वित्त आयोग की भूमिका | Role of Finance Commission in Hindi

 वित्त आयोग की भूमिका

वित्त आयोग की भूमिका | Role of Finance Commission in Hindi


वित्त आयोग की भूमिका (Role of Finance Commission) 

संघात्मक शासन व्यवस्था में केन्द्र और उसके राज्यों के बीच राजस्व वितरणइकाइयों को अनुदान देने के संबंध में आवश्यक सिफारिशों को देने तथा उचित धरातल प्रस्तुत करने के लिए वित्त आयोग जैसी संस्था की स्थापना की जाती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 के अन्तर्गत वित्त आयोग संबंधी प्रावधान किया गया है। इस आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। प्रारम्भ में संविधान के लागू होने के दो वर्ष बाद और तत्पश्चात् प्रति पांचवें वर्ष अथवा जरूरत पड़ने पर इससे भी पूर्व वित्त आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था है। आयोग में एक अध्यक्ष की नियुक्ति होने से आयोग के कार्य में अविच्छिन्नता आ जाती है। प्रत्येक आयोग अपने पूर्ववर्ती आयोग के कार्य से लाभ उठाता है। अनुच्छेद 280 के अनुसार वित्त आयोग मुख्यतः निम्नलिखित विषयों पर अपना प्रतिवेदन राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता हैं:

 

(क) संघ और राज्यों में विभाज्य आय के वितरण का आधार, 

(ख) संघ और राज्यों के बीच होने वाले वित्तीय समझौते जारी रखना या उनमें आवश्यक परिवर्तन-संशोधन करना, 

(ग) संचित निधि में से राज्यों को दिए जाने वाले अनुदान के सिद्धान्तों का निर्धारण और 

घ) देश के वित्तीय हित में राष्ट्रपति द्वारा सौंपे गए किसी अन्य विषय पर विचार करना

 

  • समय-समय पर वित्त आयोग की नियुक्ति की उपरोक्त संवैधानिक व्यवस्था का संभवतः औचित्य यह है कि अर्थव्यवस्था में परिवर्तन होने पर संघ तथा राज्यों के वित्तीय संबंधों में परिवर्तन आना अनिवार्य है और इन परिवर्तनों को ध्यान में रखकर समायोजन किया जाना चाहिए। संघात्मक सरकार में संघ तथा राज्यों के परस्पर संबंध परिवर्तनशील हैं और जीवन की समस्याओं को भी सदा के लिए एक ही बार हल नहीं किया जा सकता। 
  • वित्त आयोग नवीन परिवर्तनों के संदर्भ में समायोजन का श्रेष्ठ साधन है। संविधान के संदर्भ में वित्तीय आयोग का अधिनियम 1951 में पारित किया गया जो कि वित्त आयोग की निश्चितता के बारे में था। इसका अध्यक्ष उस व्यक्ति को बनाया जाता है जोकि सार्वजनिक मामलों में दिलचस्पी रखता हो तथा इसके साथ ही जिस व्यक्ति को सार्वजनिक जीवन का पर्याप्त अनुभव प्राप्त हो। दूसरे सदस्यों में से एक अन्य सदस्य ऐसा होना चाहिए जो कि न्यायालय में जज या निर्णायक के रूप में रहा हो। एक ऐसा व्यक्ति भी होना चाहिए जिसे वित्तीय क्षेत्र में पारंगतता प्राप्त हो चौथा सदस्य ऐसा व्यक्ति होता है जिसे अर्थशास्त्र का ज्ञान हो। इस प्रकार अर्थ के ज्ञातागणितन्याय एवं सार्वजनिक क्षेत्र में प्रसिद्ध व्यक्तियों का यह आयोग बनाया जाता है।

 

