विटामिन का अर्थ परिभाषा वर्गीकरण | विटामिन के गुण कार्य भोजन के स्रोत कमी अधिकता का प्रभाव होने वाले रोग | Vitamin Details in Hindi

विटामिन का अर्थ परिभाषा वर्गीकरण . गुण कार्य भोजन के स्रोत कमी अधिकता का प्रभाव होने वाले रोग 

विटामिन का अर्थ परिभाषा वर्गीकरण | विटामिन के गुण कार्य भोजन के स्रोत कमी अधिकता का प्रभाव होने वाले रोग | Vitamin Details in Hindi



विटामिन का अर्थ परिभाषा वर्गीकरण . गुण कार्य भोजन के स्रोत कमी अधिकता का प्रभाव होने वाले रोग 


विटामिन  क्या होती है  

  • प्रोटीनवसाकार्बोज की भाँति विटामिन का भी भोजन में लिया जाना अतिआवश्यक है। विटामिन ऐसे तत्व हैं जिनकी अत्यल्प मात्रा ही शरीर के लिये आवश्यक होती है। 

  • विटामिन शब्द सबसे पहले पोलैण्ड के वैज्ञानिक केसिमिर फंक (Casimir Funk ) द्वारा प्रयोग में लाया गया। यह शब्द ‘Vital Amine' से आया है। जीवन के लिए आवश्यक “सुरक्षा तत्व" के कारण ही इसका नाम Vitamin दिया गया।

 

विटामिन की परिभाषा

 

विटामिन ऐसे सक्रिय कार्बनिक यौगिक होते हैं जो कि अत्यल्प मात्रा में आवश्यक होने पर भी शरीर के समस्त मुख्य कार्यों जैसे आतंरिक क्रियाएं व पोषण में वृद्धि की प्रक्रिया के लिए अति आवश्यक हैं। कुछ विटामिन शरीर में ही संश्लेषित हो जाते हैं। अधिकतर विटामिन भोजन द्वारा ही प्राप्त होते हैं।

 

विटामिन का वर्गीकरण

 

1. जल में घुलनशील विटामिन 

विटामिन बी समूह,  विटामिन सी


2. वसा में घुलनशील विटामिन  

  • विटामिन ए 
  • विटामिन डी 
  • विटामिन ई 
  • विटामिन के

 

जल में घुलनशील विटामिन (Water Soluble Vitamins) 

इस प्रकार के विटामिन जल में घुलनशील होते हैं। जल में घुलनशील होने के कारण आवश्यकता से अधिक शरीर में पहुंचने पर जल के साथ ही उत्सर्जित कर दिये जाते हैं। अतः इसकी अधिकता के प्रभाव से दुष्प्रभाव कम अथवा नहीं होते हैं। इस वर्ग में विटामिन बी समूह व सी आते हैं।

 

बी-समूह (B-Complex)

 

यह एक विटामिन न होकर कई विटामिनों का एक समूह है। इन सब विटामिन को सम्मिलित रूप से विटामिन बी समूह कहते हैं। बी समूह के विटामिन की मध्यम अल्पता देखी जाती है जिसमें कमजोरीएकाग्रता में कमीपाचन संस्थान में विकार आदि हैं।

 इस समूह में आने वाले विटामिन समूह निम्नलिखित हैं-

 

1. थायमिन (Thiamine)

 

थायमिन विटामिन की खोज बेरी-बेरी रोग का उपचार ढूंढते समय हुई। सन 1885 में इस बीमारी को सर्वप्रथम तकाकी नामक डाक्टर द्वारा पहचाना गया। उसने उन नेवी के लोगों के आहार में परिवर्तन करके स्थिति में सुधार किया जो इस बीमारी से पीड़ित थे। बाद में चावल की उपरी परत में से इस विटामिन को पृथक किया गया जिससे बेरी-बेरी रोग का सफलतापूर्वक उपचार किया गया।

 
थायमिन विटामिन गुण

 

