सूक्ष्मअणु वृहत् जैव अणु | Macro and micromolecules in Hindi

 सूक्ष्मअणु वृहत् जैव अणु  

सूक्ष्मअणु वृहत् जैव अणु | Macro and micromolecules in Hindi


सूक्ष्मअणु वृहत् जैव अणु 


  • अम्ल के घुलनशील भाग में पाये जाने वाले सभी योगिकों की एक सामान्य विशेषता है इसका अणु भार 18 से 800 डाल्टन के आसपास होता है । 
  • अम्ल अविलेय अंश में केवल चार प्रकार के कार्बनिक यौगिक जैसे प्रोटीन, न्यूक्लीक अम्ल, पॉलीसैकेराइड्स व लिपिड्स मिलते हैं। लिपिड्स के अतिरिक्त इस श्रेणी के यौगिकों का अणु भार आठ  हजार डाल्टन या इसके ऊपर होता है। इस कारण से जैव अणु अर्थात् जीवों में मिलने वाले रासायनिक यौगिक दो प्रकार के होते हैं। एक वे हैं जिनका अणुभार एक हजार डाल्टॉन से कम होता है उन्हें सामान्यतया सूक्ष्मअणु या जैव अणु कहते हैं जबकि जो अम्ल अविलेय अंश में पाए जाते हैं उन्हें वृहत् अणु या वृहत् जैव अणु कहते हैं।

 

प्रोटीन क्या है 

  • प्रोटीन पॉलीपेप्टाइड होते हैं। ये अमीनो अम्ल की रेखीय श्रंखलाएं होती हैं, जो पेप्टाइड बंधों से जुड़ी होती हैं 
  • प्रत्येक प्रोटीन अमीनो अम्ल का बहुलक है। अमीनो अम्ल 20 प्रकार के होने से (जैसे-एलेनीन, सिस्टीन, प्रोलीन, ट्रीप्टोफान, लाइसीन आदि) होते हैं। 
  • प्रोटीन समबहुलक नहीं, बल्कि विषम बहुलक होते हैं। एक समबहुलक एक एकलक की कई बार आवर्ती के कारण बनता है। 
  • प्रोटीन जीवों में बहुत सारे कार्य करते हैं, इनमें कुछ पोषकों के कोशिका झिल्ली से होकर अभिगमन करने तथा कुछ संक्रामक जीवों से बचाने में सहायक होती हैं और कुछ एंजाइम के रूप में होती हैं।

 

प्रोटीन के विकृतीकरण से क्या अभिप्राय है? 

उच्च तापदाब तथा दूसरी प्रतिकूल परिस्थितियों में प्रोटीन की संरचना में पाये जाने वाले कई बन्ध टूट जाते हैंजिससे उनकी मूल संरचना तथा गुण बदल जाते हैंइन्हीं परिवर्तनों को प्रोटीन विकृतीकरण कहते हैं।

 

काइटिन क्या है ?

  • काइटिन एक पॉलिसैकेराइड हैजो ग्लूकोज के ही समान मोनोसैकेराइड का बना होता हैलेकिन इसमें नाइट्रोजन पाया जाता है। आर्थोपोड्स जन्तुओं की कड़ी त्वचा काइटिन की ही बनी होती है। वैसे तो यह नरम चमड़े के समान होता हैलेकिन कैल्सियम कार्बोनेट अथवा प्रोटीन के मिल जाने के कारण कठोर हो जाता है।

 

पॉलीसैकेराइड क्या होते हैं  

  • अम्ल अविलेय भाग में दूसरे श्रेणी के वृहत् अणुओं की तरह पॉलीसैकेराइड्स (कार्बोहाइट्रेडस) भी पाए जाते हैं। ये पॉलीसैकेराइड्स शर्करा की लंबी श्रृंखला होती है। यह श्रृंखला सूत्र की तरह (कपास के रेशे) विभिन्न प्रकार के एकल सैकेराइड्स से मिलकर बने होते हैं। उदाहरणार्थसेलुलोज एक बहुलक पॉलीसैकेराइड होता है जो एक प्रकार के मोनोसैकेराइड जैसे ग्लूकोज का बना होता है। सेलुलोज एक सम बहुलक है। इसका एक परिवर्तित रूप स्टार्च (मंड) सेलुलोज से भिन्न होता हैलेकिन यह पादप ऊतकों में ऊर्जा भंडार के रूप में मिलता है। प्राणियों में एक अन्य परिवर्तित रूप होता है जिसे ग्लाइकोजन कहते हैं। इनूलिन फ्रुक्टोज का बहुलक है। एक पॉलीसैकेराइड श्रृंखला (जैसे ग्लाइकोजन) का दाहिना सिरा अपचायक व बायां सिरा अनअपचायक कहलाता है। यह शाखायुक्त होता है।

 

एंजाइम क्या होते हैं  

  • एंजाइम एक तरह का प्रोटीन है जो कोशिकाओं के अंदर पाया जाता है। एंजाइम मानव शरीर में कैमिकल (रसायनिक) प्रतिक्रियाओं को तेज करने में मदद करते हैं। एंजाइम भोजन को पचानेमांसपेशियों के बनने और शरीर में विषाक्त पदार्थ खत्म करने के साथ शरीर के हजारों कामों को करने के लिए आवश्यक होते हैं।

 

सहकारक क्या होते हैं  

  • सहकारक एक ऐसा धातु आयन या ग़ैर-प्रोटीन रासायनिक यौगिक होता है जिसकी उपस्थिति किसी प्रकिण्व (ऍन्ज़ाइम) के कार्य के लिए आवश्यक हो। सहकारक जैवरसायनिक प्रक्रियाओं में सहायक यौगिकों की भूमिका अदा करते हैं। एंजाइम एक या अनेक बहुपेप्टाइड शृंखलाओं से मिलकर बना होता है। फिर भी कुछ स्थितियों में इतर प्रोटीन अवयवजिसे सह-कारक कहते हैंएंजाइम से बंधकर उसे उत्प्रेरक सक्रिय बनाते हैं। इन उदाहरणों में एंजाइम के केवल प्रोटीन भाग को एपोएंजाइम कहते हैं। सह-कारक तीन प्रकार के होते है: प्रोस्थेटिक-समूहसह-एंजाइम व धातु-आयन।

+जीव अवस्था 

  • कोई भी रासायनिक या भौतिक प्रक्रिया स्वतः साम्यावस्था को प्राप्त करती है। स्थिर अवस्था एक असाम्यावस्था होती है। भौतिक सिद्धांत के अनुसार कोई भी तंत्र साम्यावस्था में कार्य नहीं कर सकता है। जैसा कि जीव हमेशा कार्य करते हैं, उनमें कभी भी साम्यावस्था की स्थिति नहीं हो सकती है। अतः जीव अवस्था एक असाम्य स्थाई अवस्था होती है, जिससे कार्य संपन्न होता है। जीव प्रक्रिया एक लगातार प्रयास है जिसमें साम्यावस्था से बचा जा सके। इसके लिए सदा ऊर्जा की आवश्यकता होती है। उपापचय वह प्रक्रिया है जिससे ऊर्जा प्राप्त होती है। अतः जीव अवस्था व उपापचय एक दूसरे के पर्यायवाची होते हैं। बिना उपापचय के जीव अवस्था प्राप्त नहीं हो सकती है।

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