महात्मा गाँधी का जीवन तिथि वार : दक्षिण अफ्रीका में आरंभ भाग 02 | Mahatma Gandhi Life Chronology
महात्मा गाँधी का जीवन तिथि वार : दक्षिण अफ्रीका में आरंभ
महात्मा गाँधी का जीवन तिथि वार- 02 : दक्षिण अफ्रीका में आरंभ
16
मार्च 1912
गोखले
द्वारा 'अनुबंध प्रथा का उन्मूलन` करने के लिए गांधीजी की कोशिशों की प्रशंसा।
12
सितंबर 1912
फीनिक्स
ट्रस्ट बनाया गया।
22
अक्तूबर 1912
गोखले
के साथ दक्षिण अफ्रीका की यात्रा। यूरोपीय
ड्रेस और दूध का बहिष्कार। केवल फलाहार ही करते थे।
18
जनवरी 1913
भारतीय
भूमि पर वापसी का विचार।
14
मार्च 1913
सुप्रीम
कोर्ट ने अपने निणर्य में दक्षिण अफ्रीका में बसे भारतीयों के विवाह को मान्यता
प्रदान नहीं किया। इसे अवैध ठहराया गया।
1913
इस
निणर्य के खिलाफ भारतीयों की विशाल बैठकें हुईं।
12
अप्रैल 1913
कस्तूरबा
ने भी संघर्ष में शामिल होने का निश्चय किया।
19
मई 1913
सरकार
को चेतावनी दी,
और आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार
होने को कहा।
07
जून 1913
भारत
वापसी का विचार त्याग दिया। विवेकपूर्ण और समान अधिकार वाले कानून की मांग की।
1913
उचित
व्यवहार के आवश्यक पहलुओं का विवरण तैयार किया।
13
सितंबर 1913
उनकी
मांगों को निष्फल करार दिया गया।
1913
कस्तूरबा
गिरफ्तार हुईं।
17
अक्तूबर 1913
न्यू
कैस्टल पहुंचे। वहां के खान में काम करने वाले मजदूरों से मिले। 3 पाउंड कर के विरोध में मजदूरों से काम बंद
करने के लिए कहा।
3000 खान मजदूरों ने हड़ताल कर दी।
1913
'ट्रंसवाल चलो` का सुझाव (नारा) दिया।
1913
न्यू
कैस्टल से लोगों ने 'मार्च` (कूच) किया।
1913
चार्लस्टाउन
पहुंचे।
03
नवंबर 1913
ट्रंसवाल
की अदालत में कूच करने वाले लोगों ने अपनी गिरफ्तारियां दीं। यह गांधीजी की घोषणा
थी कि अपना विरोध प्रदर्शन करते हुए लोग अपनी गिरफ्तारी दें।
1913
गांधीजी
ने फोन पर स्मटस् से 3 पाउंड कर के बारे में उनका निर्णय पूछा।
1913
विशाल
आंदोलन का नेतृत्व किया।
1913
वॉल्कसरस्ट
में जमानत पर रिहा। आंदोलन करने वालों के साथ फिर शामिल हुए।
1913
स्टैंडैंर्टन
में गिरफ्तार। जमानत पर छूटे। आंदोलन जारी।
1913
टीकवर्थ
में गिरफ्तार कर बल्फोर के पास ले जाया गया।
1913
दिन
में एक बार ही भोजन करते, जब
तक कि कर माफ न कर दिया जाये।
1913
9 महीने की सजा हुई और दुंडी भेजा गया।
18
दिसंबर 1913
बिना
शर्त जेल से रिहा किये गये। जेल से छूटने और समझौता होने तक दिन में एक बार ही
भोजन करते और सामान्य मजदूरों जैसे वत्र पहनते।
13, 16, 22 जनवरी 1914
जनरल
स्मटस् से मिलकर अपना प्रस्ताव पेश किया। स्मटस्
से समझौता हुआ। सत्याग्रह भंग कर दिया।
जून
1914
भारतीय
राहत विधेयक पास हुआ।
18 जुलाई 1914
इंग्लैंड
की यात्रा पर गये।
04 अगस्त 1914
लंदन
पहुंचे।
भारतीय
स्वयंसेवकों का दल तैयार किया।
अक्तूबर
1914
स्वयंसेवक
सैनिक काम पर जुट गये।
सेना
के दल में प्रशासनिक भूमिका के विरोध में सत्याग्रह।
19 दिसंबर 1914
भारत
के लिए चल पड़े।
