मल्हारराव होल्कर को मध्यप्रदेश में होल्कर राज्य का निर्माता
होल्कर रियासत
होल्कर वंश के मूल पुरुष मल्हारराव का पुणे के पास होल नामक स्थान में जन्म हुआ था परन्तु पिता की अल्प आयु में मृत्यु के पश्चात मामा बारगव के पालन पोषण से बड़ा हुआ।1718 ई. में वह एक शिलेदार क रूप में मराठा सेना में भर्ती हुआ। बालाजी विश्वनाथ के दिल्ली अभियान के समय उसकी सेना में था।
1721 ई. में बाजीराव प्रथम द्वारा सम्राट से सनदों का नवीनीकरण किया गया व खानदेश व बागलान को चौथ व सरदेशमुखी की वसूली हेतु पेशवा को दिया गया।
मल्हारराव कुछ समय बड़वानी राणा की सेवा में रहा और वहाँ उसे एक जागीर भी प्राप्त हुई थी। भद्रपद षष्टि शके 1642 अर्थात् 1720 ई. के पत्रों से ज्ञात होता है कि बड़वानी के राणा से उसके सम्बन्ध कटु अहो रहे थे और यह कि इंदौर के मंडलोई नन्दलाल से उसका परिचय था। इसी दौर में मराठे मालवा क्षेत्र में विधिवत् आक्रमण कर रहे थे।
स. 1743 में होल्कर को 77000, अर्थात 38% प्रतिशत आधार पर मालवा की आय सरंजाम हेतु दी गईं यह पेशवा दफ्तर में 1746 ई. में दर्ज हुई किन्तु उसमें यह अंकित किया गया कि यह व्यवस्था 1740 ई. से लागू हो चुकी है। दो तक्षिमा के साथ क्षेत्र पर नियंत्रण व प्रशासकीय अधिकारियों की नियुक्ति का भी उसे अधिकार प्राप्त हुआ व दूत तथा अधिकारियों की नियुक्ति का भी उसे अधिकार प्राप्त हुआ। वह कमाविसदार, फड़णीस मजुमदार जैसे अधिकारियों की नियुक्ति कर सकता था। सल्हारजी होल्कर ने जयसिंह की सेनाओं को दतिया, भदावर, ओरछा व अजमेर के पूर्वी क्षेत्र में राजस्थान में लुटपाट की थी। अंत में जयसिंह ने 22 लाख रुपये देने का वचन दिया जो मालवा की चौथ थी। इससे पुणे दरबार में होल्कर, शिंदे की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई व उन्हें पुरस्कृत किया गया।
अब मल्हारजी को 'राजश्री' लिखा जाकर उन्हें 'सूबा' बनाया गया। उदाहरणार्थ अभी तक राजश्री मल्हारजी होल्कर दिम्मत चिमणाजी अप्पा के स्थान पर राजश्री होल्कर दिम्मत पंत प्रधान लिखा जाने लगा इन दोनों सेनापतियों को पुरस्कार दिये गये। 1734 ई. में होल्कर की पत्नी गौतमाबाई को. खासगी (व्यक्तिगत) जागीर दी गई जिसकी वार्षिक आय 7 लाख थी।
1737 ई. में होल्कर ने अपने अधीन 15 (पंद्रह) अधीनस्थ सरंजामदार बनाये थे। उसके द्वारा देवीसा तिलोकचंद कोठारी को काटमारी के रूप में सनद दी गई व एक नवीन बस्ती गोविंदपुरा बसाई गई। 1737-38 ई. में उसे तीस (30) परगने प्राप्त हुए पेशवा दफ्तर रेकॉर्ड में उसकी लेखा-जोखा प्राप्त है।
पेशवा दरबार के अंतर्गत द्वैध नियंत्रण से होल्कर को बुढ़ा (नारायणगढ़) तरांना, पिठावा, जावरा, सांवेर, पिपलोद, बरदावड़ा करहाई महेश्वर व एक अन्य पर वार्षिक 2 लाख 500 रुपये प्राप्त होने थे। उसे अधीनस्थों के महालों से 84,650 रूपयों की आय होती थी। 1741 ई. में बालाजी बाजीराव को मालवा सूबा दिया गया जिसकी सनद 1743 ई. में दी गई थी। चूँकि, पेशवा भी मात्र 20 वर्षीय युवक था अतः उसकी जमानत में मल्हारजी ने हस्ताक्षर किये थे। 1745 ई. में भिलसा की विजय करने पर भी उसे सम्मानित किया गया। वर्ष 1745 ई. में उसे कड़ा, बाँकी (बाजूबंद) सिरपंच, तुर्रा व परिधान द्वारा नवाजा गया।
राजपूत राज्यों के मामलों में हस्तक्षेप करने पर बूँदी राज्य से रु. 1,50,000 व जयपुर के माधव सिंह से दस हजार और साथ ही मध्यप्रदेश में उसे रामपुरा परगना मिला। 1750 ई. में उसे परंपरागत मोकास लोणी, व्यकंन्थ, कस्बा कट्राबाद व पेशवा की ओर से मांडवगढ़ (म.प्र.) में मिला।
होल्कर की संपूर्ण आय सरंजाम हेतु स्वराज क्षेत्र से ग्यारह लाख इकतालीस हजार रुपये थी।शिंदे की आय पांच लाख बीस हजार थी जो सम्मिलित क्षेत्र से थी। इसी वर्ष होल्कर व जनकोजी शिंदे ने मिलकर चौथ हेतु बदायूँ, शाहबाद, जनगदीजर, संभल मुरादाबाद, सिरसी, लखनौ, अमरोहा, अहमदपुर नारोली से छः लाख उन्नीस हजार वसूल किये व दिल्ली से 31 लाख वसूल किये। अंतरवेद से 3 लाख 66900 और सूरजमल जाट से 3:10326 रुपये वसूले जो उनके मध्यप्रदेश के बाहर प्रभाव को दर्शाती है।
इसी मध्य राक्षस भुवन के युद्ध में पेशवा माधवराव की सहायता व माधवराव व उसके चाचा के मध्य सुलह के सहयोग हेतु भी मल्हारराव को पुरस्कत किया गया।11 जून 1763 ई. को उसे पुनः नवीन सनद दी गई जिसमें पुनः मालवे के दीपरगने सांवेर, सिरोंज, निमाड़ व खानदेश में बिजागढ़, कसरावद, सेंधवा, नगालवाड़ी व अन्य मिलाकर तेरह गाँव दिये गये। संक्षेप में मालवा में दो खानदेश में 1 गाँव व पूरा बिजागढ़ सरकार प्राप्त हुआ। 55 संक्षेप में माधवराव पेशवा के काल में भी शिंदे, होल्कर. मल्हारराव, यशवंतराव पवार, नारोशंकर, अंताजी मानकेश्वर कानड़े व बिनीवाले पर अधिक भरोसा रखा गया था। गाजीखान पर सिखों व जाटों से मिलकर मल्हारराव होल्कर की विजय उल्लेखनीय कार्य था इससे पेशवा व मराठों के प्रभाव में वृद्धि हुई थी।
अंततः यह स्वीकार करना होगा कि मल्हारराव होल्कर को मध्यप्रदेश में होल्कर राज्य का निर्माता व संस्थापक दोनों ही माना जाना चाहिए।
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