वित्तीय प्रबंधन का क्षेत्र अथवा कार्य | वित्तीय प्रबंध का महत्त्व |Functions of Financial Management in Hindi

 वित्तीय प्रबंधन का क्षेत्र अथवा कार्य (Scope or Functions of Financial Management )

वित्तीय प्रबंधन का क्षेत्र अथवा कार्य | वित्तीय प्रबंध का महत्त्व |Functions of Financial Management in Hindi
 

वित्तीय प्रबंधन का क्षेत्र अथवा कार्य

एक व्यावसायिक उपक्रम में वित्तीय प्रबंध को कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य करने होते हैंजिन्हें वित्त के कार्यों के रूप में जाना जाता है। इन्हें वित्त कार्य के क्षेत्र अथवा वित्त कार्य की विषय वस्तु के रूप में भी जाना जाता है। वित्तीय प्रबंध के कार्यों तथा उनके नामों के बारे में वित्तीय विशेषज्ञ एक मत के नहीं हैं। विभिन्न विशेषज्ञ वित्तीय प्रबंध के विभिन्न कार्य बताते हैं तथा एक ही कार्य को विभिन्न विशेषज्ञ विभिन्न नामों से करते हैंउदाहरण के लिए कुछ विशेषज्ञों ने वित्तीय प्रबंधकों द्वारा किये जाने वाले निर्णयों के अनुसार इनके कार्यों को विनियोग निर्णय (Investment Decisions ), वित्त प्रबंधन निर्णय (Financing Decisions) तथा लाभांश नीति निर्णय (Dividend Policy Decision) का नाम दिया है तथा कुछ अन्य ने वित्तीय नियोजनसंपतियों का प्रबंध कोषों का संग्रहण तथा विशेष समस्या का समाधान नाम दिया है। कुछ विशेषज्ञों ने वित्तीय प्रबंध के कार्यों को आवर्ती वित्त कार्यों (Recurring Finance Functions ), अनावर्ती वित्त कार्यों (Net-recurring Finance Functions) तथा नैत्यक कार्यों (Routine Functions) में बाँट कर इनका वर्णन किया है। 


हम यहाँ पर सुविधा की दृष्टि से इन तीनों प्रकार के वित्त कार्यों का वर्णन कर सकते हैं :

 

आवर्ती वित्त कार्य (Recurring Finance Functions)

 

आवर्ती वित्त कार्य वे होते हैं जो फर्म के कुशल संचालन तथा फर्म के उद्देश्य की पूर्ति हेतु निरन्तर पूरे किये जाते हैं । कोषों का नियोजन एवं संग्रहणकोषों एवं आय का आवंटनकोषों का नियंत्रण तथा वित्त कार्य का संस्था के अन्य कार्यों से समन्व आवर्ती वित्त कार्य माने जाते हैं। 

आवर्ती वित्त कार्यों का संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार है :

 

1. कोषों का नियोजन (Planning for Funds ) : 

एक वित्तीय प्रबंधक का सर्वप्रथम कार्य व्यवसाय के लिए चाहेवह नया हो अथवा पुरानाएक सुदृढ़ वित्तीय योजना तैयार करना होता है। वित्तीय योजना का तात्पर्य उस योजना से होता है जिसके द्वारा व्यवसाय के वित्तीय कार्यों का अग्रिम निर्धारण किया जाता है। फर्म की वित्तीय योजना का निर्धारण इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे फर्म के कोषों का समुचित उपयोग हो सके तथा उनकी तनिक सी भी बर्बादी न हो। वित्तीय योजना के निर्माण के लिए फर्म के दीर्घकालीन तथा अल्पकालीन वित्तीय उद्देश्यों का निर्धारण करना होता है। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न वित्तीय नीतियों एवं व्यवहारों की रचना की जाती है। वित्तीय नियोजन के लिए निम्न नीतियों का निर्माण किया जाता है : 

(अ) पूँजी की मात्रा तथा अवधि को निर्धारित करने वाली नीतियाँ, 

(ब) पूँजीकरण को निर्धारित करने वाली नीतियाँ: 

