शिक्षा पर्यवेक्षण का महत्व प्रकृति नेतृत्व |Importance of Education Supervision Nature Leadership

शिक्षा पर्यवेक्षण का महत्व

शिक्षा पर्यवेक्षण का महत्व प्रकृति नेतृत्व |Importance of Education Supervision Nature Leadership
 

शिक्षा पर्यवेक्षण का महत्व

स्वतन्त्र भारतवर्ष में विद्यालय शिक्षा का अत्यधिक महत्व है। विद्यालय के कक्षा भवनों में कल के नागरिकों का निर्माण किया जाता है। देश की सामाजिकराजनैतिकवैज्ञानिक तथा तकनीकी आदि परिस्थितियों का प्रभाव विद्यालय की शिक्षा पर ही होता है। विद्यालयों के पाठ्यक्रम में आज विधि विषयों को अपनाया जाता हैं। इनके असीमित एवं अतुलित भण्डार को विद्यालयों में अपनाने का अधिकाधिक प्रयास किया जाता है। विद्यालयों तथा महाविद्यालयों की शिक्षा में आज जितनी विविधताव्यापकता तथा परिणात्मकता है वह पहले कभी नहीं थी। अनेक प्राविधिककृषि सम्बन्धीव्यावसायिक आदि क्षेत्रों से सम्बन्धित संस्थाओं को स्थापित किया गया है। वास्तव में शिक्षण संस्थाओं तथा शिक्षर्थियों की संख्या में वृद्धि करने से कोई विशेष लाभ तब तक नहीं होता जब तक उसका उचित रूप में निरीक्षण तथा पर्यवेक्षण न किया जाता हो। विज्ञान एवं तकनीकी के कारण आज शिक्षण सामग्री तथा शिक्षक उपकरणों के क्षेत्र में अधिकाधिक विकास हुआ है। अतएव इनका समुचित लाभ उठाने के लिये शैक्षिक पर्यवेक्षण के महत्व को स्वीकार किया जाता है।

 

शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षण विधियोंशिक्षक की समस्याओंउचित पाठ्यक्रम निर्धारणपाठ्येतर क्रिया- कलापों को विद्यालयों में किस प्रकार सुनियोजित किया जाये और शिक्षा स्तर को गुणात्मकता की ओर किसी प्रकार अग्रसर किया जायवास्तव में इसके लिये शैक्षिक पर्यवेक्षण अधिक मूल्यवान एवं लाभकारी है। अन्य व्यय करके उत्तम शिक्षा ग्रहण करने तथा मानवीय साधनों की अधिकतम उपलब्धि करने में शैक्षिक पर्यवेक्षण की विधियां महत्वपूर्ण समझी जाती है। इसके अतिरिक्त भौतिक साधनों को उचित रूप में जुटाने के कार्य में शैक्षिक प्रशासन सहायक होता है। विद्यालय समुदायिक स्रोतों को अपनाकर किस प्रकार उन्नति करें तथा सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप विद्यालयों की शिक्षा में किसा प्रकार का परिवर्तन किया जायइसके लिये दिशा निर्देश शैक्षिक प्रशासन ही कर सकता है। शैक्षिक योजनाओं का निर्माण करनेविद्यालयों के समस्त कार्यक्रमों का उचित मूल्यांकन करने तथा शिक्षा कार्य को अधिकाधिक प्रभावशाली बनाने में शैक्षिक पर्यवेक्षण अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है।

 

1 शिक्षा पर्यवेक्षण की प्रकृति

 

शिक्षा पर्यवेक्षण शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे शिक्षा की उत्तम व्यवस्था की जाती है। शैक्षिक पर्यवेक्षण की प्रकृति अत्यन्त गत्यात्मक होती है। जो शैक्षिक स्तर को ऊँचा करने में सदैव सहायक होती है। शैक्षिक पर्यवेक्षण की प्रकृति की कुछ विशेषताओं का निम्नलिखित पंक्तियों में उल्लेख किया जा सकता है।

 

