प्रबन्धन का अर्थ एवं महत्व| Management Meaning and Importance in Hindi

प्रबन्धन का अर्थ एवं  महत्व

प्रबन्धन का अर्थ एवं  महत्व| Management Meaning and Importance in Hindi


प्रबन्धन का अर्थ : 

  • यदि किसी समाचार-पत्र की प्रबन्ध व्यवस्था का संचालन सम्यक तरीके से नहीं किया गया तो न सिर्फ उसे समय पर प्रकाशित कर पाना कठिन होगा वरन् वह अपने पाठकों तक भी नहीं पहुंच सकेगा और प्रतिस्पर्धा के इस युग में पिछड़ जाएगा। रंगमंच पर यदि निर्देशक तथा उसके सहयोगी अपनी नाटक की कुशल प्रबन्ध व्यवस्था में असफल हो जाए तो नाटक को छूट होते देर नहीं लगेगी। किसी विशिष्ट राजनीतिज्ञ के भाषण के दौरान यदि व्यवस्था ठीक प्रकार से संचालित नहीं की जाए तो शांति एवं कानून की स्थिति बिगड़ते समय नहीं लगेगा ।

 

  • यही कारण है कि किसी भी महत्वपूर्ण आयोजन या अभियान की सफलता उसके सार्थक प्रबन्ध एवं संगठन व्यवस्था में ही निहित है । प्रबन्ध के इसी महत्व के कारण उसे कला और विज्ञान के रूप में विभिन्न पाठ्य-पुस्तकों में व्याख्यायित किया गया है। कई बार बड़े-बड़े राजनेताओं की रैलियों व धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजनों में भगदड़ मच जाते हैं जिससे काफी जानमाल का नुकसान भी हो जाता है। यह कार्यक्रमों के प्रबन्ध में कमी के कारण ही होता है।

 

प्रबन्धन सम्बन्धी कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं 

किसी भी निश्चत उद्देश्यों के प्रति व्यक्ति समूहों के दिशा-निर्देश, नेतृत्व और नियन्त्रण के प्रयासों को प्रबन्धन कहा जाता है। वस्तुतः प्रबन्धक (Manager) की सफलता के भी उक्त तीन आधार महत्वपूर्ण हैं। प्रबन्धन सम्बन्धी कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं इस प्रकार हैं-

 

1. प्रबन्धन का अर्थ है- भविष्यवाणी करना, योजना बनाना, संगठित करना, आदेश देना, समन्वय स्थापित करना तथा नियंत्रण करना । " (हेनरी फेयोल)

 

2. "प्रबन्धन एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें एक उपक्रम की क्रियाओं के प्रभावी नियोजन और नियमन का उत्तरदायित्व सन्निहित होता है। ऐसा उत्तरदायित्व निम्न को शामिल करता है-

 

(क) योजना के निर्धारण में विचार एवं निर्णय और योजनाओं के विपरीत कार्यों एवं प्रगति को नियन्त्रित करने के लिए आंकड़ों का प्रयोजन करना तथा

 

(ख) उपक्रम की स्थापना करने वाले और उसके कार्यों को करने वाले व्यक्तियों का मार्गदर्शन एकीकरण, उत्प्रेरण एवं पर्यवेक्षण।" (ब्रेच)

 

3. प्रबन्धन मानवीय प्रयत्नों - जिन्हें मानवगण के हितार्थ, शक्तियों के नियंत्रण एवं सामग्रियों के 1 उपयोग के लिए लगाया जाता है- को तैयार करने, संगठित करने एवं निर्देशित करने की एक कला एवं विज्ञान है। अमेरिकन सोसाइटी ऑफ मैकेनिकल इन्जीनियर्स

 

4. पीटर ड्रकर ने प्रबन्ध के तीन मुख्य कार्य बताए हैं- (क) व्यापार का प्रबन्ध (ख) प्रबन्धकों का प्रबन्ध तथा (ग) कार्य तथा श्रमिक का प्रबन्ध ।

 

5. प्रबन्धन व्यक्तियों का विकास है न कि वस्तुओं का निदेशन - एल० एप्पले

 

6. "प्रबन्धन को एक उपक्रम का ऐसे आन्तरिक वातावरण को सृजित एवं उसे बनाए रखने के रूप में व्याख्यायित किया जाता है जहां व्यक्ति, समूह में कार्य करते हुए निर्धारित सामूहिक उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु कुशलता एवं प्रभावी ढंग से कार्य कर सके।" कून्ट्ज एवं ओडॉनेल

