MPPSC Mains Question With Answer in Hindi- 2014 Paper 2 Question 2

 MPPSC Mains Question With Answer in Hindi

MPPSC Mains Question With Answer in Hindi | 2014 Paper 2 Question 2


राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की उपयोगिता बताइए । 

उत्तर- 

जिनेवा स्थित राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं की अंतर्राष्ट्रीय समन्वय समिति ने भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के शीर्ष '' ग्रेड दर्जे को बरकरार रखा है। आयोग को वर्ष 1993 में राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अंगीकृत किए गए पेरिस सिद्धान्तों के पूर्णतः अनुकूल बनाया गया है। इसका शासन एवं कार्यक्षेत्र काफी व्यापक है, जो कार्य संचालन और दायित्वों का निर्वाह बड़े ही पारदर्शी ढंग से करता है। 

आयोग को आतंकवादी गतिविधि अधिनियम (पोटा) की समीक्षा और पुलिस, सेना और अर्द्ध सैनिक बलों की भूमिका विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ विघटनकारी / आतंकवादी गतिविधियाँ चलाई जा रही हों, की जाँच करना होती है। पुलिस हिरासत से व्यक्ति का गायब होना, यातनाएँ और अन्य प्रकार के क्रूर अमानवीय / असम्मानजनक बर्तव की जाँच को भी उच्च प्राथमिकता दी जाती है। इसी प्रकार लिंग संबंधी हिंसा, महिलाओं, बच्चों, SC, ST, निःशक्तजनों से सम्बद्ध समाज के कमजोर वर्गों पर अत्याचार के मामलों की जांच को आयोग विशेष महत्व देता है।

 

राष्ट्रीय मानवाधिकार को प्रतिवर्ष औसतन 40-50 हजार शिकायतें प्राप्त होती हैं। प्रतिवर्ष लगभग 200 व्यक्ति पुलिस हिरासत, 1200 व्यक्ति न्यायिक हिरासत में दम तोड़ देते हैं। इसी तरह गैर-कानूनी गिरफ्तार, नजरबंदी, पुलिस प्रताड़ना, बलात्कार, अत्याचार, बाल श्रम शोषण, झूठे आरोपों, षड्यंत्रपूर्वक तथा धमकी से संबंधित शिकायतें अधिक हैं। जिन्हें बहुखूबी समाधान के लिए प्रयास किए जाते हैं।

 

Q- न्यायिक निष्क्रियता तथा न्यायिक सक्रियता के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर- 

भारतीय संविधान में न्यायपालिका को संविधान की रक्षक के तौर पर जिम्मेदारी सौंपी है। इसके तहत न्यायपालिका संविधान व कानूनों की व्याख्या करती है। साथ ही दाण्डिक मामलों का निपटारा करती है। यदि न्यायपालिका सिर्फ अपने इसी दायित्व का निर्वहन करती है तो इसे न्यायिक निष्क्रियता कहा जाता है।

 

जबकि न्यायपालिका ने मुख्यतः 1990 के दशक से अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों के निर्वहन के साथ-साथ सामाजिक जनहित के मुद्दों पर विधायिका व कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप करते हुए जनहित वाले मुद्दों पर निर्देश भी दिया है। इसे न्याय पालिका की सक्रियता कहा जाता है।

 

वर्तमान समय में यह विवाद का विषय है कि न्यायपालिक द्वारा कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप करना कितना सही है। लेकिन जहाँ तक जनहित व लोककल्याण की बात है वहाँ न्यायपालिका की इस सक्रियता का स्वागत किया जाना चाहिए।

 

Q  घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के प्रमुख प्रावधान बताइए । 

उत्तर- 

घरेलू हिंसा कानून के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं 

1. इस अधिनियम के तहत कोई भी महिला जो डोमेस्टिक रिलेशन में रहती है वह शिकायत कर सकती है। 

2. कोई भी महिला डोमेस्टिक रिलेशन में है और एक ही छत के नीचे अन्य के साथ रहती हो तो वह महिला प्रताड़ना की स्थिति में शिकायत कर सकती है। 

3. इस अधिनियम के तहत एक महिला जो शादी के रिलेशन में हो तो वह किसी दूसरे शख्स के खिलाफ शिकायत कर सकती है। वह दूसरा शख्स कोई पुरुष व महिला दोनों हो सकते हैं लेकिन वह डोमेस्टिक रिलेशन में होने चाहिए। 

4. अगर महिला शादी के रिलेशन में नहीं है और उसके साथ डोमेस्टिक रिलेशन में प्रताड़ना होती है तो वह ऐसी स्थिति में इसके लिए जिम्मेदार पुरुष को प्रतिवादी बना सकती है। 

5. कोई पत्नी, बहन, माँ, भाभी, बेटी आदि अगर डोमेस्टिक रिलेशन में हों और एक ही घर के नीचे रह रही हों तो वह एक्ट के तहत शिकायत कर सकते हैं। 