1. शिक्षा पर्यवेक्षण शिक्षण प्रक्रिया की उन्नति में सहायक होता है- 

शैक्षिक पर्यवेक्षण वास्तव में शिक्षण कार्य की दशाओं में सदैव उन्नति प्रदान करता है। शिक्षण यदि उत्तम ढंग से होता है तो सीखने की स्थिति में भी सुधार हो जाता है। अतएव शैक्षिक पर्यवेक्षण के अन्तर्गत जितनी नवीन विधियां अपनाई जाती हैंउनका उद्देश्य शिक्षण प्रक्रिया को उन्नत करना ही होता है।

 

2.व्यवसायिक नेतृत्व हेतु प्रोत्साहनकारी - 

शैक्षिक पर्यवेक्षण के अन्तर्गत शिक्षकों को शिक्षण कार्य सिखाने का प्रयास किया जाता है। शैक्षिक पर्यवेक्षकों की सहानुभूति शिक्षकों को शिक्षण कार्य सिखाने के प्रयास में रूचि लेने के लिये प्रोत्साहन देती हैं। शिक्षकों को व्यक्तित्व का विकास करने के पर्याप्त अवसर प्रदान किये जाते हैंइस प्रकार शैक्षिक पर्यवेक्षण शिक्षकों को व्यावसायिक नेतृत्व की योग्यता प्रदान करने में सहायक होता है।

 

3. शैक्षिक पर्यवेक्षण एक शैक्षिक सेवा - 

शिक्षा पर्यवेक्षण शैक्षिक सेवा के रूप में कार्य करता है। आधुनिक पर्यवेक्षण की भावना प्रशासन की नहीं अपितु सेवा की होती है। इस सम्बन्ध में "जेनेवा में हुए अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का मत उल्लेखनीय है।

 

"Inspection should be cosidered as a service to interpret to teachers and the public the educational polices of the authorities and modern educational ideas and methods and also to interpret to the competent authorities the experience, needs and aspirations of teachers and local communities."

 

4. शैक्षिक पर्यवेक्षण में सहयोग की भावना 

शैक्षिक पर्यवेक्षण की प्रवृत्ति में संयोगात्मक भावना की प्रमुखता होती है। शिक्षकों के विकास के लिये शैक्षिक पर्यवेक्षण की नीति समन्यवयकारी तथा सहयोगात्मक होती है। शिक्षकों को इस प्रकार प्रोत्साहित किया जाता है कि वे व्यक्तिगत तथा सामुहिक रूप में अपने कार्या का सम्पादन प्रभावशाली ढंग से करते हैं।

 

शिक्षा पर्यवेक्षण: शैक्षिक नेतृत्व

 

कार्य की उचित गति ही उद्देशें की पूर्ति में सहायक होती है। शैक्षिक पर्यवेक्षण के कार्य भी ही होते हैं जो शैक्षिक उन्नति के लिये सहायक होते हैं। अतएव कार्यों के अभाव में अथवा कार्यों की गति रूक जाने से छोटा बड़ा किसी प्रकार का संगठन या प्रशासन असफल ही हो जाता है।

 

1. नेतृत्व प्रदान करना - 

शिक्षा पर्यवेक्षण का मुख्य कार्य नेतृत्व का प्रशिक्षण समझा जाता है। जनतन्त्रात्मक देश में तो नेतृत्व की नितान्त आवश्यकता होती है। कोई भी पर्यवेक्षण सम्पूर्ण उत्तरदायित्व का वहन स्वयं अकेला होकर नहीं करता। वह अपनी सहायतार्थ अन्य सहनेताओं का भी चयन करता है जिससे उसके कार्य में सुविधा होती है तथा अन्य व्यक्तियों को भी नेतृत्व करने के अवसर मिलते हैं। वर्तमान 'युग में प्रजातान्त्रिक सिद्धान्तों का सर्वत्र व्यापक प्रभाव परिलक्षित होता है। प्रजातान्त्रिक पद्धित का विश्वास समान अवसरों को प्रदान करने तथा सभी व्यक्तियों को सम्मानित समझने में होता है। शैक्षिक पर्यवेक्षण का मुख्य कार्य भी अपने समूह के सभी व्यक्तियों को आदर करना तथा इस प्रकार उन्हें प्रोत्साहन देना है जिससे वे कार्यों में पूरा सहयोग प्रदान करें। इस भावना के अन्तर्गत पर्यवेक्षण केवल परामर्शदाता तथा संकलनकर्ता के रूप में होता है अन्य सभी व्यक्ति स्वयं को नेता मानकर समय तथा परिस्थिति के अनुसार उत्तम कार्य करने के लिये अभ्यस्त हो जाते हैं। जिस समूह के कार्य केवल एक ही नेता (पर्यवेक्षक) की प्रतीक्षा में अधूरे पड़े न रहकर अन्य व्यक्तियों के सहयोग से सम्पन्न होते हैंवह समूह नेतृत्व-शक्ति का उत्तम प्रशिक्षण देने वाला समझा जाता है।

