अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा 2024: इतिहास उद्देश्य महत्व
अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा 2024: इतिहास उद्देश्य महत्व
बधिर लोगों के
मानवाधिकारों की पूर्ण प्राप्ति में सांकेतिक भाषा के महत्त्व के बारे में
जागरूकता बढ़ाने हेतु प्रतिवर्ष 23 सितंबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस’ का आयोजन
किया जाता है।
‘अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस’ का प्रस्ताव बधिर लोगों के 135 राष्ट्रीय संघों के संघ-
‘वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ द डेफ’ (WFD) ने रखा। इस प्रस्ताव को 19 दिसंबर, 2017 को सर्वसम्मति से अपनाया गया। इस प्रकार
वैश्विक स्तर पर पहला ‘अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस’ का आयोजन वर्ष 2018 में किया गया था।
वर्ष 1951 की 23 सितंबर की तारीख ‘वर्ल्ड
फेडरेशन ऑफ द डेफ’ की स्थापना का प्रतीक है।
इस वर्ष 2023 अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा
दिवस की थीम ‘"A World Where Deaf People Everywhere Can Sign
Anywhere!". ’ है।
‘वर्ल्ड
फेडरेशन ऑफ द डेफ’ के आँकड़ों की मानें तो दुनिया भर में 70 मिलियन से अधिक बधिर
व्यक्ति हैं। ज्ञात हो कि सांकेतिक भाषा संप्रेषण का एक माध्यम है, जहाँ हाथ के इशारों और
शरीर तथा चेहरे के हाव-भावों का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार सांकेतिक भाषाएँ
बोली जाने वाली भाषाओं से संरचनात्मक रूप से अलग होती हैं और इनका प्रयोग
अधिकांशतः श्रवण बाधित लोगों द्वारा किया जाता है।
भारतीय सांकेतिक भाषा
अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र (ISLRTC)
भारतीय सांकेतिक भाषा
अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र (ISLRTC), सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के दिव्यांगजन
सशक्तीकरण विभाग का एक स्वायत्त राष्ट्रीय संस्थान है, जो भारतीय सांकेतिक भाषा
के उपयोग को लोकप्रिय बनाने और भारतीय सांकेतिक भाषा में शिक्षण तथा अनुसंधान हेतु
मानव शक्ति के विकास की दिशा में कार्य कर रहा है।
सर्वप्रथम 11वीं पंचवर्षीय योजना
(वर्ष 2007-2012) में यह स्वीकार
किया गया था कि अब तक श्रवण विकलांग लोगों की ज़रूरतों की उपेक्षा की गई है। साथ ही
इस योजना में भारतीय सांकेतिक भाषा के विकास और इसे बढ़ावा देने के लिये एक
सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र के विकास की परिकल्पना की गई।
इसके पश्चात् तत्कालीन
वित्त मंत्री ने वर्ष 2011-12
के केंद्रीय बजट
में भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र (ISLRTC) के गठन की घोषणा की।
नई शिक्षा नीति और भारतीय
सांकेतिक भाषा
इसी वर्ष जुलाई माह में
केंद्र सरकार ने ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020’ को मंज़ूरी दी थी, जिसने तकरीबन 34 वर्ष पुरानी वर्ष 1986 की ‘राष्ट्रीय शिक्षा
नीति’ को प्रतिस्थापित किया था।
देश की नई शिक्षा नीति के
अनुसार, भारतीय सांकेतिक
भाषा (ISL) को देश भर में
मानकीकृत किया जाएगा, और इस भाषा में
राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर की पाठ्यक्रम सामग्री विकसित की जाएगी, जो कि श्रवण बाधित
विद्यार्थियों द्वारा उपयोग में लाई जाएगी।
इसके अलावा नई शिक्षा
नीति में स्थानीय सांकेतिक भाषाओं को यथासंभव महत्त्व देने और बढ़ावा देने की भी
बात की गई है।
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