कंकाल तन्त्र के विकार |Disorders of Skeletal System

 कंकाल तन्त्र के विकार (Disorders of Skeletal System)

कंकाल तन्त्र के विकार |Disorders of Skeletal System


 

कंकाल तन्त्र के विकार (Disorders of Skeletal System)

सन्धिशोथ (Arthritis) 

  • यह सन्धियों के शोथ से होने वाला रोग (Inflammatory joint disease) है। सन्धिशोथ अनेक प्रकार का होता हैजैसे- रुमेटी सन्धिशोथ (Rheumatoid arthritis), अस्थि सन्धिशोथ (Osteoarthritis), गाउटी सन्धिशोथ (Gouty arthritis), यक्ष्मज सन्धिशोथ (Tuberculous arthritis), एन्काइलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (Ankylosing spondylitis) आदि ।

 

i) रुमेटी सन्धिशोथ (Rheumatoid arthritis) - 

  • यह सन्धियों के शोथ से होने वाला सबसे सामान्य रोग है जिसमें छोटे-बड़े ( परिधीय सन्धियों (Peripheral joints) के प्रभावित होने के साथ-साथ दैहिक असामान्यता उत्पन्न होती है। इस विकार से ग्रस्त रोगी के रक्त में एन्टीग्लोब्यूलिन प्रतिरक्षी या रुमेटी कारक (Antiglobulin anti- bodies or Rheumatoid factors) पाये जाते हैं। इस रोग में साइनोवियल झिल्ली तथा उससे सम्बद्ध संयोजी ऊतक में सूजन एवं संकुलता (Swelling and congestion) आ जाती है तथा उसमें लिम्फोसाइट विशेषकर CD4कोशिकाओंप्लाज्मा कोशिकाओं तथा वृहत भक्षकाणुओं (Macrophages) का अन्तःसरण (Infiltration) हो जाता है। साइनोवियल तरल के स्यन्दन (Effusion) के कारण दबाव बढ़ जाने से पीड़ा होती है। साइनोवियल झिल्ली की अतिवृद्धि (Hypertrophy) के कारण कणिकायन ऊतक (Granulation tissue) विकसित होता है जिसे पैनस (Pannus) कहते हैं। यह सन्धायी उपास्थि (Articular cartilage) के ऊपर-नीचे फैलने लगता है जिससे उपास्थि का अपरदन (Erosion) तथा विघटन (Destruction) होने लगता है। धीरे-धीरे अस्थियों से सम्बन्धित तन्तुमय ऊतक अस्थिकृत हो जाता है तथा सन्धियाँ अचल हो जाती हैं।

 

(ii) अस्थि सन्धिशोथ (Osteoarthritis)- 

  • यह एक हासी (Degenerative) रोग है जिसमें सन्धायी उपास्थि के ह्रास के साथ-साथ नयी अस्थियोंउपास्थियों तथा संयोजी ऊतक का प्रचुरोद्भवन (Proliferation) होता है। इन परिवर्तनों के कारण सन्धि की रूपरेखा (Joint contour) का पुनर्प्रतिरूपण (Remodelling) हो जाता है। इस विकार में मुख्यतया मेरुदण्डकूल्हे एवं घुटने प्रभावित होते हैं। 

(iii) गाउटी सन्धिशोथ (Gouty arthritis)- 

  • यह यूरिक अम्ल के अत्यधिक उत्पादन एवं उसके उत्सर्जन की अक्षमता के कारण होता है। इसके परिणामस्वरूप मोनोसोडियम यूरेट मोनोहाइड्रेट रवों (Monosodium urate monohydrate crystals) के रूप में यूरिक अम्ल के सोडियम लवण सन्धियों में जमा हो जाते हैं।

 

(iv) यक्ष्मज सन्धिशोथ (Tuberculous arthritis) - 

  • यह रोग माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium tuberculosis) नामक जीवाणु के संक्रमण के कारण उत्पन्न विषाक्त संधिशोथ (Septic arthritis) है। यह भी एक हासी रोग है। इस व्याधि में भी पैनस (Pannus) विकसित होता है।