 

शैक्षिक कार्य में पूर्ण सफलता प्राप्त करने के लिये विभिन्न मतों को प्रकट करने वाले तथा विभिन्न स्वभावों के व्यक्तियों को एक साँचे में ढालने का कार्य महत्वपूर्ण समक्षा जाता हैं।

 

वास्तव में नेतृत्व” के अभाव में व्यक्तियों की अन्तः निर्हित क्षमताओं का विकास सम्भव नहीं होता। कैम्पबैल तथा ग्रेग” ने अपनी पुस्तक में "नेतृत्व” को ऐसी सम्पूर्ण प्रक्रिया माना है जिसके द्वारा मानवीय तथा भौतिक स्रोतों को उपलबध किया जा सकता है तथा उन स्रोतों को किसी भी कार्य के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये प्रभावकारी बनाया जा सकता है।

 

निःसन्देह कहा जा सकता है कि सामुहिक भावना तथा प्रयास को बढ़ावा देने के लिए शैक्षिक पर्यवेक्षण का " नेतृत्व प्रदान" करने का कार्य अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसी भावना के फलस्वरूप एक समूह के व्यक्ति आपस में घनिष्ठ बनते हैं तथा अपनी योग्यताओं का ठीक प्रकार परिचय देते हैं।

 

2. नीतियों का निर्धारण करना 

शिक्षा के क्षेत्र में उचित नीतियों का निर्धारण करना शैक्षिक पर्यवेक्षण का महत्वपूर्ण कार्य है। नीति-निर्धारण में यद्यपि जनता में मत को प्रमुख श्रेय दिया जाना चाहिए. परन्तु भारतवर्ष जैसे विकासशील देश में जहाँ की जनता को अभी जनतात्रिक पद्धति के लिये अभ्यस्त कराया जा रहा होशैक्षिक नीति निधारण का कार्य नहीं सौंपा जा सकता। इसीलिये शैक्षिक पर्यवेक्षण का यह कार्य और भी अधिक उत्तरदायित्वपूर्ण है। शिक्षा वास्तव में एक उद्देश्य पूर्ण प्रक्रिया है। व्यक्तियों की शक्तियों तथा योग्यताओं को उचित विकास तथा समाज की आवश्यकताओं के अनुकूल ही शिक्षा प्रणाली की व्यवस्था करना शिक्षा का महान उद्देश्य हुआ करता है। शिक्षा के उद्देश्यों तथा लक्ष्यों का निर्माण करने तथा शिक्षा की योजना में सामाजिक आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाता है। समाज के व्यक्तियों द्वारा अनेक शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की जाती है राज्य सरकारें भी शिक्षा पर अतुलित धनराशि व्यय करती है तथा शिक्षण संस्थाओं में अध्यापक एवं प्रशासक शैक्षिक उन्नति के लिये पूर्ण प्रयास करते हैंपरन्तु इन सभी व्यक्तियों का प्रयास निष्फल तथा प्रभावहीन हो जायेगायदि शिक्षा के क्षेत्र में उचित एवं लाभकारी नीतियों को निर्धारित नहीं किया जाता। पर्यवेक्षण का "नीति निर्धारण करने का कार्य इतना सुनिश्चित होना चाहिए जो किसी भी संस्था अथवा संगठन के लिये उचित निर्देशन दे सके। उचित निर्माण करने के अभाव में न तो सदृढ़ योजना को बनाया जा सकता है और न ही कार्यों का संचालन ठीक प्रकार से हो पाता है। योजना निर्माण कार्यान्वयन तथा मूल्यांकन का उत्तरदायित्व वस्तुतः शैक्षिक पर्यवेक्षण का ही होता है। अतः उपयोगी नीतियों को निर्धारित करने के उपरान्त ही शैक्षिक पर्यवेक्षण को अन्य कार्यों में सफलता मिल सकती है। शैक्षिक पर्यवेक्षण का प्रथम कर्तव्य होना चाहिए कि वह सामुदायिक आवश्यकताओं पर ध्यान रखते हुए ही नीतियों का निर्धारण करे। वस्तुत नीति तथा योजना का सामुदायिक आवश्यकताओं से अविच्छित सम्बन्ध होता है। जैसे बारबर्टन तथा " ने लिखा है। बुकनर"