(स) कोष प्राप्त करने के लिए विभिन्न स्रोतों के चुनाव को निर्धारित करने वाली नीतियाँ 

(द) स्थायी तथा चालू संपत्तियों के विनियोजन से संबंधित नीतियाँ तथा 

(य) आय के निर्धारण एवं वितरण के संबंध में नीतियाँ

 

2. कोष का संग्रहण (Raising of Funds) : 

वित्तीय प्रबंधक को वित्तीय योजना के निर्माण के बाद उसमें निर्धारित साधनों से कोषों का संग्रहण करना आवश्यक है। व्यवसाय की स्थापना के समय दीर्घकालीन कोषों की प्राप्ति के लिए अंशों का निर्गमन किया जाता है तथा इसके लिए अभिगोपकों की सेवाओं का प्रयोग किया जाता है। पूर्व - स्थापित प्रतिष्ठित उपक्रम की स्थिति में वित्तीय प्रबंधक को यह निर्णय लेना होता है कि दीर्घकालीन वित्तीय साधन अंशों के निर्गमन से प्राप्त किए जायें अथवा ऋणपत्रों द्वारा अथवा दोनों से वित्तीय प्रबंधक यह निर्णय उपक्रम की लाभदायकतावर्तमान वित्तीय स्थितिपूँजी एवं मुद्रा बाजार की स्थितिवित्तीय संस्थाओं की सहायता करने की नीति आदि बातों को ध्यान में रखकर कर सकता है। वित्तीय प्रबंधक को विभिन्न स्रोतों से पूँजी प्राप्त करने के वित्तीय परिणामों पर विचार कर के दी हुई परिस्थितियों में श्रेष्ठ साधन का चुनाव करना चाहिए तथा उस साधन से अनुकूलतम शर्तों पर वित्त प्राप्त करना चाहिए। वित्तीय प्रबंधक को चुने गये स्रोत से वित्त प्राप्त करने के लिए आवश्यक समझौता करना चाहिए।

 

3. कोषों का आबंटन (Allocation of Resources ) :

 वित्तीय प्रबंधक का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य विभिन्न संपतियों में साधनों का आबंटन करना होता है। साधनों के आबंटनों में प्रतियोगी प्रयोगोंलाभदायकताअनिर्वायतासंपत्तियों के प्रबंध तथा फर्म के समग्र प्रबंध को ध्यान में रखा जाना चाहिए यद्यपि स्थायी संपत्तियों का प्रबंध करने की जिम्मेदारी वित्तीय प्रबंधक की नहीं होती है परन्तु उसे उत्पादन प्रबंधक को स्थायी संपत्तियों की व्यवस्था करने में सहायता पहुँचानी चाहिए। वित्तीय प्रबंध ही उत्पादन प्रबंधक को पूँजी परियोजनाओं के विश्लेषण तथा फर्म के पास उपलब्ध पूँजी की जानकारी देती है। वित्तीय प्रबंधक रोकड़ प्राप्यों तथा सामग्री के कुशल प्रशासन के लिए जिम्मेदार होता है। वित्तीय प्रबंधक को चालू संपतियों में कोषों का विनियोजन करते समय लाभदायकता तथा तरलता में उचित समायोजन करना होता है।

 

4. आय का आबंटन (Allocation of Income) : 

वित्तीय प्रबंधक को ही फर्म की वार्षिक आय विभिन्न प्रयोगों में आबंटित करनी होती है। फर्म की आय को विस्तार कार्यों के लिए रोका जा सकता है अथवा इसे देय ऋणों के भुगतान के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है अथवा इसे मालिकों को लाभांश के रूप में वितरित किया जा सकता है। इस संबंध में निर्णय फर्म की वित्तीय स्थितिवर्तमान तथा भावी नगदी आवश्यकताओं एवं अंशधारियों की रूचि के अनुसार लिए जाते है।

 

5. कोषों का नियंत्रण ( Control of Funds) : 

