विज्ञापन और मीडिया उच्च संस्थाएं : डीएवीपी आइएनएस एबीसी |Advertising and Media Higher Institutions

विज्ञापन और मीडिया उच्च संस्थाएं 

Advertising and Media Higher Institutions



विज्ञापन और मीडिया उच्च संस्थाएं

विज्ञापन और मीडिया एक दूसरे के अभिन्न अंग हैं। विज्ञापन मीडिया को वित्तीय संरक्षण देता है तो मीडिया उसके उद्देश्य की पूर्ति करता है। इस रिश्ते को संतुलित बनाए रखने के लिए कुछ संस्थानों की आवश्यकता होती है। हमारे देश में ऐसी कुछ संस्थाओं की स्थापना आजादी से पहले ही हो चुकी थीं। इन संस्थाओं में सरकारी स्वामित्व वाली डीएवीपी और गैर सरकारी आईएनएस तथा एबीसी प्रमुख हैं। यह तीनों संस्थाएं अपने अपने स्तर पर विज्ञापनों के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं और कई मायनों में एक दूसरे की पूरक भी हैं।

 

1 डीएवीपी:

 

डीएवीपी यानी विज्ञापन एवं दृश्य-प्रचार निदेशालय भारत सरकार की एक संस्था है। यह सूचना एवं प्रसारण विभाग के अधीन आती है। इसका मुखिया निर्देशक कहलाता है जो भारतीय सूचना सेवा का वरिष्ठतम अधिकारी होता है। इस संस्था को एक तरह से भारत सरकार की विज्ञापन एजेंसी कहा जा सकता है क्योंकि भारतीय रेल को छोड़ कर सभी केन्द्रीय मंत्रालयों तथा विभागों के विज्ञापन इसी के द्वारा जारी किए जाते हैं। डीएवीपी का जन्म द्वितीय विश्व युद्ध के आरम्भ होने के दौरान तब हुआ माना जाता है जब सरकार ने एक चीफ प्रेस एडवाइजर की नियुक्ति की थी। इस एडवाइजर के अधीन 1941 में एक विज्ञापन सलाहकार की भी नियुक्ति हुई। एक मार्च 1942 से प्रेस एडवाइजर का दफ्तर सूचना एवं प्रसारण विभाग की विज्ञापन शाखा का काम करने लगा। बाद में काम बढ़ जाने पर एक अक्टूबर 1955 को इसका नाम डीएवीवी रख दिया गया और इसे सूचना और प्रसारण विभाग के अधीन एक स्वतंत्र विभाग बना दिया गया।

 

वर्तमान में डीएवीवी में कुल 13 अलग-अलग प्रभाग हैं जो अलग-अलग दायित्व निभाते हैं। बंगलूर और गुवाहाटी में इसके दो क्षेत्रीय कार्यालय और चेन्नई तथा कोलकाता में दो क्षेत्रीय वितरण केन्द्र भी काम कर रहे हैं। इसके अलावा डीएवीपी के पास 35 फील्ड एक्जीविसन यूनिट भी हैंजो देश भर में प्रदर्शनियाँ आदि आयोजित करती हैं।

 

डीएवीपी का प्रमुख उद्देश्य भारत सरकार की मल्टीमीडिया विज्ञापन एजेंसी की तरह कार्य करना है । भारत सरकार और उसके बड़े सभी संस्थानों के विज्ञापन डीएवीपी द्वारा ही जारी किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त डीएवीपी आउटडोर प्रचारप्रदर्शनियों आदि का काम भी करता है । प्रचार सामग्री को मुद्रित करवाना और उसे डाक द्वारा लोगों तक पहुँचाना भी इसका एक कार्य है। यह विभिन्न विभागों के लिए प्रचार सामग्री भी तैयार करवाता है। होर्डिंग्सबैनरपोस्टरपुस्तिकाएंदृश्य माध्यमों के विज्ञापन आदि भी यहीं तैयार करवाता है। डीएवीपी ही भारत सरकार की विज्ञापन नीति को संचालित करता है। इस समय जो विज्ञापन नीति चल रही हैवह 2 अक्टूबर 2007 से लागू की गई थी। इस नीति में कुल 27 अनुच्छेद हैं। इसमें कहा गया है कि डीएवीपी द्वारा विज्ञापन जारी करने का उद्देश्य भारत सरकार की नीतियोंकार्यक्रमों और उपलब्धियों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाना है। विज्ञापन जारी किए जाते समय पत्र पत्रिकाओं की राजनीतिक प्रतिबद्धताओं का ध्यान नहीं रखा जाता। सभी को नियमानुसार विज्ञापन दिए जाते हैं। लेकिन डीएवीपी का मकसद किसी पत्र-पत्रिका को आर्थिक मदद देना नहीं है। वार्षिक पत्रोंस्मारिकाओं और हाउस जर्नल्स को भी विज्ञापन नहीं दिए जाते। राष्ट्रीय अखण्डताएकता और जातीय सद्भाव खराब करने वाली पत्र-पत्रिकाओं को भी विज्ञापन नहीं दिए जाते।

