वित्तीय प्रशासन के अभिकरण | Agencies of Financial Administration in Hindi

 वित्तीय प्रशासन के अभिकरण 
(Agencies of Financial Administration)

वित्तीय प्रशासन के अभिकरण | Agencies of Financial Administration in Hindi
 

वित्तीय प्रशासन के अभिकरण

वित्तीय प्रशासन का गठन देश-विशेष के अनुरूप न्यूनाधिक भिन्न हो सकता है तथापि लोकतान्त्रिक राज्यों में सामान्यतः निम्नलिखित साधनों अथवा अधिकरणों द्वारा वित्त संबंधी क्रियाएं संपन्न की जाती हैं:

 

(1) विधान मण्डल अथवा व्यवस्थापिका (The Legislature) 

(2) कार्यपालिका (The Executive) 

( 3) वित्त विभाग (The Finance Department) या राजकोष ( The Treasury ) 

(4) लेखा परीक्षा अथवा जांच विभाग (The Audit Department) 

(5) संसदीय समितियाँ (Parliament Committees)

 

1. व्यवस्थापिका (The Legislature) 

प्रजातन्त्र राज्यों में राजस्व पर व्यवस्थापिका का अधिकार होता है। व्यवस्थापिका ही आय-व्यय की मदों को निर्धारित करती है। संसद की सत्ता इस सिद्धान्त पर आधारित है कि बिना प्रतिनिधित्व के कोई कर न लगाया जाए। वार्षिक बजट के माध्यम से सार्वजनिक धन का सरकारी क्रियाओं पर खर्च के लिए विनियोजन करकरों की अनुमति देना करों की वर्तमान दरों में वृद्धि करनावास्तविक ऋण की व्यवस्था करनाआदि कार्य व्यवस्थापिका के ही हैं। अधिकांश लोकतंत्रात्मक देशों में इन कार्यों का सम्पादन प्रायः निम्न सदन करता है जो कि एक निर्वाचित सदन होता है। उच्च सदन की वित्तीय शक्तियाँ विभिन्न देशों में भिन्न- भिनन हैं। भारत की संसदीय पद्धति ब्रिटिश प्रणाली पर आधारित है। ब्रिटिश लोकसभा की भांति भारतीय लोकसभा भी वित्तीय संस्वीकृति तभी देती है जब धन के लिए मांगे उसके समक्ष बजट के रूप में प्रस्तुत की जाएं। लोकसभा की स्वीकृति के बिना बजट पारित नहीं हो सकता है। राज्यसभा यदि बजट को पारित नहीं करे तो भी सरकार को त्यागपत्र नहीं देना पड़ता है। कार्यपालिका अनुदानों की मांगों और करारोपण के प्रस्तावों को संसद के सम्मुख प्रस्तुत करती है और संसद इस पर अपनी स्वीकृति प्रदान करती है। संसद को इनमें वृद्धि करने का अधिकार नहीं होतावह केवल कटौती कर सकती है।

 

2. कार्यपालिका ( The Executive) 

वित्तीय प्रशासन का एक दूसरा मुख्य अभिकरण कार्यपालिका है जिसके द्वारा वित्तीय नीति का निर्धारण और वित्तीय मांगों का व्यवस्थापिका के सम्मुख प्रस्तुतीकरण होता है। बजट निर्माण का संपूर्ण उत्तरदायित्व कार्यपालिका का होता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के अनुसार, "राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों के सम्मुख वित्तीय वर्ष के लिए सरकार की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का एक विवरण प्रस्तुत करता है।" राष्ट्रपति की पूर्वानुमति के बिना केन्द्रीय वित्तमंत्री संसद में बजट प्रस्तुत नहीं कर सकता है।

 

3. वित्त विभाग (The Finance Department) 

