जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के तहत "भ्रष्ट आचरण" |Representation of the People Act, 1951 in Hindi

जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के तहत "भ्रष्ट आचरण" 

जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के तहत "भ्रष्ट आचरण" |Representation of the People Act, 1951 in Hindi



सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के अनुसार, किसी चुनावी उम्मीदवार द्वारा योग्यता के संबंध में भ्रामक जानकारी प्रदान करना जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के तहत भ्रष्ट आचरण नहीं है। 

न्यायालय के अनुसार, भारत में कोई व्यक्ति उम्मीदवार की शैक्षिक पृष्ठभूमि के आधार पर प्रतिनिधियों का चयन नहीं करता है।


मामला:

वर्ष 2017 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक फैसला दिया था, जिसमें कहा गया था कि शैक्षणिक योग्यता से संबंधित झूठी जानकारी की घोषणा मतदाताओं के चुनावी अधिकारों के मुक्त अभ्यास में हस्तक्षेप नहीं करती है। इस संबंध में फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जानी थी।

याचिका में कहा गया है कि चुनावी उम्मीदवार धारा 123 (2) के तहत "भ्रष्ट आचरण" के तहत दोषी है क्योंकि अपनी उत्तरदायित्त्व (Liabilities) तथा नामांकन के अपने हलफनामे में शैक्षिक योग्यता सही होने का खुलासा न कर चुनावी अधिकारों के मुक्त अभ्यास में हस्तक्षेप किया है।

इसमें यह भी तर्क दिया कि धारा 123 (4) के तहत एक "भ्रष्ट आचरण" किया गया जिसमें उम्मीदवार द्वारा अपने चरित्र के बारे में तथ्य का झूठा बयान प्रकाशित करने और अपने चुनाव के परिणाम को प्रभावित करने के लिये जान-बूझकर इसका उपयोग किया गया था।

सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को यह कहते हुए "अमान्य" घोषित कर दिया कि एक उम्मीदवार की योग्यता के बारे में गलत जानकारी प्रदान करना RPA, 1951 की धारा 123 (2) और धारा 123 (4) के तहत "भ्रष्ट आचरण" नहीं माना जा सकता है।


जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 (RPA, 1951 के तहत "भ्रष्ट आचरण":

अधिनियम की धारा 123:

RPA अधिनियम की धारा 123 के अनुसार, "भ्रष्ट आचरण" वह है जिसमें एक उम्मीदवार चुनाव जीतने की अपनी संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिये कुछ इस प्रकार की गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं, जिसके अंतर्गत रिश्वत, अनुचित प्रभाव, झूठी जानकारी, और धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर भारतीय नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच घृणा, "दुश्मनी की भावनाओं को बढ़ावा देना अथवा ऐसा प्रयास करना शामिल है।"


धारा 123 (2):

यह धारा 'अनुचित प्रभाव (undue influence)' से संबंधित है, जिसे "किसी भी चुनावी अधिकार के मुक्त अभ्यास के साथ उम्मीदवार (किसी परिस्थिति में उम्मीदवार द्वारा स्वयं अथवा कभी कभी उसके प्रतिनिधित्त्वकर्त्ताओं या संबद्ध व्यक्तियों) द्वारा किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप के रूप में परिभाषित किया गया है।"

इसमें चोटिल करने/हानि पहुँचाने, सामाजिक अस्थिरता और किसी भी जाति अथवा समुदाय से निष्कासन की धमकी भी शामिल हो सकती है।


धारा 123 (4):

यह चुनाव परिणामों को प्रभावित करने वाली भ्रामक जानकारी के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाने हेतु "भ्रष्ट आचरण" की परिभाषा को और व्यापक बनाता है।

अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक निर्वाचित प्रतिनिधि को कुछ अपराधों हेतु जैसे- भ्रष्ट आचरण के आधार पर, चुनाव खर्च घोषित करने में विफल रहने पर और सरकारी अनुबंधों या कार्यों में संलग्न होने का दोषी ठहराए जाने पर अयोग्य घोषित किया जा सकता है।


अतीत में न्यायालय ने जिन प्रथाओं को भ्रष्ट आचरण के रूप में माना:


अभिराम सिंह बनाम सी.डी. कॉमाचेन केस:

वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने 'अभिराम सिंह बनाम सी.डी. कॉमाचेन मामले में माना कि धारा 123 (3) के अनुसार (जो इसे प्रतिबंधित करता है) अगर उम्मीदवार के धर्म, जाति, वंश, समुदाय या भाषा के नाम पर वोट मांगे जाते हैं तो चुनाव रद्द कर दिया जाएगा।


एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ: 

वर्ष 1994 में 'एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ' में  सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि RPA अधिनियम, 1951 की धारा 123 की उपधारा (3) का हवाला देते हुए धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों में धर्म का अतिक्रमण सख्ती से प्रतिबंधित है। 


एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य:

वर्ष 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2013 के 'एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य' फैसले पर पुनर्विचार करते हुए यह माना कि मुफ्त उपहारों के वादों को एक भ्रष्ट आचरण नहीं कहा जा सकता है।

हालाँकि इस मामले पर अभी फैसला होना है।


जनप्रतिनिधित्त्व कानून 1951: 

प्रावधान:

यह चुनाव के संचालन को नियंत्रित करता है।

यह सदनों की सदस्यता हेतु योग्यताओं और अयोग्यताओं को निर्दिष्ट करता है,

यह भ्रष्ट प्रथाओं और अन्य अपराधों को रोकने के प्रावधान करता है।

यह चुनावों से उत्पन्न होने वाले संदेहों और विवादों को निपटाने की प्रक्रिया निर्धारित करता है।


महत्त्व:

यह अधिनियम भारतीय लोकतंत्र के सुचारु संचालन हेतु महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रतिनिधि निकायों में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों के प्रवेश पर रोक लगाता है, इस प्रकार भारतीय राजनीति को अपराध की श्रेणी से बाहर कर देता है।

अधिनियम में प्रत्येक उम्मीदवार को अपनी संपत्ति और देनदारियों की घोषणा करने तथा चुनाव खर्च का लेखा-जोखा रखने की आवश्यकता होती है। यह प्रावधान सार्वजनिक धन के उपयोग या व्यक्तिगत लाभ हेतु शक्ति के दुरुपयोग में उम्मीदवार की जवाबदेही एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।

यह बूथ कैप्चरिंग, रिश्वतखोरी या दुश्मनी को बढ़ावा देने आदि जैसे भ्रष्ट आचरणों पर रोक लगाता है, जो चुनावों की वैधता और स्वतंत्र तथा निष्पक्ष संचालन सुनिश्चित करता है तथा किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की सफलता हेतु आवश्यक है।

अधिनियम के तहत केवल वे राजनीतिक दल जो RPA अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत पंजीकृत हैं, चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने हेतु पात्र हैं, इस प्रकार राजनीतिक फंडिंग के स्रोत को ट्रैक करने एवं चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये यह एक तंत्र प्रदान करता है।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.