विज्ञापन प्रबन्धन व उत्पाद आधारित वर्गीकरण |Advertisement Management & Product Based Classification

विज्ञापन प्रबन्धन व उत्पाद आधारित वर्गीकरण

विज्ञापन प्रबन्धन व उत्पाद आधारित वर्गीकरण |Advertisement Management & Product Based Classification
 

विज्ञापन प्रबन्धन व उत्पाद आधारित वर्गीकरण

अब तक आप यह समझ चुके हैं कि आज जनसंचार के क्षेत्र में विज्ञापन की क्या अहमियत हो गई है। विज्ञापन आज व्यवसाय की एक बड़ी आवश्यकता बन गया है इसलिए अब विज्ञापन व्यवस्था के लिए भी उत्कृष्ट श्रेणी के प्रबन्धन की जरूरत बढ़ती जा रही है। जनसंचार के क्षेत्र में

 

विज्ञापन का प्रबन्धन तीन अलग-अलग स्तरों पर होता है।

 

( 1 )- विज्ञापनकर्ता के स्तर पर 

( 2 ) - विज्ञापन एजेंसी के स्तर पर और 

( 3 ) - विज्ञापन प्रस्तुत करने वाले माध्यम के स्तर पर ।

 

यह विज्ञापन की दुनिया के नए प्रबन्धकों की सोच और कल्पना का ही परिणाम है कि आज विज्ञापन व्यवसाय से जुड़े मीडिया और विज्ञापन एजेंसियों को भी अपना खुद का विज्ञापन करना पड़ रहा है। इसे विज्ञापन और मार्केटिंग के अन्तर्सम्बन्धों का बेहतरीन उदाहरण कहा जा सकता है।

 

1 विज्ञापन प्रबन्धन : 

विज्ञापन का महत्व समझने के बाद मन में सहज ही यह जिज्ञासा पैदा होती है कि जनसंचार के इतने महत्वपूर्ण अंग विज्ञापन का प्रबन्धन किस प्रकार होता है। भारत में आरम्भिक दौर के पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञापन के लिए अलग से कोई विशेष प्रबन्धन नहीं होता था। शुरू में तो सम्पादक या प्रकाशक ही विज्ञापनों का कामकाज देखता था लेकिन कम्प्यूटर और संचार कान्ति के दौर के शुरू होते ही विज्ञापन प्रबन्धक का महत्व एकाक बढ़ गया और आज किसी भी मीडिया समूह में विज्ञापन प्रबन्धन को अत्यन्त महत्व दिया जाने लगा है।

 

आज विज्ञापन प्रबन्धन एक कला बन चुका है और मीडिया संस्थानों का सबसे महत्वपूर्ण अंग | विज्ञापन प्रबन्धन का कार्य उपभोक्ता और विज्ञापक (विज्ञापनकर्ता) को एक दूसरे के करीब लाना है और दोनों के ही लाभ के लिए कार्य करना है। आज प्रायः सभी महत्वपूर्ण उद्योगों और व्यवसायों में एक अलग विज्ञापन विभाग होता है। विज्ञापन प्रबन्धक के अधीन इस विभाग में अनेक कर्मी होते हैं। इस विभाग का कार्य अपनी संस्था के उत्पादों को लोकप्रिय बनाने के लिए विज्ञापन योजना का निर्माणविज्ञापन की रचना करवाना और फिर उसे उचित माध्यम के जरिए उपभोक्ताओं तक पहुँचाना होता है।

 

