। अतः इनके प्रति उसका विशेष अनुराग था। वह शहद की मक्खियों के छत्ते तोड़ कर उनमें से शहद खा जाता था। शहद उसका सुस्वाद भोजन था। इस प्रकार वह पूर्णत: शाकाहारी था। किन्तु आगे चलकर वह पक्षियों के अंडेघोंघेमेंढककेकड़े और मछलियों को पकड़ कर खाने लगा। ये चीजें उसे थोड़ा परिश्रम करने के बाद मिल जाया करती थीं।

 

पूर्व पाषाण काल में शिकार 

  • धीरे - धीरे मनुष्य पत्थर के औजार बनाने तथा उनका इस्तेमाल करने लगा। इन औजारों का इस्तेमाल वह अपनी रक्षा के अलावा शिकार के लिए भी करता था। अपने पत्थर के औजारों से वह छोटे-बड़े पक्षियों और जानवरो को मार कर खा लेता था। बड़े पक्षियों के शिकार में कई मनुष्यों की जरूरत पड़ती थी। ऐसे अवसर पर वे एक साथ मिलकर शिकार करते व बाद में उसे बाँटकर अपना पेट भरते थे। अब मनुष्य शिकारी जीवन व्यतीत करने लगा। शिकार के काम में रुचि बढ़ने पर मनुष्य ने अच्छेबड़ेतेज धार वाले और अधिकाधिक सुधरे औजार बनाने आरंभ कर दिये। प्राय: ऐसा होता था कि दिन भर तलाश करने के बाद कोई शिकार हाथ न आता थाया जो शिकार मिलता थाउससे पेट न भरता थाऐसी स्थिति में मनुष्य मरे हुए पशुओं के सड़े-गले शव भी खा जाता था। कभी-कभी भूख में वह हड्डियों को भी चबा जाता था।

 

  • अभी तक मनुष्य अपना भोजन एकत्र करके नहीं रखता था क्योंकि वह बर्तन वगैरह नहीं बना पाया था। रोज शिकार करना और पेट भर लेना उसका नियम था।

 

पूर्व पाषाण काल में मानव को आग का ज्ञान-

  • आरम्भ में आदिम मानव को आग का ज्ञान नहीं था । ज्वालामुखी पर्वतों से निकलते हुए लावे को देखकर डर जाता था। जंगल में आग लग जाने पर वह भौचक्का हो जाता था। वह समझ नहीं पाता था कि यह सब क्या है। किन्तु कालान्तर में वह आग के उपयोग को समझ गया। आग के उपयोग ने उसके जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन कर दियाकिन्तु सबसे पहले आग की उपयोगिता का ज्ञान उसे कैसे हुआहो सकता है कि कभी अनायास ही उसने दो पत्थरों को आपस में रगड़ दिया हो और उसमें से निकली चिंगारी ने उसे आग पैदा करने की कला सिखा दी हो। या ऐसा भी हो सकता है कि जंगल में लगी आग में जले हुए किसी पक्षी या जीव को मनुष्य ने खाया हो और वह उसे बहुत स्वादिष्ट लगा हो। अतः वह जंगल की आग में से कुछ जलता भाग उठाकर अपने रहने की गुफा में ले आया हो।

 

  • आग मनुष्य के जीवन में बड़ी उपयोगी थी। मनुष्य अपनी गुफा में और गुफा के बाहर भी आग जलाये रहता था। गुफा के भीतर आग से उसे प्रकाश मिलता था और गर्मी मिलती थीजो उसे ठंड से बचाती थी। गुफा के बाहर आग होने से वहाँ जंगली जानवर नहीं आते थे। इस प्रकार मनुष्य की जंगली जानवरों से भी रक्षा हो जाती थी। इसके अतिरिक्त आग का ज्ञान हो जाने के कुछ समय बाद मनुष्य ने अपना भोजन आग में पकाकर खाना शुरू कर दिया। आग का ज्ञान मनुष्य के विकास में अत्यन्त उपयोगी तथा महत्त्वपूर्ण चरण था।

 