 

"Policy and plan are thus kept closer to the needs of the total community"

 

नीति निर्धारण के लिये देश की जनता को जागरूक बनाने की परमावश्यकता है। शिक्षा के नवीन पहलुओं तथा नवीन आयामों पर जनता द्वारा किया गया गहन चिन्तन शिक्षा विशारदोंशिक्षा मन्त्रियों तथा शैक्षिक पर्यवेक्षकों को उत्साहित अवश्य करेगा। जिस जनता के लिये शैक्षिक नीतियों को निर्धारित किया जाता हैं वह यदि शैक्षिक प्रक्रिया के महत्वपूर्ण कार्यों में भाग न ले तो यह हास्यास्पद एवं दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जा सकता है। शैक्षिक पर्यवेक्षण के "नीति निर्धारण" कार्य के अन्तर्गत जनता को शिक्षा के प्रति चिन्तनशील बनाना भी प्रमुख कार्य समझा जाता है।

 

3. व्यक्तियों की कार्य क्षमता में वृद्धि - 

शैक्षिक पर्यवेक्षण की सम्पूर्ण गतिविधि शिक्षकों के शिक्षण कार्य को उन्नत बनाती है। शिक्षण संस्थाओं में यद्यपि शिक्षकों के अतिरिक्त अन्य व्यक्ति भी कार्य में लगे रहते हैं तथापि शैक्षिक पर्यवेक्षण का मुख्य कार्य शिक्षकों को परामर्श देनाशिक्षण अवस्थाओं में सुधार करना तथा शिक्षण सामग्री को उन्नत बनाना ही समझा जाता है। आधुनिक पर्यवेक्षण के अनुसार शैक्षिक पर्यवेक्षक का मुख्य उत्तरदायित्व शिक्षकों की योग्यताओं का विकास करना माना जाता है। शिक्षक के लिये उनकी अधिकाधिक उपयोगिता क्या और किस प्रकार सम्भव हो सकती हैइसका सही निर्देशन शैक्षिक पर्यवेक्षण ही दे सकता है। शैक्षिक पर्यवेक्षण अध्यापकों को इस प्रकार की नेतृत्व शक्ति प्रदान करता है जिससे वे व्यावसायिक कुशलता प्राप्त करते हैं और शिक्षण संस्थाओं की दशाओं में सुधार करते हैं। फिर भी अध्यापकों में यह व्यावसायिक कुशलता तथा शिक्षण योग्यता तब तक अंकुरित नहीं होती जब तक उसमें आत्म बोध की भावना और जिज्ञासा उत्पन्न न हो। वास्तविक आवश्यकता तथा जिज्ञासा के कारण व्यक्ति कुछ करने या सीखने के लिये विवश होता है। शैक्षिक पर्यवेक्षण शिक्षकों में जिज्ञासा को अंकुरित करने का महत्वपूर्ण कार्य करता इस प्रकार उत्तम शिक्षा पर्यवेक्षण वही होता है जिसमें अध्यापक अधिकाधिक कार्य करते हैं अथवा जिसमें शिक्षक आलसी एवं सुस्त न होकर अधिक जागरूक रहते हैं। इस प्रकार शिक्षकों को शिक्षण कार्य अधिकाधिक जागरूक बनाना शैक्षिक पर्यवेक्षण का कार्य ही समझा जाता है।

 

