हीमोडायलिसिस एवं कृत्रिम गुर्दा क्या होता है |HAEMODIALYSIS AND ARTIFICIAL KINDNEY

 हीमोडायलिसिस एवं कृत्रिम गुर्दा (HAEMODIALYSIS AND ARTIFICIAL KINDNEY)

हीमोडायलिसिस एवं कृत्रिम गुर्दा क्या होता है |HAEMODIALYSIS AND ARTIFICIAL KINDNEY


हीमोडायलिसिस एवं कृत्रिम गुर्दा

  • जब कभी वृक्क ठीक से कार्य नहीं कर पाता तब शरीर के रुधिर में यूरिया की मात्रा अचानक बढ़ जाती हैइस स्थिति को यूरेमिया (Uremia) कहते हैं। ऐसे रोगियों के रुधिर की यूरिया तथा दूसरे उत्सर्जी पदार्थों को एक उपकरणजिसे कृत्रिम गुर्दा या वृक्क (Artificial kidney) कहते हैंके द्वारा हटाया जाता हैइस क्रिया को हीमोडायलिसिस कहते हैं। इस क्रिया में रोगी के रुधिर को मुख्य धमनी से बाहर करके 0°C तक ठण्डा किया जाता है। अब इसमें रुधिर के थक्काकरण को रोकने के लिये होपैरिन (Heparin) मिलाया जाता है और इसे उपकरण में पम्प कर दिया जाता है। उपकरण के अन्दर रुधिर सेलोफेन (Cellophane) झिल्ली की बनी नलिकाओं में बहता है। यह झिल्ली प्लाज्मा में स्थित प्रोटीनों के लिये अपारगम्य लेकिन छोटे अणुओं जैसे- यूरियायूरिक अम्लक्रिएटिनिन और खनिज लवणों के लिये पारगम्य होती है। उपकरण के सेलोफेन की नलिकाओं के बाहर रुधिर का समपरासरी लवण द्रव बहता रहता है। इस कारण नलिकाओं के अन्दर बहते रुधिर के उत्सर्जी पदार्थ विसरित होकर उपकरण के द्रव में आ जाते हैं फलतः रुधिर उत्सर्जी पदार्थों से मुक्त हो जाता हैइस क्रिया को डायलिसिस कहते हैं। इस क्रिया के अन्त में रुधिर उपकरण से आने वाले रुधिर के ताप को सामान्य ताप तक लाकर इसे पुनः शरीर के अन्दर कर दिया जाता है। हीमोडायलिसिस द्वारा यूरेमिया से पीड़ित व्यक्तियों के जीवन को बचाया जाता है।

 

गुर्दा प्रत्यारोपण (KIDNEY TRANSPLANTATION) 

  • कभी-कभी मनुष्य के गुर्दे खराब हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में रुधिर में यूरिया एवं अन्य उत्सर्जी पदार्थों की मात्रा में वृद्धि होती जाती है जिसके कारण व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। ऐसी स्थिति में गुर्दा प्रत्यारोपण से ही व्यक्ति का जीवन संभव होता है। गुर्दे के फेल हो जाने पर उनका इलाज संभव नहीं होता है। अतः समान रक्त समूह वाले व्यक्तियों के गुर्दे को प्रतिस्थापित करना ही एकमात्र उपाय होता है। गुर्दा प्रत्यारोपण के लिये समान रक्त समूह वाले जीवित व्यक्तियों से गुर्दा लिया जाता है या ऐसा व्यक्ति जिसकी मृत्यु अभी-अभी हुई हो। सामान्यतः रक्त सम्बन्धी का गुर्दा व्यक्ति के लिये अधिक उपयुक्त होता है। दाता एवं ग्राही दोनों के रक्त समूह एवं गुर्दों के ऊतक एक समान होने पर ही ग्राही व्यक्ति का शरीर उसे स्वीकृत कर पाता हैअन्यथा ग्राही व्यक्ति के शरीर का प्रतिरक्षात्मक तंत्र उसे अस्वीकृत कर देता है। प्रतिरक्षात्मक तंत्र रोगाणुओं एवं अवांछित बाह्य पदार्थों से शरीर की सुरक्षा करता है। इससे बचाव हेतु विशिष्ट प्रकार की औषधियों का उपयोग किया जाता है जो कि प्रतिरक्षात्मक तंत्र को अक्रिय करके प्रत्यारोपित गुर्दे को अस्वीकृत होने से बचा लेती है।

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