विश्व मौसम विज्ञान दिवस 2023: इतिहास उद्देश्य महत्व |WMO Day History and Imprtance

विश्व मौसम विज्ञान दिवस 2023: इतिहास उद्देश्य महत्व

विश्व मौसम विज्ञान दिवस 2023: इतिहास उद्देश्य महत्व |WMO Day History and Imprtance



विश्व मौसम विज्ञान दिवस 2023: इतिहास उद्देश्य महत्व

पृथ्वी के वातावरण की रक्षा में आम लोगों की भूमिका के महत्त्व को उजागर करने के लिये प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को विश्व मौसम विज्ञान दिवस का आयोजन किया जाता है। यह दिवस 23 मार्च, 1950 को विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की स्थापना को चिह्नित करता है, जो कि 23 मार्च, 1950 को स्थापित एक अंतर-सरकारी निकाय है। यह दिवस समाज की सुरक्षा एवं भलाई के लिये राष्ट्रीय मौसम विज्ञान एवं जल विज्ञान सेवाओं के आवश्यक योगदान को दर्शाता है। विश्व मौसम विज्ञान दिवस 2021 की थीम द ओशियन, अवर क्लाइमेट एंड वेदरहै। यह विषय सतत् विकास हेतु महासागर विज्ञान के संयुक्त राष्ट्र के दशक की शुरुआत को दर्शाता है, जो समुद्र विज्ञान हेतु समर्थन जुटाने और सतत् विकास में महासागर विज्ञान की भूमिका को समझने पर केंद्रित है। ज्ञात हो कि महासागर पृथ्वी की सतह का 70 प्रतिशत हिस्सा कवर करता है और जलवायु परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


मौसम और जलवायु

जब भी मौसम और जलवायु की बात आती है तो अधिकांश लोगों के मन में केवल वायुमंडल में क्या हो रहा है, का ख्याल आता है। यदि हम मौसम और जलवायु में समुद्र की उपेक्षा कर दें तो हम एक बहुत बड़े कारक को नजरअंदाज कर देते हैं। मौसम और जलवायु में समुद्र का महत्वपूर्ण योगदान है इसके साथ ही यह कई अन्य तरह से हमें लाभान्वित करते है जिसे निम्न तरीके से समझा जा सकता है-

पृथ्वी की सतह के 70% भाग पर फैले महासागर दुनिया भर में मौसम और जलवायु को प्रभावित करने वाले एक महत्वपूर्ण घटक है। इसके साथ ही या जलवायु परिवर्तन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

महासागरों का वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि 90% से अधिक विश्व व्यापार इन्हीं के माध्यम से होते हैं।

समुद्रों के द्वारा संचालित होने वाली नीली अर्थव्यवस्था का वार्षिक आकार तीन से छह ट्रिलियन डॉलर है, जोकि विश्व व्यापार का तीन चौथाई से भी ज़्यादा है।

समुद्रों पर आधारित नीली अर्थव्यवस्था से, दुनिया के लगभग छह अरब लोगों की आजीविका चलती है।

वैश्विक आबादी का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा महासागरों के तटों के 100 किलोमीटर के भीतर निवास करते है।

वर्ष 2020 में, गर्म समुद्रों ने अटलांटिक में रिकॉर्ड तूफ़ानों वाले मौसम के लिये अनुकूल वातावरण बनाया इसके अलावा, हिन्द महासगार और दक्षिण-प्रशान्त महासागर में गहन उष्णकटिबन्धीय तूफ़ानों को बल मिला।

विश्व मौसम संगठन के अनुसार, 20 वीं सदी में समुद्रों का जल स्तर 15 प्रतिशत बढ़ा है। समुद्रों का जल स्तर बढ़ने में हिमनदों (ग्लेशियरों) के पिघलने, गर्म समुद्री पानी का विस्तार होने और ग्रीनलैण्ड व अंटार्कटिका में, बर्फ़ की चादरों के पिघलने जैसे कारक उत्तरदायी रहे।

विशेषज्ञों के अनुसार 21वीं सदी के अंत तक समुद्रों का जल स्तर 30 से 60 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है। उल्लेखनीय है कि समुद्री जल स्तर में यह वृद्धि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में तेज़ कमी लाने और वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस की सीमा में ही रखे जाने के बावजूद भी होगा।

यदि वर्तमान की तरह ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन इसी तरह जारी रहा तो, समुद्रों के जल स्तर में बढ़ोत्तरी, 60 से 110 सेंटीमीटर तक हो सकती है।

महासागरों के योगदान को मान्यता देते हुए राष्ट्रीय मौसम विज्ञान, हाइड्रोलॉजिकल सर्विसेस और शोधकर्ताओं के द्वारा नियमित रूप से महासागर की निगरानी करते हैं जिसमें महासागरों के बदलने, महासागरों के बदलाव से वातावरण पर प्रभाव की मॉडलिंग और महासागरों के द्वारा प्रदान की जा रही विस्तृत सेवाओं के साथ समुद्र में तटीय प्रबंधन पर ध्यान दिया जाता है।

