28 मई, 2023 को प्रधानमंत्री नए संसद भवन का
उद्घाटन किया, जो
सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना का हिस्सा है।
इस आयोजन का एक मुख्य आकर्षण लोकसभा
अध्यक्ष की सीट के समीप ऐतिहासिक स्वर्ण राजदंड “सेन्गोल” की स्थापना होगा, जिसे सेन्गोल कहा जाता है।
सेन्गोल भारत की स्वतंत्रता और
संप्रभुता के साथ-साथ इसकी सांस्कृतिक विरासत और विविधता का प्रतीक है।
सेन्गोल का अर्थ एवं महत्व
सेन्गोल, तमिल शब्द "सेम्मई" से लिया
गया है, इसका
अर्थ है "नीतिपरायणता"। इसका निर्माणस्वर्णया चांदी से किया जाता था
तथा इसे कीमती पत्थरों से सजाया जाता था।
सेन्गोल जो कि राजसत्ता का प्रतीक था, औपचारिक समारोहों के अवसर पर सम्राटों
द्वारा ले जाया जाता था जो कि उनकी राजसत्ता का प्रतिनिधित्व करता था।
यह दक्षिण भारत में सबसे लंबे समय तक
शासन करने वाले और सबसे प्रभावशाली राजवंशों में से एक चोल राजवंश से जुड़ा है।
चोलों ने 9वीं से 13वीं शताब्दीतक तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा तथा श्रीलंका के कुछ हिस्सों पर
शासन किया।
चोल राजवंश को इनके सैन्य कौशल, समुद्री व्यापार, प्रशासनिक दक्षता, सांस्कृतिक संरक्षण और मंदिर वास्तुकला
के लिये जाना जाता है।
चोलों में उत्तराधिकार और वैधता के
निशान के रूप में एक राजा से दूसरे राजा को सेन्गोल राजदंड सौंपने की परंपरा थी।
समारोह आमतौर पर एक पुजारी या एक गुरु
द्वारा किया जाता था जो नए राजा को आशीर्वाद देता था और उसे सेन्गोल से सम्मानित
करता था।
सेन्गोल का इतिहास और भारत की आजादी
वर्ष 1947 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता
प्राप्ति से पहले तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल
नेहरू से एक प्रश्न किया: "ब्रिटिश से भारतीय हाथों में सत्ता के हस्तांतरण
के प्रतीक के रूप में किस समारोह का पालन किया जाना चाहिये?"
प्रधानमंत्री नेहरू ने तब सी.
राजगोपालाचारी से परामर्श किया जिन्हें आमतौर पर राजाजी के नाम से जाना जाता था जो
भारत के अंतिम गवर्नर-जनरल बने।
राजाजी ने सुझाव दिया कि सेन्गोल
राजदंड सौंपने के चोल मॉडल को भारत की स्वतंत्रता के लिये एक उपयुक्त समारोह के
रूप में अपनाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि यह भारत की प्राचीन
सभ्यता और संस्कृति के साथ-साथ विविधता में एकता को भी दर्शाएगा।
14 अगस्त, 1947 को थिरुवदुथुराई अधीनम (500 वर्ष पुराना शैव मठ) द्वारा
प्रधानमंत्री नेहरू को सेन्गोल राजदंड भेंट किया गया था।
मद्रास (अब चेन्नई) के एक प्रसिद्ध
जौहरी वुम्मीदी बंगारू चेट्टी द्वारा एक सुनहरा राजदंड तैयार किया गया था।
नंदी की"न्याय" के दर्शक के रूप में अपनी
अदम्य दृष्टि के साथ शीर्ष पर हाथ से नक्काशी की गई है।
सेन्गोल नए संसद
भवन में क्यों लगाया गया है?