वित्तीय प्रबंधक का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य साधनों के प्रयोग को नियन्त्रित करना है। इस कार्य के लिए वित्तीय निष्पादन प्रमाप निर्धारित किया जाता है तथा उनके संदर्भ में वास्तविक निष्पादन की जाँच करके विचलनों को ज्ञात किया है। यदि ज्ञात विचलन सह्य सीमा (Tolerance Limit) के बाहर होते हैं तो वहाँ शीघ्र सुधारात्मक कार्यवाही की जाती है। कोषों का नियंत्रण कार्य कोषों की कमी के समय अधिक महत्त्वपूर्ण बन जाता है।

 

6. फर्म के अन्य विभागों से समन्वय (Co-ordination with other Departments of the Firm ) 

किसी भी उपक्रम की सफलता उपक्रम के विभिन्न विभागों के कार्यों में पाये जाने वाले समन्वय पर निर्भर करती है। वित्त कार्य व्यवसाय के प्रत्येक कार्य को प्रभावित करता हैअतः वित्त विभाग तथा अन्य विभागों में अच्छा समन्वय होना चाहिए । वित्तीय प्रबंधक का यह दायित्व है कि वह फर्म में लिये गये विभिन्न निर्णयों में इस प्रकार का समन्वय स्थापित करे कि जिससे उनमें एकरूपता हो तथा वित्तीय उद्देश्यों की पूर्ति हो तथा वित्तीय साधनों की बाधाएँ कार्यों को विपरीत रूप से कम से कम प्रभावित करें।

 

अनावर्ती वित्त कार्य (Non-Recurring Finance Functions)

 

अनावर्ती वित्त कार्य वे कार्य होते हैं जो एक वित्तीय प्रबंधक को यदा-कदा संपन्न करने होते हैं। कंपनी के प्रवर्तन के समय वित्तीय योजना का निर्माणसंविलयन के समय संपतियों का मूल्यांकनतरलता के अभाव के समय पुनर्समायोजन का कार्य आदि अनावर्ती वित्त कार्यों के कुछ उदाहरण हैं। इन विशिष्ट घटनाओं के घटने के समय उत्पन्न होने वाली वित्तीय समस्याओं के समाधान के कार्य वित्तीय प्रबंध को ही करने होते हैं।

 

नैत्यक कार्य अथवा दैनिक कार्य (Routine Functions)

 

इस वर्ग में वे कार्य शामिल किये जाते हैं जो नैत्यक प्रवृत्ति अथवा दैनिक प्रवृत्ति के होते हैं। ये कार्य प्रतिदिन निम्नस्तरीय कर्मचारियों जैसे लेखाकाररोकड़ियोंलिपिक आदि द्वारा किये जाते हैं। सामान्यः इनमें निम्नलिखित कार्यों को शामिल किया जाता है :

 

(i) रोकड़ प्राप्ति एवं उसके वितरण का पर्यवेक्षण । 

(ii) रोकड़ शेषों को व्यवस्थित व सुरक्षित रखना । 

(iii) प्रत्येक व्यवहार का लेखा करके लेखों को सुरक्षित करना । 

(iv) उधार के व्यवहारों का प्रबन्ध करना। 

(v) प्रतिभूतियों व महत्वपूर्ण प्रलेखों की सुरक्षा करना । 

(vi) पेंशन व कल्याण योजनाओं का प्रशासन । 

(vii) शीर्ष प्रबंध को सूचनाएँ भेजना। 

(viii) राजकीय नियमों का पालन करना।

 

वित्तीय प्रबंध का महत्त्व (Importance of Financial Management )

 