उल्लेखनीय है कि वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर समुद्र का अवलोकन, अनुसंधान और इससे जुड़ी सेवाओं अब पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।

WMO के द्वारा विश्व मौसम विज्ञान दिवस की थीम महासागर, हमारी जलवायु और मौसमरखने का उद्देश्य पृथ्वी प्रणाली के भीतर महासागर को जलवायु और मौसम से जोड़ना है। इसके साथ ही यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित टिकाऊ विकास के लिए महासागर विज्ञान का दशक 2021-2030’ (Decade of Ocean Science for Sustainable Development) के शुरुआती वर्ष को भी चिन्हित करता है।

इस पहल का उद्देश्य महासागरों के बिगड़ते स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और उनके टिकाऊ विकास के लिए परिस्थितियों का निर्माण करने में देशों को सहायता प्रदान करने की परिकल्पना की गई है। टिकाऊ विकास और महासागर विज्ञान हेतु समर्पित यह दशक महासागर विज्ञान के नवीनतम और परिवर्तनकारी विचारों एवं जानकारी को को इकट्ठा कर सतत विकास को समर्थन करेगा।


विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organisation) के बारे में

विश्व मौसम विज्ञान संगठन(डबल्यूएमओ), एक अंतरसरकारी संगठन है।

डब्ल्यूएमओ कन्वेंशन के अनुमोदन से मार्च 23, 1950 को स्थापित हुआ डब्लूएमओ, एक साल बाद मौसम विज्ञान (मौसम और जलवायु), जल विज्ञान और भू-भौतिकी विज्ञान के लिए संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी बन गया।

यह संगठन, पृथ्वी के वायुमंडल की परिस्थिति और व्यवहार, महासागरों के साथ इसके संबंध और मौसम के बारे में जानकारी देता है।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन(डबल्यूएमओ) का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।


भारत में मौसम विज्ञान के बारे में

भारत जैसे विकासशील देश में मौसम का पूर्वानुमान लगाना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। इससे ना केवल कृषि, मत्स्यन,परिवहन इत्यादि गतिविधियों को मदद मिलती है बल्कि तूफान, ओलावृष्टि, चक्रवात इत्यादि से होने वाली क्षति को भी न्यूनतम करने में मदद मिलती है।

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की सफलता से एवं मौसम की भविष्यवाणी के लिए स्थापित विशेष सेटेलाइटो से भारत में मौसम पूर्वानुमान का आकलन काफी प्रभावी हो गया है।


भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी)

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) भारत में मौसम पुर्वानुमान की शीर्ष संस्था है। यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत कार्य करता है। इसकी स्थापना 1875 में हुई थी। आईएमडी का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है एवं इस के छह प्रमुख क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र चेन्नई, गुवाहाटी, कोलकाता, मुंबई, नागपुर, नई दिल्ली में स्थित है।

आईएमडी 27 डॉप्लर मौसम राडार, 711 स्वचालित मौसम केंद्रों, स्वचालित 1350 रेंज गेज स्टेशनों, इन्सैट एवं अन्य उपग्रहों के अलावा कई अन्य उन्नत प्रौद्योगिकियों एवं उपकरणों के माध्यम से पूर्वानुमान प्रणाली पर कार्य कर रहा है। आईएमडी के विश्लेषण और पूर्वानुमान केंद्र त्रिस्तरीय नेटवर्क प्रणाली पर आधारित हैं।

मुख्यालय में स्थित राष्ट्रीय मौसम पूर्वानुमान केंद्र के अलावा छह क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र और 23 राज्य स्तरीय मौसम विज्ञान केंद्र कार्यरत हैं। इन सभी केंद्रों से प्रत्येक एक घंटे, तीन घंटों और दैनिक आधार पर आंकडे प्राप्त होते हैं। इसके अलावा, वैश्विक दूरसंचार प्रणाली के माध्यम से भी आंकडे प्राप्त होते हैं। इस प्रकार, भारत सहित दुनिया के अन्य हिस्सों से भी आंकडे प्राप्त होते रहते हैं। ये आंकडे दस मिनट की अवधि में पूर्वानुमानकों को उपलब्ध हो जाते हैं। उच्च क्षमता की कम्प्यूटिंग प्रणाली से मॉडलों द्वारा 4 घंटों में आंकडों पर आधारित पूर्वानुमान संबंधी सूचना प्राप्त होने लगती है।

आईएमडी 21 देशों से वैश्विक आंकडों का आदान-प्रदान करता है और यह विश्व मौसम संगठन सूचना प्रणाली के वैश्विक सूचना केंद्रों से भी जुड़ा हुआ है। इसके अलावा, आईएमडी पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अन्य संस्थानों से भी जुड़ा है।


भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की उपलब्धिया

डब्‍ल्‍यूएमओ ने आईएमडी को 100 से अधिक वर्षों तक निरंतर अवलोकन जैसी विभिन्न गतिविधियों के लिए मान्यता दी है।

देश में लगभग 12 वेधशालाओं को अब तक शताब्दी स्टेशन के रूप में मान्यता दी गई है।

अम्‍फान चक्रवात की सटीक भविष्यवाणी के लिए संयुक्त राष्ट्र, भारत के राष्ट्रपति, पश्चिम बंगाल सरकार और ओडिशा सरकार ने आईएमडी की सराहना की है।

निसर्ग चक्रवात की सटीक भविष्यवाणी करने और मुंबई में बाढ चेतावनी प्रणाली की स्थापना के लिए महाराष्ट्र सरकार ने भी आईएमडी की सराहना की है।

पिछले पांच वर्षों के दौरान विभिन्न गंभीर मौसम परिस्थितियों के पूर्वानुमान की सटीकता में लगभग 15 से 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

मौसम विज्ञान एवं मौसम का पूर्वानुमान को बढ़ावा देने हेतु नवीनतम कदम

आईएमडी ने देश के सभी 30,000 वाटरशेडों के लिए 6 घंटे के भीतर फ्लैश फ्लड गाइडेंस की शुरुआत की है। नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका में हर 6 घंटे में फ्लैश फ्लड गाइडेंस दी जाती है।

जुलाई 2020 में मुंबई के लिए शहरी बाढ़ चेतावनी प्रणाली का उद्घाटन किया गया था। इससे मुंबई में भारी वर्षा और बाढ़ के बेहतर प्रबंधन में मदद मिली है। इसी तरह की प्रणाली चेन्नई में भी स्‍थापित की गई है और आगामी वर्षों में उसका विस्‍तार कोलकाता एवं दिल्ली तक किया जाएगा।

आईएमडी मध्य एवं पश्चिमी हिमालय में विभिन्न स्थानों पर चरणबद्ध तरीके से अत्याधुनिक डॉपलर वेदर रडार की स्थापना के जरिये अपने अवलोकन नेटवर्क का आधुनिकीकरण कर रहा है। इससे उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश जैसे राज्‍य में लोगों के कल्याण एवं सुरक्षा के लिए विभाग द्वारा प्रदान की जा रही सेवाओं में सुधार होगा। यह आपदा प्रबंधकों को और कैलाश मानसरोवर एवं चार धाम यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रियों को भी उल्‍लेखनीय मदद करेगा।

इसरो के सहयोग से आईएमडी में मल्टी-मिशन मेट्रोलॉजिकल डेटा रिसीविंग एंड प्रॉसेसिंग सिस्टम (एमएमडीआरपीएस) की स्थापना किया गया है जिसका उपयोग गंभीर मौसम परिस्थितियों की निगरानी एवं पूर्वानुमान जारी करने में किया जाएगा।

कृषि मौसम सेवाओं के तहत 2025 तक 660 डीएएमयू स्थापित करने और इसे 2020 के 2,300 ब्लॉकों से बढ़ाकर 2025 में 7,000 ब्लॉकों तक करने का लक्ष्य है। सलाह सेवाओं का दायरा 2022 तक 7 करोड़ किसानों तक और 2025 तक 10 करोड़ किसानों तक बढ़ाने की योजना है।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के भारत मौसम विज्ञान विभाग ने नवीनतम टूल्स एवं प्रौद्योगिकियों पर आधारित मौसम पूर्वानुमान एवं चेतावनी सेवाओं के प्रसार में सुधार के लिए मोबाइल ऐप मौसमलॉन्‍च किया है।


जलवायु परिवर्तन क्या है?

जलवायु परिवर्तन का तात्पर्य तापमान और मौसम के पैटर्न में दीर्घकालिक बदलाव से है।

ये बदलाव स्वाभाविक हो सकते हैं, लेकिन 1800 के दशक के बाद से, मानव गतिविधियां जलवायु परिवर्तन का मुख्य वाहक रही हैं, मुख्य रूप से कोयले, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन के जलने के कारण, जो ताप बढ़ाने वाली गैसों (हरित गृह गैस जैसे कार्बन डाई आक्साइड ) का उत्सर्जन करती है।

इससे लोगों को भोजन और पानी की कमी, बाढ़ में वृद्धि, अत्यधिक गर्मी, अधिक बीमारी और आर्थिक नुकसान का खतरा है। जो मानव प्रवास और संघर्ष का परिणाम हो सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू एच ओ ) ने जलवायु परिवर्तन को 21वीं सदी में वैश्विक स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया है।


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