  • आयोग संघ एवं राज्यों के बीच राजस्व के वितरण जैसे जटिल किन्तु महत्वपूर्ण प्रश्नों से संबंध रखता है। वित्त आयोग से यह अपेक्षा की जाती है कि वह एक ओर तो राज्यों में परस्पर दूरी और दूसरी ओर केन्द्रीय और राज्यों के बीच होने वाले विवादों के निपटारे में निर्णायक भूमिका अदा करेगा। दूसरे शब्दों में आयोग का प्रमुख कर्तव्य आयकरण के प्रमुख साधनों को वितरित करने हेतु तथा राज्यों के मध्य अपना प्रतिवेदन या फैसला प्रस्तुत करने का है। एक व्यवस्था यह भी है कि राष्ट्रपति अन्य मामलों जैसे वित्त आदि के विषय में हस्तक्षेप कर सकता है। किन्तु आयकर के संबंध में उसकी सिफारिशों का अध्ययन करने के बाद राष्ट्रपति अपने आदेश द्वारा वितरण की प्रणाली एवं प्रतिशत भाग निर्धारित करता है। इस कार्य में संसद प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लेती। वित्त आयोग एक गैर-राजनीतिक संस्था है। इसलिए धारा 280 के माध्यम से वित्त आयोग को यह अधिकार है कि वह राज्यों के बीच आयकर वितरित करेसाथ ही राज्यों को दी जाने वाली सहायता का निर्धारण करे किन्तु उल्लेखनीय यह है कि आयोग राज्यों की आय के सम्पूर्ण साधनों के संबंध में अपनी सिफारिश प्रस्तुत नहीं कर सकता। विकास कार्यों के संबंध में साधनों का वितरण केन्द्रीय सरकार योजना आयोग के परामर्श से करती है। राज्यों को विकास कार्यों के संबंध में दी जाने वाली सहायता की मात्रा निश्चित करने में योजना आयोग का अधिक हाथ रहता है। योजना आयोग के इस अधिकार के कारण वित्त आयोग को यह अधिकार है कि वह योजना आयोग द्वारा निर्धारित वित्तीय सहायता की मात्रा कम कर सकता है किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से वह ऐसा नहीं कर पाता है। वित्त आयोग से संबंधित धारा 280 आयोग के कार्यों को अधिक विस्तृत अधिकार देती है। इसके द्वारा आयोग को यह अधिकार दिया गया है कि सुदृढ़ वित्त की स्थापना के लिए वित्त आयोग समय-समय पर अपनी सिफारिशों के संबंध में पूछताछ कर सकता है।

 

  • संविधान की धारा 203 वित्त आयोग को यह अधिकार देती है कि वित्त आयोग वे सिद्धान्त निर्धारित करें जिनके आधार पर केन्द्र राज्यों को अनुदान देगा वित्त आयोग के सामने भी महत्वपूर्ण समस्याओं में संविधान की धारा 275 के अन्तर्गत विभाजन योग्य केन्द्रीय कोष और राज्यों के दिए जाने वाले अनुदान के विभाजन के सिलसिले में नियम और सिद्धान्त तय करना था । संविधान में कर वितरण की कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं हैइसलिए वित्त आयोग पर वितरण के सिद्धान्त निश्चित करने का दायित्व है। यद्यपि संघीय व्यवस्था की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक संघीय इकाई की वित्तीय आवश्यकताएं संवैधानिक व्यवस्था द्वारा दूर की जानी चाहिए। यही समस्या चौथे वित्त आयोग के समक्ष रखी गई थी। जिसके अन्तर्गत यह कहा गया कि राज्यों के बीच एक वितरण के सामान्य सिद्धान्त संविधान में व्यवस्थित किए जाने चाहिए। भारतीय संविधान में वित्त के उचित वितरण के लिए और केन्द्रीय सरकार का वित्त पर समुचित नियंत्रण बनाए रखने के लिए वित्त आयोग को बंटवारे की सिफारिश करने की शक्ति प्रदान की गई है। इस दृष्टि से वित्त आयोग का कार्यक्षेत्र बहुत व्यापक दिखाई देता हैकिन्तु उल्लेखनीय है कि विकास कार्यों के लिए साधनों का वितरण केन्द्रीय सरकार योजना आयोग के परामर्श से करती है।

 

  • यद्यपि वित्त आयोग योजना द्वारा निर्धारित साधनों को कम कर सकता है किन्तु व्यवहार में वह ऐसा नहीं कर पाता है। संविधान लागू करने के बाद से अब तक दस वित्त आयोग गठित किए जा चुके हैं जिनकी विविध सिफारिशों को लागू भी किया गया है। यद्यपि वित्त आयोग प्रावधानों के परिवर्तन की सिफारिश नहीं कर सकतातथापि केन्द्र राज्य वित्तीय संबंधों के क्षेत्र में आयोग का प्रभाव बहुत अधिक हैक्योंकि संविधान केवल यह बताता है कि कौन कर लगाएगा और कौन कर उगाहेगालेकिन यह नहीं बताता है कि उनको किस प्रकार वितरित किया जाएगा और वितरण संबंधी सिफारिश वित्त आयोग द्वारा ही की जाती है। साधारणतया वित्त आयोग की सभी सिफारिशें स्वीकार कर ली जाती हैं।

 