शिक्षकों की व्यावसायिक उन्नति में शैक्षिक पर्यवेक्षण कई प्रकार से सहायक हो सकता है। तथा सेवाकाली प्रशिक्षण के द्वारा शिक्षकों की सहायता की जा सकती हैअनुभवी शिक्षकों के शिक्षण अनुभवों का लाभ उठाते हुये कोई रचनात्मक कार्य अवश्य किया जा कसता है। इसके अतिरिक्त यदि शिक्षकों तथा शैक्षिक पर्यवेक्षकों के बीच सद्भावना होती है तथा शिक्षकों को कार्य करने की स्वतंन्त्रता रहती है तो उत्तम शिक्षण प्राप्त करने का उद्देश्य सरलता पूर्वक प्राप्त हो जाता है शैक्षिक पर्यवेक्षण के क्षेत्र में पर्यवेक्षक तथा शिक्षक दोनों ही एक दूसरे से सीखने का प्रयास करते हैं। पर्यवेक्षण के अन्तर्गत सर्जनात्मक तथा प्रभावशाली शिक्षण कार्यों को अपनाना ही शिक्षकों को सही दिशा प्रदान करना है। पर्यवेक्षण को शिक्षकों के साथ छात्रों के व्यवहार का अध्ययन करना होता हैछात्रों की आवश्यकताओं को समझना पड़ता है। पर्यवेक्षण गम्भीर अध्ययन होता हैछात्रों की आवश्यकताओं को समझना पड़ता है। पर्यवेक्षण गम्भीर अध्ययन करने के उपरान्त ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं सारांश में यह कहा जा सकता है कि सहयोगसद्भावनासमायोजन तथा स्वतन्त्रता की भावना को अपनाकर ही शैक्षिक पर्यवेक्षक शिक्षकों की व्यवसायिक उन्नति के कार्य में सफल हो सकता है।

 

4. मानवीय सम्बन्धो में सुधार - 

किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास उस पर्यावरण पर अधिक आश्रित होता है जहाँ उसे जीवन व्यतीत करना होता है। परिवार के 'प्रेमसहानुभूतिउदारता परोपकार आदि मानवीय गुणो को जिस व्यक्ति ने समीपता से देखा है वे गुण उस व्यक्ति में स्वयमेव आ जाते हैं। इसके अतिरिक्त परिवार एवं समाज में व्याप्त परिस्थितियाँ व्यक्ति को निराशाउदास एवं शिथिल बनाती हैं। जिससे व्यक्ति समाज के प्रति कुण्ठाग्रस्त हो जाता है किसी संस्था या समाज में रहकर व्यक्ति प्रेमसम्मान तथा सहानुभूति की भावना प्राप्त करता है तो उसके व्यक्तित्व में सुरक्षा और आत्मविश्वास जागृत हो जाता है। समूह के प्रत्येक व्यक्तित्व में सुरक्षा और आत्मविश्वास जागृत हो जाता है। समूह के प्रत्येक व्यक्ति का सही उपचार किया जा सकता है। तथा समूह के सभी कार्यों को उन्नत किया जा सकता है।

 

शिक्षा पर्यवेक्षण का मुख्य कार्य शैक्षिक क्षेत्र में लगे हुये सभी व्यक्तियों के प्रति उत्तम मानवीय सम्बन्ध की भावना को प्रदर्शित करना है।

 

इस सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि एक समूह के अन्तर्गत कुछ व्यक्तियों को एकत्रित करना मात्र ही मानवीय सम्बन्धों की स्थापना नहीं कहा जा सकता। इस विषय में किमबाल विल्स" ने कहा है-

 

प्रार्थना करने से ही उत्तम मानवीय सम्बन्धों का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकताजब व्यक्ति साथ रहते हैं तथा अपने सहयोगियों के साथ कार्य करते हैं तो उनमें अनुकरण करने में स्वयं ही उत्तम मानवीय गुण विकसि हो जाते हैं। "

 

शिक्षा पर्यवेक्षण को मानवीय सम्बन्धों की स्थापना करने के लिये अथक प्रयास करना पड़ता है। इसके लिये पर्यवेक्षण को कुछ बातों की ओर अवश्य ही ध्यान आकर्षित करना चाहिये। इन बातों का संक्षेप में इस प्रकार उल्लेख किया जा सकता है-