वर्ष 1947 में सेन्गोल राजदंड प्राप्त करने के
बाद नेहरू ने इसे कुछ समय के लिये दिल्ली में अपने आवास पर रखा।
इसके बाद उन्होंने अपने पैतृक घर आनंद
भवन संग्रहालय इलाहाबाद (अब प्रयागराज) को दान करने का निर्णय लिया।
संग्रहालय की स्थापना उनके पिता
मोतीलाल नेहरू ने वर्ष 1930 में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास और विरासत को संरक्षित
करने के लिये की थी।
सेन्गोल राजदंड सात दशकों से अधिक समय
तक आनंद भवन संग्रहालय में रहा।
वर्ष 2021-22 में जब सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास
परियोजना चल रही थी, तब सरकार ने इस ऐतिहासिक घटना को पुनर्जीवित करने और नए संसद भवन में
सेन्गोल राजदंड स्थापित करने का निर्णय लिया।
नए संसद भवन में सेन्गोल की स्थापना
सिर्फ एक सांकेतिक प्रतीक ही नहीं बल्कि एक सार्थक संदेश भी है।
यह दर्शाता है कि भारत का लोकतंत्र
अपनी प्राचीन परंपराओं एवं मान्यताओं में निहित है तथा यह समावेशी है और इसकी
विविधता एवं बहुलता का सम्मान करता है।
नए संसद भवन की विशेषताएं
नये संसद भवन का निर्माण मात्र ढाई साल
में पूरा किया गया है। इसका शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 10 दिसंबर 2020 को किया था।
नया संसद भवन 20 हजार करोड़ रुपये की लागत वाली
सेंट्रल विस्टा परियोजना का हिस्सा है।
इसके लोकसभा कक्ष में आवश्यकता होने पर
1280 व्यक्तियों के लिए बैठने की व्यवस्था
की जा सकती है।
नये भवन के लोकसभा कक्ष में 888 और राज्य सभा कक्ष में 300 सदस्य सहजता से बैठ सकते हैं। हर सीट
पर दो सदस्यों के बैठने की व्यवस्था की जायेगी और डेस्क पर उनके लिए टच स्क्रीन
गैजेट होंगे।
हीरे (त्रिकोणीय) आकार के नये भवन के
साथ संसद भवन परिसर में पुस्तकालय भवन सहित तीन भवन हो गये हैं।
कुल 64500 वर्ग मीटर में बने नये संसद भवन में तीन मुख्य द्वार- ज्ञान द्वार, शक्ति द्वार और कर्म द्वार हैं। अति
विशिष्ट व्यक्तियों, सांसदों और दर्शकों को अलग-अलग द्वारों
से प्रवेश कराया जायेगा।
इसका निर्माण टाटा उद्योग समूह की
कंपनी टाटा प्रोजेक्टस लि. ने किया है। इसमें एक विशाल कक्ष है, जिसमें भारत की लोकतांत्रिक विरासत की
झांकी प्रस्तुत की गयी है।
इसमें सांसदों के लिए लाउंज, पुस्तकालय, कई समिति कक्ष, भोजन-पान की जगह और पार्किंग स्थल बना
है।
नये संसद भवन के निर्माण में 60 हजार श्रमिकों के हाथ लगे हैं। यह आधुनिक
इलेक्ट्रानिक उपकरणों से लैस हैं जो सांसदों की कार्यक्षमता का विस्तार करेगा और
इनसे संसदीय कार्य में आसानी होगी।
संसद भवन में लगी सामग्री देश विभिन्न
भागों से लायी गयी है। इसमें इमारती लकड़ी महाराष्ट्र के नागपुर से, लाल और सफेद संगमरमर राजस्थान से आये
हैं। इसमें उदयपुर से लाये गये हरे पत्थर लगे हैं। लाल ग्रेनाइट अजमेर के लाखा की है। कुछ सफेद संगमरमर राजस्थान में ही
अंबा जी से लाया गया है।
नये भवन के राज्य सभा और लोक सभा की
फाॅल्स सीलिंग के लिए स्टील के ढांचे को दमन-दीव से मंगवाया गया है।
भवन में पत्थर की जालियां राजस्थान के
राजनगर और गौतम बुद्ध नगर (नोएडा) से बनवाकर लगायी गयी हैं। कुर्सियों का डिजाइन
मुंबई में तैयार किया गया है। इसमें बिछाई गयीं कालीन उत्तर प्रदेश के भदाेही से
लायी गयी हैं।
