खाद्य मिलावट रोकने के मानक | खाद्य पदार्थ निषेध अधिनियम उपभोक्ता फोरम | Food adulteration norms

खाद्य मिलावट रोकने के मानक

खाद्य मिलावट रोकने के मानक | खाद्य पदार्थ निषेध अधिनियम उपभोक्ता फोरम | Food adulteration norms
 

खाद्य मिलावट रोकने के मानक


1 खाद्य पदार्थ निषेध अधिनियम (Prevention of Food Adulteration, PFA 1954)

 

  • खाद्य पदार्थ निषेध अधिनियम (PFA) का मुख्य उद्देश्यउपभोक्ताओं को खाद्य पदार्थों में हो रही मिलावट व संदूषण से बचाना है। इस कानून के अन्तर्गत उन विक्रेताओं के अपराध को पकड़ कर दंडित किया जाता हैजो अधिक लाभ पाने के लिए खाद्य पदार्थों में अखाद्य सामग्री की मिलावट करते हैं। पी0एफ00 अधिनियम खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल किए जाने वाले रासायनिक पदार्थकीटनाशकसुगन्ध और अन्य मिश्रित पदार्थों के उपयोग को नियंत्रित करता है। इस कानून द्वारा खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता भी बढ़ाई जाती है जैसे वनस्पति तेल को विटामिन ए सेनमक को आयोडिन से इस अधिनियम के अन्तर्गत किसी भी विवाद की स्थिति में मिलावटी नमूने को न्यायालय द्वारा किसी भी केन्द्रीय प्रयोगशालाओं ( कोलकातागाजियाबादमैसूर और पुणे) में जाँच हेतु भेजा जाता हैजो उस पर मिलावटी होने की अन्तिम सलाह देते हैं।

 

  • पी0एफ00 अधिनियम के अन्तर्गत देश भर में राज्य / क्षेत्रीय / जिला स्तर पर लगभग 82 खाद्य प्रयोगशालायें कार्यरत हैं, राज्य सरकार को खाद्य पदार्थों की आपूर्तिसंग्रहण व क्रय-विक्रय के लिए सार्वजनिक विश्लेषक तथा खाद्य निरीक्षक अधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार दिया जाता है। इनका कार्य खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता स्तर निर्धारित करते हुए उत्पादन दर नियंत्रित करनाखाद्य पदार्थों को बेचनेपैक करने व लेबल करने का लाइसेन्स देना तथा उसमें मिश्रित किये जाने वाले पदार्थों पर नियंत्रण करना होता है।

 

  • यदि किसी के द्वारा यह अधिनियम तोड़ा जाता है तो उसे पहली बार में उसे अधिकतम 1 साल की साया न्यूनतम 2 हजार रूपये का जुर्माना हो सकता है। बार- बार अधिनियम तोड़ने पर व्यक्ति को 6 साल की सज़ा व उसका लाइसेन्स रद्द किया जा सकता है। हानिकारक पदार्थों द्वारा मिलावट एवं संदूषित खाद्य पदार्थ पाये जाने पर उसकी सज़ा के तौर पर निर्माता के उत्पादन पर रोक लगाई जा सकती है। अगर इस प्रकार के उत्पादन से उपभोक्ताओं के शरीर पर हानि या मौत हो जाती है तो उत्पादकों को इंडियन पीनल कोड की धारा 320 के तहत दण्डित किया जा सकता है।

 

2 उपभोक्ता फोरम (Consumer Forum)

 

