पाठ्यचर्या विकास के सामाजिक आधार| Social Basis of Curriculum Development

पाठ्यचर्या विकास के सामाजिक आधार

पाठ्यचर्या विकास के सामाजिक आधार| Social Basis of Curriculum Development



पाठ्यचर्या विकास के सामाजिक आधार

शिक्षा में सामाजिक प्रवृति का तात्पर्य शिक्षा द्वारा बालकों में सामाजिक गुणों के विकास करने के प्रयास करने की प्रक्रिया से है जिससे व्यक्ति और समाज दोनों का कल्याण हो सके। उन्नीसवी शताब्दी में महान दार्शनिक रूसो के व्यक्तित्ववाद के प्रतिक्रिया के फलस्वरूप समाजिकतावादी प्रवृति का जन्म हुआ, जिसने व्यक्ति को बदलते हुए समाज में रहने के लिए तैयार करने की आवश्यकता पर बल दिया। इसी समय फ्रांसीसी विद्वान अगस्त काम्टे ने एक नवीन सामान्य सामाजिक विज्ञान समाजशास्त्र' को जन्म देकर शिक्षा मे समाजशास्त्रीय प्रवृति को पूर्ण बना देने की सुद्धढ आधारशिला रख दी । समाजशास्त्र की ही शाखा शैक्षिक समाजशास्त्र को समाज के सभी आदर्शो, नियमों, समस्याओं, साधनों एवं तथा उनके व्यक्ति पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करके समाज की उन्नति के लिए शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यचर्या, शिक्षणविधि, पाठ्यपुस्तकें, अनुशासन, विद्यालय तथा शिक्षक आदि का स्वरूप निर्धारित करता है। शिक्षा में समाज की क्या भूमिका है तथा पाठ्यचर्या निर्माण इससे कैसे प्रभावित होता है इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित है-


1. समाजशास्त्रीय प्रवृति (Sociological Tendency)


2. सामाजिक स्थिति (Social Condition )


3. सामाजिक दबाव वर्ग (Social Pressure Group )


4. परिवार (Family)


5. धार्मिक संगठन (Religious Organisations)


6. शिक्षक एवं शिक्षार्थी (Teacher and Students)


7. समाज की प्रकृति (Nature of the Society) 8. समाज की बदलती आवश्यकतायें (Changing Needs of the Society)


समाजशास्त्रीय प्रवृति और पाठ्यचर्या (Sociological Tendency and Curriculum)


शिक्षा में समाजशास्त्रीय प्रवृति पाठयचर्या निर्माण में साहित्यिक विषयों की अपेक्षा सामाजिक विषयों पर अधिक बल दिया जाता है। इसके अनुसार प्रकृति विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान का विशेष स्थान होता है। इसलिए पाठ्यचर्या का विस्तार सामाजिक एवं व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिए।


सामाजिक स्थिति और पाठ्यचर्या (Social Condition and Curriculum)


समाज के आवश्यकतों के अनुरूप ही शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण करना चाहिए तथा पाठ्यचर्या का उद्देश्य भी एक तरह से व्यक्ति को समुचित समायोजन में सहायता प्रदान करने की होती है। अतः वर्तमान पाठ्यचर्या में सामाजिक स्थिति की ध्यान में रखते हुए जनसंख्या शिक्षा, पर्यावरण शिक्षा, प्रदूषण की समस्या, सुरक्षा - शिक्षा, परिवहन शिक्षा, काम- शिक्षा, जाति-उन्मूलन, परिवार कल्याण, विवाह एवं तलाक की समस्या, राष्ट्रिय एवं अंतर्राष्ट्रीय एकता की शिक्षा आदि विषयों का समावेश किया जा रहा है।


सामाजिक दबाव वर्ग और पाठ्यचर्या (Social Pressure Group and Curriculum)