  • व्यावसायिक संगठनों में वित्तीय प्रबंध का महत्त्व पिछले 35-40 वर्षों में अत्यधिक बढ़ गया है। द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व तक प्रबंध की परंपरागत विचारधारा के अन्तर्गत वित्तीय प्रबंध का कार्य संस्था के लिए उचित शर्तों पर पूँजी प्राप्त करना था। परन्तु आधुनिक विचारधारा के अनुसार वित्तीय प्रबंध का कार्य केवल पूँजी प्राप्त करना ही नहीं हैबल्कि व्यवसाय में पूँजी का अनुकूलतम उपयोग करना भी है। साधारण व्यावसायिक संगठनों में वित्तीय प्रबंध का कार्य बड़ा सरल होता हैपरन्तु निगमित व्यवसायों में वित्तीय प्रबंध का कार्य बड़ा कठिन होता है। आज उद्योगव्यापारबैंकिंगबीमापरिवहन आदि सभी क्षेत्रों में निगमित उपक्रमों का महत्त्व बढ़ रहा है। निगमित उपक्रमों के प्रबंध में सभी अंशधारी प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं ले सकते हैंअतः इनका संचालन सामान्य अंशधारियों द्वारा चुने गये संचालन मंडल द्वारा किया जाता है। संचालक मंडल के निर्देशन में प्रबंधकीय विशेषज्ञ निगमों के विभिन्न कार्यों को पूरा करते हैं। निगमों के सफल संचालन में वित्तीय प्रबंध का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। अंशधारी संचालन तथा प्रबंधक वित्तीय प्रबंध के बारे में जानकारी रखते हैं तो वे निगम के कार्यों को सही दिशा दे सकते हैं तथा निगम के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक हो सकते हैं। वित्तीय प्रबंध का महत्त्व निगमित उपक्रमों के लिए ही नहीं बल्किगैर निगमित उपक्रमों के लिए भी बहुत होता है। वित्त आधुनिक औद्योगिक व्यवस्था का जीवन रक्त है। यह समस्त क्रियाओं का आधार है। इसके अभाव में न तो उपक्रम को आरम्भ किया जा सकता है और न ही उसे सफलतापूर्वक संचालित किया जा सकता है। आवश्यकतानुसार पर्याप्त वित्त की व्यवस्था व्यावसायिक सफलता का मूल मंत्र है। किसी भी व्यापार एवं उद्योग को चाहे वह बड़े पैमाने पर हो या छोटे पैमाने पर प्रारंभ करने एवं उसके भावी विस्तार के लिए पर्याप्त वित्त की आवश्यकता होती है। वर्तमान समय में देश की औद्योगिक उन्नति वित्त प्रबंध पर ही निर्भर है। वित्त प्रबंध की उचित व्यवस्था के अभाव में अनेक औद्योगिक विकास की योजनाएँ मात्र कागजी योजनाएँ बनकर रह जाती हैं। जिस प्रकार एक इंजिन को चलाने के लिए कोयले अथवा बिजली की आवश्यकता होती है उसी प्रकार प्रत्येक व्यापार एवं उद्योग को स्थापित करने तथा चलाने के लिए वित्तीय प्रबंध की आवश्यकता होती है। हसबैंड एवं डोकरे के अनुसार "विभिन्न आर्थिक एवं व्यावसायिक गतिविधियों को एक सूत्र में बाँधने के लिए वित्तीय प्रबंध की आवश्यकता होती है।" प्रो. सोलेमन ने भी वित्तीय प्रबंध का अर्थ बताते हुए लिखा है कि, “वित्तीय प्रबंध आज केवल वित्तीय साधन संकलित करने की एक विशेषज्ञ क्रिया मात्र नहीं हैअपितु संपूर्ण प्रबंधकीय विज्ञान का एक अभिन्न अंग बन गया है।" वित्तीय संसाधन एकत्रित करने के साथ-साथ वित्तीय प्रबंध उत्पादनविपणन और उपक्रम में प्रत्येक निर्णयात्मक क्रिया से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित रहता है।

 

“वित्त एक ऐसी धुरी हैजिसके आस-पास समस्त व्यावसायिक क्रियायें चक्कर लगाती हैं। इसके सफल प्रबंध में समस्त वर्गों तथा पूरी फर्म का जीवनविकास तथा कल्याण निर्भर है। वित्त प्रबंध का कार्य एक कुशलविशेषज्ञअनुभवीनिष्ठावान तथा उत्तरदायी व्यक्ति को सौंपा जाना चाहिए। 


