समथर रियासत | Samthar Riyasat GK in Hindi

 समथर रियासत (Samthar Riyasat GK in Hindi)

समथर रियासत | Samthar Riyasat GK in Hindi

समथर रियासत : 

  • समथर रियासत की भौगोलिक स्थिति पहूज एवं बेतवा नदियों के मध्य बुंदेलखण्ड के उत्तर-पूर्व में थी और यह राज्य 1736 ई. में अस्तित्व में आया। यह एक गैर-बुंदेला राज्य थाजिस पर बड़गूजरों ने शासन स्थापित किया था। इससे पूर्व यह दतिया रियासत का एक अंग था। हालाँकि इस क्षेत्र की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इसे मध्यकाल तक ले जाती है। समथर का पूर्व नाम शमशेरगढ़ बताया जाता है और कहा जाता है कि इस दुर्ग का निर्माण मुगल सम्राट बाबर के एक शमशेर ने किया था। यह दुर्ग स्थल दुर्ग का एक उदाहरण है। चूँकि दुर्ग समतल भूमि पर बना है अतः इस बात की संभावना है कि इस स्थान का नाम अभिधान समथर प्रचलित हो गया हो। इस राज्य पर बड़गूजरों का शासन स्थापित हुआ और उन्हें यह अवसर दतिया रियासत के राजा इंद्रजीत ने प्रदान किया था ।

 

  1. नौनेशाह गूजर को समथर राज्य का संस्थापक माना जाता है। इनके पूर्वज चंद्रभान कौंच तथा भाण्डेर के मध्य एक प्रभावशाली जमींदार थे। इन चंद्रभान के पुत्र दयाराम के दो पुत्र हुए- परशुराम एवं मंजू सिंह हुए। इन्हीं परशुराम के परिवार में नौनेशाह परसोदा गाँव (सेंवढ़ा के समीप ) में पैदा हुये थे। परसोदा गाँव की स्थापना परशुराम ने ही की थी। नोनेशाह प्रारंभ से सैन्य गतिविधियों में प्रशिक्षित थेयही कारण था कि दतिया राजदरबार में उन्हें पर्याप्त महत्व प्राप्त होता था। नौनेशाह ने अपनी सैन्य क्षमता के बल पर दतिया के राजा इंद्रजीत के विरुद्ध विद्रोह करने वाली कई शक्तियों को कुचल दिया थाजिससे प्रसन्न होकर राजा इंद्रजीत ने नौनेशाह को राजधर की उपाधि के साथ दतिया राज्य के अंतर्गत आने वाले एक महत्वपूर्ण दुर्ग समथर की किलेदारी तथा पाँच गाँच बख्शीश में दिये थे । यहीं से समथर राज्य की स्थापना की आधारशिला पड़ी।

 

  • 1725 ई. में समथर के किलेदार नौनेशाह की मृत्यु हो जाने पर उनके पुत्र मर्दन सिंह (1725-1770 ई.) ने इस दायित्व को बखूबी निभाया तथा उन्होंने दतिया के राजा को विभिन्न संकटों के समय सहायता प्रदान की। मर्दन सिंह का उत्तराधिकारी उसका पुत्र विष्णु सिंह हुआ (1770-1780 ई.)जो केवल दस वर्ष तक ही समथर का किलेदार रहा और निःसंतान मृत्यु को प्राप्त हुआ । अतः उनके छोटे भाई को समथर की किलेदारी सौंपी गई। देवीसिंह (1780-1800 ई.) ने ही सर्वप्रथम दतिया राज्य के साथ अपने संबंधों को समाप्त करते हुए समथर में स्वतंत्र शासन प्रारंभ किया। हालाँकि उन्होंने आवश्यकता पड़ने पर मराठों के विरुद्ध अपने पूर्व स्वामी दतिया नरेश राजा शत्रुजीत को सहायता प्रदान की थी। यही नहीं उन्होंने सेंवढ़ा के विद्रोही जागीरदार बहादुरजू का पूर्ण रूप से दमन किया। देवीसिंह के दो पुत्र पहारसिंह तथा विजय बहादुर कम आयु में ही कालकवलित हो गये थेअतः देवीसिंह की 1800 ई. में मृत्यु होने पर समथर राज्य की गद्दी उनके तीसरे पुत्र रंजीत सिंह को प्राप्त हुई ये समथर राज्य के इतिहास में रंजीत सिंह प्रथम के नाम से जाने जाते हैं। देवीसिंह के काल में झाँसी एवं ग्वालियर के मराठों ने ओरछा एवं दतिया राज्य की भाँति समथर राज्य पर भी अपनी दबिश दी थी। मराठों के इस आतंक से मुक्ति पाने के लिए ही रंजीत सिंह प्रथम ने 1801 में मराठा पेशवा से समथर राज्य की मान्यता प्राप्त कर ली। पेशवा ने उन्हें राजा की उपाधि प्रदान की। 39 राजा रंजीत सिंह ने अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने की दृष्टि से बुंदेलखण्ड में अपने पैर पसार रहे अंग्रेजों के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करने की चेष्टा कीजिसमें उसे सफलता प्राप्त नहीं हो सकीक्योंकि लार्ड कार्नवालिस अपने पूर्ववर्ती गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली के विपरीत भारत में अहस्तक्षेप की नीति पर चल रहे थे। रंजीत सिंह प्रथम केवल पंद्रह वर्ष तक समथर पर शासन चला सके और निःसंतान मृत्यु को प्राप्त हुए। इनके बाद इनके पूर्वजों में से एक मंजूसिंह के वंश में उनके पंती अर्थात् पड़पोते रंजीत सिंह को गोद लेकर रंजीत सिंह द्वितीय के नाम से समथर की सत्ता सौंपी गई। इन्होंने भी अपने पूर्ववर्ती राजा की राह पर चलते हुए अंग्रेजों के साथ बेहतर संबंध स्थापित करने की नीति संचालित की। और इस बार रंजीत सिंह द्वितीय को सफलता प्राप्त हुईक्योंकि 1817 ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी सरकार ने समथर राज्य के साथ सुरक्षात्मक संधि कर ली । 

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