इस कार्य में विज्ञापन एजेंसी का सहयोग भी उसे लेना पड़ता है। विज्ञापन एजेंसी विज्ञापनकर्ता और विज्ञापन को प्रसारित करने वाले माध्यम के बीच की कड़ी होती है। विज्ञापन एजेंसी ही विज्ञापन की कापी तैयार करती हैजिसे विज्ञापनकर्ता की सहमति के बाद प्रकाशन या प्रसारण आदि के लिए उचित माध्यम में जारी किया जाता है। विज्ञापन एजेंसी का महत्व विज्ञापन की दुनिया में किसी से कम नहीं है। हाँलाकि प्रारम्भ में अब से लगभग 160 वर्ष पूर्व विज्ञापन एजेंसियों का कार्य विज्ञापनकर्ता के लिए उसके इच्छित अखबार में विज्ञापन के लिए स्थान उपलब्ध करवाना ही होता था । तब विज्ञापन एजेंसी वाले अपनी ओर से अखबारों में स्थान खरीद लेते थे । फिर उस स्थान पर छापने के लिए विभिन्न उत्पादकों आदि से मनचाही कीमत लेकर उस स्थान पर उनका विज्ञापन प्रकाशित करवा देते थे। लेकिन आज विज्ञापन एजेंसी की भूमिका बहुत ही बदल गई है। अब विज्ञापन एजेंसी सिर्फ विज्ञापन तैयार करने या उनके छपने अथवा प्रसारित होने का स्थान आदि ही तय नहीं करती बल्कि अब वे विज्ञापन के लिए कला और सृजन पक्ष के साथ-साथ विज्ञापन अभियान की रणनीति बनानेउनके प्रभाव का अध्ययन करने तथा प्रतिस्पर्धी विज्ञापनकर्ता की कमजोरियों को चिन्हित कर उनके आधार पर अपने क्लाइंट के विज्ञापन तैयार करने और विज्ञापन अभियान चलाने का भी काम करने लगी हैं। आज हमारे देश में भी ऐसी विज्ञापन एजेंसियों की कमी नहीं रह गयी है जिसका कारोबार बड़े-बड़े मीडिया समूहों से भी अधिक बड़ा है।

 

विज्ञापन एजेंसी का प्रबन्धन अब पेशेवरों के हाथ में आ गया है। प्रायः एक औसत आकार वाली विज्ञापन एजेंसी में मुख्य प्रबन्धक के अलावा ग्राहक सेवासृजनउत्पादनमार्केटिंग और एकाउंट विभाग आदि विभाग होते हैं। जिनमें एजेंसी के आकार के अनुसार कर्मचारी तैनात होते हैं। ग्राहक सेवा विभाग में एजेंसी के अलग-अलग विज्ञापनदाताओं ( क्लाइंट) के लिए अलग-अलग कर्मचारी होते हैं जो अपने-अपने विज्ञापनदाता के साथ उसकी जरूरतों के मुताबिक सामंजस्य बनाए रखते हैं। सृजन विभाग विज्ञापन का संदेश या उस की कॉपी तैयार करता है। इस विभाग में कॉपी राइटरविजुवलाइजरआडियो-वीडियो यूनिट आदि होते हैं। उत्पादन विभाग में विज्ञापन को तैयार किया जाता है। मसलन यदि किसी टीवी विज्ञापन की 50 प्रतियां तैयार होनी हैं तो सृजन विभाग द्वारा तैयार और विज्ञापनदाता द्वारा स्वीकृत मास्टर कॉपी से इन्हें तैयार कराने का काम उत्पादन विभाग कराता है। कुल मिला कर विज्ञापन एजेंसी का प्रबन्धन एक चुनौती पूर्ण कार्य है क्योंकि इसमें विज्ञापनदाता और विज्ञापन को प्रकाशित-प्रसारित करने वाले माध्यमदोनों से ही ताल-मेल रखना होता है।

 

विज्ञापन प्रबन्धन की कड़ी का तीसरा और महत्वपूर्ण घटक वे माध्यम हैंजिनमें विज्ञापन का प्रस्तुतिकरण होता है अर्थात पत्र-पत्रिकाएंटीवीरेडियो आदि जो किसी विज्ञापन को प्रकाशित या प्रसारित कर उपभोक्ताओं तक पहुँचाते हैं। चौथा घटक नियंत्रक संस्थाएं होतीं हैं। 


आधुनिक विज्ञापन प्रबन्धन मुख्यतः निम्न चार घटकों पर आधारित होता है-

 

