लेखा नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक इतिहास एवं संवैधानिक स्थिति | CAG History GK in Hindi

लेखा नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक इतिहास एवं संवैधानिक स्थिति (CAG GK in Hindi)

लेखा नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक इतिहास एवं संवैधानिक स्थिति | CAG History GK in Hindi
 

लेखा नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक (CAG GK in Hindi)

वित्तीय नियन्त्रण को लागू करना व्यवस्थापिका का महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व है। सरकारी व्ययों पर संसदीय नियन्त्रण दो स्तरों पर लगाया जाता है: प्रथम नीति निर्माण के समय पर तत्पश्चात् नीति कार्यान्वयन के नियन्त्रण के समय पर लागू होता है। बजट या वार्षिक वित्तीय विवरण जो कि अनुमानित प्राप्तियों एवं आगामी वित्तीय वर्ष के लिए सरकार के व्ययों को प्रदर्शित करता है, को संसद के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है एवं उस पर बहस होती है। प्रारम्भिक संसदीय वित्त नियन्त्रण आगामी वर्ष के लिए सरकार के वार्षिक बजट अनुमानों द्वारा किया जाता है जिसे संसद के समक्ष सहमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है। नीतियों के कार्यान्वयन पर नियन्त्रण के दूसरे स्तर का प्रयोग संसद / व्यवस्थापिका द्वारा मंजूर किये गए धनराशियों का उपयोग सही उद्देश्य के लिए किया गया है या नहीं, तथा संसद / व्यवस्थापिका के इच्छानुसार उपयोग हुआ है या नहीं इन चीजों के विश्लेषण के द्वारा करती है। संसद और राज्य विधान मण्डलों में नियन्त्रण एवं महालेखा परीक्षक संसद तथा राज्य विधान मण्डलों की सहायता करता है। लेखा परीक्षण केन्द्र एवं राज्यों की व्यवस्थापिका के प्रति कार्यपालिका का वित्तीय उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करने का महत्वपूर्ण साधन है। संविधान के द्वारा लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक को केन्द्र, राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के लेन-देन (transactions) का लेखा परीक्षण करने के लिए उत्तरदायी बनाया गया है। इस इकाई में लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के पदों की उत्पत्ति, संवैधानिक स्थिति तथा लेखों एवं लेखा परीक्षण से सम्बन्धित उसकी शक्तियों एवं कर्तव्यों परीक्षक की भूमिका का मूल्यांकन भी किया जायेगा।

 

लेखा नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background)

 

  • वित्त, लेखा एवं लेखा परीक्षण इतने पुराने हैं जितना कि स्वयं इतिहास । इतिहास साक्षी है कि अच्छे लेखा एवं लेखा परीक्षण संगठन का अस्तित्व प्राचीन भारत में भी था। कौटिल्य ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "अर्थशास्त्र" में मौर्याकाल में प्रचलित लेखांकन व्यवस्था का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थशास्त्र के अनुसार, "मौर्यनीति में वित्त के मामलों में अन्तिम प्राधिकार राजा का ही था जिसका कर्तव्य था कि प्राप्तियों एवं व्ययों के लेखों को देखें। प्रत्येक मन्त्री अपने विभाग की आर्थिक व्यवस्था के लिए उत्तरदायी था और प्रत्येक विभाग का अपना एक लेखाकार, खजांची एवं अन्य कर्मचारी होते थे। वित्त विभाग का अध्यक्ष कलेक्टर जनरल होता था। उसके नीचे प्रदेश स्तर पर विशेष आयुक्त होता था जो कि एक प्रकार का महालेखा परीक्षक होता था जिसका कार्य था जिला एवं ग्राम समूह के लेखों का निरीक्षण करना तथा साथ ही कुछ तरह के राजस्वों को एकत्रित करने का कार्य भी करना था। लेखांकन एवं वित्त वर्ष आषाढ़ के अन्तिम दिनों में समाप्त होता था।

 