यह विटामिन जल में घुलनशील हैताप का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। भोजन पकाते समय खाने का सोडा डालने से यह विटामिन पूर्णतः नष्ट हो जाता है। इसका स्वादिष्ट नमकीन तथा गंध खमीर के समान हो जाती है। यह रंगहीनरवेदार पदार्थ है। क्षारीय माध्यम में यह नष्ट हो जाता है।

 

थायमिन विटामिन कार्य

 

  • यह विटामिन कार्बोहाइड्रेट के चयापचय में सहायक होता है। 
  • पाचन संस्थान की मांसपेशियों की गति को सामान्य रखता है जिससे भूख सामान्य रहती है। 
  • तंत्रिका तंत्र के भली-भांति कार्य करने में इसकी उपस्थिति अनिवार्य है। 
  • शरीर के आंतरिक अवयवों की आवश्यक क्रियाशीलता हेतु शक्ति पहुंचाने के लिए यह आवश्यक है।

 

थायमिन विटामिन भोजन में स्रोत

 

साबुत अनाज थायमिन विटामिन के प्रमुख स्रोत हैं। अन्य साधन मटरसेमदालें व खमीर है। भ हरी सब्जियाँफलमांसमछलीयकृतअंडे का पीला भाग आदि में भी थायमिन की अच्छी मात्रा उपस्थित रहती है।

 

थायमिन की कमी के प्रभाव

 

थायमिन की कमी के प्रभाव से मुनष्य में बेरी-बेरी नामक रोग हो जाता है। बेरी-बेरी के निम्नलिखित लक्षण हैं:

 

  • थकानकाम में अरुचिचिड़चिड़ाहट तथा निराशागुस्सा 
  • वजन व रक्त में कमी 
  • अपचकब्जसिरदर्दसांस फूलना आदि 
  • शरीर में पानी भर जाना जिसे ईडिमा ( Oedema) कहते हैं। 
  • टांगों में भारीपनमांसपेशियों में फड़कनतलवों में जलन तथा सुन्न रहते हैं जोकि तंत्रिका संस्थान संबंधी विकार के प्रतीक हैं। 
  • इसे पौलीन्यूराइडिस (Polyneuritis) कहते हैं। 
  • दिल की धड़कन बढ़ जाना

 

2. राइबोफ्लेविन (Riboflavin)

 

यह चमकीला पीलापन लिये हुए पदार्थ है जोकि शारीरिक बढ़त के लिए आवश्यक है।

 

गुण 


यह जल में घुलनशील एक रवेदार पदार्थ है जोकि चमकीला पीलापन लिये हुए है। ताप का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है लेकिन यह विटामिन क्षार तथा रोशनी में आसानी से नष्ट हो जाता है।

 

कार्य

 

राइबोफ्लेविन प्रोटीनकार्बोहाइड्रेट व वसा के चयापचय में सहायक है । राइबोफ्लेविन नायसिन के निर्माण में भी सहायक है। राइबोफ्लेविन शारीरिक बढ़त के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

 

भोजन में स्रोत

 

राइबोफ्लेविन विभिन्न वनस्पति जगत भोज्य पदार्थों में उपस्थित रहता है। मांसमछलीदूध व अनाजों में इसकी अच्छी मात्रा पाई जाती है। यह जन्तुओं के यकृत में सर्वाधिक पाया जाता है। दूध तथा दूध से बने भोज्य पदार्थों में भी अच्छी मात्रा में राइबोफ्लेविन पाया जाता है। अनाज में इस की मात्रा कम ही होती है।

 

कमी

 

शरीर में राइबोफ्लेविन की हीनता अराइबोफ्लेविनोसिस कहलाती है। इसके लक्षण निम्नलिखित हैं

 

चिलौसिस (Cheilosis) : आहार में इसकी कमी होने से होंठों के किनारे की त्वचा फटने लगती है। मुंह में छाले व घाव हो जाते हैं। 

