सम्प्रेषण क्या होता है परिभाषा तत्व सिद्धांत | Communication Definition meaning and elements

सम्प्रेषण क्या होता है परिभाषा  तत्व सिद्धांत 

सम्प्रेषण क्या होता है परिभाषा  तत्व सिद्धांत | Communication Definition meaning and elements


 

प्रभावशाली प्रबंधन में सम्प्रेषण की भूमिका एवं उसके प्रकार  प्रस्तावना  

प्रबंध की आवधारणा उतनी ही पुरानी है जितना कि मानव सभ्यता का इतिहास । यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक से अधिक व्यक्ति मिलकर किसी निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति हेतु उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग करते हुए कार्य करतें हैं । प्रत्येक संगठन में व्यक्ति अनेक तरह की क्रियाओं में लगे रहतें हैं जो कि कार्यात्मक रूप से एक दूसरे से सम्बंधित होते हैं। इन क्रियाओं का आधार विचारों व सूचनाओं का आदान- प्रदान होता है। विचारों व सूचनाओं के इसी लेन-देन को सम्प्रेषण कहतें हैं। सम्प्रेषण के बिना प्रबंध की कल्पना नहीं की जा सकती है। चेस्टर बर्नाड के अनुसार "सम्प्रेषण प्रबंध का एक आधारभूत कार्य ही नहीं बल्कि प्रबंध की समस्या भी है।" वास्तव में प्रबंधक अपने समय का प्रतिशत अंश सम्प्रेषण करने में ही व्यतीत करतें हैं । उनका प्रत्येक दिन आदेशों, निर्देशों, वार्तालाप, प्रतिवेदन, विवेचन, आज्ञा, आदि से भरा रहता है। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकतें हैं कि सम्प्रेषण के अभाव में प्रबंधन एक कोरी कल्पना मात्र है। प्रस्तुत अध्याय में सम्प्रेषण के बारे में पढेंगे ।


सम्प्रेषण क्या होता है (Communication): 

संप्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच सम्प्रेषण का अंग्रेजी रूपांतरण Communication होता है।

 

Communication शब्द लैटिन के शब्द "Communis" से बना है जिसका अर्थ होता है समरूप (Common) | सम्प्रेषण में प्रेषक सन्देश प्राप्तकर्ता के साथ एक सा अर्थ बोध स्थापित करने का प्रयास करता है सम्प्रेषण संदेशों के विनिमय की प्रक्रिया है।

 

संप्रेषण Communication परिभाषा  

न्यूमैन एवं समर: सम्प्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच तथ्यों, विचारों, सम्मतियों अथवा भावनाओं का विनिमय है।

 

मैकफारलैंड: सम्प्रेषण व्यक्तियों के मध्य अर्थपूर्ण अंतर्व्यव्हार की प्रक्रिया है

 

कीथ डेविस : सम्प्रेषण प्रक्रिया है जिसमें सन्देश और समझ को एक से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाया जाता है। थियो हेमैन: सम्प्रेषण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सूचनाएं एवं समझ हस्तांतरित करने की प्रक्रिया है ।

 

लुईस ए एलेन: सम्प्रेषण में वे सभी चीजें शामिल रहतीं हैं जिसके माध्यम से व्यक्ति अपनी बात दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क में डालता है यह अर्थ का पुल है। इसके अंतर्गत कहने, सुनने और समझने की व्यवस्थित एवं निरंतर प्रक्रिया चलती रहती है।

 

उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि सम्प्रेषण एक प्रक्रिया है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति अपने मतों, विचारों, सम्मतियों, तथा तर्कों आदि का पारस्परिक आदान-प्रदान करतें हैं। यह एक कला है जिसके माध्यम से सूचनाओं का विनिमय होता है । सम्प्रेषण की प्रक्रिया तब तक ही चलती रहती है जब तक आपसी अवरोधों, मतभेदों, संदेहों एवं आपतियों को दूर करके आपसी समझ और सम्मति न स्थापित हो जाये । 


