प्रशासनिक सम्पादकीय व्यवस्था |समाचार पत्रों का प्रसार और विपणन | Newspaper Circulation and marketing

प्रशासनिक सम्पादकीय व्यवस्था ,समाचार पत्रों का प्रसार और विपणन 

प्रशासनिक सम्पादकीय व्यवस्था |समाचार पत्रों का प्रसार और विपणन | Newspaper Circulation and marketing



प्रशासनिक सम्पादकीय व्यवस्था :

 

किसी भी समाचार-पत्र की प्रशासनिक व्यवस्था पत्र के आकारप्रसार और स्वरूप पर निर्भर करती है। पत्र के स्वामित्व पर भी यह व्यवस्था निर्भर करती है। 

एकल स्वामित्व में एक ही व्यक्ति महाप्रबन्धक से लेकर सम्पादकीय नीति तथा व्यावसायिक हित आदि को निदेशित व नियन्त्रित करता हैअन्य पत्रों में प्रायः कार्य का आवश्यकतानुरूप विभाजन किया जाता है। जहां सम्पादक सम्पादकीय लेखन के अतिरिक्त समाचार संकलन व चयन तथा फीचर आदि के कार्यों को देखता है वहीं जनरल मैनेजर विज्ञापनप्रसारआय-व्यय आदि का कार्य सम्भालता है। बड़े पत्रों में व्यवसायसम्पादकीय तथा मुद्रण आदि विभागों के प्रभारी अलग-अलग होते हैं। ये सभी मिलकर समाचार-पत्र प्रकाशन की प्रक्रिया को व्यवस्थित करते हैं।

 

कोपरेशन के रूप में प्रकाशित समाचार-पत्र के पदाधिकारियों में अध्यक्षउपाध्यक्षसचिवकोषाध्यक्षआदि प्रशासनिक ढांचे के प्रमुख पदाधिकारी होते हैं जो पत्र प्रकाशन में सक्रिय रूचि या भागीदारी प्रदर्शित नहीं करते हैं। पत्र का प्रकाशन अध्यक्ष अथवा प्रबन्ध निदेशक या सम्पादक भी हो सकता है।

 

यहां समाचार पत्रों की प्रशासनिक व्यवस्था को सामान्य रूप से इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है-

 

साप्ताहिक - प्रकाशकसम्पादक । 

लघु दैनिक - प्रकाशकसम्पादक । 

मध्यम दैनिक - प्रकाशकप्रबन्धकसम्पादक । 

बड़े दैनिक- निदेशक मण्डलप्रकाशकसम्पादकमहाप्रबन्धकप्रबन्ध निदेशकबिजनेस मैनेजर

 
समाचार पत्रों का प्रसार और विपणन :
 

समाचार पत्र यथाशीघ्र पाठकों तक पहुंचे यही समाचार पत्र की सफलता या सार्थकता का राज है। समाचार पत्र यथा समय प्रकाशित हो और शीघ्र ही पाठकों तक पहुंचे इसी में उसकी सार्थकता है । अनन्त गोपाल शेवडे ने एक जगह लिखा है कि "शरीर स्वास्थ्य के लिए जिस तरह रक्ताभिसरण आवश्यक हैसमाचार-पत्र के आर्थिक स्वास्थ्य के लिए उसमें विस्तृत प्रचार की आवश्यकता होती है।"

 

अतः हमे कहे तो समाचार पत्र का प्रसार उस पत्र की सफलता का मुख्या आधार होता है। प्रसार से तात्पर्य समाचार पत्र की बेची गई प्रतियों की कुल संख्या से है। प्रसार संख्या की अधिकता विज्ञापनदाताओं को आकर्षित करती है जिससे पत्र के राजस्व में वृद्धि होती है। समाचार-पत्र एक ऐसा उत्पाद है जो लागत से कम मूल्य में बेचा जाता है। यह घाटा विज्ञापनों से प्राप्त राशि से पूरा होता है। अतः समाचार पत्र के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए आवश्यक है कि उसमें विज्ञापनों का पर्याप्त प्रकाशन हो। विज्ञापन पत्र की आर्थिक आत्म-निर्भरता की प्राथमिक आवश्यकता है। समाचार पत्र के प्रसार की इसी महत्ता को हरबर्ट ली विलियम्स ने महसूस करते हुए लिखा है कि, "समाचार-पत्र की अधिक प्रसार संख्या इस बात का प्रमाण है कि वह समाज के प्रति अपने दायित्वों की पूर्ति उतनी ही अधिकता से कर रहा है।"

