हिन्दी भाषा का मानकीकरण | Hindi Bhasha Ka Mankikaran

 हिन्दी भाषा का मानकीकरण

हिन्दी भाषा का मानकीकरण | Hindi Bhasha Ka Mankikaran
 

 हिन्दी भाषा का मानकीकरण

मानक भाषा 

  • मानक का अभिप्राय है आदर्श श्रेष्ठ अथवा परिनिष्ठित भाषा का जो रूप उस भाषा के प्रयोक्ताओं के अलावा अन्य भाषा भाषियों के लिए आदर्श होता हैजिसके माध्यम से वे उस भाषा को सीखते हैंजिस भाषा रूप का व्यवहार पत्राचारशिक्षासरकारी काम-काज एवं सामाजिक सांस्कृतिक आदान-प्रदान में समान स्तर पर होता हैवह उस भाषा का मानक रूप कहलाता है। मानक भाषा किसी देश अथवा राज्य की वह प्रतिनिधि तथा आदर्श भाषा होती है जिसका प्रयोग वहाँ के शिक्षित वर्ग द्वारा अपने सामाजिकसांस्कृतिकसाहित्यिकव्यापारिक व वैज्ञानिक तथा प्रशासनिक कार्यों में किया जाता है।

 

  • मानकीकरण (मानक भाषा के विकास) के तीन सोपान बोली- भाषा - मानकभाषा 

  • किसी भाषा का बोल-चाल के स्तर से ऊपर उठकर मानक रूप ग्रहण कर लेना उसका मानकीकरण कहलाता है।

 

प्रथम सोपान -

बोली पहले स्तर पर भाषा का मूल रूप एक सीमित क्षेत्र में आपसी बोलचाल के रूप में प्रयुक्त होने वाली बोली का होता हैजिसे स्थानीयआंचलिक अथवा क्षेत्रीय बोली कहा जा सकता है। इसका शब्द भंडार सीमित होता है। कोई नियमित व्याकरण नहीं होता। इसे शिक्षाआधिकारिक कार्य-व्यवहार अथवा साहित्य का माध्यम नहीं बनाया जा सकता।

 

द्वितीय सोपान - 

भाषा वहीं बोली कुछ विशेष भौगोलिकसामाजिकसांस्कृतिकराजनीतिक व प्रशासनिक कारणों से अपना क्षेत्र विस्तार कर लेती हैउसका लिखित रूप विकसित होने लगता है और इसी कारण वह व्याकरणिक ढांचे में ढलने लगती हैउसका पत्राचारशिक्षाव्यापारप्रशासन इत्यादि में प्रयोग होने लगता हैतब वह बोली न रहकर भाषा की संज्ञा प्राप्त कर लेती है।

 

तृतीय सोपान 

मानक भाषा यह वह स्तर है जब भाषा के प्रयोग का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत हो जाता है। वह एक आदर्श रूप ग्रहण कर लेती है। उसका परिनिष्ठित रूप होता है। उसकी अपनी शैक्षणिकवाणिज्यिकसाहित्यिकशास्त्रीयतकनीकी एवं कानूनी शब्दावली होती है। इसी स्थिति में पहुँचकर भाषा मानक भाषा बन जाती है। उसी को 'शुद्ध', 'उच्च स्तरीयपरिमार्जितआदि भी कहा जाता है।

 

मानक भाषा के तत्व

 

1. ऐतिहासिकता 

2. स्वायत्तता 

3. केन्द्रोन्मुखता 

4. बहुसंख्यक प्रयोगशीलता 

5. सहजता / बोधगम्यता 

6. व्याकरणिक साम्यता 

7. सर्वविध एकरूपता

 

हिन्दी भाषा के मानकीकरण की दिशा में उठाए गए महत्वपूर्ण कदम

 

1. राजा शिवप्रसाद सितारे -हिन्दने कुजू. फु पाँच अरबी फारसी ध्वनियों के लिए नीचे नुक्ता लगाने का रिवाज़ आरंभ किया। 

2. भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने हरिश्चंद्र मैगजीन के जरिए खड़ी बोली को व्यावहारिक रूप प्रदान करने का प्रयास किया। 

3. अयोध्या प्रसाद खत्री ने प्रचलित हिन्दी को 'ठेठ हिन्दी की संज्ञा दी और ठेठ हिन्दी का प्रचार किया। उन्होंने खड़ी बोली को पद्य की भाषा बनाने के लिए आंदोलन चलाया। 

4. हिन्दी भाषा के मानकीकरण की दृष्टि से द्विवेदी युग (1900-20) सर्वाधिक महत्वपूर्ण युग था। 'सरस्वतीपत्रिका के संपादक महावीर प्रसाद द्विवेदी ने खड़ी बोली के मानकीकरण का सवाल सक्रिय रूप से एक आंदोलन के रूप में उठाया। युग निर्माता द्विवेदी जी ने 'सरस्वतीपत्रिका के जरिए खड़ी बोली हिन्दी के प्रत्येक अंग को गढ़ने-संवारने का कार्य खुद तो बहुत लगन से किया हीसाथ ही अन्य भाषा साधकों को भी इस कार्य की ओर प्रवृत्त किया। द्विवेदी जी की प्रेरणा से कामता प्रसाद गुरु ने हिन्दी व्याकरण नाम से एक वृहद व्याकरण लिखा ।

 

5. छायावाद युग (1918-36) व छायावादोत्तर युग (1936 के बाद) में हिन्दी के मानकीकरण की दिशा में कोई आंदोलनात्मक प्रयास तो नहीं  हुआकिन्तु भाषा का मानक रूप अपने-आप स्पष्ट होता चला गया ।

 

6. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद (1947 के बाद) हिन्दी के मानकीकरण पर नए सिरे से विचार-विमर्श शुरू हुआ क्योंकि संविधान ने इसे राजभाषा के पद पर प्रतिष्ठित किया जिससे हिन्दी पर बहुत बड़ा उत्तरदायित्व आ पड़ा। इस दिशा में दो संस्थाओं यथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के माध्यम से भारतीय हिन्दी परिषद का तथा शिक्षा मंत्रालय के अधीनस्थ कार्यालय हिन्दी निदेशालय का विशेष योगदान रहा। 

भारतीय हिन्दी परिषद-

भाषा के सर्वांगीण मानकीकरण का प्रश्न सबसे पहले 1950 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग ने ही उठाया। डॉ. धीरेन्द्र वर्मा की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई जिसमें डॉ. हरदेव बाहरीडॉ. ब्रजेश्वर शर्माडॉ. माता प्रसाद गुप्त आदि सदस्य थे । धीरेन्द्र वर्मा ने देवनागरी लिपि चिन्हों में एकरूपताहरदेव बाहरी ने वर्ण विन्यास की समस्याब्रजेश्वर शर्मा ने हिन्दी व्याकरण तथा माता प्रसाद गुप्त ने 'हिन्दी शब्द भंडार का स्थरीकरणविषय पर अपने प्रतिवेदन प्रस्तुत किए।

 केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय 

केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय ने लिपि के मानकीकरण पर अधिक बल दिया और 'देवनागरी लिपि तथा हिन्दी वर्तनी का मानकीकरण' (1983 ई.) का प्रकाशन किया।

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