1. विज्ञापनकर्ता 

2. विज्ञापन एजेंसी 

3. माध्यम (माध्यम प्रिंट मीडियाइलेक्ट्रानिक मीडिया) 

4. नियंत्रक संस्थाएं

 

नियंत्रक संस्थाएं भी विज्ञापन प्रबन्धन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये मुख्यतः दो तरह की होती हैं। 

(1) सरकारी नियंत्रक संस्थाएं और 

(2) प्रतिस्पर्धी नियंत्रक संस्थाएं ।

 

सरकारी नियंत्रक संस्थाएं विज्ञापन रणनीतिउत्पाद या सेवाओं के स्तरउनके विज्ञापन से समाज पर पड़ने वाले प्रभावविज्ञापन के सामान्य नियमों और आचार संहिता आदि बनाने का कार्य करती हैं जबकि प्रतिस्पर्धी संस्थाएं विज्ञापनों की भाषा और उनके द्वारा प्रतिस्पर्धी के व्यवसाय या सेवा को क्षति पहुँचाने आदि के प्रयासों पर नियंत्रण रखती हैं। विज्ञापनकर्ताविज्ञापन एजेंसी और विज्ञापन माध्यम अर्थात मीडिया संस्थानइन तीनों में ही विज्ञापन विभाग होते हैं लेकिन तीनों का कार्य और कार्यशैली अलग-अलग होती है।

 

विज्ञापनकर्ता का विज्ञापन विभाग अपने उत्पादों की मार्केटिंग के दृष्टिकोण से सही विज्ञापन तैयार करवाने और उसे सही माध्यम में सही समय पर प्रसारित करने का कार्य करता है। जबकि विज्ञापन एजेंसी का विज्ञापन विभागनए विज्ञापनकर्ता खोजनेविज्ञापनकर्ताओं की जरूरत के मुताबिक विज्ञापन तैयार करने और उसे सही समय पर सही माध्यम से प्रसारित करने का काम करता है। माध्यम अथवा मीडिया उस विज्ञापन का प्रस्तुतिकरण करता है। इसलिए मीडिया संस्थान के विज्ञापन विभाग की जिम्मेदारियाँ भी उसी तरह की होती हैं। मीडिया के विज्ञापन विभाग के कार्य क्षेत्र को मुख्यतः चार भागों में बांटा जा सकता है।

 

• विज्ञापन एकत्र करने वाला विभाग 

• विज्ञापनों को सही तरह से प्रस्तुत करने वाला विभाग 

 विज्ञापनों की संख्या और विज्ञापनों के जरिए आय बढ़ाने के प्रयास करने वाला विभाग और मीडिया समूह की खुद की ब्रांड इमेज को विकसित करने वाला विभाग । 

• इसके अलावा विज्ञापन भुगतान की वसूली आदि के लिए भी कहीं कहीं अलग लोगों को जिम्मेदारी दी जाती है।

 

विज्ञापन एकत्र करने वाले विभाग में मुख्यतः एजेंसियोंविज्ञापनदाताओं और सरकारी विभागों से सम्पर्क रख कर विज्ञापन प्राप्त करने वाले प्रतिनिधि होते हैं। प्रसार क्षेत्र के महत्वपूर्ण स्थानों में भी इस तरह के प्रतिनिधि रखे जाते हैं। मीडिया समूह द्वारा किसी नई योजनाकिसी नए अवसर या किसी विशेष आयोजन आदि के मौकों पर भी ये प्रतिनिधि ही विज्ञापनदाताओं को प्रेरित कर उनसे विज्ञापन प्राप्त करते हैं।

 

विज्ञापनों की संख्या और उनके जरिए मीडिया समूह की आय बढ़ाने वाले विभाग का महत्व अब दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। यह विभाग विज्ञापन हासिल करने के लिए नई-नई रणनीतियाँ बनाता रहता है। यह विभाग ही तय करता है कि मीडिया की संपादकीय सामग्री का लक्ष्य समाज कौन सा वर्ग या क्षेत्र होना चाहिए। जिससे अधिक से अधिक विज्ञापनदाता प्रभावित हो सकें। अनेक मीडिया संस्थानों में अब इस विभाग को पूर्णतः अलग इकाई बना दिया गया हैं। इलेक्ट्रानिक मीडिया में भी यह एक अलग विभाग होने लगा है।