 

डॉसुकमाल जैन ने समाचार-पत्रों के विक्रय के दो आधार माने हैं-

 

1. विज्ञापनों का विक्रय, 2. समाचार पत्र का विक्रय । वे विक्रय की आवश्यकता और महत्त्व का आग्राङित शब्दों में प्रतिपादित करते हैं-

 

"समाचार पत्र एक ऐसा उत्पादन कार्य है जिसके विक्रय में थोड़ी-सी असावधानी प्रकाशनगृह की सारी मेहनत पर पानी फेर सकती है। इसलिए छोटे से छोटे समाचार पत्र में भी विक्रय कार्य पर बहुत जोर दिया जाता है। विक्रय ही सफलता की निशानी है और विक्रय ही कुशल व्यवस्था की प्रतीक है।

 

उपर्युक्त उद्धरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि समाचार पत्रों के लिए उसका प्रसार अत्यन्त महत्वपूर्ण पक्ष है। यह प्रसार जहां उसकी लोकप्रियता का प्रतीक है वहीं विज्ञापनदाताओं के लिए भी अपने संदेश को व्यापक स्तर तक फैलाने तथा पहुंचाने का अच्छा माध्यम भी है। इसी कारण कोई भी पत्र अपने प्रसार को उपेक्षित कर आत्म-निर्भर नहीं हो सकता है।

 

1 प्रसार को प्रभावित करने वाले कारक

 

दुनिया में पत्रकारिता के उद्भव से लेकर आज तक दिन प्रति दिन जहां पत्र-पत्रिकाओं की संख्या बढ़ी हैवहीं इनके प्रसारण में भी दिनोदिन बढ़ोत्तरी हुई है। इसमें कोई संदेह नहीं कि दुनिया के अधिकांश देशों में समाचार पत्र पत्रिकाओं की प्रसार संख्या में काफी वृद्धि हुई है। भारत में पत्रकारिता का प्रारम्भ हुए दो शताब्दियों से अधिक समय हो गया है। उसकी तुलना में आज पत्र-पत्रिकाओं की प्रसार संख्या में भारी वृद्धि हो गई है। वस्तुतः आज पत्रिकाएं हमारे सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों की प्रतीक बन गई हैं। पहले का जीवन सरलसादा और सहज था। आज जीवन में जटिलता और कठिनता आ गई है। इस यांत्रिक और तेजी से बदलते युग में मनुष्य की जिज्ञासा और सूचना क्षेत्र में भारी विस्तार हो गया है। उसकी इस जिज्ञासा वृत्ति को पत्र-पत्रिकाओं ने पूरा किया है। इस कारण आज मनुष्य इनकी ओर उन्मुख होने लगा है।

 

प्रसार को प्रभावित करने वाले तत्वों में साक्षरता और शिक्ष-क्षेत्र में विकास भी प्रमुख है। शिक्षा के प्रसार ने साक्षरता की दर को बढ़ा दिया है। साक्षरता के कारण आम व्यक्ति पठन-पाठन की ओर प्रेरित हुआ है। पत्र-पत्रिकाएं चूंकि उसे अपने परिवेश को समझने का अवसर देती हैंइसीलिए वह इन्हें पढ़ता है।

 

ज्ञान-विज्ञान की विविध शाखाओं के विकास के कारण विविध प्रकार की विशेषीकृत पत्रिकाएं प्रकाशित होने लगी हैं। विज्ञानवाणिज्यव्यापारसांस्कृतिकधार्मिकसाहित्यउपचारचिकित्साअर्थशास्त्र आदि विषयों में आये दिन नवीन शोध किये जा रहे हैं। इन विषयों के पाठक या अध्येता निश्चय ही ऐसे विषयों की पत्रिकाओं को अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए पढ़ते हैं। इस प्रकार पत्र-पत्रिकाएं व्यापक जन समुदाय की विविध प्रकार की रूचियों को पूरी करने लगी हैं।