ग्लोसाइटिस (Glossitis): जीभ व होंठ बैंगनी लाल रंग के हो जाते हैं। 

एन्गुलर स्टोमेटाइटस (Angular stomatitis): नाक के कोने में दाने व दरारें पड़ जाती हैं। प्रौढ़ पुरुष के वृषण की थैली की त्वचा में दरारें पड़ जाती हैं।

 

नायसिन या निकोटिनिक (Niacin or Nicotinic Acid)

 

नायसिन तत्व की खोज पैलाग्रा रोग से हुई । पैलाग्रा जिसका अर्थ भद्दी त्वचा होता है। इस रोग के कारण अधिकतर व्यक्ति मस्तिष्क के रोगी होकर मृत्यु के शिकार हो जाते हैं। रोगियों के आहार में खमीर शामिल करने से उनकी स्थिति में सुधार देखा गया है। खमीर में उपस्थित पैलाग्रा में सुधार करने वाले तत्व को नायसिन नाम दिया गया।

 

गुण 

यह सुई के आकार वाला सफेद रवेदार तत्व है। इसका स्वाद कसैला होता है। अम्लक्षार व ताप का इस पर कोई प्रभाव नहीं होता । 

कार्य 

नायसिन त्वचापाचन संस्थान तथा नाड़ी संस्थान की सामान्य क्रियाशीलता के लिए अत्यन्त आवश्यक तत्व है। 

यह ग्लूकोज़ के ऊर्जा में परिवर्तन तथा वसा के निर्माण में भी सहायक होता है। यह को एन्जाइम का निर्माण करता है।

 

नायसिन भोजन में स्रोत 

नायसिन का प्रमुख प्राप्ति साधन सुखा खमीर है। इसके अतिरिक्त यह यकृतसाबुत अनाजदालेंमांसमछलीदूधअण्डातथा अन्य सब्जियों में भी पाया जाता है।

 

भोजन में नायसिन की कमी

 

भोजन में नायसिन की कमी कई महीनों तक रहने पर पैलाग्रा के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। इस रोग में प्रमुख रूप से पाचन संस्थानत्वचा तथा नाड़ी संस्थान प्रभावित होते हैं। पैलाग्रा के लक्षणों को 3 (3-D) से परिभाषित किया जा सकता है.

 

डरमेटाइटिस (Dermatitis): 

इसमें त्वचा पर खुरदुरी पपड़ी तथा दाने देखे जाते हैंसूजन आ जाती है तथा धूप में जलने जैसी त्वचा हो जाती है।

 

डायरिया (Diarrhoea): 

इसमें वमनअतिसारथकावटपीठदर्दरक्तहीनता जैसी समस्याएं देखी जाती हैं।

 

डीमेन्शिया (Dementia) : 

व्यक्ति चिन्तातनावचिड़चिड़ाहट महसूस करता है। स्मरण शक्ति कम हो जाती है व पागलपन की स्थिति में आ जाता है।

 

बी - 6 या पाइरीडोक्सिन (B or Pyridoxine) 

यह सफेदगंधरहितस्वाद में कसैलारवेदार विटामिन है। यह ताप व सूर्य की किरणों में नष्ट हो जाता है।

 

कार्य 

यह बच्चों में वृद्धि के लिए सहायक होता है तथा नाड़ी संस्थान व लाल रक्त कणिकाओं को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक होता है।


भोजन में स्रोत 

सूखा खमीरगेहूं का अंकुरमांसयकृतगुर्देसाबुत अनाजसोयाबीनमूंगफलीमेवेअंडेदूध आदि इसके प्रमुख साधन हैं। कंद मूल अन्य सब्जियों व फलों में इसकी कम मात्रा उपस्थित होती है।

 

कमी 

इसकी कमी से अनिद्राभूख की कमीजी मिचलानाउल्टियां होनात्वचा की खुरदरीपपड़ीदार होनाहोंठ व जीभ का प्रभावित होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं। बच्चों में इसकी कमी से वृद्धि रुक जाती है।

 

पेन्टोथिनिक एसिड (Pantothenic Acid) 