 

विज्ञापन नीति के मुताबिक किसी विज्ञापन को जारी करते समय यह ध्यान रखा जाता है कि वो 30 फीसदी अंग्रेजी, 35 फीसदी हिन्दी और 35 फीसदी क्षेत्रीय या अन्य भाषाओं की पत्र-पत्रिकाओं में बांटा जाए। इसी तरह 15 फीसदी विज्ञापन छोटे अखबारों, 35 फीसदी मध्यम श्रेणी के और 50 फीसदी बड़े अखबारों को दिए जाते हैं। डीएवीपी के मुताविक 25 हजार दैनिक प्रतियों तक के अखबार छोटे, 25001 से 75 हजार तक के मझोले और इससे अधिक प्रतियों वाले अखबार बड़े अखबार माने जाते हैं।

 

डीएवीपी सिर्फ उन्ही पत्र-पत्रिकाओं को मान्यता देता है जो उसके निर्धारित मानकों पर खरे उतरते हैं। इसके लिए साल में दो बार फरवरी अंत और अगस्त अंत में डीएवीपी की मान्यता समिति की बैठक होती है। आवेदन करने वाले पत्र-पत्रिकाओं को निर्धारित फार्म पर जरूरी दस्तावेजों के साथ आवेदन करना होता है। जिनमें आर एन आई सर्टिफिकेटप्रसार के लिए चार्टेड एकाउटेंट अथवा एबीसी का प्रमाण पत्ररेट कार्डपैन नम्बर की प्रतियां आदि शामिल हैं। डीएवीपी उन्ही पत्र-पत्रिकाओं को विज्ञापन जारी करती हैजिनमें सम्पादकीय प्रकाशित होता है। एक बार डीएवीपी द्वारा किसी भी अखबार या पत्रिका की विज्ञापन दरें निर्धारित होने पर उन्हें हर सरकारी विज्ञापन उसी दर पर प्राप्त होता रहता है। हालांकि इन दरों में अखबार का प्रसार बढ़ने घटने के आधार पर संशोधन भी होते रहते हैं।

 

2 आइएनएस :

 

आईएनएस यानी द इण्डियन न्यूज पेपर सोसाइटी भारत में पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशकों की सबसे बड़ी संस्था है। इसका मुख्यालय दिल्ली में है। इसकी स्थापना 27 फरवरी 1939 में दिल्ली में हुई थी । यह मूलतः समाचार पत्र उद्योगों के मालिकों की संस्था है। स्थापना के बाद से इसका मुख्यालय स्टेट्समैन बिल्डिंग में थालेकिन 9 सितम्बर 1953 को हिन्दू के सी आर श्रीनिवासन की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह तय किया गया कि संस्था का अपना निजी कार्यालय भवन होना चाहिए। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए आईएनएस भवन के लिए भूमि आवंटित कर दी और इसी पर तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा 6 अक्टूबर 1956 को वर्तमान रफी मार्ग पर स्थित आई एन एस बिल्डिंग का उद्घाटन हुआ। आज आईएनएस बिल्डिंग पत्र पत्रिकाओं व जन संचार की दुनिया में एक जाना पहचाना नाम है। संस्था का नया भवन मार्च 1985 में तैयार हुआ था ।

 

प्रारम्भ में इसका नाम आईईएनएस यानी 'द इंडियन एण्ड ईस्टर्न न्यूज पेपर सोसाइटीथा। इसने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अखबारी कागज की समस्या के समाधान के लिए सरकार के साथ एक समझौता भी किया था और इसी के प्रयासों से 1947 में पहली भारतीय समाचार एजेंसीप्रेस ट्रस्ट ऑफ इण्डिया (पीटीआई) की स्थापना भी हुई। इसी के प्रयासों से 1948 में आडिट ब्यूरो आफ सर्कुलेशन (एबीसी) की भी स्थापना हुई। वर्तमान में 14 भारतीय भाषाओं के 990 से अधिक दैनिकअर्ध साप्ताहिकसाप्ताहिकपाक्षिक और मासिक पत्र-पत्रिकाएं इसके सदस्य हैंइनमें 143 छोटे, 276 मझोले और 191 बड़े अखबार शामिल हैं।

 

आईएनएस न्यूज प्रिंट से लेकर विज्ञापनमशीनरी के लाइसेंसों से लेकर प्रेस की आजादी के सवाल तक हर मामले में अखबार मालिकों का प्रतिनिधित्व करती है। न्यूज पेपर उद्योग की इस 64 प्रतिनिधि संस्था ने देश में प्रेस की आजादी बरकरार रखने में भी अहम भूमिका निभाई है। इसके प्रमुख उद्देश्य हैं-

 

