थायरॉइड ग्रन्थि उत्पत्ति इससे निकलने वाले हॉरमोन और उनके कार्य |Thyroid Hormones Gk in Hindi

 थायरॉइड ग्रन्थि उत्पत्ति इससे निकलने वाले हॉरमोन और उनके कार्य 

थायरॉइड ग्रन्थि उत्पत्ति इससे निकलने वाले हॉरमोन और उनके कार्य |Thyroid Hormones Gk in Hindi



थायरॉइड ग्रन्थि उत्पत्ति इससे निकलने वाले हॉरमोन और उनके कार्य 

उत्पत्ति (Origin) 

  • थायरॉइड ग्रंथि भ्रूण के एण्डोडर्म स्तर से उत्पन्न होती है। 

स्थिति (Position) 

  • यह ग्रन्थि मनुष्य के गर्दन में श्वासनली व स्वर यन्त्र के जोड़ के अधर-पार्श्व तल पर दोनों तरफ एक-एक की संख्या में स्थित होती है। इसका उद्गम भ्रूण की ग्रसनी भाग से जिह्वा के आधार से होता है।

 

थायरॉइड ग्रन्थि संरचना (Structure) 

  • यह मनुष्य की सबसे बड़ी (लगभग 30-35 ग्राम की) अन्तःस्रावी ग्रन्थि है जो दो पालियों की बनी होती है। दोनों पालियाँ श्वासनली के इधर-उधर स्थित होती हैं तथा संयोजी ऊतक की एक पतली अनुप्रस्थ पट्टी से जुड़ी होती हैं जिसे संयोजक (Isthums) कहते हैं। स्त्रियों की थायरॉइड ग्रन्थि पुरुषों की अपेक्षा थोड़ी बड़ी होती है। 
  • संरचनात्मक दृष्टि से इसके चारों तरफ संयोजी ऊतक का आवरण होता है जिसके अन्दर संयोजी ऊतक के ही एक ढीले आधार स्ट्रोमा (Stroma) में गोल व खोखली पुटिकाएँ व्यवस्थित रहती हैं। 
  • पुटिकाओं (Follicles) की दीवार घनाकार ग्रन्थिल कोशिकाओं की बनी होती हैं। पुटिकाओं की गुहा में एक गाढ़े रंग का आयोडीन युक्त कोलॉयडी द्रव भरा होता है जिसे आयडोथाइरोग्लोब्युलिन (Iodothyroglobulin) कहते हैं जो जेली जैसा पारदर्शक द्रव है। इसी में इस ग्रन्थि के हॉर्मोन निष्क्रिय अवस्था में रहते हैं। 
  • यह मनुष्य की एकमात्र ऐसी अन्तःस्रावी ग्रन्थि है जो हॉर्मोनों को निष्क्रिय अवस्था में पुटिका कोशिकाओं द्वारा स्रावित करते हैं। थायरॉइड ग्रन्थि में पुटिकाओं के अलावा कुछ कोशिकाओं के ठोस गुच्छे भी पाये जाते हैं जिन्हें पैरापुटिकीय अथवा C कोशिकाएँ कहते हैं।

 

थायरॉइड ग्रन्थि से निकालने वाले हॉर्मोन्स (Hormones) 

  • आयडोधाइरोग्लोब्युलिन वास्तव में एक प्रोटीन्स पदार्थ है, जिसका टायरोसीन अमीनो अम्ल रुधिर में उपस्थित आयोडीन से मिलकर दो हॉर्मोन बना देता है। रुधिर का आयोडीन रुधिर से विसरित होकर पुटिका गुहा में जाता है और हॉर्मोन बनने के बाद यह हॉर्मोन विसरण द्वारा रुधिर में मिल जाता है, क्योंकि थायरॉइड की स्ट्रोमा में बहुत-सी रुधिर केशिकाएँ फैली होती हैं। 

इस प्रकार थायरॉइड ग्रन्थि निम्नलिखित हॉर्मोनों का स्राव करती हैं- 

(a) थायरॉक्सिन (Thyroxine or Tetra-iodothyronine or T4) 

केण्डॉल (1914) ने सबसे पहले इस हॉर्मोन के रवे बनाये। इस हॉर्मोन का लगभग 65% भाग आयोडीन होता है। यह हमारे शरीर तथा उनकी कोशिकाओं में निम्न कार्यों को करता है- 

  • यह उपापचयी क्रियाओं पर नियन्त्रण करता है। थायरॉक्सिन मुख्यत: कोशिकाओं में माइटोकॉण्ड्रिया की संख्या तथा माप को नियन्त्रित कर ऑक्सीकरण उपापचयी क्रियाओं को नियन्त्रित करता है। 
  • यह शरीर की वृद्धि एवं भिन्नन के लिए आवश्यक है। यदि मेढक के भेक शिशु की थायरॉइड को निकाल दिया जाये तो यह मेढक में रूपान्तरित नहीं हो पाता। 
  • . उपापचयी नियन्त्रण के कारण यह शरीर के ताप का भी नियन्त्रण करता है। 
  • यह ऊतक में पाये जाने वाले अन्तरकोशिकीय पदार्थों की मात्रा को नियन्त्रित करता है। 
  • यह सामान्य वृद्धि को नियन्त्रित करता है।

 

(b) ट्राइआयोडोथाइरोनिन (Tri-iodothyronine) -

  • इसे T3 भी कहते हैं। यह भी टायरोसीन अमीनो अम्ल और आयोडीन के मिलने से बनता है। इसका लगभग 10% भाग टायरोसीन अमीनो अम्ल का बना होता है। यह थाइरॉक्सिन के समान ही है, लेकिन थायरॉक्सिन की अपेक्षा चार गुना अधिक प्रभावी होता है। कोशिकाओं में जाकर थायरॉक्सिन भी T3 में बदल जाता है।