  • इसी तरह से गुप्त शासकों ने भी अपने शासन काल में लेखा एवं लेखा परीक्षण की अधिक विस्तृत एवं व्यवस्थित योजना की शुरूआत की थी। रामचन्द्र दीक्षित के भी अनुसार "अपने पूर्ववर्ती मोर्चा के काल के समय भी लेखा पूरी तरह व्यवस्थित होता था तथा उसकी समय-समय पर लेखा परीक्षण होता था एवं उसे संस्तुति के लिए रखा जाता था। यह हमें पत्युपीरिकीट (Patyupirikit) शब्द से स्पष्ट होता है। व हद रूप में जिसका अनुवाद आधुनिक "महालेखापाल से किया जा सकता है। महालेखापाल जो लेखा विभाग की अध्यक्षता करता है अपने कार्य के लिए मन्त्रिपरिषद के प्रति उत्तरदायी था। इससे स्पष्ट होता है कि गुप्त काल में लेखाओं का विस्तृत विभाग था।" इसी तरह से मध्यकालीन शासकों में सुल्तानों एवं मुगलों ने राजस्व संग्रह एवं लेखा परीक्षा पर अत्यधिक जोर दिया । मुगलों ने वित्त अधिकारी (Vasir, Dewan) को "वजीर" या "दिवान" का नाम देकर उसे अत्यधिक प्राधिकार प्रदान किया था।

 

  • यद्यपि प्राचीन एवं मध्य शासन कालों में एक सम्बद्ध लेखा एवं लेखा परीक्षण संगठन की स्थापना की गयी थी लेकिन बाद के मुगल कालों में इसका ह्रास हो गया। तत्पश्चात् अंग्रेजों ने लेखांकन एवं लेखा परीक्षण की व्यवस्था की शुरूआत की। आज हमारे देश में वही व्यवस्था चली आ रही है। सन 1858 में जब ईस्ट इंडिया कम्पनी का प्रशासन ब्रिटिश क्राउन ने अपने हाथों में ले लिया तो भारत में महालेखापाल के एक पूरक पद की स्थापना की गई जो इंग्लैंड में हुए व्ययों के लिए लेखा तैयार करता था। समकाल में, क्राउन द्वारा इन लेखों के परीक्षण के लिए एक स्वतन्त्र लेखा परीक्षक की स्थापना की गयी। यह व्यवस्था हालांकि बहुत दिनों तक नहीं चली। सन 1860 में लेखांकन एवं लेखा परीक्षण के कार्यों को एक ही में सम्मिलित कर दिया गया और यह कार्य महालेखापाल के अधीन कर दिया गया जिसे महालेखा परीक्षक के नाम से जाना जाता है।

 

  • महालेखा परीक्षक को संवैधानिक मान्यता संवेधानिक सुधारों के प्रारम्भ के साथ 1919 में मिली। महालेखा परीक्षक को भारत सरकार के नियन्त्रण से मुक्त रखा गया था तथा उसकी नियुक्ति राज्य सचिव द्वारा की जाती थी। वह भारतीय लेखा परीक्षा विभाग में एक प्रशासकीय अध्यक्ष की तरह कार्य करता था तथा राजा के इच्छा पर्यन्त अपने पद पर बना रहता था। भारत शासन अधिनियम 1935 के अधीन उसके पद के स्तर एवं महत्ता में वृद्धि हुई । बाद में उसकी नियुक्ति ब्रिटिश क्राउन के द्वारा होने लगी एवं उसकी सेवा की शर्तें भी राजा की परिषद (Majesty in-Council) ही निश्चित करती थी। परिषद के आदेशानुसार ही उसके कर्तव्यों एवं शक्ति को निर्धारित किया जाता था। उसके वेतन, भत्ता एवं पेन्शन संघ के राजस्व में से देने की व्यवस्था थी। संघीय न्यायालय के किसी जज को पदच्युत करने के लिए निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ही उसे अपने पद से हटाया जा सकता था। भारत शासन अधिनियम 1935 तथा स्वतन्त्रता अधिनियम 1947 के अन्तर्गत महालेखा परीक्षक के प्राधिकार में वृद्धि हुई तथा ब्रिटेन में भारतीय लेखों के लेखा परीक्षकों को उसके प्रशासकीय नियन्त्रण में रखा गया। बाद में रियासतों (Princely States) के भारतीय संघ के संघात्मक ढांचे में एकीकृत होने पर उसके लेखा परीक्षण के उत्तरदायित्व को सम्पूर्ण भारत में बढ़ा दिया गया।