यह पानी में घुलनशील अम्लक्षार व ताप से शीघ्र नष्ट होने वालासफेदगंधरहितहल्का कसैला विटामिन है। 

कार्य 

यह शिशु व बालकों की वृद्धि में सहायक है। यह विटामिन सभी के कई नियामक कार्यों में सहायक है।


भोजन के स्रोत 

यह सूखे खमीरयकृतचावल की ऊपरी पर्तगेहूं के अंकुर तथा अंडे के पीले भाग में प्रमुख रूप से उपस्थित रहता है।

 

कमी 

भूख कम हो जाती हैजी मिचलनाअपाचनपेट में दर्दमानसिक तनाव तथा बांह व टांगों में दर्द आदि लक्षण प्रकट होते हैं।

 

बायोटिन (Biotin) 

यह प्रोटीन के प्रमुख स्रोतों में पाया जाने वाला विटामिन है। कच्चे अण्डे में एक क्षारीय प्रोटीन एवीडीन (Avidin) होता है जो बायोटिन को नष्ट कर देता है लेकिन पके अण्डे में ऐसा नहीं होता

 

कार्य 

बायोटिन मुख्य रूप से त्वचा को स्वस्थ रखने में सहायक होता है। यह शरीर में विभिन्न चयापचय क्रियाओं में सहायक होता है।

 

भोजन में स्रोत 

इसकी प्राप्ति खमीरमूंगफलीसोयाबीनयकृतसभी अनाजों व दालों से होती है। 

कमी 

बायोटिन की कमी से खुरदुरी त्वचा विशेषकर हाथ पैर परभूख की कमीरक्त अल्पतात्वचा के रंग में परिवर्तन मानसिक लक्षण जैसे निरुत्साहआलस्य आदि देखे जाते हैं।

 

फोलिक एसिड (Folic acid) 

यह गहरी पीले रंग का रवेदार तत्व होता है। यह अम्ल तथा रोशनी में तुरंत नष्ट हो जाता है। 


कार्य

 

फोलिक एसिड की आवश्यकता शरीर के कुछ प्रोटीन के निर्माण के लिए होती है। यह लाल रक्त कणिकाओं के लिए भी आवश्यक होता है।


भोजन में स्रोत 

इसका सूखा खमीर सबसे उत्तम होता है। अनाजदालेंपालकमेथीमटरलौकीसेम की फली आदि तथा अन्य पत्तेदार हरी सब्जियांफलदूध में भी यह पाया जाता है। 

कमी 

फोलिक एसिड की कमी से रक्त अल्पताबच्चों में क्वाशियोरकारदस्त आदि समस्याएं देखी जाती 

हैं।

 

कोलीन (Choline) 

यह रंगहीन अत्यन्त घुलनशील कसैले स्वाद वाला रवेदार पदार्थ होता है। 

कार्य 

कोलीन शरीर में विभिन्न नियामक कार्य करता है। प्रमुख रूप से यह यकृत में अधिक वसा क होने से रोकता है। यह नाड़ी ऊतकों की संवेदन शक्ति को बनाये रखता है तथा शरीर की वृद्धि में आवश्यक है।

 

दैनिक आवश्यकता 

इसकी अत्यल्प मात्रा ही शरीर के लिये आवश्यक होती है जिसकी पूर्ति दैनिक संतुलित आहार से हो जाती है।

 

भोजन में स्रोत 

कोलीन की उपस्थिति अंडे के पीले भाग यकृतगुर्देदालेंसाबुत अनाजदूधमांस आदि में! प्रमुख रूप से होती है।

 

कमी 

सामान्य आहार में इसकी आवश्यक मात्रा प्राप्त हो जाती है। मानव शरीर में अब तक इसके प्रभाव की कोई सूचना नहीं मिली।

 

इनोसीटॉल (Inositol) 

यह स्वाद में मीठा होता है तथा ताप में स्थिर रहता है।

 