 

मनोरंजन और खाली समय में कुछ मानसिक खुराक की आवश्यकता भी प्रसार संख्या की वृद्धि का एक कारण है। विविध प्रकार की पत्र-पत्रिकाएं रोचक सामग्री का प्रकाशन करती हैंजिससे दिन भर की मशीनी जिन्दगी जीने वाला व्यक्ति कुछ क्षण मनोविनोद और हास्य के वातावरण में गुजार कर जीवन के तनावों को कम कर सके। इस प्रकार की मनोरंजक सामग्री भी पाठकों के आकर्षण का केन्द्र बनी है। इसके अतिरिक्त रेलबस अथवा हवाई यात्रा जैसे अवसरों पर समय बिताने की दृष्टि से भी आज का व्यक्ति पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने की ओर उन्मुख हुआ लोगों की क्रयशक्ति में वृद्धि भी प्रसार संख्या की वृद्धि का अन्य प्रमुख कारण है।

 

इस प्रकार कहें तो शिक्षा दर में बढ़ोत्तरीविज्ञान व शोध के क्षेत्र में हुये विकासपत्रकारिता के क्षेत्र में हुये विस्ताररोजगार की तलाश को लेकर पत्र-पत्रिकाओं की प्रकाशन संख्या भी बढ़ी हैजिससे पाठकों की रूचि के अनुसार उन्हें पढ़ने के लिए कई क्षेत्र व विषय मिले जिस कारण पत्र-पत्रिकाओं की प्रसार संख्या बढ़नी स्वाभाविक है।

 

2 प्रसार के तरीके :

 

समाचार पत्रों में प्रसार की अत्यधिक महत्ता के कारण एक प्रसार विभाग होता है। यह विभाग इस बात का धन रखता है कि समाचार पत्र अपने पाठकों तक नियमित रूप से बिना किसी व्यवधान के पहुंच रहा है या नहीं यह विभाग न सिर्फ प्रसार संख्या को बढ़ाने का प्रयत्न करता है। वरन् यदि समाचा पत्र की प्रसार संख्या में कमी आने लगी हो तो वह उसमें कारण खोजकर उसे दूर करने का भी प्रयत्न करता है। इस प्रकार समाचा पत्र की निर्बाध वितरण व्यवस्था का दायित्व इसी विभाग पर होता है।

 

डॉ० सुकुमाल जैन ने समाचार पत्रों के विक्रय के दो प्रमुख तरीके बताये हैं-

 

(1) प्रत्यक्ष विक्रय 

(2) अप्रत्यक्ष विक्रय ।

 

प्रत्यक्ष विक्रय में प्रकाशन सीधे अपने ग्राहक या पाठकों को समाचार पत्र की प्रतियां बेचता है। जबकि अप्रत्यक्ष विक्रय में मध्यस्थया अभिकर्ता या एजेण्ट के द्वारा समाचार पत्र पाठक के पास पहुंचता है। समाचार पत्र का अधिकांश विक्रय मध्यस्थों द्वारा ही होता है।

 

अनन्त गोपाल शैवड़े ने इन्हें चार विभागों में विभक्त किया है-

 

1. स्थानीय या नगर 2. प्रादेशिक 3 फुटकर 4. डाक द्वारा उपर्युक्त आधार पर हम समाचार पत्रों की बिक्री व्यवस्था को निम्न बिन्दुओं के आधार पर समझ सकते हैं-

 