 

मीडिया संस्थानों के विज्ञापन विभाग की चौथी इकाई अपेक्षाकृत नई है। इस इकाई का उद्देश्य मीडिया के अपने उत्पाद को विज्ञापनदाताओं के सम्मुख एक उत्कृष्ट उत्पाद के रूप में प्रस्तुत करना है। यह विभाग अपने विज्ञापनदाताओं का फीड बैक भी लेता रहता है और अनेक प्रकार के सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजन आदि के जरिए अपने मीडिया समूह की छवि को भी चमकाता रहता है। इस तरह आप देख सकते हैं कि विज्ञापन के तीनों प्रमुख घटकोंविज्ञापनकर्ताविज्ञापन एजेंसी और विज्ञापन माध्यम या मीडिया में विज्ञापन प्रबन्धन के तौरतरीके एक दूसरे से काफी अलग होते हैं। तीनों ही विज्ञापन के कार्य से जुड़े होने के बावजूद अलग-अलग तरीके से अपनी भूमिकाएं निभाते हैं।

 

2 उत्पाद के आधार पर विज्ञापनों का वर्गीकरण : 

आज हमारे देश में विज्ञापन व्यवसाय बहुत बड़ा व्यवसाय हो चुका है। हमारे देश में आज विज्ञापन का जितना बड़ा बाजार बन गया है उतना दुनिया के कुछ ही बड़े देशों में हैं। देश में विज्ञापनकर्ताओं की जरूरतों के मुताबिक तरह तरह के विज्ञापनों का निर्माण व प्रस्तुतिकरण हो रहा है। इन अलग-अलग प्रकार के विज्ञापनों को सुविधा की दृष्टि से कुछ श्रेणियों में बाँट दिया गया है। चूंकि विज्ञापन का मुख्य लक्ष्य उत्पाद अथवा सेवा के व्यापक प्रसार-प्रचार से जुड़ा होता है इसलिए विज्ञापनों को मुख्य रूप से उत्पाद के आधार पर ही वर्गीकृत किया जाता है। उत्पाद के आधार पर विज्ञापन मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं -

 

1. उपभोक्ता विज्ञापन- 

इस श्रेणी में वे विज्ञापन आते हैं जो किसी उपभोक्ता वस्तु के बारे में होते हैं। यह विज्ञापनों की सबसे व्यापक और लोकप्रिय श्रेणी है। इसका लक्ष्य समूह भी बहुत बड़ा होता है। इस तरह के विज्ञापनों के जरिए उपभोक्ता को अपनी जरूरत की चीजों के गुणदोष की जानकारी मिलती है। किसी एक उपभोक्ता उत्पाद के अनेक ब्रांडो मे से वह अपनी पसंद का ब्रांड इन विज्ञापनों से मिली जानकारी के आधार पर चुन सकता है। इस तरह के विज्ञापन बेहद आकर्षक और चुटीलें होते हैं। उनकी अपील उपभोक्ता को अकर्षित करती है। टूथपेस्टतेलडिओरेंटहेल्थटानिकबिस्कुटपैनमोबाइलजूतेकपड़ेसाबुनडिटर्जेंट पाउडरबीमा योजनाओं और अन्य उपभोक्ता उत्पादों से जुड़े विज्ञापन इस श्रेणी में आते हैं।

 

2. औद्योगिक विज्ञापन: 