वित्तीय प्रबंध के महत्व अथवा इसकी उपयोगिता को निम्न शीर्षकों में देखा जा सकता है:

 

1. उपक्रम की सफलता का आधार (Basis of Success of the Enterprise ): 

चाहे वह उपक्रम छोटा हो अथवा बड़ाचाहे उपक्रम निगमित हो अथवा गैर निगमितचाहे उपक्रम निर्माणों हो अथवा सेवा संस्थानउसकी सफलता वित्तीय प्रबंध की कुशलता पर निर्भर करती है। कुशल वित्तीय प्रबंध हानि में चलने वाले उपक्रम को लाभ में बदल सकता है तथा अकुशल वित्तीय प्रबंध लाभ में चलने वाले उपक्रम को बर्बाद कर सकता हैअतः उपक्रम की सफलता वित्तीय पर निर्भर करती है।

 

2. साधनों का अनुकूलतम आबंटन एवं उपयोग (Optimum Allocation and Utilisation of Resources ) : 

एक कुशल वित्तीय प्रबंधक उपक्रम के उपलब्ध साधनों का अनुकूलतम आबंटन एवं उपयोग सम्भव बनाता हैतथा इस कार्य के द्वारा फर्म के संपदा मूल्य को अधिक बनाने में सहायक होती है।

 

3. निर्णय का केन्द्र (Central Focal point of decision making) : 

व्यवसाय में पहले प्रबंधकों द्वारा अंतः प्रेरणा (Intuition) तथा अनुभव के आधार पर निर्णय लिए जाते थेपरन्तु आज अधिकांश निर्णय वित्तीय विश्लेषण एवं तुलना के आधार पर लिये जाते हैं। सभी निर्णयों के वित्तीय प्रभावों को पूर्वानुमानित करके ही उचित निर्णय लिए जाते हैं।

 

4. कार्य निष्पति एवं कुशलता का मापन (Measurement of performance and cliciency) : 

उपक्रम में जो कुछ कार्य होता है अन्तिम रूप से उसका मापन एवं उसकी कुशलता वित्तीय आधार पर जाँची जाती है। इस जाँच के लिए वित्तीय प्रबन्ध में अनेक तकनीकों का विकास हुआ है।

 

5. नियोजनसमन्वय एवं नियंत्रण का आधार (Basis of planning, co-ordination and control) 

वित्तीय प्रबन्ध उपक्रम में नियोजनसमन्वय तथा नियंत्रण का आधार प्रस्तुत करता है। वित्तीय पूर्वानुमानों के आधार पर योजना बनाई जाती है जिसमें सभी विभागों के कार्यों को समन्वित किया जाता है तथा विभिन्न विभागों के कार्य-कलापों पर बजटरी नियंत्रण लागू किया जाता है।

 

6. राष्ट्रीय महत्त्व (National Importance) : 

भारत जैसे विकासशील देशों में विभिन्न विकास कार्यों पर करोड़ों रुपयों का विनियोग किया जाता है। इस विनियोग की कुशलता द्वारा राष्ट्रीय विकास की दर ऊँची की जा सकती है। सार्वजनिक विनियोग का अकुशल प्रबंध हमारी गरीबी का एक कारण हैं।

 

7. व्यावसायिक प्रबंधकों के लिए उपयोगिता (Useful for Business managers ) 

वित्तीय प्रबंध विषय की सर्वाधिक उपयोगिता व्यावसायिक प्रबंध के क्षेत्र में होती है। निगमों में जनता की पूँजी विनियोजित होती है। प्रबंधक जनता की पूँजी के प्रन्यासी होते हैं। यह उनका दायित्व है कि वे जनता के विभिन्न वर्गों द्वारा विनियोजित पूँजी को सुरक्षा प्रदान करें तथा उस पर उचित प्रत्याय की व्यवस्था करें। ऐसा तब ही हो सकता है जब व्यावसायिक प्रबंधक वित्तीय प्रबंध के सिद्धान्तों से पूर्ण रूप से परिचित हों तथा संस्था के लिए प्रभावपूर्ण वित्तीय नीति का निर्धारण कर सकें।