6. इस अधिनियम के तहत वह महिला भी अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है जो लिवइन रिलेशनशिप में रह रही हो। 

7. 2005 में बना यह कानून भूतलक्षी प्रभाव से लागू होता है यानी 2005 से पहले हुई घरेलू हिंसा के मामले में भी यह प्रभावकारी है। 

8. घरेलू हिंसा का मतलब है महिला के साथ किसी भी तरह की हिंसा या प्रताड़ना। अगर महिला के साथ मारपीट की गई हो या फिर मानसिक प्रताड़ना दी गई हो तो वह इस अधिनियम के तहत कवर होगा। 

9. महिला के साथ मानसिक प्रताड़ना से मतलब है ताना मारना या फिर गालीगलौज करना या फिर अन्य तरह से भावनात्मक ठेस पहुँचाना है। 

10. इसके अलावा आर्थिक प्रताड़ना भी इस मामले में कवर होता है। यानी किसी महिला को खर्चा न देना या फिर उसकी सैलरी आदि ले लेना या फिर उसके नौकरी आदि से संबंधित दस्तावेज कब्जे में ले लेना भी प्रताड़ना है। अगर किसी महिला प्रताड़ित किया जा रहा हो, उसे घर से निकाला जा रहा हो या फिर आर्थिक तौर पर परेशान किया जा रहा हो तो वह डीवी एक्ट के तहत शिकायत कर सकती है। 

11. इस अधिनियम की धारा 12 के तहत महिला संबंधित मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की कोर्ट में शिकायत कर सकती है। शिकायत पर सुनवाई के दौरान अदालत प्रोटेक्शन ऑफिसर से रिपोर्ट माँगती है। प्रोटेक्शन ऑफिसर इंसिडेंट रिपोर्ट अदालत के सामने पेश करता है और उस रिपोर्ट को देखने के बाद अदालत प्रतिवादी को समन जारी करती है। प्रतिवादी का पक्ष सुनने के बाद अदालत अपना आदेश पारित करती है। इस दौरान अदालत महिला को उसके डोमेस्टिक हाउस में रखने का आदेश दे सकती है। खर्चा देने के लिए कह सकती है या फिर उसे प्रोटेक्शन देने का आदेश दे सकती है। 

12. इस अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जाता है और उसमें दोषी पाए जाने पर एक साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। साथ ही 20 हजार रुपये तक जुर्माने का भी प्रावधान है।

 

Q- क्या शनैः शनैः भारत द्विदलीय प्रणाली की ओर बढ़ रहा है? 

उत्तर- 

द्विदलीय प्रणाली से सामान्य आशय उस व्यवस्था से है जिसमें सिर्फ दो दल ही प्रमुख होते हैं, जैसे उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में मुख्यतः दो ही दलों का शासन प्रभुत्व रहा है। 

जबकि भारत में बहुदलीय प्रणाली को अपनाया गया है। यहाँ राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों का भी अस्तित्व रहा है। वर्ष 1999 के चुनावों के पश्चात् निर्वाचन चुनाव पूर्व गठवन्धन बनाकर लड़े जा रहे हैं जो कि द्विदलीय प्रणाली के समान ही है। इसके अलावा वर्ष 2014 के आम चुनावों में भाजपा ने अपने दमपूर्ण बहुमत हासिल किया। इसके साथ ही महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखण्ड में भी भाजपा को बहुमत प्राप्त हुआ। यह संकेत यह व्यक्त करता है कि दो प्रमुख दलों को ही बहुमत मिल रहा है जबकि हाल ही के बिहार चुनावों ने द्विदलीय व्यवस्था के इस लक्षण को खोखला साबित कर दिया है। इसी तरह, प. बंगाल, उत्तर प्रदेश. तमिलनाडु में क्षेत्रीय दलों का शासन तथा महाराष्ट्र व जम्मू व कश्मीर में गठबन्धन सरकारें बहुदलीय व्यवस्था के ही संकेत हैं। अतः हम कह सकते हैं कि केन्द्र स्तर पर द्विदलीय प्रणाली के संकेत अवश्य हैं, लेकिन राज्य स्तर पर अभी भी बहुदलीय व्यवस्था के लक्षण विद्यमान हैं।

 

Q  क्या भारत में केन्द्रीय स्तर पर संविद (गठबन्धन) सरकार के दिन समाप्त हो गए हैं

उत्तर- 

वर्ष 2014 के आम चुनावों में भाजपा को पूर्ण बहुमत अकेले प्राप्त होना तथा वर्ष 2009 में, कांग्रेस पार्टी को 206 सीटें प्राप्त होना इस बात का संकेत कि भारत में अब गठबन्धन सरकारें बीते दिनों की बात हो जाएगी। 

