परवर्ती मुगलों के समय मध्यप्रदेश का इतिहास | MP History After Aurangzeb

परवर्ती मुगलों के समय मध्यप्रदेश 

परवर्ती मुगलों के समय मध्यप्रदेश का इतिहास | MP History After Aurangzeb


 

परवर्ती मुगलों के समय मध्यप्रदेश 

➽  1715 ई. में मुगल बादशाह फर्रुखसियर ने अमीर उल उमरा हुसैन अली को दक्खिन का वायसराय नियुक्त किया। खानदेश का सूबेदार दाउदखान पन्नी उसका विरोधी था और फर्रुखसियर के उकसाने पर दाउदखान पन्नी ने हुसैनअली की अवमानना की। इस कारण हुसैन अली और दाउदखान के बीच सितम्बर 1715 ई. में बुरहानपुर के लालबाग में एक भयानक युद्ध हुआ। दाउदखान पराजित हुआ और मारा गया। उसके शव को हाथी की पूंछ से बांधकर शहर भर में घसीटा गया । 

 

➽  1719 ई. में दिल्ली में पेशवा बालाजी विश्वनाथ को चौथ और सरदेशमुखी की वसूली से संबंधित दस्तवेज दिये गये थे। इसके आधार पर 1719 ई. में छत्रपति शाहू ने पेशवा बालाजी बाजीराव को मालवा में चौथ वसूल करने का अधिकार दिया यद्यपि तब मालवा मुगल साम्राज्य का था। इसी प्रकार पेशवा के अधिकारी बुरहानपुर क्षेत्र और पूर्वी निमाड़ के इलाकों से भी कर वसूल करने लगे। इसके बाद पेशवा बाजीराव के धावे बढ़ गए और उसने मालवा में चौथ वसूलने के लिए अपने अधिकारी नियुक्त कर दिए।

 

➽  1719 ई. में ही मुगल बादशाह ने प्रथम निजामुल्मुल्क को मालवा का सूबेदार नियुक्त किया। उसका प्रतिद्वंदी अमीर उल उमरा हुसैन अली था । बादशाह फर्रुखसियर के वध के बाद निजाम ने विद्रोह कर लिया और 1720 ई. में नर्मदा नदी को पार करके बुरहानपुर और असीरगढ़ पर अधिकार कर लिया। निजामुल्मुल्क तथा हुसैन अली के बीच खण्डवा के पास 1720 ई. में एक भयानक युद्ध हुआ जिसमें हुसैन अली की पराजय हुई | सैयदों का पतन होने पर निजामुल्मुल्क का प्रभाव बढ़ गया और वह मुगल बादशाह वजीर बन गया। दरबारी षड़यंत्रों से परेशान होकर निजामुल्मुल्क ने दिल्ली छोड़ दिया और 1723 ई. में पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। तब बादशाह ने उसे खानदेश सहित दक्खिन का सूबेदार बना दिया। इस प्रकार बुरहानपुर और खण्डवा का इलाका निजाम के पास चला गया और 1748 ई. में निजाम के निष् न तक यह इलाका निजाम के पास ही बना रहा। इस कारण निजाम का मराठों से एकाधिक बार संघर्ष हुआ।

 

➽  मुगल बादशाह ने 1725 ई. में गिरधर बहादुर को मालवा का सूबेदारू नियुक्त किया । मालवा का सूबेदार नियुक्त होते ही गिरधर बहादुर ने मालवा से मराठा अधिकारियों को निकाल बाहर किया। पर गिरधर बहादुर अधिक समय तक निश्चित न रह सका। 29 नवंबर 1728 ई. को अमझेरा की लड़ाई में बाजीराव पेशवा ने गिरिधर बहादुर को पराजित किया और युद्ध में गिरधर बहादुर तथा उसका भाई दयाबहादुर मारे गये। दोनों के निधन के बाद गिरधर बहादुर के बेटे भवानीराम ने मालवा की सूबेदारी संभाली। उसे मुगल बादशाह ने उज्जैन में बने रहने तथा मराठा आक्रमणों से मालवा को बचाने के लिये कहा। लेकिन मराठों के धावे चलते रहे और उन्होंने सारे मालवा से खूब धन वसूला और लूटमार की। मालवा में अब उन्हें रोकने वाली कोई ताकत नहीं थी।

