लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर्तव्य एवं शक्तियाँ भूमिका का मूल्यांकन | CAG Role Work Power in Hindi

  लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर्तव्य एवं शक्तियाँ भूमिका का मूल्यांकन
CAG Role Work Power in Hindi

लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर्तव्य एवं शक्तियाँ भूमिका का मूल्यांकन | CAG Role Work Power in Hindi

 

लेखा नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक की भूमिका एक मूल्यांकन

भारतीय संविधान ने लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक को एक स्वतन्त्र तथा महत्वपूर्ण स्थिति प्रदान की है ताकि वह अपने कर्तव्यों को बिना भय या पक्षपात के सम्पादित कर सके। संविधान ने कार्यपालिका से उसकी स्वतन्त्रता के लिए उचित अभिरक्षण ( Adequate Safeguard ) प्रदान किया है। लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के पद को संविधान द्वारा निर्मित किया गया है। इसका निरन्तर अस्तित्व राज्य के दूसरे संवैधानिक अंगों जैसे सर्वोच्च न्यायालयउच्च न्यायालय एवं चुनाव आयोग की तरह संविधान द्वारा स्थापित किया गया है न कि संसद द्वारा। हालाँकि वह पूर्ण रूप से संसद तथा विधान मंडलों की सेवा करता है। इस प्रकार लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक का भारतीय प्रजातंत्र में एक अनूठा स्थान है।



1. लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कार्यकाल एवं पंच्युति 

Appointment, Service Period and Impeachment of CAG)

 

संविधान लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की स्वतन्त्रता इस प्रकार बनाए रखता है कि उसकी नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति अधिपत्र द्वारा अपने ही हाथों एवं मुहर से करता है उसका कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। उसे प्रमाणित दुर्व्यवहार या "अयोग्यता को छोड़कर अपने पद से हटाया नहीं जा सकता। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में इन सवैधानिक अधिकारियों को अपने कर्तव्यों को सही ढंग से पूरा करने के लिए पूर्णरूपेण स्वतन्त्रता की आवश्कता होती है। ए.के चन्दाभूतपूर्व लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक ने स्वायतता के पक्ष में अपना तर्क देते हुए कहा है कि "वित्त के क्षेत्र मेंकार्यपालिका के कार्यों का राही तथा बिना पक्षपात के मूल्यांकन करने के लिए उनके सम्मानस्वतन्त्रतादृष्टि की पृथकता तथा निर्भयता को बनाए रखना अति आवश्यक है।" सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश की तरह लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक को उसके पद से दो आधारों पर हटाया जा सकता है। प्रमाणित दुर्व्यवहार" या "अयोग्यता" प्रस्ताव को उसी अधिवेशन में दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए तथा इस प्रस्ताव को पारित करने के लिए प्रत्येक सदन में विशेष बहुमत को होना आवश्यक है। प्रस्ताव को प्रस्तुत करने की प्रक्रियानिरीक्षणा दुर्व्यवहार का प्रमाण तथा अयोग्यता की प्रक्रिया को संसद के विधि द्वारा निश्चित किया जाता है। इस प्रकार पदच्युति प्रक्रिया अत्यन्त ही कठिन प्रक्रिया प्रतीत होती है।

 

2.  लेखा नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक  नियुक्ति की शर्ते 

(Conditions of Appointment)

 

संविधान उसके वेतन एवं सेवा की अन्य शर्तों को प्रत्याभूत करता है तथा उसकी नियुक्ति के पश्चात् उनको इस प्रकार नहीं बदला जा सकता जिससे उनको हानि हो। लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के वेतन तथा भत्ते भारत की संचित निधि से दिए जाते हैं। यदि वेतन तथा सेवा की शर्तों को कार्यपालिका के विवेकाधीन रख दिया जाए तो लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के कार्यों में हस्तक्षेप की सम्भावना पैदा हो जायेगी। लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के साथ संसदीय मतभेद या नाराजगी के मामलों में उसका वेतनपेन्शन या सेवानिवृत्ति की आयु में परिवर्तन संसद के क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत नहीं होगा। तथा उसे सजा भी नहीं दी जा सकेगी। लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक सेवानिवृत्तत्यागपत्र या पदच्युति के बाद भारत सरकार या राज्य सरकारों के अन्तर्गत कोई लाभ का पद ग्रहण नहीं कर सकता। इसका उद्देश्य यह है कि उसको कार्यपालिका से किसी प्रकार का लाभ लेने के आकर्षण से पृथक रखा जाए क्योंकि यह उसे सेवानिवृत्ति से पहले उसके कार्यों तथा निर्णयों को

