मालवा पर मुगलों का अधिकार ( 1535 ई.) | Malwa History Under Mughals

मालवा पर मुगलों का अधिकार ( 1535 ई.)

मालवा पर मुगलों का अधिकार ( 1535 ई.) | Malwa History Under Mughals


 

मालवा पर मुगल सम्राट हुमायूँ का आक्रमण करने का प्रमुख कारण गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह की बढ़ती शक्ति थी। मालवा भी गुजरात राज्य का अंग बन चुका था और मुगलों के लिए संभावित खतरा बनता जा रहा था। दूसरे मुगल दरबार से भागे हुए अमीरों को बहादुरशाह ने अहमदाबाद में शरण दे रखी थी। इनमें मोहम्मद जमान मिर्जा प्रमुख था। मुगल सम्राट ने पत्र लिख सुल्तान को सूचना दी कि मोहम्मद जमान मिर्जा को मुगलों को सौंपा जाये। परंतु बहादुरशाह ने इन्कार कर दिया। हुमायूँ ने अब निश्चय कर लिया कि वह गुजरात पर आक्रमण करेगा। 

हुमायूँ ने बहादुरशाह पर उस समय आक्रमण किया जब वह चित्तौड़ पर आक्रमण कर किले को घेरे हुआ था। इसी बीच चित्तौड़ की महारानी कर्णावती ने हुमायूँ को राखी भेज कर यह निवेदन किया कि एक भाई को बहन की आक्रमणकारी से रक्षा करना चाहिए। बहादुरशाह मुगलों के आक्रमण के संकट को समझ गया था। उसने हुमायूँ से निवेदन किया कि वह काफिरों से युद्ध कर रहा हैऐसी स्थिति में एक मुसलमान शासक को दूसरे मुसलमान शासक पर आक्रमण नहीं करना चाहिए। यदि उसने ऐसा किया तो यह उस पर कलंक रहेगा। वह कयामत के दिन क्या उत्तर देगा। हुमायूँ इस समय सांरगपुर में था । वह इस अपील से धार्मिक रूप में पेशोपेश में पड़ गया 48 इसी बीच बहादुर शाह ने नवम्बर, 1534 ई. में चित्तौड़ के घेरे को तेज कर दियाहुमायूँ जैसा कि बहादुरशाह ने सोचा रानी की सहायता के लिये नहीं पहुँचाबहादुरशाह ने 8 मार्च, 1535 ई. में चित्तौड़ को जीत लिया। 

हुमायूँ को चित्तौड़ के पतन और किले पर बहादुरशाह के अधिकर की जानकारी मिली तो वह तत्काल सारंगपुर से उज्जैन होता हुआ मन्दसौर पहुँच गया। हुमायूँ की सेना ने गुजरात की सेना को चारों ओर से घेर कर उनकी रसद - पानी रोक दी। बहादुरशाह की सेना बड़ी तकलीफ में फँस गईवह समझ गया था कि वह मुगलों का सामना नहीं कर सकता। इस बीच उसके कुछ अमीर जिनमें रूमी खाँ (तोपची) मुख्य था ने बहादुरशाह को धोखा दिया। वह निराश हो गया। एक रात बहादुरशाह ने चुपचाप शिविर को छोड़ दिया और अपने विश्वस्त अमीरों के साथ माण्डू भाग गया। दूसरे दिन सुबह हुमायूँ ने बहादुरशाह के शिविर पर अधिकार कर लिया। 

 

हुमायूँ मई, 1535 ई. में माण्डू के निकट नालछा पहुँच गया। यहाँ मुगलों की शक्ति दिल्ली से सेना के आने से और बढ़ गई। मुगलों ने माण्डू के दुर्ग को घेर लिया। बहादुरशाह निराश हो गया था। उसने हुमायूँ के पास प्रस्ताव भेजा कि वह मालवा उसे सौंप देगा लेकिन गुजरात उसके पास रहेगा। हुमायूँ ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और ऐसा प्रतीत हुआ कि अब शान्ति स्थापित हो जाऐगी। सुल्तान निश्चित हो गया। उसी दिन रात्रि की समाप्ति पर मुगल सेना माण्डू के दुर्ग में प्रवेश कर गयी। बहादुरशाह को जब सूचना मिली तो उसने शीघ्रता से मल्लू खाँभूपत (सिलहदी का पुत्र) को बुलाया और सफलता को कठिन जानकर सोनगढ़ दरवाजे से चम्पानेर गुजरात भाग गया। 

हुमायूँ का माण्डू पर जून 1535 ई. में अधिकार हो गया  बहादुरशाह ने चम्पानेर के किले में शरण ले रखी थी। इसलिये वह उसका पीछा करता हुआ चम्पानेर पहुँच गया। अंत में बहादुरशाह पराजित हुआ।

 

गुजरात में अपने भाई अस्करी को वहाँ की व्यवस्था सौंपकर वह मालवा लौटा। मालवा में हुमायूँ का कुछ समय तक रहना एक प्रकार से निरर्थक सिद्ध हुआ । उसकी उपस्थिति मालवा में केवल सैनिक आधिपत्य ही थी। क्योंकि मल्लू खाँसिकन्दर खाँ और मिहतर जम्बूर ने उज्जैन सहित मालवा के कई स्थानों पर अधिकार कर लिया था। माण्डू में रहते हुए भी वह मालवा के प्रशासन की किसी भी प्रकार की स्थायी व्यवस्था नहीं कर पाया था। उसने गुजरात पर भी ध्यान नहीं दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि बहादुरशाह ने गुजरात पर पुनः अपनी सत्ता स्थापित कर ली। मिर्जा अस्करी और हुमायूँ मालवा को छोड़कर आगरा की ओर कूच कर गये। हुमायूँ ने मालवा में न तो सेना ही रखी और नही अपना कोई सूबेदार । इस प्रकार मालवा में परिस्थितियाँ अपने स्वाभाविक रूप में बदलने लगीं ।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.