 

(2) अस्थिसुषिरता (Osteoporosis) 

इस रोग में शरीर में अस्थि की मात्रा में कमी हो जाती है जिसके फलस्वरूप हल्के से आघात से ही अस्थि भंग हो जाती है। यह एक सामान्य उपापचयी अस्थि रोग (Metabolic bone disease) है। अस्थिसुषिरता को दो प्रत्यावर्ती (Involutional) प्रकारों में विभेदित किया जा सकता है- प्रथम प्रकार (Type I) तथा द्वितीय प्रकार (Type II)। 

प्रथम प्रकार की अस्थिसुषिरता रजोनिवृत्ति (Menopause) से सम्बन्धित होती है जिसमें रजोनिवृत्ति के पश्चात् रोगी की ह्यूमरस, पसलियाँ एवं कूल्हे तथा कलाई की अस्थियाँ हल्के आचात (Minimal trauma) से ही भंग हो जाती हैं तथा कशेरुक दण्ड में तीव्र पीड़ा होती है। 

  • द्वितीय प्रकार की अस्थिसुषिरता (Type II Osteoporosis) उम्र आधारित (Age related) होती है जो 70 वर्ष या अधिक उम्र वाले व्यक्तियों में होती है। इसे जराजीर्ण अस्थिसुषिरता (Senile osteoporosis) कहते हैं। इसके प्रमुख लक्षण हैं- लम्बाई में उत्तरोत्तर कमी, वक्षीय कूबड़ (Thoracic kyphosis), वेज भंग (Wedge fracture), कूल्हा भंग (Hip fracture) आदि। इस रोग के प्रमुख जोखिम कारक (Risk factors) हैं- अस्थि निर्माण में कमी, कैल्शियम अपावशोषण (Calcium malabsorption), क्षीण विटामिन-D उपापचय, दीर्घकालिक कॉर्टिकोस्टीरॉएड उपचार (Corticosteroid therapy), गतिहीनता (Immobilisation), शारीरिक व्यायाम का अभाव तथा अत्यधिक धूम्रपान एवं मदिरापान आदि।

गाउट (Gout) 

  • यूरिक अम्ल एक अपशिष्ट उत्पाद है जिसका उत्पादन न्यूक्लिक अम्ल (DNA तथा RNA) उपइकाइयों के उपापचय के दौरान होता है। गाउट से ग्रसित व्यक्ति में या तो यूरिक अम्ल की अत्यधिक मात्रा उत्पादित होती है या फिर उसमें यूरिक अम्ल का उत्सर्जन उतना नहीं होता जितना सामान्यतः होना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप रक्त में यूरिक अम्ल का वर्धन हो जाता है। यह अतिरिक्त यूरिक अम्ल सोडियम के साथ प्रतिक्रिया करके एक लवण बनाता है जिसे मोनोसोडियम यूरेट मोनोहाइड्रेट (Monosodium urate monohydrate) कहते हैं। इस लवण के रवे मुलायम ऊतकों जैसे वृक्कों तथा कानों एवं सन्धियों की उपास्थियों में एकत्रित हो जाते हैं। वास्तव में गाउट कोई एक रोग नहीं है अपितु इस शब्द का उपयोग अनेक व्यक्तिक्रमों के लिए किया जाता है जिनमें मोनोसोडियम यूरेट मोनोहाइट्रेट के शरीर के विभिन्न स्थानों पर एकत्रित होकर गाउटी सन्धिशोथ (Gouty arthritis), टीनोसाइनोवाइटिस (Tenosynovitis), श्लेषशोथ (Bursitis) या सेल्यूलाइटिस (Cellulitis), यूरोलिथियासिस (Urolithiasis) तथा वृक्क रोग (Renal disease) उत्पन्न होते हैं।

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