 

  • संविधान अधिनियम 1950 ने भारत के महालेखा परीक्षक का नाम बदल कर लेखा नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक कर दिया तथा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के साथ ही उसे भी संविधान के अनुच्छेद के अन्तर्गत यह मान्यता प्रदान की गई कि भारतीय वित्त राज्यों एवं संघ दोनों ही में लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के अधीन रहेगा।

 

लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की संवैधानिक स्थिति (Constitutional Position of CAG)

 

  • संविधान में लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक को एक उच्च स्वतन्त्र वैधानिक अधिकारी माना गया हैं। वह ऐसा अधिकारी है जो व्यवस्थापिका की ओर से यह देखता है कि व्यवस्थापिका द्वारा स्वीकृति धनराशि में वृद्धि या परिवर्तन तो नहीं हुआ है या व्यय किया गया धन जिस उद्देश्य के लिए दिया गया था उसे सही ढंग से खर्च किया गया तथा वैधानिक ढंग से प्राप्त किया गया या नहीं। किसी भी विषय पर या किसी भी ढंग से लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के विवेकाधीन निर्णय को रोका नहीं जा सकता, अपने कर्तव्यों के दौरान इसकी सूचना वह व्यवस्थापिका को देता है। संविधान में निहित उसके पद की शपथ में यह कहा गया है कि उसे संविधान और विधि की मर्यादा को बनाए रखना है तथा अपने कर्तव्यों को भय, पक्षपात, प्रेम तथा बुरी भावना के बिना सम्पादित करना है ।

 

प्रशासन की वित्तीय एकता के सर्वश्रेष्ठ स्तर को बनाए रखने के उद्देश्य एवं कर देने वालों के हितों की रक्षा तथा विधायी नियन्त्रण के उद्देश्य के लिए भी, संविधान, भारत के नियन्त्रक व महालेखा परीक्षक की स्वतन्त्रता व निष्पेक्षता को निम्न विधियों से बनाए रखता है।-

 

(1) संविधान के अनुच्छेद 148 के अनुसार भारत के लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति अधिपत्र द्वारा राष्ट्रपति अपने ही हाथों एवं मुहर से करेगा। अपना पद ग्रहण करेगा वह 6 वर्ष तक या 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक इसमें जो भी पहले हो उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायधीश की भांति तथा उसी रीति तथा उन्हीं आधारों पर उसे पद मुक्त किया जा सकता है।

 

(2) आगे व्यवस्था है कि लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक कार्यपालिका से प्रभावित नहीं हो सकते हैं। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 148 (3) के अनुसार लेखा नियन्त्रक व महालेखा परीक्षक का वेतन तथा सेवा की अन्य शर्ते विधि द्वारा निश्चित होंगी। उसकी नियुक्ति के पश्चात् इसमें इस प्रकार परिवर्तन नहीं किया जा सकता जिससे उसकी हानि हो।

 

(3) अनुच्छेद 148 ( 4 ) के अनुसार लेखा नियन्त्रक व महालेखा परीक्षक अपने पद से हट जाने पर भारत सरकार या राज्य सरकार के किसी भी पद पर कार्य नहीं कर सकता।

 

(4) अनुच्छेद 148 (6) के अनुसार इस पद पर कार्यरत सभी व्यक्तियों के वेतन भत्ते एवं पेन्शन भारत की संचित निधि से देय होंगे।

 