 

➽  1730 ई. में पेशवा बाजीराव ने मल्हारराव होल्कर को मालवा का प्रभारी बनाया और रानोजी सिंधिया को भी मालवा के मामलों की देखरेख के लिए रख दिया। 1732 में ही पेशवा बाजीराव ने मालवा के तीन हिस्सों को क्रमशः मल्हारराव होल्कररानोजी सिंधिया और दाऊजी पवार के जिम्मे कर दिया जिससे वे वहाँ चौथ वसूली कर सकें। होल्कर ने इन्दौर को सिंधिया ने उज्जैन को और पवार ने धार को अपना केन्द्र बनाया। यह सब घटनाक्रम मध्यप्रदेश के इतिहास और संस्कृति के लिए बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि इसके बाद मध्यप्रदेश में मराठों का प्रसार होता गया और उनके साथ महाराष्ट्र की भाषा और संस्कृति का आगमन भी प्रदेश में हुआ। महाराष्ट्रीय संस्कृति की इस धारा ने प्रदेश के सामाजिक और सांस्कृतिक स्वरूप को नए आयाम दिए जो स्थायी सिद्ध हुए ।

 

➽  सितम्बर 1732 ई. में मुगल बादशाह ने सवाई जयसिंह को तीसरी बार मालवा का सूबेदार नियुक्त किया। फरवरी 1733 में जब जयसिंह अपनी सेनाओं के साथ मन्दसौर में था तब होल्कर और सिंधिया ने उसे घेर लिया और जो युद्ध हुआ उसमें जयसिंह को पीछे हटना पड़ा। मराठों ने उसका पीछा नहीं छोड़ा और अन्त में जयसिंह को मराठों के साथ एक समझौता करना पड़ा और उसने 6 लाख रुपये अर्थदण्ड देना स्वीकार किया। इसके अलावा उसने उन्हें चौथ के बदले मालवा के 28 मुगल परगने सौंपने का वादा किया। अब मालवा से मुगल शासन खत्म होने का मार्ग प्रशस्त हो गया। मालवा में मराठों की सत्ता का प्रसार कैसे हुआ यह आगे के अध्यायों में बताया गया हैं

 

➽  इसी बीच एक महत्वपूर्ण घटना बुन्देलखण्ड में घटी। इलाहाबाद के मुगल सूबेदार मुहम्मद बंगाश ने 1729 ई. में पन्ना के राजा छत्रसाल पर आक्रमण कर दिया। छत्रसाल ने बंगाश के विरुद्ध पेशवा बाजीराव से सहायता माँगी। बंगाश पराजित हुआ और इस सहायता के बदले छत्रसाल ने बाजीराव को अपना तीसरा बेटा मानकर अपने राज्य का एक तिहाई भाग देने का वादा किया। 1731 ई. में की मृत्यु के बाद पेशवा बाजीराव को कालपीसागरसिरोंजहटागढ़ाकोटा और हृदयनगर के इलाके मिले।

 

➽  मराठों ने मालवा और आस पास के इलाकों पर इतने धावे किये कि मुगल बादशाह को उन्हें खदेड़ने का काम आसफजाह निजामुल्मुल्क को सौंपा। दिसम्बर 173775 ई. में भोपाल में निजाम और पेशवा बाजीराव की सेनाओं में मुकाबला हुआ। इस युद्ध में भोपाल के नवाब ने निजाम का साथ दिया। निज़ाम की हार हुई और 7 जनवरी 1738 ई. को दोराहा सरायप्की संधि में चम्बल के दक्षिण के इलाके पर मुगलों ने मराठों की प्रभुसत्ता मान ली और पेशवा को इस क्षेत्र के राजाओं से कर वसूल करने का अधिकार मिल गया । बाजीराव ने भोपाली को नवाब से अलग से संधि की और भोपाल रियासत के कुछ इलाके उससे ले लिये। 

➽  इस प्रकार 1738 ई. में मध्यप्रदेश से मुगलों की सत्ता समाप्त हो गयी और मराठों के " प्रभाव का युग शुरू हुआ। 


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