सम्प्रेषण के तत्व (Elements of Communication) 

सम्प्रेषण में मुख्यतः निम्नलिखित तत्व सम्मिलित रहतें हैं :

 

स्रोत (Source): 

यह सूचना का उद्गम स्थल होता है। यहाँ सूचनाएं अपने प्रारंभिक रूप में होतीं हैं।

 

प्रेषक (Sender):

यह सम्प्रेषण का वह महत्वपूर्ण अंग होता है जो सूचना या संवाद देता है। पूर्ण एवं सही सम्प्रेषण के लिए यह आवश्यक है कि संवाद या सन्देश संवाद दाता के मस्तिष्क में सही और स्पष्ट होने चाहिए। यह सूचना को चिन्हों, प्रतीकों व संकेतों के व्यवस्थित प्रारूप में लिपिबद्ध करके भेजता है। सन्देश (Message): सन्देश सम्प्रेषण की विषय वस्तु का नाम है। संदेश से मतलब उस विचार से है जो संवाददाता द्वारा प्राप्तकर्ता को भेजी जाती है । सन्देश से वही अर्थ स्पष्ट होना चाहिए जो संवाददाता के मस्तिष्क में हैं।

 

लिपिबद्धकरण (Encoding): 

सन्देश या सूचना अदृश्य एवं अमूर्त होती है उसे स्वरुप प्रदान करने हेतु लिपिबद्ध किया जाना आवश्यक है। किसी भी सूचना व सन्देश को लिपिबद्ध करने हेतु प्रतीकों, चिन्हों या शरीर की भाषा (वाणी, हाव-भाव, मुद्रा हाथ आदि) का प्रयोग किया जाता है । लिपिबद्ध कर्ता को कई घटक प्रभावित करतें हैं यथा सम्प्रेषण कौशल, अभिवृतियाँ, अनुभव-ज्ञान, वातावरणीय एवं सामाजिक-सांस्कृतिक तत्व ।

 

माध्यम(Medium): 

इससे तात्पर्य उस साधन से है जिसके द्वारा संवाददाता प्राप्तकर्ता को सूचना भेजता है । संवाददाता द्वारा प्राप्तकर्ता को सूचना देने के लिए विभिन्न साधनों का प्रयोग किया जाता है। इसमें मौखिक एवं लिखित दोनों प्रकार की सम्प्रेषण विधियाँ शामिल हैं।

 

प्राप्तकर्ता (Receiver): 

यह वह व्यक्ति होता है जिसके पास सूचनाएं भेजी जाती हैं । कूट खोलना( Decoding): सन्देश प्राप्तकर्ता सूचना / सन्देश प्राप्त करने के बाद उसकी व्याख्या या अनुवाद अपने शब्दों में करता है ।

 

प्रतिक्रिया (Reaction ) : 

इससे तात्पर्य संवाददाता द्वारा प्रेषित किये गए सूचना या विचार का प्राप्तकर्ता पर पड़ने वाले प्रभाव से है। सूचना की प्राप्तकर्ता पर क्या प्रतिक्रिया होगी, यह संवाददाता के संवाद भेजते समय आचरण और व्यवहार पर निर्भर करता है। संवाददाता की भाषा एवं व्यवहार में विरोधाभास प्राप्तकर्ता पर प्रतिकूल प्रभाव भी डाल सकता है।

 

सम्प्रेषण के सिद्धांत (Principles of communication):

 

I) स्पष्टता (Clarity): 

सूचना की स्पष्टता भाव और भाषा दोनों दृष्टिकोणों से होनी चाहिये जिससे कि प्राप्तकर्ता सूचना का वही अर्थ लगावे जो कि संवाददाता के मस्तिष्क में है । स्पष्टता बनाये रखने हेतु बहुत अधिक तकनीकी एवं निजी भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