 

उक्त परिभाषाओं में प्रबन्ध-कला के विविध पक्षों को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। यह एक प्रकार से योजना, संगठन, निदेशन तथा नियन्त्रण की प्रक्रिया है।

 

अतः उपरोक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि किसी भी कार्य / संगठन / कार्यक्रम / संस्थान के सफल संचालन व सफलता के लिए जो योजनाएं बनाई जाती हैं व सिद्धान्त लागू किये जाते हैं उसे प्रबन्ध कहते हैं। इसके तहत किसी भी कार्य को शुरू करने से पूर्व उसके प्रारम्भ होने से लेकर पूर्ण होने तक की जो योजना बनाई जाती है उसे प्रबन्ध कहते हैं। सफल प्रबन्ध योजना पर निर्भर करती है कि योजना किस तरह से तैयार की गई है। दिशा निर्देशन पर निर्भर करती है।

 

2 प्रबन्धन का महत्व : 

आद्योगिक एवं तकनीकी विस्तार के युग में प्रबन्धन का महत्व स्वयंसिद्ध है। किसी भी उपक्रम या संस्थान के प्रभावी संचालन में प्रबन्धन की उल्लेखनीय भूमिका से इन्कार नहीं किया जा सकता । अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रूजवेल्ट का यह कथन प्रबन्धन की इसी विशेषता को प्रकट करता है- "एक सरकार बिना अच्छे प्रबन्धन के एक मिट्टी से बने हुए मकान के समान है।" (मूर)

 

प्रबन्धन में समन्वय की प्रबल शक्ति होती है। उपलब्ध श्रम व्यवस्था के उचित समन्वय से अधिकतम उपलब्धियां प्राप्त की जा सकती हैं और उनमें श्रम का अनावश्यक अपव्यय भी नहीं होगा। इस प्रतिस्पर्धात्मक युग में वस्तु की खपत का क्षेत्र भी बढ़ता जा रहा है। जो स्थानीय स्तर से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक फैल चुका है। अतः इस क्षेत्र में अस्तित्व रक्षण के लिए आवश्यक है न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन किया जाए। यह तभी सम्भव है जब उपक्रम के प्रबन्धन में दूरदर्शिता और समय की नब्ज को महसूस करने की क्षमता हो । कुशल प्रबन्ध व्यवस्था जहां उपक्रम अथवा संस्था के उद्देश्यों को निर्धारित करने में सफल हाती है वहीं उन उद्देश्यों की क्रियान्विति में भी सहायक होती है। निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में इसके विशिष्ट महत्व से इन्कार नहीं किया जा सकता।

 

प्रबन्धन व्यक्तियों का विकास है, न कि वस्तुओं का निदेशन । अतः प्रबन्धन मानवीय व्यवहार और उसकी प्रखर कार्य क्षमता की अभिवृति का प्रमुख आधार भी है। किसी भी योजना की सफलता उसकी क्रियान्विति के लिए जिम्मेदार व्यक्ति की कार्य क्षमता और उसकी व्यावसायिक दक्षता पर निर्भर करती है। अतः व्यक्ति विकास की दिशा में भी प्रबन्ध एक महत्वपूर्ण पक्ष है। इस प्रकार व्यक्ति एवं समाज के आर्थिक, सामाजिक आदि के विकास में प्रबन्ध महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर राष्ट्रीय प्रगति और समृद्धि को भी शुलभ बनाता है।

 

भारतीय परिस्थितियों में भी श्रमिक समस्याओं के उचित समाधान से लेकर औद्योगिक विकास तथा योजनाओं की क्रियान्विति आदि के लिए कुशल प्रबन्ध - क्षमता एवं कुशलता की नितान्त आवश्यकता है।

 

मीडिया के परिप्रेक्ष्य में यदि देखा जाय तो एक कुशल प्रबन्ध पर ही किसी समाचार पत्र / पत्रिका या इलेक्ट्रानिक चैनल की सफलता निर्भर करती है। यही कारण है कि आये दिन कई इलेक्ट्रानिक चैलन टीवी रेडियो तथा प्रिन्ट मीडिया के तहत समाचार पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होते रहते हैं लेकिन कुशल प्रबन्ध न होने के कारण वे अल्पायु को प्राप्त हो जाते हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि किसी मीडिया चैलन के सफल संचालन हेतु कुशल प्रबन्ध का होना अतिआवश्यक है।

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