अग्नाशय की स्थिति और निकलने वाले हॉर्मोन्स | Pancreas and its Hormones

 अग्नाशय की स्थिति और निकलने वाले हॉर्मोन्स 

अग्नाशय की स्थिति और निकलने वाले हॉर्मोन्स | Pancreas and its Hormones



अग्नाशय की स्थिति और निकलने वाले हॉर्मोन्स 

उत्पत्ति (Origin)- इसकी उत्पत्ति भ्रूण के एण्डोडर्म स्तर से होती है। 

स्थिति (Position) : 

  • उदर गुहा में आमाशय के पीछे लगभग 20 सेमी लम्बी हल्के गुलाबी रंग की एक चपटी ग्रन्थि पायी जाती है, जो मिश्रित ग्रन्थि अग्नाशय है। 
  • अग्नाशय की गुहा में प्रकिण्यों को स्रावित करने वाली कोशिकाओं के बने पिण्ड पाये जाते हैं जो पूरे अग्नाशय का 99% भाग बनते हैं। ये पिण्ड विविध प्रकिण्वों का स्रावण करते हैं। 
  • इसी गुहा के संयोजी ऊतकों में अनेक छोटे-छोटे कोशिकाओं के गुच्छे पाये जाते हैं। ये सूक्ष्म गुच्छे अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ लैंगरहैन्स की द्वीपिकाएँ (Islets of Langerhans) हैं।
  • मनुष्य में इनकी संख्या लगभग 10 लाख होती है। इनकी खोज लैंगरहैन्स ने सन् 1869 में की। इसी कारण इन्हें यह नाम दिया गया।

 

अग्नाशय की संरचना (Structure) 

अन्तःस्रावी ग्रन्थि लैंगरहैन्स की द्वीपिकाएँ छोटे- छोटे अन्तःस्रावी कोशिकाओं के अण्डाकार समूह हैं। प्रत्येक समूह सैकड़ों कोशिकाओं, रक्त केशिकाओं और रक्त पात्रों (Sinusoids) की बनी होती हैं।

 

अग्नाशय से निकालने वाले हॉर्मोन्स (Hormones) 

इसकी कोशिकाएँ निम्नलिखित हॉर्मोनों का स्रावण करती हैं-  

इन्सुलिन (Insulin)- 

इन्सुलिन एक सरल प्रोटीन है जो 51 अमीनो अम्लों की दो श्रृंखलाओं का बना होता है यह लैंगर हैन्स द्वीप की बीटा कोशिकाओं द्वारा स्रावित होता है। यह निम्न कार्यों को करता है-

 

1. यह ग्लूकोज उपापचय का नियन्त्रण करता है। यह ग्लूकोज को ग्लाइकोजन में बदलकर यकृत की कोशिकाओं तथा पेशियों में संचय, ग्लूकोज का ऑक्सीकरण तथा रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा को नियन्त्रित करता है। 

2. यह ऊतकों में वसा एवं RNA के संश्लेषण को प्रेरित करता है। 

3. कोशिकाओं के आधारीय उपापचयी दर (Basal metabolic rate, B.M.R.) को प्रभावित करता है।

 

अनियमितताओं से उत्पन्न रोग (Diseases due to Irregularities) 

अल्पस्त्रावण (Hyposecretion)- 

  • इसके अल्प स्त्रावण से रुधिर के  ग्लूकोज को यकृत में ग्लाइकोजन में बदलकर संचित करने की क्रिया कम हो जाती है, फलतः रुधिर में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है और वृक्क इस शर्करा को रुधिर से छानकर मूत्र के साथ बाहर कर देता है। इस रोग को।मधुमेह (Diabetes mellitus) कहते हैं। इसमें रोगी का वजन घटने लगता है। वह कमजोर हो जाता है और अन्तिम अवस्था में उसकी मृत्यु भी हो सकती है। 
  • कनाडावासी वैज्ञानिक बैटिंग एवं बेस्ट (Banting and Best) ने 1922 में कई जन्तुओं को मारकर उनके अग्नाशय से इन्सुलिन प्राप्त करने की विधि बतायी जिसके इन्जेक्शन को मधुमेह के रोगी को देकर उसका उपचार किया जाता है। 