1. नगर में वितरण - 

समाचार पत्रों का शहरों में हॉकर व एजेण्टों द्वारा वितरण सर्वाधिक प्रभावी माध्यम है। समाचार पत्र प्रकाशित होते ही उस शहर में हॉकरों व एजेण्टों को दे दिए जाते हैं। जो उन्हें शहर की विभिन्न कालोनियों व मुहल्लों में शीघ्र ही घर-घर जाकर पत्र शीघ्र ही पूरे शहर में वितरित हो जाता है। यह वितरण प्रणाली नियमित ग्राहकों के लिए ही संभव तथा उपादेय है। इस कार्य के लिए समाचार पत्र संस्थान अपने हॉकरों व एजेण्टों को उचित कमीशन तथा प्रोत्साहन देता है। समाचार पत्र की प्रसार संख्या में वृद्धि का लाभ हॉकरों और एजेण्टों को भी मिलता है।

 

घर जाकर वितरण करने के अतिरिक्त शहरों के न्यूज स्टैण्टों पर से भी समाचार पत्रों का विक्रय किया जाता है। बस स्टेण्डरेल्वे स्टेशन तथा अन्य प्रमुख सार्वजनिक स्थलों पर इस प्रकार के स्टैण्ड लगाये जाते हैं।

 

2. प्रादेशिक अथवा क्षेत्रीय वितरण - 

नगर में वितरण के बाद समाचार पत्रों का अन्य स्थानों पर वितरण का कार्य करना होता है। नगर के बाहर समाचार पत्रों के प्रभावी वितरण के लिए आवश्यक है कि पत्रों की वितरण व्यवस्था भी प्रभावी है। बाह्य स्थानों पर पत्र भेजने के लिए प्रायः टैक्सियोंरेलगाडियोंविमान सेवाओं आदि का उपयोग किया जाता है। प्रसार विभाग को इन यातायात सुविधाओं के साथ समय का उचित समायोजन कर उनके प्रस्थान के पूर्व पत्रों के बंडल बनाकर उन पर एजेण्टों के नाम पते सहित पहुंचा देना चाहिए । अन्य पत्रों की तुलना में आपका पत्र कितना जल्दी पहुंचता है यह पत्र की प्रसार की वृद्धि में सहायक हो सकता है। बाह्य स्थानों पर भी पत्र का वितरण एजेण्टों के माध्यम से ही किया जाता है।

 

3. डाक द्वारा वितरण कभी- 

कभी पाठक पत्र-पत्रिकाओं की नियमितता को बनाए रखने की दृष्टि से पत्रिका अर्द्धवार्षिकवार्षिक अथवा आजीवन शुल्क भेजकर उसकी ग्राहकता स्वीकार कर लेते हैं। इसका लाभ यह होता है कि पत्र या पत्रिका उन्हें नियमित रूप से घर मे ही मिलती रहती है। इस व्यवस्था में कुछ विलम्ब अवश्य हो सकता है। कभी-कभी डाक की अव्यवस्था के कारण पत्रिका नहीं पहुंच पाती है। ऐसी स्थिति में प्रायः अच्छे प्रतिष्ठान दूसरी प्रति भिजवा देते हैं। साप्ताहिकपाक्षिक अथवा मासिक पत्रों को ही प्रायः डाक द्वारा मंगवाया जाता है। दैनिक पत्रों में यह प्रणाली अपेक्षाकृत कम लोकप्रिय है क्योंकि दो-तीन दिन बाद मिलने वाले दैनिक पत्र में पाठक की रूचि प्रायः कम ही होती है। ग्राहक का शुल्क समाप्त हो जाने की सूचना उसे यथा समय दे दी जानी चाहिए ताकि वह अपनी सदस्यता का नवीनीकरण करा सके।

 

3 समाचार पत्रों का प्रसार कैसे बढ़ाया जाय : 