कार्य 

यह यकृत पर वसा को जमने से बचाता है। यह हृदय की मांसपेशियों में अत्यधिक मात्रा में रहकर उनके संकुचन की गति को नियंत्रित करता है।

 

पैरा- अमीनो बैंजोइक एसिड (Para-Amino Benzoic acid) 

यह रंगहीनरवेदार तथा ताप पर स्थित विटामिन होता है। 

कार्य 

इसका मनुष्य में कोई निश्चित कार्य नहीं देखा गया है पर अन्य जन्तुओं के लिए यह विटामिन महत्वपूर्ण होता है। 


कमी 

इसकी दैनिक आवश्यकताओं के विषय में अभी तक पता नहीं चल सका हैकिन्तु सन्तुलित भोजन लेने से इसकी आवश्यकता पूरी हो जाती है।

भोजन में स्रोत 

यह गेहूँ के चोकरखमीरपत्ता गोभीकेलाआलूमूँगफली में अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है। मानव शरीर में प्रायः इसकी कमी नहीं होती हैकिन्तु जानवरों में इसकी कमी से वृद्धि रुक जाती है।

 

विटामिन बी-12 या साइनोकोबालामिन (Vitamin B-12 or Cyanocobalamine) 

यह गहरे लाल रंग का धूप में नष्ट होने वाला विटामिन है।

 

कार्य 

यह लाल रक्त कणिकाओं के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है। यह विभिन्न प्रोटीन के चयापचय में सहायक होता है तथा नाणी उत्तकों की चयापचय क्रियाओं में भी सहायक होता है।

 

दैनिक आवश्यकता 

इसकी दैनिक आवश्यकता के लिए लिए इकाई के अंत में दी गई तालिका देखें।

 

भोजन में स्रोत 

विटामिन बी-12 प्रमुख रूप से पशु जगत के ऊतकों द्वारा ही प्राप्त होता है यकृत व गुर्दे इसके प्रमुख स्रोत हैं। दूधपनीरअण्डामांस आदि इसके अन्य साधन हैं।

 

कमी

 

विटामिन बी-12 की कमी से विशेष प्रकार का एनिमिया रोग हो जाता है। नाड़ी ऊतकों में टूट-फूट की क्रिया आदि होती है। बच्चों में इस विटामिन की कमी से वृद्धि रूक जाती है।

 

विटामिन सी या एस्कार्बिक एसिड (Vitamin C or Ascorbic acid) 

स्कर्वी नामक रोग अंग्रजों की नौसेना के यात्रियों को बहुत होता था क्योंकि उनके आहार में शाक सब्जियों का अभाव होता था। नाविकों को दीर्घकालीन समुद्री यात्रा के दौरान विशेष रूप से यह रोग जाता था। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति अधिकतर मृत्यु का शिकार हो जाते थे । स्कर्वी नामक रोग कारण व उपचार ढूँढने के फलस्वरूप ही विटमिन सी का आविष्कार हुआ। वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि रसीले ताजे व खट्टे फल इस रोग की स्थिति में लाभप्रद रहते हैं। बाद में वैज्ञानिकों ने सन्तरानींबू व अन्य इसी प्रकार के फलों से विटामिन 'सीके क्रिस्टल अलग किये। 

यह सफेद क्रिस्टलीय पानी में घुलनशील विटामिन है। यह ताप द्वारा बहुत जल्द नष्ट हो जाता है।

 

कार्य 

विटामिन सी निम्न महत्वपूर्ण कार्य करता है- 

 

  • यह दाँतअस्थियों व रक्त वाहिनियों की दीवारों को स्वस्थ रखता है। 
  • घाव को भरने में सहायता करता है। 
  • यह आँत द्वारा लौह लवण के अवशोषण में सहायता प्रदान करता है। 
  • विभिन्न रोगों से निरोधक क्षमता बढ़ाता है। 
  • यह विटामिन विभिन्न कोशिकाओं का जोड़ने वाला पदार्थ कोलेजन (Collagen) के निर्माण में सहायक है।