 

(c) थायरोकैल्सीटोनिन (Thyrocalcito- nine) - 

  • यह हॉर्मोन प्रोटीन होता है और थायरॉइड के स्ट्रोमा में पायी जाने वाली पैरापुटिका कोशिकाओं द्वारा स्रावित होता है। यह हॉर्मोन रुधिर तथा मूत्र में Ca की मात्रा को नियन्त्रित करता है।

 

थायरॉइड ग्रन्थि का नियन्त्रण (Control of Thy- roid Glands) 

  • इस ग्रन्थि का नियन्त्रण पीयूष ग्रन्थि में बनने वाला हॉर्मोन थायरॉइड स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन (T.S.H.) करता है। इसके अलावा पुनर्निवेशन नियन्त्रण भी होता है। ठण्ड के दिनों में ठण्ड से प्रभावित होकर भी यह ग्रन्थि अधिक स्रावण करती है।

 

थायरॉइड ग्रन्थि  से संबन्धित विकार 

1. अल्पस्त्रावण (Hyposecretion) 

थायरॉक्सिन के कम मात्रा में स्त्रावण से निम्न रोग होते हैं- 

1. जड़ वामनता (Cretinism) -

  • बच्चों में थायरॉक्सिन की कमी से यह रोग होता है जिससे बच्चे बौने, कुरूप तथा मानसिक दृष्टि से कम विकसित हो जाते हैं। इनके होंठ व जिह्वा मोटे, पेट बड़ा, जननांग व त्वचा सूख जाती है। यह रोग उपापचयी क्रिया की दर के घटने के कारण होता है। 

2. मिक्सीडेमा (Myxoedema) -

  • वयस्कों में थाइरॉक्सिन की कमी से यह रोग होता है जिसमें बाल झड़ने लगते हैं, त्वचा ढीली होकर फुल जाती है और त्वचा के नीचे वसा व श्लेष्मा का जमाव बढ़ जाता है। होंठ व पलकें मोटी हो जाती हैं, जनदों की क्रियाशीलता घट जाती है और शरीर भद्दा व फुला दिखने लगता है। 

 

सामान्य घेघा (Simple goitre)- 

  • जब भोजन में आयोडीन की कमी हो जाती है तो इसकी पूर्ति के लिए थायरॉइड ग्रन्थि फूलकर अधिक थायरॉक्सिन बनाने का प्रयास करती है। थायरॉइड ग्रन्थि के फूलने के कारण गर्दन फुलकर मोटी हो जाती है। इस बीमारी को घेघा रोग (Goitre) कहते हैं। आयोडीन युक्त (0-5 ग्राम पोटैशियम आयोडाइड + 100 ग्राम नमक का मिश्रण) खाने से यह बीमारी नहीं होती है।

 

4. हाशीमोटो रोग (Hashimoto's disease)- 

  • जब कभी थायरॉक्सिन की कमी से होने वाले प्रभावों को दूर करने के लिए दी जाने वाली दवाएँ, विदेशी पदार्थ के समान व्यवहार करने लगती हैं तब ऐसी स्थिति में शरीर में अनेक प्रतिरक्षी (Antibodies) बनने लगते हैं जो थायरॉइड ग्रन्थि को ही नष्ट कर देते हैं इस स्थिति से उत्पन्न रोग को ही हाशीमोटो रोग कहते हैं। चूँकि इसमें थायरॉइड ग्रन्थि शरीर में बने पदार्थ के कारणा समाप्त होती है इस कारण इसे 'थायरॉइड की आत्महत्या' कहते हैं। 
  • थायरॉक्सिन का कृत्रिम रूप से भी संश्लेषण किया जाता है। इसकी कमी को भोजन में आयोडीन की मात्रा को बढ़ाकर पूरा किया म जा सकता है।

 

थायरॉइड ग्रन्थि:  अतिस्त्रावण (Hypersecretion) 

  • थायरॉक्सिन की अधिकता होने पर उपापचयी क्रियाएँ बढ़ जाती हैं, जिससे शरीर पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है- 
  • उपापचयी क्रियाएँ बढ़ने के कारण शरीर का तापक्रम बढ़ जाता है। इस प्रकार के मनुष्य को जाड़े में भी गर्मी महसूस होती है। 
  • थायरॉइड ग्रन्थि में गाँठें बन जाती हैं। इस विकृति को प्लूमर रोग (Plummer's disease) कहते हैं। 
  • थायरॉइड ग्रन्थि का आकार बढ़ जाता है, इस रोग को ग्रेव्स रोग (Grave's disease) कहते हैं। 
  • भोज्य पदार्थों के तेजी से पचने के कारण भूख ज्यादा लगती है तथा मनुष्य का भार बढ़ जाता है। 
  • उपापचय बढ़ने के कारण तन्त्रिका कोशिकाएँ अधिक क्रियाशील व संवेदनशील हो जाती हैं फलत: मनुष्य का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। इसी कारण इस ग्रन्थि को स्वभाव ग्रन्थि (Temperament gland) भी कहते हैं। 
  • थायरॉक्सिन की मात्रा बढ़ने पर आयोडीन की मात्रा भी बढ़ जाती है जो सिम्यैथेटिक तन्त्रिका तन्त्र को उत्तेजित कर देती है और मनुष्य का स्वभाव बदल जाता है। 
  • आँखें चौड़ी, खुली व बाहर की ओर उभरी दिखायी देती हैं। इस रोग को एक्सोप्थैल्मिक गॉइटर कहते हैं। इस रोग में नेत्रों के पीछे वसा का जमाव हो जाता है इसी कारण नेत्र आगे की ओर उभरे दिखाई देते हैं। 
  • हृदय की गति बढ़ जाती है।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.