पूर्व पाषाण काल के  मनुष्य का निवास स्थान-

  • पूर्व पाषाण काल का मनुष्य मकान नहीं बना सकता था। उसे प्रकृति की शक्तियों से भय लगता था। जंगली जानवरों से उसे अपनी जान का खतरा था। शीत की मार उसे बहुत तकलीफ देती थी। अतः आरम्भ में मनुष्य ने गुफाओं में रहना उपयुक्त समझा। गुफाओं में भी वह बहुत अन्दर की ओर नहीं जाता था क्योंकि वहाँ घना अंधेरा रहता था। गुफा-जीवन में भी उसे जंगली जानवरों का खतरा रहता था क्योंकि सर्दी से बचने के लिए जंगली जानवर भी गुफा में चले जाते थे। अतः मनुष्य गुफा के द्वार पर लकड़ी के टुकड़े या बड़ी-बड़ी डालें लगा देता था ताकि जंगली जानवर अन्दर न घुस सकें। फिर भी उसे हमेशा भय ही रहता था।

 

  • आग का ज्ञान होने के बाद उसे बड़ी सुविधा हो गई। अब उसकी गुफा में प्रकाश हो गया। जंगली जानवर भी आग के डर के मारे गुफा के पास नहीं जाते थे। मनुष्य को शीत से बचने का उपाय भी मालूम हो गया। अब मनुष्य गुफा से बाहर भी रहने लगा। प्रायः किसी पानी वाले स्थान के पास भी वे खुले में आग जलाकर रहने लगते थे। यहाँ भी आग उन्हें सर्दी और जंगली जानवरों से बचाती थी। 


पूर्व पाषाण काल के  मनुष्य के वस्त्र -

  • उस समय मनुष्य को कपड़े का ज्ञान होने का प्रश्न ही नहीं पैदा होता। मनुष्य एकदम नंगा रहता था। आगे चलकर उसने पेड़ों की पत्तियों और छाल से अपने शरीर को ढकना शुरू किया। अभी उसकी शीत की समस्या हल नहीं हुई थी। तभी मनुष्य ने पशुओं की खाल को अपने शरीर पर लपेटना शुरू किया। कुछ समय बाद उसने खाल को सीने के लिए सुई जैसा एक औजार भी बनाया। इस प्रकार वह खाल के कपड़े पहनने लगा।

 

आदिम मानव की चित्रकारी-

  • पूर्व पाषाण काल का मानव कला के प्रति भी रुचि रखता था। उसकी कला के दो उद्देश्य हो सकते हैं। कुछ विद्वानों की राय है कि वह प्रायः ऐसे जानवरों के चित्र बनाता थाजिनका वह शिकार करता था। इस काल के मानव का विश्वास था कि चित्र बनाने से उसे अधिकाधिक शिकार मिलने लगेगा। कुछ विद्वानों की राय है कि इन चित्रों के पीछे कोई प्रयोजन नहीं होता था। अपने खाली समय में वह ऐसे पशुओं के चित्र खींच डालता थाजो उसके जाने-पहचाने होते थे। उनके चित्र उस जमाने को देखते हुए बड़े सुन्दर थे। क्रोमाग्नन मानव द्वारा बनाए गए चित्र गुफाओं में पाये गए हैं। मीरा की गुफाओं में आदिम मानव द्वारा बनाए गए बैलघोड़ेसुअर आदि के चित्र मिले हैं। इनमें कुछ चित्रों में रंग भी भरे हुए हैं। कुछ चित्र (Sketch) मात्र हैं और कुछ पूरे हैं। पेड़-पौधों के भी कुछ चित्र हैं। इसके अतिरिक्त इस काल के मनुष्य ने अपने भालों में भी उन पशुओं के चित्र बनाए हैं जिनका वह शिकार करता था। पशुओं की हड्डियों और उनके सींगों पर भी अंकित चित्र मिले हैं। जॉन एस. हालैण्ड नामक इतिहासकार का कहना है कि 'अनेक चित्रजो गुफाओं के तीसरे भाग में पाये गए हैंशायद धार्मिक प्रेरणा से बनाये गए होंबहुत सुन्दर ढंग से बने हैं। उनमें रंग भरे हुए हैं और बड़े सजीव हैं।पूर्व पाषाण युग का मनुष्य शायद यह भी मानता रहा होगा कि जिस औजार पर वह पशुओं के चित्र बनाएगाउस औजार से वह अधिकाधिक शिकार कर पायेगा।