 

8. अंशधारियों के लिए उपयोगिता (Useful for Shareholders ) : 

कंपनी तथा निगम के वास्तविक स्वामी अंशधारी होते हैं। इनकी संख्या अधिक होने के कारण ये प्रबंध में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं ले सकते हैं। प्रबंध का कार्य इसके द्वारा चुने गये संचालकों को सौंप दिया जाता है। संचालक मंडल अंशधारियों के हित में कार्य करते हैं अथवा नहींइसको देखना अंशधारियों का कार्य है। यदि अंशधारी वित्तीय प्रबंध विषय का पर्याप्त ज्ञान रखते हैं तो वे कंपनी की आर्थिक स्थिति का सही मूल्यांकन कर सकते हैं तथा कंपनी की वार्षिक सभाओं में अच्छे सुझाव दे सकते हैं। यदि संचालक अंशधारियों के हितों के विरुद्ध कार्य करते हैं तो अंशधारी उन्हें उचित वित्तीय नीति अपनाने के लिए बाध्य कर सकते हैं।

 

9. विनियोक्ताओं के लिए उपयोगिता (Useful for Investors) : 

देश के बहुत से विनियोक्ता बचत करके अपनी बचतों को कम्पनियों के अंशों में विनियोजित करते हैं। भारत में विनियोग बैंकों का अभाव होने के कारण विनियोक्ताओं को प्रतिभूति विक्रेताओं एवं दलालों पर निर्भर रहना पड़ता है। वे लोग विनियोक्ताओं को सही सलाह नहीं दे सकते हैं। यदि विनियोक्ता स्वयं वित्तीय प्रबंध के सिद्धांतों एवं व्यवहार से परिचित हों तो वे स्वयं यह निर्णय कर सकते हैं कि उन्हें कौन-सी कंपनी की प्रतिभूतियों में विनियोग करना चाहिए जिससे उन्हें पर्याप्त लाभ प्राप्त हो सके।

 

10. वित्तीय संस्थाओं के लिए उपयोगिता (Useful for Financial Institutions) 

विभिन्न वित्तीय संस्थाओं जैसे - विनियोग बैंकोंव्यापारिक बैंकोंअभिगोपकोंप्रन्यास कंपनियोंस्वीकृति गृहोंबट्टा गृहों आदि के व्यवस्थापकों को वित्तीय प्रबंध का विस्तृत ज्ञान होना चाहिए। इन संस्थाओं के प्रबंधकों को विषय का पूर्ण ज्ञान न होने पर वे गलत कंपनियों को अधिक उधार दे सकते हैं अथवा खराब प्रतिभूतियों में विनियोजन कर सकते हैं। अथवा गलत अभिगोपन द्वारा अनावश्यक हानि उठाने के लिए बाध्य हो सकते हैं। इसलिए वित्तीय संस्थाओं में वित्तीय विशेषज्ञों को नियुक्त किया जाता है।

 

11. अन्य व्यक्तियों के लिए उपयोगिता (Useful for Others) : 

वित्तीय प्रबंधविषय का ज्ञान समाज के विभिन्न व्यक्तियों के लिए लाभदायी होता है। राजनीतिज्ञअर्थशास्त्रीसमाजशास्त्रीवाणिज्य एवं प्रबंध विषय के विद्यार्थी इससे लाभान्वित होते हैं। भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में भारी मात्रा में सरकारी उपक्रमों में विनियोग किया गया है। इस विनियोग की सफलता वित्तीय प्रबंध की प्रभावशीलता पर ही निर्भर करती है। भारत में सरकारी उद्यमों की अकुशलता के कारण करोड़ों रुपयों की पूँजी पर उचित एवं पर्याप्त लाभ प्राप्त नहीं हो रहा है। इस स्थिति को वित्तीय प्रबंध के आधुनिक सिद्धांतों एवं व्यवहारों के उपयोग द्वारा ही ठीक किया जा सकता है।

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