साइटोकाइनिन्स क्या है इसके उपयोग | Cytokinins Details in Hindi

 साइटोकाइनिन्स क्या है इसके उपयोग  

(Cytokinins Details in Hindi)

साइटोकाइनिन्स क्या है इसके उपयोग | Cytokinins Details in Hindi

साइटोकाइनिन (CYTOHININS) 

  • साइटोकाइनिन अथवा काइनेटिन ऐसे वृद्धि नियंत्रक पदार्थ है जो कि कोशिका विभाजन के लिये उत्तरदायी होते हैं। 
  • सर्वप्रथम जेवलोस्की एवं स्कूग (Jabionski and Skoog, 1954) ने तम्बाकू के तने की पर्व का संवर्धन करते समय देखा कि संवहनी ऊतकों में एक रासायनिक पदार्थ उपस्थित होता है जिसके प्रभाव से पिथ की कोशिकाओं में कोशिका होता है। मिलर (Miller, 1954) ने हेरिंग स्पर्म DNA से कोशिका विभाजन को प्रेरित करने वाले इस पदार्थ को क्रिस्टल के रूप में पृथ किया। सन् 1956 में मिलर एवं उनके सहयोगियों ने कोशिका विभाजन को प्रेरित करने वाले इस हॉर्मोन को काइनेटिन (Kinetin) नाम दिया। डी. एस. लीथम (D.S. Leetham, 1963) ने इन यौगिकों को साइटोकाइनिन नाम दिया क्योंकि ये पदार्थ कोशिका विभाजन के समय कोशिका पट्ट के निर्माण के द्वारा कोशिकाद्रव्य का विभाजन करते हैं।

 

साइटोकाइनिन के प्रकार्यात्मक प्रभाव एवं अनुप्रयोग 

1. कोशिका विभाजन (Cell division)- 

साइटोकाइनिन्स का प्रमुख कार्य कोशिकाद्रव्य के विभाजन के द्वारा कोशिका विभाजन (Cell division) की क्रिया को प्रेरित करना होता है। स्कूग एवं मिलर (Skoog and Miller, 1957) के अनुसार, ऑक्जिन को पर्याप्त मात्रा के साथ साइटोकाइनिन्स को भिन्न सान्द्रताएं ऊतक संवर्धन प्रयोगों में कैलस (Callus) की वृद्धि के लिये आवश्यक होती है। कोशिका विभाजन की प्रक्रिया निम्नलिखित तीन चरणों में पूर्ण होती है- 

(a) DNA संश्लेषण (DNA synthesis), (b) माइटोसिस (Mitosis) एवं (c) कोशिकाद्रव्य विभाजन (Cytokinesis)। पटाऊ, दास एवं स्कूग (Patau, Das and Skoog, 1957) के अनुसार, 1.A.A. इनमें से प्रथम दो चरणों में भाग लेता है, जबकि अन्तिम प्रक्रिया काइनेटिन (Kinetin) के द्वारा नियंत्रित होती है। 

2. कोशिका का दीर्घीकरण (Cell clongation)- 

ऑक्सिन एवं जिबरेलिन्स के साथ-साथ, साइटोकाइनिन भी कोशिकाओं के दोषकरण की क्रिया को प्रेरित करता है। इस प्रकार कोशिका दीर्घीकरण पतियों के डिस्क (Leaf disc) एवं बीजपत्रों (Cotyledons) में देखो गई है। तम्बाकू की जड़ों (Tobacco roots) एवं तम्बाकू के पिथ कल्चर (Pith culture) में भी काइनेटिन के प्रभाव से कोशिकाओं का दोषकरण होना पाया जाता है। 

3. अंग निर्माण 

साइटोकाइनिन ऊतक के दौरान अंग की क्रिया को भी प्रेरित हैं। स्कूग एवं मिलर (Skoog and Miller, 1957) ने तम्बाकू के पिथ (Pith) में काइनेटिन (Kinetin) एवं I.A.A. के प्रभाव का अध्ययन किया तथा बताया कि इनके प्रभाव से पिथ कैलस (Pith callus) विकसित होकर कलिकाओं (Buds) अथवा जड़ों का निर्माण करती हैं।

 

4 प्रसुप्ति को दूर करना (Breaking of dormancy)- 

अनेक बीजों की प्रसुप्ति को साइटोकाइनिन दूर करता है और बोजों के अंकुरण में सहायता करता है।

 

5. जीर्णता में बिलम्ब (Delay in senescence)- 

पर्णहरिम का विलोपित होना और प्रोटीन का नष्ट होना जीर्णता का प्रमुख लक्षण है। साइटोकाइनिन के प्रभाव से ये दोनों क्रियायें रुक जाती हैं और देरी से होती हैं साइटोकाइनिन के इस प्रभाव को रिचमण्ड सँग प्रभाव कहते हैं।

 

साइटोकाइनिन्स के उपयोग (Uses of Cytokinins) 

(1) ऊतक संवर्धन (Tissue culture) – 

साइटोकाइनिन्स ऊतक संवर्धन के लिए आवश्यक होते हैं क्योंकि ये कोशिका विभाजन के अतिरिक्त मॉर्फोजेनेसिस में भी भाग लेते हैं। 

(2) जीर्णता में विलम्ब (Delay of senescence) –

साइटोकाइनिन के प्रयोग द्वारा पकी हुई सब्जियों, पुष्पों एवं फलों को कई दिनों तक ताजा (Fresh) रखा जा सकता है। 

(3) प्रतिरोध क्षमता में बढोत्तरी (Increase in resistance power) – 

साइटोकाइनिन के प्रयोग से पौधों में उच्च अथवा निम्न तापमान एवं रोगों के प्रति प्रतिरोध क्षमता बढ़ जाती है।

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