 

II) अनुकूलता (Consistency): 

किसी संस्था में संवाददाता द्वारा संचारित सूचनाएं संस्था की नीतियों, उद्देश्यों और कार्यक्रमों से मिलती-जुलती होनी चाहिए।

 

III) पर्याप्तता (Adequacy): 

सूचना की पर्याप्तता उसे प्राप्त करने वाले व्यक्ति की मानसिक क्षमता पर निर्भर करती है।

 

IV) समयानुकूलता (Timeliness): 

किसी सूचना के सम्बन्ध के एक व्यक्ति की प्रतिक्रियाएं अलग- अलग समय पर अलग-अलग हुआ करती है। अतः प्रत्येक सूचना के सम्प्रेषण का उपयुक्त समय क्या होगा- यह संस्था विशेष के आकार और स्वभाव के साथ साथ परिस्थितियों, मनोवैज्ञानिक धारणाओं तथा तकनीकी पहलूओं आदि पर निर्भर करता है।

 

V) प्रसारण (Distribution): 

सम्प्रेषण के लिए जितना महत्व समय का निर्धारण करना है उतना ही महत्व प्रत्येक सूचना का उचित व्यक्ति के पास पहुंचना है । प्रबन्धक को पात्र, समय और परिस्थितियों के अनुसार ही सूचना प्रसारण का सर्वश्रेष्ठ मार्ग चुनना चाहिये।

 

VI) सामान्य श्रोत (Common Source): 

जहाँ तक संभव हो सूचनाएं एक सामान्य श्रोत से प्रेषित की जानी चाहिए।

 

VII) मध्यस्थों की न्यूनता ( Minimum levels): 

सम्प्रेषण के इस सिद्धांत के अनुसार यह आवश्यक है कि सम्प्रेषण प्रक्रिया में मध्यस्थों की संख्या न्यूनतम हो । मध्यस्थों की संख्या कम होने से जहाँ एक ओर सूचना प्राप्तकर्ता तक जल्दी पहुंचेगी वहीँ दूसरी ओर सूचनाओं के विकृत होने की संभावना कम होगी।

 

VIII) प्राप्तकर्ता की स्थिति का ज्ञान (Knowledge of receivers' position): 

सूचना भेजते समय प्रेषक को प्राप्तकर्ता की आवश्यकताओं, भावनाओं व सामाजिक रीति-रिवाजों पर भी ध्यान देना चाहिए ।

 

IX) लोचता (Flexibility) : 

यह सिद्धांत इस बात पर बल देता है कि परिवर्तित दशाओं, तकनीकी परिवर्तनों, व अन्य मांगों के अनुसार सूचना में परिवर्तन किया जाना चाहिए।

 

X) भावनात्मक अपील (Emotional Appeal) : 

सूचनाओं में भावनात्मक तत्व भी होने चाहिए जिससे की वे प्रभावी बन सकें।

 

XI) विषय वस्तु का ज्ञान (Knowledge of Subject matter): 

प्रेषक को विषय वस्तु का ज्ञान सही, पूर्ण व विस्तृत होना चाहिए।

 

XII) प्रतिपुष्टि (Feedback): 

सूचना प्राप्त करने के बाद प्राप्तकर्ता की प्रतिक्रियाओं, भावनाओं, सुझावों को प्रेषक तक पहुँचाने का प्रावधान भी होना चाहिए।

 

XIII) उपयुक्त वातावरण (Suitable Environment): 

उपयुक्त वातावरण तैयार करने के बाद ही सूचना भेजनी चाहिए

 

XIV) द्वि मार्गी प्रेषण (Two-way Communication): 

सम्प्रेषण एक मार्गी नहीं होना चाहिए।

 

XV) अच्छा श्रवण (Good Listening): 

सूचना भेजने वाला और सूचना को पाने वाला, दोनों हीं अच्छे श्रवणकर्ता होने चाहिए।

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