 

भोजन में स्रोत

 

यह ताजे खट्टे फल व सब्जियों में अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है। आँवला व अमरूद में यह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। नींबू का रससंतराअनानासआमपपीताटमाटर तथा हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालकपत्ता गोभीधनिया पत्तीमूली के पत्ते आदि इसके अच्छे स्रोत हैं। दूध इसकी मात्रा नहीं होती। में

 

कमी

 

विटामिन 'सीकी लगातार लम्बे समय तक कमी बने रहने से स्कर्वी नामक रोग हो जाता है।


स्कर्वी दो प्रकार की होती है

 

व्यस्क स्कर्वी- 

इसमें मसूड़े फूलने लगते हैं। उनमें से खून निकलने लगता है। दांत कमजोर होकर टूटने लगते हैं। जोड़ मुलायम हो जाते हैं तथा उनमें से रक्त स्राव होने लगता है। इस कारण व्यक्ति चलने-फिरने में असमर्थ हो जाता है। हड्डियां व मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। घाव देर से भरते हैं तथा हड्डियां हो कमजोर जाती हैं।

 

शिशुओं में स्कर्वी - 

बच्चों में भूख समाप्त हो जाती है। हड्डियों में रक्त जाम हो जाने से सूजन आ जाती है। आंतरिक रक्त स्राव के कारण शरीर में नीले चकत्ते पड़ जाते हैंमसूड़े सूज जाते हैं। सांस लेने में तकलीफ होती हैशरीर एंठने लगता है तथा बच्चे की मृत्यु हो जाती है।

 

वसा में घुलनशील विटामिन (Fat Soluble Vitamins)

 

ये विटामिन वसा में घुल जाते हैं तथा शरीर से विसर्जित नहीं किये जाते । आवश्यकता से अधिक लेने से शरीर में जमा हो जाते हैंअतः प्रतिदिन के आहार में इसका होना आवश्यक नहीं है।

 

1. विटामिन ए (Vitamin A )

 

विटामिन की खोज में सर्वप्रथम विटामिन ए को ही खोजा गया था। वैज्ञानिकों ने यह पाया कि मछली के तेल तथा मक्खन में ऐसे तत्व हैं जो कि वृद्धि के लिए सहायक होते हैं। इस तत्व को ही विटामिन ए के नाम से जाना गया।

 

गुण 

जीवन सत्व विटामिन ए एक रवेदार पदार्थ है जोकि वनस्पति में 'कैरोटीनके रूप में उपस्थित होता है। जब यह कैरोटीन युक्त फलसब्जी खाये जाते हैं तो कैरोटीन यकृत में जाकर जीवन सत्व विटामिन ए में बदल जाता है।

 

कार्य 

  • इसका प्रमुख कार्य शरीर की सामान्य वृद्धि करना है । 
  • शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करना । 
  • आंखों की सामान्य दृष्टि के लिए विटामिन ए अत्यन्त आवश्यक है। 
  • त्वचा को सूखने से बचाता है। 
  • हड्डियों व दांतों के स्वाभाविक विकास में सहायक होता है। 
  • स्त्री -पुरुष प्रजनन अंगों तथा प्रजनन क्रिया को सुचारु बनाने में सहायक होता है।

 

भोजन में स्रोत 

वनस्पति जगत में यह उन शाक-सब्जियों में पाया जाता है जो पीले व लाल रंग के होते हैं। जैसे टमाटरगाजरपपीताआम व हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे धनियापालक आदि। इसके अलावा - यह मुख्य रूप से मछली के यकृत के तेल में मिलता है। अंडादूध व मक्खन आदि में भी यह पर्याप्त मात्रा में मिलता है। 


कमी 

शारीरिक वद्धि- विटामिन ए की कमी से शरीर की बाढ़ में रुकावट आ जाती हैहड्डियों का विकास रुक जाता है। 

