बिजावर रियासत एवं प्रमुख राजा | Bijawar riyasat MP History in Hindi

बिजावर रियासत एवं प्रमुख राजा

बिजावर रियासत एवं प्रमुख राजा | Bijawar riyasat MP History in Hindi


बिजावर रियासत : 

  • बिजावर भौगोलिक केन और धसान नदियों के मध्य स्थित है और इस राज्य का अभ्युदय भी चरखारी राज्य की भाँति हुआ था। यह क्षेत्र पूर्व में पन्ना राज्य के अंतर्गत आता था और छत्रसाल द्वारा अपने पुत्र जगतराज को सौंपा गया था। जैतपुर नरेश जगतराज ने अपने राज्य का विभाजन अपने पुत्रों में कर दियाजिसके अनुसार बिजावर के क्षेत्र बीरसिंह के हिस्से में आये थे। उस समय इस क्षेत्र का राजस्व एक लाख रुपया था। बिजावर के संस्थापक शासक बीरसिंह (1758-1793 ई.) ने अपने कामदार बेनी बहादुर की सहायता से अपने राज्य का विस्तार पन्नाचरखारी एवं छतरपुर राज्य के समीमावर्ती क्षेत्रों पर अधिकार करके कर लिया और अब 1789 ई. में बिजावर राज्य तीन लाख रुपये वार्षिक राजस्व वाला राज्य बन गया। किन्तु बिजावर राज्य पर मराठों एवं हिम्मतबहादुर व अलीबहादुर की लगातार दबिश थी और इस कार बीरसिंह सदैव परेशान रहते थे। अंततः उन्होंने जैतपुर के राजा केशरीसिंहछतरपुर के राजा सोनेजू पँवार तथा जसौ के प्रबंधक गोपालसिंह को अपने पक्ष में मिलाकर मराठों के विरूद्ध संयुक्त आक्रमण के लिये तैयार कर लिया। दोनों पक्षों में चरखारी के समीप हुये इस मे बीरसिंह मृत्यु को प्राप्त हुए ।

 

  • युद्ध राजा बीरसिंह की मृत्यु होने पर उनके चार पुत्रों में से द्वितीय पुत्र केशरीसिंह गद्दी पर बैठेक्योंकि उनके ज्येष्ठ पुत्र धोकलसिंह की भी निःसंतान मृत्यु हो चुकी थी। केशरी सिंह (1793-1810 ई.) ने अपने शासनकाल में बाँदा के नवाब अलीबहादुर के साथ बेहतर संबंध बनाने का प्रयास कियाजिससे बिजावर राज्य में कुछ समय तक शांति का वातावरण रहा। उधर उन्होंने अंग्रेज़ों को भी अपना मित्र बनाने के लिये कंपनी सरकार के बुंदेलखड प्रतिनिधि जॉन बेली के साथ संपर्क किया। बिजावर • एवं कंपनी सरकार के मध्य कोई समझौता हो पाता किंतु कुछ क्षेत्रोंजिनमें रामगढ़ (चरखारी)बजरा (छतरपुर)सटई और करैया गाँव शामिल थेपर आधिपत्य को लेकर स्थानीय राजाओं में परस्पर विवाद था। यह विवाद युद्ध की शक्ल ले पाता कि अजयगढ़ के किलेदार लक्ष्मण दौआ की मध्यस्थता से 1810 ई. विवाद सुलझा लिया गया। इस बीच बिजावर के राज केशरी सिंह की मृत्यु हो गई और उनके ज्येष्ठ पुत्र रतनसिंह ने गद्दी सँभाली। उन्होंने 1810 से 1833 ई. तक लगभग 23 वर्ष तक शासन किया। रतनसिंह के शासनकाल की प्रथम महत्वपूर्ण घटना बिजावर राज्य एवं कंपनी सरकार के मध्य 26 मार्च, 1811 ई. को परस्पर समझौता होना था। इस समझौते में बिजावर नरेश ने कंपनी सरकार को निम्नलिखित आश्वासन दिया था -

 

1. वह किसी भी चोरलुटेरेडाकु के साथ कोई संबंध नहीं रखेगा। वह अपने राज्य किसी चोरडाकु को शरण नहीं देगा। 

3. वह कंपनी सरकार के भगोड़े अपराधी को पकड़कर कंपनी सरकार को सौंप देगा | 

4. वह अपने राज्यांतर्गत आने वाले मार्गों एवं घाटों की सुरक्षा करेगा । 

5. अपने राज्य में कंपनी सरकार की सेना के प्रविष्ट होने पर उसकी सहायता करेगा। 

6. वह अपना एक विश्वस्त व्यक्ति कंपनी सरकार के पास सेवा के लिये रखेगा। 

7. वह अपने राज्यान्तर्गत होने वाले विवादों पर कंपनी सरकार की मध्यस्थता स्वीकार करेगा । 

8. वह कंपनी सरकार के मित्रों के साथ मित्रवत् एवं शत्रुओं के साथ शत्रुवत् व्यवहार करेगा ।

 

उक्त वचनों के आधार पर कंपनी सरकार ने बिजावर राज्य को सनद प्रदान कीजिससे बिजावर राज्य सुरक्षा का एहसास कर सकता था। सनद प्राप्त होने के बाद राजा रतनसिंह ने अपने छोटे भाई खेतसिंह को राज्य का दीवान बनाया तथा संप्रभुता सूचक एक सिक्का रतनशाही का प्रचलन किया ।

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