09 जनवरी 1915
भारत
पहुँचे।
'केसर-ए-हिंद` गोल्ड मेडल से सम्मानित किये गये।
20 मई 1915
सत्याग्रह
आश्रम की अमदाबाद में स्थापना की। बाद में साबरमती नदी के पास होने के कारण इसे
साबरमती आश्रम के नाम से जाना जाने लगा।
1915-16
भारत
और बर्मा की यात्रा, रेल के थर्ड क्लास डिब्बे में ही सफर किया।
1917
गांधीजी
के मन में चरखे की बात आई। ताकि बड़े पैमाने पर लोग इस हस्त उद्योग का लाभ ले
सकें।
अप्रैल
1917
बिहार
के चंपारन जिले में नील की खेती करने वाले किसानों पर हो रहे अत्याचारों को देखने,
जानने के लिए खुद गांव-गांव,
घर-घर तक गये।
गिरफ्तारी
हुई। बाद में छूटे। बिहार सरकार ने उन्हें किसानों की हालत का जायजा लेने वाली
समिति का सदस्य नियुक्त किया।
जनवरी-मार्च 1918
अमदाबाद
के मिल-मजदूरों को न्याय दिलाने के लिए उपवास शुरू किया। खेड़ा जिले में गये। फसल
न होने पर लगान माफ कराने के लिए सत्याग्रह।
27 अप्रैल 1918
दिल्ली
में वाइसराय की 'वार कांफ्रेंस` में शामिल हुए।
खेड़ा
जिले में चल रही सैनिक भर्ती में हिंदुस्तानियों के प्रतिनिधित्व की मांग की।
28 फरवरी 1919
रौलेट
एक्ट के विरोध में सत्याग्रह करने की
घोषणा।
06 अप्रैल 1919
अखिल
भारतीय स्तर पर सत्याग्रह की शुरुआत। देशव्यापी हड़ताल शुरू।
1919
पंजाब
जाने से पहले दिल्ली में ही रास्ते में गिरफ्तार। बंबई लाया गया। देशभर में हिंसा
शुरू हुई।
1919
जालियांवाला
बाग में भीषण घटना। जनरल डायर के इशारे पर चली गोली में 400 लोगों की मौत, हजारों जख्मी। साबरमती आश्रम में सभा
को संबोधित किया और तीन दिन के उपवास की
घोषणा
की।
1919
नाडियाड
में सत्याग्रह के बारे में अपनी भयंकर भूल को स्वीकार किया। पंजाब में हिंसा जारी।
मार्शल लॉ लागू हुआ।
1919
सत्याग्रह
वापस ले लिया।
सितंबर 1919
गुजराती
मासिक, नवजीवन का संपादन शुरू किया। बाद में हिंदी में भी साप्ताहिक शुरू
किया।
24 नवंबर
1919
दिल्ली
में आयोजित ऑल-इंडिया खिलाफत कांफ्रेंस की अध्यक्षता की।
दिसंबर 1919
अमृतसर
में कांग्रेस द्वारा मांटेग्यू चैम्सफोर्ड सुधारों को स्वीकार किये जाने की सलाह
दी।
जनवरी
1920
वाइसराय
से मिलकर मुस्लिमों के खलीफा (जो कि तुर्की का सुल्तान था) को पद से वंचित न करने
की मांग की।
01 अगस्त
1920
केसर-ए-हिंद
गोल्ड मेडल, झुलू वार मेडल और बोअर वार मेडल वाइसराय को वापस सौंप दिया।
सितंबर 1920
भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता के विशेष अधिवेशन में गांधीजी के 'असहयोग आंदोलन` को समर्थन मिला।
नवंबर 1920
अमदाबाद
में गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की।
दिसंबर 1920
नागपुर
के कांग्रेस अधिवेशन में गांधीजी के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया गया। स्वराज
प्राप्ति के लिए जनता द्वारा शांति का मार्ग अपनाया जाएगा, यह निण्Zाय हुआ।
1921
राष्ट्रीय
रचनात्मक आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए भारत में 1 करोड़ सदस्य बनाने,