प्रजनन शक्ति- विटामिन ए की कमी से प्रजनन शक्ति क्षीण हो जाती है। 

विटामिन ए की कमी से आंखों से संबंधित विभिन्न रोग हो जाते हैं। 


आंखों पर प्रभाव 

रतौंधी (Night Blindeness ) : इसमें कम रोशनी में देखने में परेशानी होती है। 

कार्निया का जिरोसिस (Corneal Xerosis ): इसमें व्यक्ति की जिससे कार्निया सूखा व प्रभावहीन हो जाता है। अश्रु ग्रन्थि सूख जाती है 

बाइटाट्स स्पाट्स (Bitot's Spot ) : इसमें आंखों की ऊपरी झिल्ली पर सफेद भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं तथा पलकें आपस में चिपकने लगती हैं। 

कन्जक्टाइवा का जीरोसिस (Xerosis of Conjunctiva ) इसमें आंखों में घाव बन जाते हैं तथा आंखे सूज जाती हैं। 

जीरोफ्थालमिया (Xerophthalmia): इसमें आंखो का भीतरी भाग धुंधला हो जाता है तथा दिखाई देना बंद हो जाता है। 

कैरोटोमलेशिया (Keratomalacia): इसमें आंख में कई संक्रमण हो जाते हैं जिससे आंख की रोशनी पूरी तरह समाप्त हो जाती है।

 

अधिकता

 

विटामिन ए की अधिक मात्रा लेने से प्रौढ़ व्यक्तियों व बच्चों के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता है। बच्चों में सांस लेने में परेशानीसिरदर्दखुश्क व खुरदुरी त्वचाजोड़ों में दर्द व हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।

 

2. विटामिन डी (Vitamin D )

 

वैज्ञानिकों ने रिकेट्स नामक रोग को कॉर्ड मछली के यकृत के तेल द्वारा ठीक किया। बाद में इस रोग में लाभप्रद सिद्ध हुआ वह तत्व जो इस तेल में उपस्थित हुआ उसे विटामिन 'डीका नाम दिया गया। 

गुण 

यह सफेद गंधरहितवसा में घुलनशील विटामिन है। यह ताप से अप्रभावित होता है। यही कारण है कि भोजन पकाने की विभिन्न प्रक्रियाओं के दौरान भी इसे कोई हानि नहीं होती। 

कार्य 

  • विटामिन डी कैल्शियम व फासफोरस के चयापचय में सहायक होता है। 
  • यह रक्त में कैल्शियम व फासफोरस की मात्रा को नियंत्रित करता है। 
  • यह हड्डियों व दांतों के निर्माण में सहायक है। 
  • शारीरिक वृद्धि के लिए आवश्यक होता है।

 

दैनिक आवश्यकता 

  • इसकी आवश्यक मात्रा की पूर्ति दैनिक संतुलित आहार से हो जाती है।

 

भोजन में स्रोत 

यह विटामिन मुख्य रूप से मछली के यकृत के तेल में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त अंडेदूध पनीर द्वारा भी इसकी प्राप्ति होती है।

 

कमी 

विटामिन डी की कमी से बच्चों में रिकेट्स व बड़ों में आस्टियोमलेशिया रोग हो जाते हैं।

 

रिकेट्स- 

खोपड़ी की हड्डियां कोमल हो जाती हैं। लंबी अस्थियों के सिरे बढ़ जाते हैं। पैर कमान के आकार (Bow-legs) के बन जाते हैं। पसली की अस्थियों के सिरे बढ़कर मोटे हो जाते हैं (Rachitic Rosary) तथा रीढ़ की हड्डी बढ़ जाती है (Pigeon Chest), चलने पर घुटने टकराते हैं जिसे 'नॉक नी' (Knock Knee) कहा जाता हैबच्चों का पेट बड़े आकार का व लटका हुआ दिखाई देता है (Pot Belly) तथा वृद्धि की गति रुक जाती हैजिससे व्यक्ति बौना रह जाता है और दांत सड़ने लगते हैं।

 