  • स्पष्ट है कि वित्त आयोग का स्तर दीवानी न्यायालय जैसा है जो अपनी प्रक्रिया को स्वयं निर्धारित करता है। यह आयोग भारत सरकार और राज्य सरकारों के वित्तीय संसाधनों को नियमितसमन्वित तथा एकीकृत करने का महत्वपूर्ण संगठन है। इसकी कार्य प्रणाली की यह विशेषता रही है कि यह अपनी सिफारिशों के निर्धारण के लिए केन्द्र सरकार योजना आयोगराज्य सरकारों के अधिकारियों और मंत्रियों पर निर्भर रहा है आयोगों ने अपने प्रतिवेदन नागरिकों तथा विशिष्ट संगठनों के प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त के आधार पर प्रस्तुत किए हैं। सांविधानिक दृष्टि से वित्त आयोग एक परामर्शदात्री संस्था है जिसकी सिफारिशों को मानने के लिए राष्ट्रपति बाध्य नहीं है लेकिन अब तक का इतिहास बताता है कि वित्त आयोग की सिफारिशों को अधिकांश मामलों में स्वीकार करने की परम्परा का निर्वाह हुआ है। 


वित्त आयोग की सिफारिशों को क्रियान्वयन की दृष्टि से तीन वर्गों में रखा जा सकता है:

 

(1) वे प्रस्ताव जिनका क्रियान्वयन राष्ट्रपति के आदेश के अन्तर्गत होता है, 

(2) वे प्रस्ताव जो कार्यपालिका के आदेशों के संदर्भ में क्रियान्वित किए जाते हैंएवं 

(3) वे प्रस्ताव या सिफारिशें जिनका क्रियान्वयन संसद द्वारा निर्मित अधिनियम के आधार पर किया जाता है।

 

  • केन्द्र राज्य वित्तीय संबंधों में वित्त आयोग की व्यवस्था संविधान निर्माताओं के बड़े विवेक की परिचायक है। दोनों सरकारों के बीच जटिल वित्तीय समस्याओं को सुलझाने वाले एक सांविधानिक उपकरण के रूप में वित्त आयोग की भूमिका बहुत ही प्रमुख रही है। आज की वित्त वितरण व्यवस्था पूर्णतः वित्त आयोगों की सिफारिशों पर ही आधारित है। आयोग के कार्य का मुख्य महत्व इस बात में है कि वह संघात्मक शासन पद्धति की वित्त व्यवस्था को स्थिर बनाने के लिए निष्पक्ष तथा तटस्थ दृष्टिकोण अपनाता है। वित्त वितरण के प्रश्न को संघ तथा राज्य के मध्य अन्य राजनीतिक विवादों से दूर रखने का श्रेय इसी को प्राप्त है। वस्तुतः वित्त आयोग राज्यों तथा संघ के मध्य एक ऐसे प्रत्यावरोध का कार्य करता है जो एक ओर निरंतर अधिक वित्त की मांग करने वाले राज्यों में राजनीतिक दबाव से संघ की रक्षा करता हैदूसरी ओर आवश्यकताग्रस्त राज्यों को यथासंभव सहायता प्रदान के लिए संघ को विवश करता है। इस प्रकार संघ के वित्त आयोग की सिफारिशों के विरूद्ध जाना असंभव सा है।

 

  • वित्त आयोगों की सिफारिशों के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि संघ तथा राज्यों के वित्तीय संबंधों को अत्यधिक प्रभावित करने तथा जटिल वित्तीय समस्याओं को सुलझाने वाले एक सांविधानिक अधिकरण के रूप में आयोग ने महत्वपूर्ण योगदान किया है। भारतीय संदर्भ में वित्त वितरण व्यवस्था पूर्णतः इन्हीं सिफारिशों पर आधारित है। वित्त आयोग की व्यवस्था करके भारतीय संविधान निर्माताओं ने उन कमियों को पूर्णतः दूर रखने का प्रयास किया जो अन्य संघात्मक संविधानों में वित्तीय उपबंधों के संबंध में पाई जाती हैं। वित्त आयोग के अस्तित्व में आने से संघ और राज्यों के संबंध परस्पर सहयोग की भावना पर आधारित रहे हैं। भारतीय वित्त आयोग ने एक और संघात्मक शासन पद्धति की वित्त व्यवस्था को स्थिर बनाने के लिए एक निष्पक्ष तथा तटस्थ दृष्टिकोण अपनाया है तो दूसरी ओर वित्त आयोग ने संघ एंव राज्यों के मध्य वित्त विवरण के प्रश्न को राजनीतिक विवादों से दूर रखने का कार्य किया है। अतः यह कहा जा सकता है कि वित्त आयोग का महत्व निर्विवाद है।

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