 

प्रभावित कर सकता है। वास्तविकता यह है कि इस प्रावधान की आत्मा को दृढ़तापूर्वक ग्रहण नहीं किया गया है। संविधान में यह प्रावधान है कि लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के वेतन भत्ते तथा प्रशासकीय व्ययों को भारत सरकार की संचित निधि से किया जाए। सरकार के दूसरे व्ययों के विपरीत उसके व्ययों को बजट से मतदान के लिए पेश नहीं किया जा सकता। इस प्रकार उसके कार्य या व्यवहार पर संसद में बहस या मतदान नहीं हो सकता। संविधान ने इस प्रकार लेखानियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के कार्यों में संसदीय हस्तक्षेप के विरुद्ध अत्यन्त ही महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रदान की है।

 

3.  लेखा नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक  कर्तव्य एवं शक्तियाँ (Duties and Powers )

 

संसद ने लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के कर्तव्यों तथा शक्तियों को लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक ( कर्तव्य शक्तियों एवं सेवा की शर्तों) अधिनियम 1971 के अन्तर्गत रखा है। केन्द्र सरकार के कुछ विभागों में लेखांकन को लेखा परीक्षण से अलग कर दिया गया है। जब से लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक को खाद्य पुनर्स्थापना आपूर्ति विभागों लोक सभा एवं राज्य सभा सचिवालयों के लेखांकन सम्बन्धी दायित्वों से मुक्त कर दिया गयातब से उनके लिए अलग लेखा कार्यालय बनाए गए हैं। सन् 1976 में भारत सरकार ने लेखांकन सम्बन्धी कार्य को अपने प्रशासकीय मन्त्रालय / विभाग में रख लिया जिसके परिणामस्वरूप केन्द्रीय सरकार में लेखांकन से लेखा परीक्षण अलग होने की प्रक्रिया पूरी हो गयी। लेकिन प्रत्येक राज्य सरकारों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों (जिसके पास विधान मंडल की व्यवस्था है) के लिए पृथक वार्षिक लेखा तैयार करना तथा उसे राज्यपाल या प्रशासक को प्रस्तुत करने का उत्तरदायित्व लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षण को ही सौंपा गया है। लेखा परीक्षण कार्य को एक प्राधिकार द्वारा करना यद्यपि आर्थिक दृष्टि से उचित है लेकिन लेखा परीक्षण की स्वतन्त्रता के सिद्धान्तों के विपरीत है। यह लेखा नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक को आंशिक रूप से कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी बना देता है। वह अपने लेखांकन सम्बन्धी कर्तव्यों के लिए संसद तथा व्यवस्थापिका के प्रति जवाबदेह हो जाता है जो कि कार्यपालिका का उत्तरदायित्व है। लेखांकन सम्बन्धी प्राधिकार के कारण अपनी लेखा परीक्षण रिपोर्ट में लेखांकन सम्बन्धी अनिश्चित्ता या लापरवाही जो कि इसके द्वारा संकलित लेखांकनों से होती हैकी मुख्य घटनाओं को प्रकाशित करने में झिझक महसूस करेंगे। इस तरह से लेखा परीक्षण पूर्ण रूप से प्रभावित होगा।

 