ऑस्टियोमलेशिया- 

प्रौढ़ों में विटामिन डी की कमी से हड्डियां कोमल हो जाती हैं। रीढ़ की हड्डी झुक जाती है। गर्भवती स्त्रियों में भ्रूण का विकास ठीक से नहीं हो पाता है तथा गर्भपात की आशंका बनी रहती है। दांतों में कालापन आ जाता है तथा हड्डियाँ जल्दी टूटने लगती हैं (Brittleness of bones)

 

अधिकता 

विटामिन डी की अधिकता से भूख कम हो जाती है जी मिचलाने लगता हैप्यास बढ़ जाती है। बच्चों में मांसपेशियों का क्षय होने लगता है। अत्यधिक विटामिन डी की मात्रा शरीर में गुर्देधमनियों तथा फेफड़ों में अवरोध उत्पन्न कर देती हैं जिससे मृत्यु हो सकती है।

 

3. विटामिन ई (Vitamin E ) 

विटामिन ई मनुष्य व जन्तुओं में प्रजनन संस्थान की क्रियाशीलता हेतु अत्यन्त आवश्यक है। 

गुण 

विटामिन ई पर ताप व अम्ल की क्रिया का कोई प्रभाव नहीं पड़ता परंतु सूर्य की किरणों के संपर्क में आते ही यह विटामिन नष्ट हो जाता है। 

कार्य 

विटामिन ई प्रजनन क्षमता को विकसित करता है। इसकी कमी से बांझपन आ सकता है। भ्रूण विकास में यह विटामिन सहायक कार्य करता है।  

दैनिक आवश्यकता 

संतुलित आहार लेने से शरीर में विटामिन ई प्रचुर मात्रा में पहुंच जाता है। 

भोजन में स्रोत 

बिनौले का तेलसोयाबीन का तेलगेहूं का तेलमक्खन आदि में यह विटामिन अधिक पाया जा है।

 

कमी

 

विटामिन ई की कमी प्रायः मनुष्यों में कम ही होती है। इसकी कमी से पुरुषों में नपुंसकता तथा स्त्रियों में बांझपन आ जाता है। लाल रक्त कणिकाओं का निर्माण नहीं हो पाता तथा रक्ताल्पता (Anaemia) हो जाता है।

 

4. विटामिन के (Vitamin K) 

वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि विटामिन के रक्तस्राव को रोककर रक्त थक्का जमाने में सहायक होता है। इसी विशेषता के कारण विटामिन का नाम रक्त का थक्का जमाने वाला विटामिन (Coagulative vitamin) भी रखा गया है।

 

गुण 

विटामिन के एक पीले रंग का पदार्थ है जो ताप से अप्रभावित होता है और सूर्य के प्रत्यक्ष प्रकाश में नष्ट हो जाता है।

 

कार्य 

यह रक्त का थक्का जमाने की क्रिया (Coagulation of blood) में अत्यधिक सहायक है। यह शरीर में प्रजनन संबंधी हारमोन्स तथा विटामिन डी के उपयोग को प्रभावित करता है।

 

दैनिक आवश्यकता 

विटामिन के की निश्चित मात्रा के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है। संतुलित आहार लेने से इस विटामिन की प्रचुर मात्रा शरीर में पहुंच जाती है।

 

भोजन के स्रोत 

विभिन्न वनस्पतियों जैसे गोभीसोयाबीनहरी पत्ते वाली सब्जियों में यह मुख्य रूप से पाया जाता है।

 

कमी 

विटामिन के  अभाव में रक्त का थक्का नहीं बन पाता जिससे रक्त स्राव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। गर्भावस्था में स्त्री के आहार में विटामिन के की न्यूनता से शिशु भी रक्त संबंधी रोगों से पीड़ित हो सकता है।

 

विटामिन के की अधिकता साधारणतः नहीं होती है। आवश्यकता से अधिक सेवन से जी मिचलनाउल्टी व लाल रक्त कणिकाओं की त्रीव गति से टूट-फूट देखी जाती है।


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