'तिलक स्वराज फंड`
के लिए 1 करोड़ रुपए जमा करने और 20 लाख चरखे स्थापित करने का कार्यक्रम
शुरू।
अगस्त 1921
विदेशी
वस्तुओं के बहिष्कार के लिए किये जा रहे प्रचार का नेतृत्व। बंबई में विदेशी
वस्तुओं की होली जलाई गई।
01 फरवरी 1922
बारडोली
(गुजरात) सत्याग्रह शुरू करने से पहले वाइसराय को इसकी सूचना दी।
1922
उत्तर
प्रदेश में चौरी-चौरा कांड हुआ। जिसमें उपद्रवी भीड़ ने 21 पुलिसवालों को जिंदा जला दिया था।
पांच दिनों का व्रत रखा, और सत्याग्रह आंदोलन स्थगित कर दिया।
10 मार्च 1922
राजद्रोह
के आरोप में गिरफ्तार, 18 मार्च को छः साल की सजा सुनाई गयी।
1924
जनवरी-फरवरी
पूना
के ससून अस्पताल में अपेंडियायटिस का ऑपरेशन। 5 फरवरी को ही जेल से छोड़ दिये गये।
अप्रैल
1924
यंग
इंडिया और नवजीवन का दुबारा संपादन शुरू।
18 सितंबर 1924
हिंदु-मुस्लिम
एकता के लिए 21 दिन का व्रत शुरू।
दिसंबर
बेलगाम
की कांग्रेस समिति बैठक में अध्यक्षता की।
सितंबर 1925
'अखिल भारतीय चरखा संघ` की स्थापना की।
नवंबर 1925
आश्रम
में रहने वाले लोगों के दुराचार के कारण सात दिन का उपवास। अपनी आत्मकथा लिखने लगे
- मेरे 'सत्य के प्रयोग` की कथा।
नवंबर
1927
श्रीलंका
की यात्रा की।
दिसंबर
1928
कलकत्ता
के कांग्रेस अधिवेशन में शामिल। यहां यह संकल्प प्रस्तुत किया गया कि यदि वर्ष 1929 तक भारत को स्वतंत्र उपनिवेश का दर्जा
नहीं मिला तो फिर उसका अगला लक्ष्य स्वतंत्रता होगा।
दिसंबर
1929
लाहौर
के कांग्रेस अधिवेशन में यह निर्णय हुआ कि कांग्रेस के स्वराज का अर्थ पूर्ण
स्वराज (आजादी) है।
फरवरी
1930
ऑल
इंडिया कांग्रेस कमिटी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने के लिए कांग्रेस के
सर्वेसर्वा चुने गये
02 मार्च 1930
वाइसराय
को सूचित किया कि यदि कांग्रेस की मांगें नहीं मानी गईं तो वे नमक कानून को
तोड़ेंगे।
1930
दांडी
के समुद्री किनारों की यात्रा। जहां उन्होंने एक चुटकी नमक उठाकर (6 अप्रैल) नमक कानून तोड़ दिया।
05 मई
1930
गिरफ्तार
करके बिना मुकदमा चलाये जेल भेज दिया गया। देश भर में हड़तालें हुईं। वर्ष की
समाप्ति के पहले लगभग एक लाख लोग गिरफ्तार किये गये।
26 जनवरी 1931
बिना
किसी शर्त के कैद से छूटे।
फरवरी-मार्च
1931
वाइसराय
के साथ वार्ताओं (बातचीत) का कई दौर चला। बाद में 'गांधी-इरविन समझौता`
हुआ।
29 अगस्त
1931
द्वितीय
गोलमेज परिषद में भाग लेने के लिए कांग्रेस का प्रतिनिधि बनकर इंग्लैंड गये।
सितंबर-दिसंबर 1931
बैठक
में भाग लिया।
05 दिसंबर
1931
इंग्लैंड
छोड़कर भारत के लिए चल पड़े।
1931
बंबई
पहुंचे।
04 जनवरी 1932
गिरफ्तार
करके बिना मुकदमा चलाये जेल भेज दिया गया।
20 सितंबर 1932
सांप्रदायिक
अधिनिर्णय में हरिजनों के लिए अलग निर्वाचन मंडलों की व्यवस्था कराने के लिए जेल
में 'आमरण अनशन` प्रारंभ।
1932
भारत
सरकार की ओर से हरिजनों से संबंधित उनकी मांगें मान ली गईं। उन्होंने व्रत तोड़
दिया।
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