इस तरह के विज्ञापन किसी वस्तु या उत्पादन प्रक्रिया में काम आने वाली वस्तुओं से जुड़े होते हैं। उदाहरणार्थ किसी खास तरह के सिथेंटिक कपड़े के निर्माण में काम आने वालों कच्चे माल या खनन उद्योग में इस्तेमाल होने वाली खास मशीनरी का विज्ञापन । चूंकि इस तरह के विज्ञापन का सामान्य उपभोक्ता से सीधा सम्बन्ध नहीं होता इसलिए इस तरह के विज्ञापन लोकप्रिय मीडिया के बजाय खास व्यापारिक प्रकाशनों या जर्नल्स आदि में ही छपते हैं। अनेक बार ऐसे विज्ञापन डाक द्वारा सीधे सम्भावित उपयोगताओं तक भी भेज दिए जाते हैं।

 

3. वित्तीय विज्ञापन : 

इस तरह के विज्ञापन प्रायः वित्तीय संस्थाओं द्वारा जारी किए जाते हैं। बैंकबीमा कंपनियोंसार्वजनिक उपक्रमों के इस प्रकार के विज्ञापन प्रायः इन संस्थाओं की वित्तीय स्थिति और वार्षिक उपलब्धियों आदि के बारे में भी जानकारी देते हैं। कंपनियां भी अपने शेयर होल्डर्स को अपनी उपलब्धियां बताने के लिए इस प्रकार के विज्ञापन जारी करती हैं। इस तरह के विज्ञापन ले आउट और सजावट की दृष्टि से बहुत आकर्षक नहीं होते और उनमें लिखित सामग्री की भरमार होती है।

 

4. सरकारी विज्ञापन : 

इस श्रेणी में वे विज्ञापन आते है। जो केन्द्र या राज्य सरकारों द्वारा अथवा सरकार के अधीन आने वाली संस्थाओंनिगमों व अन्य विभागों से सम्बन्धित विज्ञापन होते हैं। इस तरह के विज्ञापनों की भी दो श्रेणियाँ होती हैं। एक वे विज्ञापन होते हैं जो सीधे-सीधे सरकार या विभागों की उपलब्धियों का प्रचार करते हैं। दूसरे वे विज्ञापन होते हैं जो लोगों तक जरूरी सूचनाएं पहुँचाते हैंउन्हें गुमराह होने से बचाते हैं। रोगोंबीमारियोंउपभोक्ता अधिकारोंकर योजनाओं आदि से जुड़े विज्ञापन इसी तरह के होते हैं।

 

विज्ञापनों का एक वर्गीकरण विज्ञापनदाताओं के आधार भी किया जाता है। इस आधार पर विज्ञापनों कोव्यक्तिगतफुटकरथोकसरकारी और सहकारी विज्ञापन जैसी श्रेणियों में बांटा गया है । तीसरा वर्गीकरण प्रस्तुतीकरण के आधार पर होता है। इसमें वर्गीकृतप्रायोजित परिशिष्टतथा सजावटी विज्ञापन आदि श्रेणियाँ होती हैं। विज्ञापनों को उनके प्रसार क्षेत्र की जरूरत के मुताबिक भी क्षेत्रीय विज्ञापनराष्ट्रीय विज्ञापनबहुराष्ट्रीय विज्ञापन या स्थानीय विज्ञापन आदि श्रेणियों में बांटा जाता है। वर्गीकरण भले ही कोई भी हो यह स्पष्ट है कि हर विज्ञापन का एक ही उद्देश्य होता है और वह है अपने संदेश को लक्ष्य समूह तक पहुँचाना।

 

अभ्यास प्रश्न : 

प्रश्न 1. जन संचार के क्षेत्र में विज्ञापन का प्रबन्धन कितने स्तरों पर होता हैप्रश्न 2. विज्ञापन के क्षेत्र में प्रबन्धन का महत्व कब से बढ़ना शुरू हुआ ? 

प्रश्न 3. विज्ञापन एजेंसी क्या कार्य करती हैं? 

प्रश्न 4. प्रारम्भिक दिनों में विज्ञापन एजेंसी क्या कार्य करती थीं? 

प्रश्न 5. विज्ञापन एजेंसी का ग्राहक सेवा विभाग क्या होता है? 

प्रश्न 6. उपभोक्ता आधुनिक विज्ञापन प्रबन्धन का एक घटक है। यह कथन सही है या गलत?

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