1- भारत सरकार के मीडिया सम्बन्धी कानूनों का अध्ययन और उन पर राय प्रकट करना । 

2- सदस्यों के व्यवसायिक हितों की रक्षा करनाउनके हित के हर मामले की जानकारी जुटाना । 

3. सदस्यों के बीच नियमित रूप से सहयोग की भावना बनाए रखना और आपसी हितों के टकराव के मामलों में बातचीत से समस्या का समाधान करना ।

 

आईएनएस के सांगठनिक ढांचे में एक कार्यकारिणी होती हैजिसमें अखबार मालिकों के प्रतिनिधियों में से एक अध्यक्षएक उपाध्यक्षएक सह अध्यक्षएक महासचिव और 45 सदस्य शामिल होते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ क्षेत्रीय समितियाँ और उप समितियाँ भी होती हैं। समिति की कार्यकारिणी की नियमित बैठकें होती रहती हैं और यह विज्ञापन एजेंसियों की मान्यता भी तय करती है।

 

विज्ञापन एजेंसियों की मान्यता के लिए आईएनएस एडरवाटाजिंग एजेंसी एसोसिएशन ऑफ इण्डियासे भी सहयोग लेती है। उसके सहयोग के आधार पर यह विज्ञापन एजेंसियों को प्रमाण पत्र देती है। विज्ञापन एजेंसियों को प्रमाणित करने के लिए इसके अपने नियम और शर्तें हैं।

 

आईएनएस विज्ञापनदाताओं और मीडिया के बीच तालमेल का भी कार्य करती है और हर वर्ष एक आईएनएस हैण्डबुक का प्रकाशन करती है। इस हैण्ड बुक में देश के सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं के प्रसार प्रसार क्षेत्रविज्ञापन दरों आदि तमाम चीजों का उल्लेख होता है। विज्ञापनदाताओं और विज्ञापन एजेंसियों को इस हैण्डबुक से अपने उत्पाद के विज्ञापन के लिए हर तरह की जरूरी जानकारियाँ प्राप्त हो जाती हैं। 700 रूपये मूल्य की इस जानकारियों से भरी हैण्ड बुक को सामान्य लोग भी खरीद सकते हैं ।

 

3 एबीसी : 

एबीसी यानी आडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन का जन्म आईएनएस की पहल पर मुम्बई में 1948 में हुआ था। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य समाचार पत्रों और पत्रिकाओं की प्रसार संख्या की वास्तविक गणना करना है। उस समय तक ऐसी गणना का कोई सुचारू तरीका नहीं थापत्र-पत्रिकाओं के खुद के दावों पर पूरी तरह विश्वास नहीं किया जा सकता था। इससे विज्ञापनदाताओं के सामने बड़े भ्रम की स्थिति रहती थी। एबीसी की स्थापना इसी समस्या के समाधान के लिए पत्र मत्रिकाओं के मालिकों की ओर से पहल के बाद हुई ।

 

वर्तमान में इस संस्था के सदस्यों में 411 प्रकाशक, 171 विज्ञापन एजेंसियाँव 50 विज्ञापनदाता शामिल हैं। यह संस्था अपने हर सदस्य के प्रकाशन की वास्तविक प्रसार संख्या की गणना हर 6-6 महीने के बाद करती है। यह जाँच इसके आडिटरों और संस्था के पैनल में शामिल चार्टेड एकाउण्टो द्वारा की जाती है। इस जाँच में पत्र-पत्रिकाओं की कुल प्रकाशित प्रतियोंकुल बिकी प्रतियोंछपाई के खर्चेकागज की खपतबिक्री से प्राप्त राजस्व आदि आंकड़ों के जरिए एबीसी किसी प्रकाशन की वास्तविक प्रसार संख्या घोषित करती है। कई बार आकस्मिक जांच भी की जाती है ।

 

यह संस्था पूर्णतः अव्यावसायिक है और इसके संचालक मण्डल में प्रकाशकों के 8 तथा विज्ञापन एजेंसियों और विज्ञापनदाताओं के 4-4 प्रतिनिधि होते हैं।

 

अभ्यास प्रश्न : 

प्रश्न 1. डीएवीपी को भारत सरकार की विज्ञापन एजेंसी क्यों कहा जाता है? 

प्रश्न 2. डीएवीपी की स्थापना कब हुई थी ? 

प्रश्न 3. डीएवीपी के क्षेत्रीय कार्यालय कहाँ कहाँ हैं? 

प्रश्न 4. डीएवीपी में कार्य विभाजन के आधार पर कुल कितने विंग हैं? (क) 15, (ख) 17, (TT) 13 और (घ) इनमें से कोई नहीं । - 

प्रश्न 5. डीएवीपी ने नई विज्ञापन नीति कब लागू की? 

प्रश्न 6. भाषाई आधार पर डीएवीपी के विज्ञापनों का बंटवारा कैसे होता है? 

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