वित्तीय मामलों की देख-रेख करने वाला केन्द्रीय विभाग एक या एक से अधिक हो सकता है। यह विभाग विभिन्न प्रशासकीय मंत्रालयों के साथ विचार-विमर्श करके वार्षिक वित्त विवरण तैयार करता है। बजट पर - संसदीय अनुमति प्राप्त हो जाने पर वित्त मंत्रालय ही सरकार के संपूर्ण व्यय को नियन्त्रित करता है। और यह देखता है कि प्रशासकीय मंत्रालयों द्वारा सार्वजनिक व्यय में मित्तव्ययिता बरती जाए। वस्तुतः वित्तीय प्रशासन के सम्पूर्ण उत्तरदायित्व का निर्वाह वित्त मंत्रालय द्वारा किया जाता है। ग्रेट ब्रिटेन में यह दायित्व राजकोष पर और भारत तथा अधिकांश राष्ट्रमण्डलीय देशों के वित्त मंत्रालय पर है। संयुक्त राज्य वित्तीय मामलों की देख-रेख करने वाला केन्द्रीय विभाग एक या एक से अधिक हो सकता है। यह विभाग विभिन्न प्रशासकीय मंत्रालयों के साथ विचार-विमर्श करके वार्षिक वित्त विवरण तैयार करता है। बजट पर संसदीय अनुमति प्राप्त हो जाने पर वित्त मंत्रालय ही सरकार के संपूर्ण व्यय को नियंत्रित करता है और यह देखता है कि प्रशासकीय मंत्रालयों द्वारा सार्वजनिक व्यय में मितव्ययिता बरती जाए। वस्तुतः वित्तीय प्रशासन के संपूर्ण उत्तरदायित्व का निर्वाह वित्त मंत्रालय द्वारा किया जाता है। ग्रेट ब्रिटेन में यह दायित्व राजकोष पर और भारत तथा अधिकांश राष्ट्रमण्डलीय देशों के वित्त मंत्रालय पर है। संयुक्त राज्य अमेरिका में वित्तीय व्यवस्था का संचालन करने के लिए ऐसी कोई एकीकृत व्यवस्था नहीं हैं वहाँ अनेक पृथक विभाग और अभिकरण वित्तीय प्रशासन के विभिन्न पहलुओं का संचालन करते हैं।

 

4. लेखा-परीक्षा विभाग (The Audit Department)

 

यह विभाग देखता है कि व्यवस्थापिका द्वारा स्वीकृत धन का व्यय व्यवस्थापिका के आदेशानुसार ही हुआ है या नहीं। लेखा परीक्षा विभाग कार्यपालिका के अधीन न होकर एक स्वतंत्र निकाय होता है। धन व्यय हो चुकने के उपरांत लेखा परीक्षा द्वारा संपूर्ण व्यय पर 'अन्वेषी प्रकाश डाला जाता है अर्थात् उसकी बारीकी से जांच की जाती है ताकि व्यय की वैधता और औचित्य का निश्चय हो जाए भारत में 1973 से ही लेखा परीक्षा की स्वतंत्रता सामान्य रूप से मान्यता प्राप्त कर चुकी है और वर्तमान संविधान के अनुच्छेद 148 से 151 लेखा नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक के कार्यों एवं स्थिति पर प्रकाश डालते हैं और उसे केवल संसद के समक्ष उत्तरदायी ठहराते हैं इस विभाग का वित्त- प्रशासन में भारी महत्त्व है।

 

5. संसदीय समितियाँ (Parliamentary Committees)

संसद की दो महत्त्वपूर्ण समितियाँ अनुमान समिति (Estimates Committee) तथा सार्वजनिक लेखा समिति (Public Accounts Committee) देश के वित्तीय संगठन पर प्रभावशाली नियंत्रण रखती है अनुमान समिति सरकार के विभागों के व्यय में मिव्ययता लाने के सुझाव देती है। सार्वजनिक लेखा समिति नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन को ध्यान में रखते हुए विनियोजन लेखा की जांच करती है और उनमें पाई जाने वाली वित्तीय अनियमितताओं की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करती है।

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