मधुमेह के कारण मुनष्य में निम्न समस्याएँ और पैदा होती हैं:-

पॉलीयूरिया (Polyurea) - :

  • मूत्र में जल की मात्रा बढ़ जाती है और बहुमूत्रता की स्थिति पैदा हो जाती है। 

पॉलीडिप्सिया (Polydipsia)- 

  • अधिक मूत्र निकलने से प्यास बहुत लगती है। 

कीटोसिस (Ketosis) - 

  • वसा का अधूरा विखण्डन होने लगता है जिससे कीटोनकाय बनती है जो मूत्र के साथ बाहर आती है। कीटोनकाय मीठे, अम्लीय व विषैले होते हैं। धीरे-धीरे शरीर में इनकी मात्रा व अम्लीयता बढ़ जाने से रोगी को बेहोशी आने लगती है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है। 

एसीडोसिस (Acidosis)- 

  • कीटोनकाय अम्लीय, हत्के तथा विषैले होते हैं जिसके कारण शरीर की अम्लीयता बढ़ती है तथा रोगों बेहोशी में आकर मर जाता है।

 

अतिस्वाषण (Hypersecretion)- 

  • इन्सुलिन के अतिस्रावण से हाइपोग्लाइसीमिया रोग होता है जिसमें मस्तिष्क की उत्तेजना बढ़ जाती है, थकावट आती है, मूछां आती है, शरीर में ऐंठन होती है और अन्त में व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। हाइपोग्लाइसीमिया में रोगी के रुधिर में शर्करा को कमी हो जाती है। यदि समय से ऐसे व्यक्ति को ग्लूकोज न दिया जाये तो दृष्टि ज्ञान एवं जनन क्षमता कम हो जाती है तथा मस्तिष्क की कोशिकाओं में अत्यधिक उत्तेजना से थकावट, मूर्ण, ऐंठन एवं अन्त में मृत्यु हो जाती है। शारीरिक श्रम, भूख या उपवास के समय इन्सुलिन का इन्जेक्शन देने से भी ऐसी अवस्था हो सकती है, इसे इन्सुलिन आघात (Insulin shock) कहते हैं।

 

(b) ग्लूकैगॉन (Glucagon)- 

यह इन्सुलिन के विपरीत कार्य करता है और ग्लाइकोजन को ग्लूकोज में परिवर्तित होने को उत्तेजित करता है, जिससे रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है या सामान्य हो जाती है। यह अल्फा कोशिकाओं द्वारा स्त्रावित होता है। रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा कम हो जाने पर इसका स्रावण बढ़ जाता है। इसकी खोज किमबाल एवं मर्लिन (Kimball and Marlin) ने सन् 1923 में की। इसके कार्यों को निम्न प्रकार से सूचीबद्ध कर सकते हैं- 

1. यह ग्लाइकोजिनोलिसिस (Glycogenolysis)), डी-एमिनेशन आदि क्रियाओं की दर को तेज करता है। 

2. यह यकृत में ग्लाइकोजिनेसिस क्रिया को रोकता है। 

3. यह वसीय ऊतकों में लिपोजिनेसिस (Lipogenesis) को क्रिया को तेज करता है। 

4. यह रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा कम होने पर उसकी सामान्य मात्रा बनाये रखने में मदद करता है।

 

(c) सोमैटोस्टैटिन (Somatostatin)- 

  • इसका पता अभी हाल में ही लगा है। यह एक पॉलीपेप्टाइड है जो पचे हुये भोजन के स्वांगीकरण की अवधि को बढ़ाता है जिससे भोजन की उपयोगिता अधिक समय तक बनी रहती है। यह हॉर्मोन लैंगरर्हन्स की द्वीपिकाओं की डेल्टा कोशिकाओं द्वारा स्रावित होता है। कुछ वैज्ञानिकों ने हाल ही में पता लगाया है कि आइसलेट्स ऑफ लैंगरहैन्स की PP कोशिकाएँ भी अग्नाशयो पॉलीपेप्टाइड नामक एक हॉर्मोन का स्रावण करती हैं जिसका कार्य अभी निश्चित नहीं है। 

  • अग्नाशय के आइसलेट्स ऑफ लॅगरहैन्स का नियन्त्रण पुनर्निवेशन प्रक्रिया द्वारा होता है।

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