संविधान के अनुसार लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक को उन तरीकों (Forms) को निश्चित करने का ऐसा प्राधिकार है जिसमें केन्द्र तथा राज्यों के लेखांकन को बनाए रखने का मुख्य उद्देश्य पूरा हो एवं अर्थव्यवस्था में एकरूपता को बनाए रखा जा सके। लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा केन्द्र तथा राज्यों के लेखांकन सम्बन्धी मामलों में सरकार द्वारा वार्षिक बजट की तैयारी तथा प्रस्तुति में सहायता की जाती है। इस तरह इस प्रावधान के अपने लाभ हैं। यह लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक को अत्यधिक महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व सौंपता है-

 

1. लेखा परीक्षण रिपोर्ट (Audit Report)

 

संविधान में लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने की प्रक्रिया निर्धारित की गई है। केन्द्र सरकार सम्बन्धी लेखाओं की रिपोर्ट को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तथा राज्य सरकार के लेखाओं को राज्य के राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। इसके बाद उसका उत्तरदायित्व समाप्त हो जाता है। लेकिन यह राष्ट्रपति / राज्यपाल के लिए आवश्यक जाता है कि वे संसद के सदनों / विधान मंडल के समक्ष रिपोर्ट को प्रस्तुत करें। वह तीन रिपोर्ट रखता है जैसे वित्त लेखाओं पर लेखा परीक्षण रिपोर्टविनियोजन लेखाओं पर लेखा परीक्षण रिपोर्ट तथा व्यवसायी एवं सार्वजनिक क्षेत्र सम्बन्धी उद्योगों पर लेखा रिपोर्ट तथा केन्द्र राज्य सरकारों के राजस्व प्राप्तियों पर क्रमानुसार रिपोर्ट । संविधान में लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के लेखा परीक्षण रिपोर्ट के सार (Form of guidelines ) के लिए कोई रूप या निर्देशन नहीं निर्धारित किया गया है। इस तरह लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक का रिपोर्टों के रूप सामग्री तथा सार को निश्चित करने में पूर्ण स्वतन्त्रता तथा विवेकाधीन शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।

 

सीमाएँ (Limitations)

 

लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक को कार्यपालिका एवं संसद से स्वतन्त्र बनाए रखने के लिए संविधान द्वारा विभिन्न अभिरक्षण (Safeguards) प्रदान करने के बावजूद भी उसकी स्वतन्त्रता चार तत्वों से सीमित प्रतीत होती है जैसे,

 

(अ) उसके बजट स्वायत्तता पर कार्यपालिका का नियन्त्रण, 

(ब) स्टाफ पर नियन्त्रण की कमी, 

(स) केन्द्र के वित्त मन्त्रालय के प्रति अप्रत्यक्षजवाबदेही तथा लेखांकन सम्बन्धी कर्तव्यों का पूरा करने के लिए राज्य सरकार के वित्त विभाग के प्रति अप्रत्यक्ष जवाबदेही, 

(द) महान्यायवादी के विपरीतअपने सरकारी कार्यों के पक्ष में संसद में प्रश्न काल के दौरान प्रत्यक्ष उपस्थिति का अभाव

 

संक्षेप मेंइन सीमाओं के बावजूद भी लेखा नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक वित्त प्रशासन के क्षेत्र में संविधान तथा विधि की मर्यादा को स्थापित कर भारतीय लोकतन्त्र में अनूठी भूमिका निभाता है। वह न तो संसद का अधिकारी है न ही सरकार कार्यकर्ता । वह संविधान के महत्वपूर्ण अधिकारियों में से एक है। उसका कार्य उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि न्यायपालिका का है।

 

लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक सारांश (Conclusion ) 

जैसा कि पहले बताया जा चुका है लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक वित्तीय मामलों में कार्यपालिका पर संसदीय सर्वोच्चता बनाए रखता है। वह संविधान का अधिकारी है संसद का अधिकारी नहीं है। लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की स्वतन्त्रता को संविधान विभिन्न तरीकों से प्रत्याभूत करता है जिससे कि वह कार्यपालिका के बिना हस्तक्षेप के अपने कार्यों को सम्पादित कर सके। उसका मुख्य कर्तव्य है वित्त प्रशासन के क्षेत्र में संविधान तथा विधियों की मर्यादा को बनाये रखना 

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