उपभोक्ताओं से अधिक से अधिक धन कमाने के लालच मेंविक्रेताओं द्वारा हो रहे शोषण को रोकने के लिए तथा उपभोक्ताओं के हितों को संरक्षित करने के लिए भारत सरकार द्वारा 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू किया गया। इसके अन्तर्गत अनुचित व्यापार रोकनेउपभोक्ताओं को निर्विरोध सेवायें उपलब्ध कराने व उनकी शिकायतों को शीघ्र तथा निःशुल्क निपटाने के लियेयह अधिनियम अत्यधिक लाभप्रद है। वर्तमान में उपभोक्ता संरक्षण व सलाह संस्था के द्वारा भी मिलावटी खाद्य प्रदार्थ सम्बन्धी जागरुकता उत्पन्न की जा रही है। विभिन्न प्रकार के प्रचार-प्रसार के माध्यम जैसे रेडियोटेलीविज़न व प्रदर्शनी के माध्यम से उपभोक्ताओं को जागरुक किया जाता हैजिससे वे अपने हितों का संरक्षण कर सकें। खाद्य पदार्थों के नमूने जांच हेतु प्रयोगशालाओं में भेजे जाते हैं तथा मिलावटी पदार्थों के विषय में उपभोक्ताओं के संज्ञान में लाया जाता हैं। इस संस्था द्वारा “कीमत” नामक प्रकाशन भी निकाला जाता है। जिसके माध्यम से उपभोक्ता खाद्य पदार्थों में हो रही मिलावट के प्रति जागरुक रहते हैं तथा उन्हें घरेलू विधि द्वारा मिलावट पहचानने का उपाय भी बताया जाता है।

 

3 बाँट एंव माप-तौल अधिनियम (Weights and Measures Act, 1956)

 

इस अधिनियम के अन्तर्गत भारत में नाप व तौल के लिये मैट्रिक प्रणाली को अपनाया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य ग्राहकों को उनके द्वारा किये गये व्यय अनुरूप उचित मात्रा में वस्तुएं एवं सेवायें उपलब्ध करवाना होता है। सार्वजनिक आपूर्ति विभाग अपने नाप-तौल निदेशालय के द्वारा उपभोक्ताओं को माप तौल के मानकीकरण के प्रति जागरुक करता है तथा उनके हितों का संरक्षण भी करता है। सन् 1977 इस अधिनियम को संशोधित कर बाँट व माप मानक (पैकेज में रखी वस्तुएँ) अधिनियम Standards of Weights and Measures Act (Packaged commodities), 1977 बनाया गया हैजिसके अन्तर्गत पैक बन्द वस्तुओं को शामिल किया गया। इस अधिनियम के अनुसार जो वस्तुएं पैक बन्द बेची जाती हैंउसमें वस्तु का विशुद्ध वजनउत्पादन का वर्ष / माहउत्पादक का नाम एवं पता तथा मूल्य अंकित होना अतिआवश्यक होता है।

 

4 पंजीकरण एवं ट्रेड मार्क अधिनियम (Trade and Merchendisers Act, 1958)

इस अधिनियम के द्वारा वस्तुओं पर उपयोग किये जाने वाले नकली एवं धोखा-धड़ी के ट्रेड मार्क प्रयोग को रोका जाता है। यह अधिनियम पेटेंट्स डिज़ाइन और ट्रेड मार्क के कण्ट्रोलर जनरल के आधीन क्रियान्वित होता है।

 

5 प्रीवेंशन ऑफ ब्लैक मॉर्केटिंग एण्ड मेनटिनेन्स ऑफ सप्लाइज़ ऑफ एशेंशियल कॉमोडिटिज़ अधिनियम, ( Prevention of Black Marketing and Maintenance of Supplies of Essential Commodities Ordinance, 1979)

 

इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य बाजार में वस्तुओं की बढ़ती कीमत को नियंत्रित करना होता है। सन् 1982 में इस अधिनियम को संशोधित कर जिलाधिकारी एवं पुलिस आयुक्त को सशक्त कर दोषियों को सजा देने का प्रावधान लागू किया गया। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिये तथा वस्तुओं की गुणवत्तामात्रामूल्य को नियंत्रित करने के लिये इस अधिनियम को कई बार संशोधित किया गया है। इसके अंतर्गत उपभोक्ताओं के आर्थिक संरक्षणवस्तुओं के चयनबाजार प्रवृति एवं उनकी शिकायतों को संबंधित अधिकारियों के समक्ष रखने का प्रयास किया गया है। इसके लिये खाद्य एवं आपूर्ति विभाग को अधिकारिक रूप से उत्तरदायी बनाया गया है


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