लोक सभा और राज्य सभा कक्षों की ऊंची
दीवारों तथा सदन के बाहर लगाये गये बड़े-बड़े अशोक चक्र इंदौर से मंगवाये गये हैं।
अशोक स्तम्भ के निर्माण में लगी
सामग्री औरंगाबाद और जयपुर से लायी गयी हैं।
इसमें लगी रेत और फ्लाईऐश हरियाणा में
चरखी दादरी और उत्तर प्रदेश से लायी गयी है और ब्रास वर्क और ढलवा नालियां गुजरात
से ली गयी हैं।
नये संसद भवन में ऊर्जा की बचत और जल
संरक्षण के विशेष प्रबंध किये गये हैं।
यह फाइव स्टार गृह (ग्रीन रेटिंग फॉर
इंटीग्रेटेड हैबिटाट एसेसमेंट) प्रमाण पत्र प्राप्त भवन है। इसमें सीवेज शोधन के
लिए संयंत्र है और उससे शोधित पानी का फ्लश और सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया
जायेगा। भवन में हवा की गुणवत्ता के लिए अल्ट्रावायलेट लैम्प जैसी सुविधाएं हैं।
आर्द्रता नियंत्रण के लिए अल्ट्रासोनिक ह्यूमिडी फायर काम करेगा।
सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना क्या है :
सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना एक
ऐसी परियोजना है जिसका उद्देश्य रायसीना हिल, नई दिल्ली के निकट स्थित भारत के
केंद्रीय प्रशासनिक क्षेत्र सेंट्रल विस्टा का पुनरुद्धार करना है।
यह क्षेत्र मूल रूप से ब्रिटिश
औपनिवेशिक शासन के दौरान सर एडविन लुटियंस तथा सर हर्बर्ट बेकर द्वारा डिज़ाइन किया
गया और स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार द्वारा बनाए रखा गया था।
केंद्रीय बजट 2022-23 में संसद के साथ-साथ भारत के सर्वोच्च
न्यायालय सहित महत्त्वाकांक्षी सेंट्रल विस्टा परियोजना के गैर-आवासीय कार्यालय
भवनों के निर्माण के लिये आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय को 2,600 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की गई थी।
सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना की परिकल्पना:
इस पुनर्विकास परियोजना में एक नए संसद
भवन का निर्माण प्रस्तावित है। इसके साथ ही एक केंद्रीय सचिवालय का भी निर्माण
किया जाएगा।
इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक 3 किमी. लंबे ‘राजपथ’ में भी परिवर्तन प्रस्तावित है।
सेंट्रल विस्टा क्षेत्र में नॉर्थ व
साउथ ब्लॉक को संग्रहालय में बदल दिया जाएगा और इनके स्थान पर नए भवनों का निर्माण
किया जाएगा।
इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में स्थित ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र’ (Indira Gandhi National Centre for
the Arts) को
भी स्थानांतरित करने का प्रस्ताव है।
इस क्षेत्र में विभिन्न मंत्रालयों व
उनके विभागों के लिये कार्यालयों का भी निर्माण किया जाएगा।
वर्तमान सेंट्रल विस्टा:
वर्तमान में नई दिल्ली के सेंट्रल
विस्टा में राष्ट्रपति भवन,
संसद भवन, उत्तर और दक्षिण ब्लॉक, इंडिया गेट, राष्ट्रीय अभिलेखागार शामिल हैं।
दिसंबर 1911 में किंग जॉर्ज पंचम ने भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली
स्थानांतरित करने की घोषणा की। इसके उपरांत ही राजपथ के आस-पास के क्षेत्र में इन
भवनों का निर्माण किया गया।
इन भवनों के निर्माण का उत्तरदायित्व
एडविन लुटियंस (Edwin
Lutyens) व
हर्बर्ट बेकर (Herbert
Baker) को
दिया गया।
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