 

आदि मानव काल की मूर्तियाँ- 

  • तत्कालीन मानव द्वारा बनाई हुई मिट्टीपत्थर और हाथी के दाँत की कुछ मूर्तियाँ भी मिली हैं। इन मूर्तियों या प्रतिमाओं के रूप-नक्श तो साफ नहीं हैं लेकिन अनुमान है कि ये मूर्तियाँ ही हैं। ये सब बातें तत्कालीन मानव की कलाप्रियता का प्रमाण हैं।

 

आदि मानव काल में आभूषण-

  • अपने को सजाने और सँवारने की प्रवृत्ति मनुष्य में जन्मजात होती है। आदिम मानव में भी यह प्रवृत्ति थी। अपने साधनों से वह अपने को सजाता-सँवारता था। पत्थरहड्डियाँसीपियाँघोंघेशंख और सींग ही उन दिनों उपलब्ध थे। इन्हीं से वह अपने को सजाता था । अस्त्र-शस्त्र भी एक प्रकार से उसके आभूषण ही थे। सीपियोंघोघोंशंख और सींगों को वह कभी-कभी पिरो कर उनकी माला भी बना लेता था। सुई की शक्ल जैसा उसका एक औजार होता थाजो उसके खाल के कपड़े सीने के साथ ही माला बनाने के काम भी आता रहा होगा।

 

आदि मानव काल में धर्म और विश्वास -

  • धर्म की भावना का सम्बन्ध ईश्वर से होता है। पूर्व पाषाण काल का मनुष्य ईश्वर के बारे में न कुछ जानता था और न समझता था । किन्तु प्रकृति के कार्यों को देखकर उसे आश्चर्य और विस्मय अवश्य होता था। बिजली की कड़कआँधी-तूफानभीषण पशुवन की आगप्रकाश और अंधकार उसे भय और आशंका से भर देते थे। वह ईश्वर की बात तो सोच नहीं सकता थाअतः प्रकृति के इन कार्यों को देखकर किसी अज्ञात शक्ति से भयभीत हो उठता था।

 

  • आदिम मानव में धर्म और विश्वास जैसी कोई चीज नहीं थी। किन्तु प्रकृति के प्रति जिज्ञासा तथा आतंक की भावना उसमें अवश्य थी। वह जादू-टोने में विश्वास करता था। लोगों का ख्याल है कि वह चित्र और मूर्तियाँ भी टोने के रूप में ही बनाता था। आदिम मानव के चित्रों में किसी देवी या देवता के चित्र नहीं मिले हैं। इन चित्रों के संबंध में उसका विश्वास था कि उसे शिकार करने में अधिकाधिक सफलता मिलेगी। शिकार ही उसका एकमात्र आर्थिक कार्य था। अतः उसमें सफलता प्राप्त करने के लिए बनाए गये चित्रों को हम जादू-टोने या अन्धविश्वास वाले चित्र ही कह सकते हैं।

 

  • इसी प्रकार का एक अन्य अन्धविश्वास उनमें यह था कि वे मरे हुए व्यक्ति के शरीर पर एक लाल रंग का पाउडर-सा छिड़कते थे। शायद उनका यह विश्वास था कि इस पाउडर के छिड़कने से मृतक फिर से जीवित हो जाएगा। ये अपने मृतक को बड़ी अच्छी तरह से दफनाते थे। मृतक के शव के साथ भोजन की वस्तुएँ और अस्त्र-शस्त्र भी रख देते थे। शव के साथ इन वस्तुओं के रखने के पीछे क्या उद्देश्य थायह बता सकना कठिन है। किन्तु वे शायद यह विश्वास करते होंगे कि ये वस्तुएँ मृतक के अगले जन्म में काम आयेंगी। वे सम्भवतः पुनर्जन्म में विश्वास करते रहे होंगे।

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