 

क) शिक्षा पर्यवेक्षक के मस्तिष्क में स्वयं को बड़ा समझने की भावना नहीं रहनी चाहिये। उसे अपने समस्त सहयोगियों को समान स्तर वाला ही समझना चाहिये। पर्यवेक्षक द्वारा किसी भी कार्य में शासन कार्य में सेवा भावना को ही प्रमुख समझें। पर्यवेक्षक की यह भावना उसके सहयोगियों में सुरक्षा तथा आत्म विश्वास की भावना को उत्पन्न करेगी।

 

ख) शिक्षा पर्यवेक्षक को अपने सहयोगियों की योग्यता एवं ईमानदारी के प्रति पूर्ण आस्था एवं विश्वास होना चाहिये। पर्यवेक्षक को यह पूर्ण विश्वास होना चाहिये कि समूह की क्रियाओं को करने के लिये समूह का प्रत्येक व्यक्ति योग्यता रखता है अतएव पर्यवेक्षक द्वारा समूह के सभी व्यक्तियों को कार्य करने के लिये समान अवसर प्रदान किये जाने चाहियें जिससे सभी व्यक्ति उत्साह पूर्वक कार्यों में भाग ले सकें तथा समस्याओं का निराकरण करने में भागीदार बन सकें।

 

ग) योग्य शिक्षा पर्यवेक्षक को कार्य की सफलता का श्रेय स्वयं न लेकर समूह के व्यक्तियों को ही देना चाहिये। अपनी त्रुटियों को स्वीकार करने में भी पर्यवेक्षक को संकोच नहीं करना चाहिये अन्य सहयोगियों की त्रुटियों के कारण यदि कार्य में विघ्न पड़े अथवा असफलता मिले तो इसके लिये सहयोगियों को दोषी कभी नहीं ठहराना चाहिये। वास्तव में किसी भी कार्य की योजना तथा कार्यान्वयन आदि के लिये शैक्षिक पर्यवेक्षक ही पूर्ण रूप से उत्तरदायी होता है। इस उत्तरदायित्व का वहन पर्यवेक्षक को प्रसन्नतापूर्वक करना चाहिये। शैक्षिक पर्यवेक्षक का गुण अत्यन्त आकर्षकअसाधारण एवं महत्वपूर्ण होता है।

 

घ) शिक्षा पर्यवेक्षण द्वारा ऐसे उत्साह जनक तथा प्रेरणायुक्त वातावरण की रचना की जानी चाहिये जिसमे पर्यवेक्षक के साथ अन्य सहयोगी विचारों का खुलकर आदान-प्रदान कर सकेंजिसमें सहयोगियों की सहयोगात्मक भावना का पूरा लाभ उठाया जा सकेंइसके अतिरिक्त यदि नवीन प्रयोगों में शैक्षिक पर्यवेक्षक तथा शिक्षक एकजुट होकर कार्य करते हैं तो सम्बन्धों में पर्याप्त सुधार होता है।

 

ड) शिक्षा पर्यवेक्षक का शिक्षकों के प्रति व्यवहार अत्यन्त मधूर तथा मानवीय होना चाहिये क्योंकि पर्यवेक्षक शिक्षकों का शिक्षक या सहायक नहीं होता हैअपितु उनमें से एक व्यक्ति ही होता है। एक समूह में एक साथ रहते हुये तथा सहयोगियों पर सद्भावनापूर्ण विश्वास रखकर ही मानवीय सम्बन्धों की वृद्धि की जा सकती है। वास्तव में यह कार्य किसी भी संस्था का प्राण होता है। संस्था की उन्नतिसफलता तथा प्रसिद्ध मानवीय सम्बन्धों की मधुरता में ही व्याप्त होती है।

 