शिक्षा में सामाजिक प्रवृति के कारण पाठयचर्या को विभिन्न स्तरों पर कई तरह के सामाजिक दबावों का सामना करना पड़ता है। एक तरफ जहां कुछ वर्ग परिवर्तन लाने के उद्देश्यों से कार्य करते हैं वहीं अनेक दबाव समूह उन्हें रोकने के उद्देश्य से भी क्रियाशील रहते हैं। वर्तमान समय में विभिन्न प्रकार के विद्यालय, शिक्षा परिषदें, विश्वविद्यालय, परीक्षा कार्यक्रम एवं संसोधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है।


परिवार और पाठ्यचर्या (Family and Curriculum)

बालक की अनौपचारिक शिक्षा का प्रारम्भ परिवार से ही होता है। वर्तमान समय में परिवारों के परंपरागत कार्यों एवं दायित्वों का स्थानांतरण विद्यालयों को हो गया है तथा इसका महत्वपूर्ण कारक आज के युग की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था भी है।


धार्मिक संगठन और पाठ्यचर्या (Religious Organisation and Curriculum )

प्राचीन काल से ही शिक्षा के क्षेत्र में परिवार के बाद दूसरा स्थान धार्मिक संगठनो का रहा है। किन्तु वैज्ञानिक एवं औद्योगिक क्रांति के बाद शिक्षा के क्षेत्र में धार्मिक संगठनो की भूमिका कुछ कम हुई है। अब भी पाठ्यचर्या के सामाजिक आधारों मे धर्म का महत्वपूर्ण स्थान बना हुआ है।


शिक्षक, शिक्षार्थी और पाठ्यचर्या (Teacher, Student and Curriculum)

पाठ्यचर्या के उद्देश्यों, उसकी अंतर्वस्तु, अधिगमानुभावों का चयन, मूल्यांकन प्रक्रिया आदि के संबंध में निर्णय लेते समय छात्र जनसंख्या को भी ध्यान देने आवश्यक होता है जिसके लिए पाठ्यचर्या का आयोजन किया जा रहा है। साथ ही साथ शिक्षकों के आचार-विचार, आस्थाएँ, मान्यताएँ, सामाजिक पृष्ठभूमि एवं शैक्षिक योग्यताएँ आदि पाठयचर्या को बहुत अधिक प्रभाव करते हैं।


समाज की प्रकृति और पाठ्यचर्या (Nature of the Society and Curriculum)


कोई भी समाज न तो पूर्ण रूप से परंपरा प्रेमी होता है और न ही पूर्ण रूप से परिवर्तन प्रेमी होता है।इस प्रकार समाज की प्रकृति के अनुरूप पाठयचर्या को अपने आपको समायोजित करते रहना पड़ता है। यह एक सतत प्रक्रिया है।


समाज की बदलती आवश्यकताएँ और पाठ्यचर्या (Changing needs of the Society and Curriculum)

आधुनिक समाज में परिवर्तन गति बहुत अधिक तीव्र होने के कारण अनेक नवीन प्रवृतियों का उदय हो रहा हो रहा है जिसके कारण पाठ्यचर्या नियोजकों को कठिनाई का सामना करना पद रहा है। किसी भी आधुनिक समाज में मुख्यतः सामाजिक, राजनैतिक, तकनीकी, आर्थिक एवं परिस्थितीय परिवर्तन से संबन्धित विषयों को पाठ्यचर्या में समावेशित किया जा रहा है।

ऊपरोक्त रोक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्रत्येक सामाजिक विचारधारा अपने सामाजिक सिद्धांतों एवं आवश्यकताओं के आधार पर विषयों को पढ़ाये जाने पर बल देती है तथा किसी समाज में पाठ्यचर्या विषयों का निर्धारण उस समाज, काल, परिस्थिति में प्रचलित एवं आवश्यक समाजशास्त्रीय विचारधारा के आधार पर होता है। इस प्रकार आप जान गए होंगे कि किस प्रकार समाजशास्त्र विषय पाठ्यचर्या निर्माण हेतु एक निर्धारक के रूप में कार्य करता है।

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