आधुनिक युग प्रतिस्पर्धा का युग है। इस युग में शिक्षा से लेकर तकनीकी क्षेत्र में काफी विकास हुआ है। शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ समाचार पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन में भी तेजी आई है। इस कारण इसमें आपसी प्रतिस्पर्धा भी बढ़ने लगी है। इस प्रतिस्पर्धा का आधार भी कई प्रकार का हो सकता है जैसे विषय सामग्री और उनका प्रस्तुतीकरणसाज-सज्जापृष्ठ संख्या इत्यादि । एक ही स्थान से प्रकाशित समाचार पत्रों में प्रायः प्रतिस्पर्धा अधिक रहती है। जैसे उत्तराखण्ड के परिप्रेक्ष्य में देखा जाय तो यहां देहरादून और हल्द्वानी से प्रकाशित विभिन्न समाचार पत्रों में काफी प्रतिस्पर्धा है। देहरादून में जहां पहले दैनिक जागरण और अमरउजाला के बीच प्रतिस्पर्धा थी और दैनिकजागरण पहले स्थान पर और अमरउजाला दूसरे पर था। उत्तराखण्ड में दैनिक हिन्दुस्तान का प्रवेश हुआ तो यह प्रतिस्पर्धा त्रीकोणीय हो गयी और 2007 में अमरउजाला प्रथम स्थान पर आ गया। दूसरे स्थान के लिए हिन्दुस्तान और दैनिक जागरण में प्रतिस्पर्धा है।

 

समाचार पत्र के प्रसार विभाग को समाचार पत्र प्रारम्भ करते समय अथवा पत्र की प्रसार संख्या में वृद्धि करने की दृष्टि से समय-समय पर विपणन सर्वे अथवा विपणन अनुसंधान करना चाहिए। इस प्रकार के सर्वेक्षण पत्र की वास्तविक स्थिति का बोध कराते रहते हैं इस प्रकार के सर्वेक्षणों में समाचार पत्रों के प्रसार क्षेत्रग्राहकों का जीवन स्तरग्रहाक तक पहुंचने के माध्यमविक्रय व्यवस्थापाठकों की अभिरूचियां आदि का परिज्ञान करना आवश्यक है। उक्त सन्दर्भों की प्रामाणिक और विश्वसनीय जानकारी प्राप्त कर एक व्यावहारिक योजना बनाकर उसकी क्रियान्विति की ओर प्रयास किया जाना चाहिए। 


डॉ० सुकमाल जैन ने समाचार पत्रों की विक्रय संख्या को प्रभावित करने वाले घटकों को प्रमुख रूप से दो वर्गों में बांटा है-

 

1. आन्तरिक घटक - 

आन्तरिक घटकों में ग्राहक की रूचिभाषाप्रकाशन स्थलविचारों का प्रस्तुतीकरण आदि आते हैं। इनसे तात्पर्य पाठक प्रकाशक के आन्तरिक सम्बन्धों से है।

 

2. बाह्य घटक— 

बाह्य घटक वे हैं जो समाचार पत्र विशेष से सम्बन्ध रखते हैं- जैसे समाचार तथा अन्य सामग्री मूल्य प्रतियोगिताउत्पादन विधि और स्तर आदि इन पर भी विपणन अनुसन्धान के पूर्व ध्यान दिया जाना अत्यन्त आवश्यक है।

 

इस प्रकार समाचार पत्रों के प्रसार बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि उस हेतु पूर्व तैयारी की जाए। उस पृष्ठभूमि के आधार पर प्रसार वृद्धि का अभियान सुनियोजित ढंग से संचालित किया जाना चाहिए। इस हेतु समाचार पत्र का प्रसार विभाग का भी सुसंगठित तथा कल्पनाशील होना आवश्यक है।

 

हरबर्ट ली विलियम्स ने समाचार पत्र की प्रसार संख्या में वृद्धि की सफलता के लिए विश्व एवं स्थानीय समुदाय के समाचारों की कवरेजपाठकों की रूचि के फीचर तथा प्रसार क्षेत्र के समुदाय की जानकारी और समझ के अतिरिक्त सुसंगठित और सुव्यवस्थित प्रसार विभाग की आवश्यकता प्रतिपादित की है।

 

ग्राहक किसी भी वस्तु के गुण की ओर आकृष्ट होता है। इसी भांति वह समाचार पत्र की ओर भी तभी आकृष्ट होगा जब उसे पढ़कर उसे संतुष्टि मिले। इसलिए समाचार पत्र-पत्रिकाओं की रिपोर्टिंग करते समय सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों को पत्र पत्रिकाओं में प्राथमिकता देनी चाहिए साथ ही क्षेत्रीयस्थानीय व राष्ट्रीय स्तर की प्रभावी समाचारों को प्राथमिकता से प्रकाशित करना चाहिए।