5. शिक्षा-अधिगम व्यवस्था का अध्ययन - 

शिक्षा पर्यवेक्षण का क्षेत्र आधुनिक युग में अत्यन्त उत्तम है। पूर्व समय में कक्षाओं का निरीक्षणशिक्षकों का छिद्रान्वेषणआर्थिक अनुदानों की आय - व्यय का निरीक्षणशिक्षा के सम्बन्ध में सामान्य निर्देशन देना ही पर्यवेक्षण का कार्य समझा जाता थापरन्तु आधुनिक पर्यवेक्षण की दृष्टि छात्रशिक्षकपाठ्यक्रमपाठ्यपुस्तकशिक्षण सामग्रीमूल्यांकनपाठ्य सहगामी तथा पाठ्येतर क्रियाओं की ओर रहती है। सीखने वाले छात्र तथा सिखाने वाले शिक्षक को विभिन्न अवस्थाओं में सुधार करने का उत्तरदायित्व भी पर्यवेक्षक का ही होता है। सारांश में कहा जा सकता है कि शिक्षा की सम्पूर्ण क्रिया में वाछंनीय परिवर्तन करना शैक्षिक पर्यवेक्षण का मुख्य कार्य है। शैक्षिक पर्यवेक्षण का मुख्य उद्देश्य सीखने की परिस्थतियों में आवश्यक सुधार करना है। इसके लिये पर्यवेक्षक को अधिकाधिक गहन अध्ययन करने की आवश्यकता है। पर्यवेक्षक का इस सम्बन्ध में दृष्टिकोण तथा सर्वेक्षण अत्यन्त व्यापक होना चाहिए। उसे संस्था या विभाग के समस्त छात्रों तथा शिक्षकों की संख्या का ठीक ज्ञान होना चाहिए। छात्र इस समय किस प्रकार के पाठ्यक्रम का अध्ययन कर रहे हैं तथा कक्षा भवनों में शिक्षक किस प्रकार शिक्षण सामग्री का प्रयोग कर रहे हैंइस सम्बन्ध में शैक्षिक पर्यवेक्षक को स्पष्ट ज्ञान होना चाहिए। इसके अतिरिक्त नवीनतम आयामोंनवीन शिक्षण विधियोंनई तकनीकी तथा नवीन अनुसन्धानों के विषय में भी पर्यवेक्षक को सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए। शैक्षिक पर्यवेक्षक का उत्तरदायित्व केवल शैक्षिक कार्यक्रमों का निरीक्षण करना ही नहीं हैजिस सामाजिक वातावरण में संस्था स्थापित हैउसके प्रति भी पर्यवेक्षक को समन्वयात्मक दृष्टि रखनी पड़ती है। शिक्षण संस्था को समुदाय के निकट किस प्रकार रखा जा सकता हैइसका पर्यवेक्षक को विशिष्ट अध्ययन करना परमावश्यक है। शिक्षा के उद्देश्यों के परिप्रेक्ष्य में शैक्षिक पर्यवेक्षक कितना सही कार्य कर रहा है इसका भी पर्यवेक्षक को अध्ययन करना चाहिए। इतना स्वीकार करने योग्य है कि शैक्षिक पर्यवेक्षक जितना अध्यनशीलसमस्याओं के प्रति सजग तथा नवीन ज्ञान के प्रति जिज्ञासू होता हैशैक्षिक पर्यवेक्षण उसी अनुपात में प्रभावशाली होता है।

 

6.शिक्षण अधिगम व्यवस्थाओं में सुधार - 

शिक्षण अधिगम की समस्त अवस्थाओं का अध्ययन करने के उपरान्त शैक्षिक पर्यवेक्षक इस दिशा में आवश्यक सुधार करने योग्य बनता है। अपने सभी सहयोगियों का सहयोग प्राप्त करके शैक्षिक पर्यवेक्षकशिक्षण-अधिगम की अवस्थाओं में पर्याप्त सुधार कर सकता है। वर्तमान युग में शिक्षण तथा अधिगम के तीन स्तरों को निरन्तर दृष्टि में रखा जाता है। ये स्तर है - (1) स्मृति स्तर (2) बस्तर तथा (3) चिन्तन स्तर। आज केवल छात्रों को कुछ सामग्री कण्ठस्थ कराना ही पर्याप्त नहीं है अपितु उनकी बुद्धि में इस प्रकार वृद्धि करना आवश्यक समझा जाता है जिससे वे अधिक चिन्तशील तथा सर्जनात्मक बनाने के लिये परम्परागत पाठ्यक्रम पर ही आश्रित नहीं रहा जा सकता। इसके लिये पाठ्यक्रम के नवीन सिद्धान्तों की ओर ध्यान आकर्षित करना पड़ता है। पाठ्यक्रम बाल केन्द्रित तथा अनुभव केन्द्रित होना चाहिए जिससे बालकों की निरन्तर उन्नति हो सके। वास्तव में जो बातें छात्रों के पूर्व अनुभवों में व्याप्त हैंउन्ही के आधार पर नवीन ज्ञान देना श्रेयस्कर होता है। पाठ्यक्रम में भी इसी बात का भी अवश्य ध्यान रखना चाहिए। "बारबर्टन तथा ब्रूकनर” का भी यही मत है-