(5) लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक भारतीय लेखा परीक्षण एवं लेखा विभाग का प्रशासकीय अध्यक्ष होता है। उसकी प्रशासकीय शक्तियाँ राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा शासित होती है। इस तरह से संविधान लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की संवैधानिक स्वतन्त्रता को बनाए रखना है और उसे कार्यपालिका, जिसके लेन-देन का वह लेखा परीक्षण करता है, के भय तथा उसके प्रति पक्षपातपूर्ण व्यवहार से परे रहता है।

 

लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के कर्तव्य तथा शक्तियाँ (Duties & Powers of CAG)

 

(i) लेखा सम्बन्धी कर्तव्य ( As an Accountant) 

लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के कर्तव्यों एवं शक्तियों का लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के (कर्तव्यों शक्तियां एवं सेवा की शर्तें) अधिनियम 1971 में उल्लेख किया गया है जिसे संविधान के अनुच्छेद 149 में सम्मिलित किया गया है। इस अधिनियम के अन्तर्गत लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक का यह उत्तरदायित्व है कि भारत सरकार, राज्य सरकार एवं केन्द्र शासित क्षेत्रों के व्ययों एवं प्राप्तियों का लेखा परीक्षण करे। उसे यह भी शक्ति प्रदान की गयी है कि निकायों या प्राधिकारों (bodies or authority) जिसे आर्थिक सहायता केन्द्र या राज्य राजस्वों से अनुदान (granturor loans) या ऋण के रूप में प्राप्त होती हैं, के व्ययों एवं प्राप्तियों का लेखा परीक्षण करे। लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक अधिनियम 1971 के भाग 10 के अनुसार यह लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक का उत्तरदायित्व है कि केन्द्रएवं प्रत्येक राज्य के लेखाओं का संकलन करे तथा वित्तीय लेखा (Finance Accounts) तैयार करे। यह भी लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक का कर्तव्य है कि लेखाओं से विनियोजन लेखा तैयार करे जिसमें केन्द्र, प्रत्येक राज्य एवं प्रत्येक केन्द्र शासित प्रदेश के उद्देश्य के लिए वार्षिक प्राप्तियों एवं संवितरणों को सम्बन्धी अध्यक्षों के अधीन दर्शाते हुए उसका विवरण हो। इन लेखाओं (वित्त लेखा) विनियोजन को राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपाल या केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रशासक जैसा मामला हो, के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। वह बजटों (वार्षिक वित्तीय विवरण) की तैयारी में केन्द्र एवं राज्यों की आवश्यक सूचना देता है।

 

लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा के लेखा सम्बन्धी कार्य मुख्य रूप से इस प्रकार हैं:

 

1. रूपों (Form) का उल्लेख करना जिसमें केन्द्र और राज्यों के लेखाओं को रखा जाता है। 

2. वित्त लेखाओं एवं विनियोजन लेखाओं को तैयार करना एवं राष्ट्रपति / राज्यपाल / केन्द्रशासित प्रदेश के प्रशासक, जैसा भी मामला हो, के समक्ष लेखाओं को प्रस्तुत करना । 

3. वार्षिक बजट की तैयारी के लिए केन्द्र / राज्य सरकारों को सूचना देना ।

 

(ii) लेखा परीक्षण सम्बन्धी कर्तव्य ( As an Auditor ) : 

लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक का वास्तविक कर्तव्य लेखा परीक्षण का है। मुख्य लेखा परीक्षण लेखाओं की यथार्थता (Accuracy) एवं पूर्णता को जाँचता है। वह यह देखता है कि सभी वित्तीय लेन-देन जैसे प्राप्तियाँ एवं भुगतान लेखाओं में पूर्ण रूप से दर्ज किए गये हैं या नहीं, सही ढंग से स्वीकृत किया गया है या नहीं एवं सभी व्यय एवं संवितरण प्राधिकृत तथा प्रमाणित हैं या नहीं तथा समस्त शेष धनराशि को मांगों के अनुसार दर्ज किया गया है या नहीं तथा लेखाओं में रखा गया है या नहीं। वह एक रखवाला (tchdog) की तरह कार्य करता है यह देखने के लिए कि क्या विभिन्न अधिकारियों ने वित्तीय मामलों में संविधान तथा संसद के विधियों तथा उपयुक्त विधानों नियमों एवं आदेशों के अनुसार कार्य किया है या नहीं। लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक अधिनियम 1971 के अनुसार लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के लेखा परीक्षण सम्बन्धी कार्य इस प्रकार हैं:

 

(अ) संचित निधि से हुए समस्त व्ययों एवं प्राप्तियों का लेखा परीक्षण करना तथा प्रत्येक राज्य एवं प्रत्येक केन्द्र शासित प्रदेश, जिसके यहाँ विधान सभा है, का लेखा परीक्षण करना तथा यह पता लगाना कि लेखाओं में प्रदर्शित धन जिस उद्देश्य या सेना के लिए खर्च किया गया है वैधानिक रूप से प्राप्त किया गया या नहीं। 

(ब) आकस्मिक निधि एवं लोक लेखाओं से सम्बन्धित केन्द्र एवं राज्यों के समस्त लेन-देन का लेखा परीक्षण करना । 

(स) यह समस्त व्यापारिक उत्पादन, मुनाफा एवं हानि सम्बन्धी लेखाओं तथा केन्द्र एवं राज्य के किसी भी विभाग के दूसरे पूरक लेखाओं का लेखा परीक्षण करता है। प्रत्येक मामलों में हुए खर्ची, लेन-देन पर रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। 

(द) केन्द्र या राज्य राजस्वों से सहायता प्राप्त निकायों या प्राधिकारों के प्राप्तियों तथा व्ययों का लेखा परीक्षण करता है । 

(य) संसद के विधि के अन्तर्गत अथवा उसके द्वारा स्थापित कम्पनियों, निगमों के लेखाओं का लेखा परीक्षण करता है। 

(र) निकायों या प्राधिकारों के प्रार्थना पर उसके लेखाओं का लेखा परीक्षण करता है। लेखा परीक्षण सम्बन्धी कर्तव्यों को सम्पादित करने में लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक केन्द्र या राज्य के नियन्त्रण के अन्तर्गत आने वाले किसी भी लेखाओं के कार्यालय का निरीक्षण कर सकता है जिसमें प्राथमिक या अनुपूरक लेखाओं को रखने के लिए उत्तरदायी राजकोष (Treasuries) एवं कार्यालय भी शामिल होते हैं। संक्षेप में, लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक केन्द्र तथा राज्यों तथा केन्द्रों या राज्य राजस्वों से आर्थिक सहायता प्राप्त निकायों के लेखाओं के परीक्षणा के लिए उत्तरदायी है। वह स्वायत्तता प्राप्त प्राधिकारों, निगमों एवं कम्पनियों के लेखाओं का लेखा परीक्षण करता है। विधि द्वारा उसको यह उत्तरदायित्व लोकहित को ध्यान में रखकर दिया गया है। अपने कर्तव्यों को सम्पादित करते समय उसे भारतीय लेखा परीक्षण तथा लेखा विभाग से सहायता मिलती है।

 

लेखा नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक के अन्य कर्तव्य (Other Duties of CAG)

 

लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक केन्द्र, राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों के लेखाओं की लेखा परीक्षण तथा रिपोर्ट तैयार करने से सम्बन्धित कर्तव्यों एवं कार्यों के अतिरिक्त वह संसद द्वारा बनाए या प्राधिकृत निकायों एवं अधिकारियों के लेखाओं से सम्बन्धित कार्यों एवं कर्तव्यों को भी सम्पादित करता है। वर्तमान समय में लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक अपने अतिरिक्त कर्तव्यों में सरकारी कम्पनियों एवं वैधानिक निगमों का लेखा परीक्षण करता हैं। सरकारी कम्पनियों के मामलों में लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक व्यवसायिक लेखा परीक्षकों के रिपोर्ट पर अपनी टिप्पणी देता है या उसे पूरा कर सकता है। उसका कर्तव्य यह भी है कि वह सार्वजनिक लेखा समिति के कार्यों में सहायता प्रदान करें।

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