 

आधुनिक समाचार पत्र प्रसार में वृद्धि के लिए समाचारों के अतिरिक्त अन्य प्रकार की फीचर तथा फिक्शन सामग्री जिनमें विविध प्रकार के लेखस्तम्भकार्टूनव्यंग्यरिपोर्ट्सपाठक नामा इत्यादि का प्रकाशन करते है। इनमें मनोरंजन तत्व की प्रधानता होती है। कुछ समाचार पत्र तो रविवारीय अंकों के अतिरिक्त प्रतिदिन ही इस प्रकार के फीचर पृष्ठ प्रकाशित करने लगे हैं। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से लघु पत्रिकाओं की भांति विविध प्रकार की सामग्री का प्रकाशन कर रहे हैं। जिनसे इनके प्रसार में काफी वृद्धि हुई है। इन फीचर पृष्ठों के प्रकाशन के कारण जो समाचार पत्र पहले पन्द्रह बीस मिनट में पढ़कर छोड़ दिया जाता था अब अधिक समय तक पढ़ा जाता है। अपनी रूचि के विषयों पर लिखित आलेखों को प्रायः पाठक रात्रि को भी पढ़ता है।

 

जैसा पहले भी कहा जा चुका है कि समाचार पत्र-पत्रिकाओं की प्रसार संख्या बढ़ाने के लिए आवश्यक है उसका स्थानीयता से जुड़ना । स्थानीयता का तत्व समाचार पत्र को पाठक का मित्र भी बना देता है।

 

समाचार पत्र-पत्रिकाओं की प्रसार संख्या समाचारों के प्रस्तुतीकरण के तौर-तरीकों पर भी निर्भर करती है। समाचारों की प्रमुखता का आधार उनकी साज-सज्जा तथा शीर्षक आदि भी पत्र-पत्रिकाओं की प्रसार संख्या को एक सीमा तक प्रभावित करते हैं। अतः समाचार पत्र के प्रसार विभाग को समय-समय पर पाठकीय सर्वेक्षणों का भी आयोजन करना चाहिए।

 

इस प्रकार कहें तो समाचार पत्र की विषय सामग्री अथवा पाठ्य सामग्री समाचार पत्र का जीवन रक्त कहा जा सकता है। उसमें वस्तुनिष्ठताप्रामाणिकतानिष्पक्षताविश्वसनीयता और गम्भीरता अपेक्षित है। ये ही वे तत्व हैं जो किसी पत्र की सफलता की गारण्टी दे सकते हैं। सनसनीपूर्ण विकृत तथा असत्य समाचार पत्र कुछ दिन तो चला सकते हैं किन्तु अन्ततः उसका प्रभाव कम हो जाता है।

 

किसी भी समाचार पत्र-पत्रिका की सफलता के लिए कुछ मंत्र इस प्रकार हैं-

 

1. वह ताजे से ताजे समाचार दे। 

2. वह सम्पादकीय टिप्पणियों या विशिष्ट लेखों द्वारा उन समाचारों की समीक्षा करके लोकमत को शिक्षित एवं जाग्रत करे। 

3. स्वस्थ आनन्द और मनोरंजन के साधन उपलब्ध करे । 

4. उस क्षेत्र के आर्थिक और औद्योगिक विकास के प्रति जागरूक रहे और उसमें योगदान दें दें । 

5. सामाजिकसांस्कृतिकधार्मिकराजनैतिक आदि सभी क्षेत्रों से पाठकों को जोड़ने का प्रयास करें। 

6. भूमण्डलीकरण के वर्तमान दौर में आर्थिक और राजनैतिक जैसे अन्तर्राष्ट्रीय विषयों पर विशेष ध्यान आकृषित करें। 

7. बेरोजगारी के युग में रोजगार परक शिक्षा की जानकारी और रोजगार सम्बन्धी सूचना का समावेश अपने पत्र-पत्रिकाओं में विशेष रूप से रखें।

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