 

"Effective guidance of the learning activity depends upon knowledge by the teachers of the characteristic and background of each pupil. Bruknar " - Barr & Burton 

 

7. शैक्षिक उत्पादन में वृद्धि - 

किसी भी देश के महान उद्देश्यों की प्राप्ति शिक्षा के माध्यम से ही की जाती है। शिक्षा के उद्देश्य राष्ट्र के उद्देश्यों से पृथक नही समझे जाते । उदाहरण के लिये कोई भी राष्ट्र अपने नागरिकों की स्वगीण उन्नति में विश्वास रखता हैशिक्षा का उद्देश्य भी छात्रों की शक्तियों तथा योग्यताओं को विकसित करना समझा जाता है। शिक्षा ही भावी नागरिकों को इस योग्य बनाती है जिससे वे समाज के कार्यों में कुशलता पूर्वक भाग ले सकें। शैक्षिक पर्यवेक्षण के सभी उद्देश्यों में यही बात मूल रूप से निहित होती है। शैक्षिक पर्यवेक्षण शिक्षण-प्रक्रिया का निरन्तर मूल्यांकन करता रहता है। पर्यवेक्षक को निम्नलिखित बातों की ओर सदैव जागरूक रहना पड़ता है-

 

क) क्या विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा राष्ट्रीय लक्ष्यों की पूर्ति में सहायक है

ख) क्या शिक्षा की प्रक्रिया शिक्षा को पूंजी मानने के लक्ष्य में सहायता कर रही है?

ग) क्या विद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा उत्पादन कार्यों में सहायक सिद्ध हो सकती है

घ) शिक्षक का प्रभावशाली शिक्षण छात्रों के ज्ञार्नाजन में कहा तक सहायक है? 

ड) शैक्षिक प्रक्रिया में नवीन आयाम किसी सीमा तक शिक्षा की गुणात्मकता वृद्धि में सहायक है। 


वास्तव में यह सभी ऐसे कार्य हैं जो शैक्षिक उत्पादन प्रक्रिया में सहायक हैं। शिक्षा का उत्पादन वास्तव में देश के नवयुवकों की योग्यता से सम्बन्धित होता है। शिक्षक के द्वारा यदि किसी देश में कुशलडाक्टरइन्जीनियरवैज्ञानिकतकनीकी विशेषज्ञकलाकार शिक्षक तथा कुशल नेताओं का निर्माण किया जाता है तो वह शिक्षा का श्रेष्ठ उत्पादन ही कहा जाता हैपरन्तु इन सभी योग्य व्यक्तियों का निर्माण कक्षा-भवनों में ही किया जाता है। उत्तम व्यक्ति होने के बीज शैक्षिक संस्थाओं में ही अंकुरित किये जाते हैं। प्रारम्भ में ही हमें यह देखना होता है कि हम अपने छात्रों को किस प्रकार की और किस ढंग से शिक्षा दे रहे हैं। आज के युग में होनहार व्यक्तियों की योग्यताओं को प्राथमिकता दी जाती हैं यह स्वीकार किया जाता है कि भौतिक साधनों की अपेक्षा मानव अधिक महत्वपूर्ण हैपाठ्यक्रम निर्माण की अपेक्षा शिक्षक का व्यक्तित्व अधिक प्रभावशाली है तथा शिक्षण की अपेक्षा अधिगम अधिक आवश्यक है।

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