लेकिन यह वास्तविक स्थिति से मुँह मोड़ने जैसा होगा यदि हम इन लक्षणों से गठबन्धन युग की समाप्ति का अनुमान लगाएँ। भाजपा को यद्यपि पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ है लेकिन वह आम चुनाव NDA के बैनर तले लड़ी थी. जिसका फायदा सहज ही उसे हुआ। दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी की जर्जर हालत यह संकेत करती है कि वह अपने दम पर पूर्ण बहुमत शायद ही कभी प्राप्त कर पाए। इससे यह प्रतीत होता है कि गठबन्धन सरकारें भविष्य में भी बनी रहेंगी। 

यह सत्य है कि गठबन्धन सरकारों में स्थायित्व की कमी होती है, लेकिन उनके क्षेत्रीय दलों को भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है जो कि भारतीय विविधता के लिए आवश्यक भी है।

 

Q सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गये विभिन्न निर्णयों की सहायता से संविधान के मूलभूत ढाँचे पर टिप्पणी। 

उत्तर-

न्यायपालिका का मूल कार्य संविधान की व्याख्या करना है । संविधान व मूल अधिकारों की रक्षा करना है, जबकि संसद को संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन द्वारा संविधान के किसी भी भाग में परिवर्तन की शक्ति प्राप्त है। 

इसी संबंध में सर्वप्रथम शंकरी प्रसाद मामले (1951) में सर्वोच्च न्यायालय ने संसद की मौलिक अधिकारों में संशोधन की शक्ति को मान्यता दी। वर्ष 1967 में गोलकनाथ मामले में संसद ने अपने वाद को पलटते हुए मौलिक अधिकारों में कटौती को अमान्य करार दिया। वर्ष 1971 में 24 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संसद ने मूल अधिकारों में कटौती सहित संविधान में संसद की सर्वोच्चता स्थापित करने का प्रयास किया।

 

वर्ष 1973 में केशवानन्द भारती मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने गोलकनाथ वाद को पलटते हुए संसद की संविधान के किसी भी भाग में कटौती को मान्य किया साथ ही संविधान की मूल संरचना (Basic structur) का सिद्धान्त दिया जिसमें संविधान के 19 मूलभूत तत्व बताए जिनमें संसद द्वारा इनमें परिवर्तन की शक्ति को सीमित करार दिया गया। इस तरह संविधान के मूलभूत तत्व का सिद्धान्त अस्तित्व में आया।

 

Q-  राज्य स्तर पर न्याय व्यवस्था 

उत्तर- 

उच्च न्यायालय 

संविधान में प्रत्येक राज्य में विवादों के निपटारे हेतु अनु. 214 में उच्च न्यायालय का प्रावधान है। भारत में कुल 21 उच्च न्यायालय हैं।

 

गठन- 

अनु. 216 के अनुसार प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश एवं राष्ट्रपति की इच्छानुसार अन्य न्यायाधीश होंगे। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में सम्बन्धित राज्य के राज्यपाल के परामर्श से राष्ट्रपति नियुक्ति करेंगे। अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, संबंधित राज्य के राज्यपाल व मुख्य न्यायाधीश के परामर्शानुसार होगी। 


उच्च न्यायालयों के अधीन तथा उसके नियंत्रण में कार्य करने वाले न्यायालयों को संविधान द्वारा अधीनस्थ न्यायालय कहा गया है। अधीनस्थ न्यायालयों संबंधी प्रावधान संविधान भाग 6 के अध्याय-6, अनु. (233-237) में दिया गया है। यद्यपि भारत के अलग-अलग राज्यों में अधीनस्थ न्यायालयों के अलग-अलग नाम तथा स्तर हैं किन्तु इनका गठन तथा कार्यप्रणाली पूरे देश में लगभग एक समान है। अधीनस्थ न्यायालय जिला स्तर का न्यायालय होता है, अतः इसे जिला न्यायालय भी कहा जाता है। यह जिले का सबसे बड़ा न्यायालय होता है। जिला न्यायालय को दो वर्गों, यथा- दीवानी न्यायालय तथा आपराधिक न्यायालय में बांटा जा सकता है। दीवानी न्यायालय में दीवानी मामले तथा आपराधिक (फौजदारी) न्यायालय में आपराधिक मामले सुने जाते हैं।

 

(1) जिला न्यायालय

जिला न्यायालय का प्रधान जिला न्यायाधीश होता है। वह जिले का सबसे बड़ा न्यायिक अधिकारी होता है। जिला न्यायाधीश दीवानी तथा आपराधिक दोनों प्रकार के मामलों की सुनवाई करता है। जब वह दीवानी मामलों को सुनता है तब उसे जिला जज तथा जब आपराधिक मामलों को सुनता है तब सत्र न्यायाधीश कहा जाता है। इसीलिए इसे जिला एवं सत्र न्यायाधीश भी कहा जाता है।

 

(2) राजस्व न्यायालय (Court of Revenue )- 

राज्यों भू-राजस्व के सम्बन्ध में राज्य स्तर पर पृथक न्याय के प्रणाली का प्रावधान किया गया है, जिसमें सबसे ऊपरी स्तर पर 'राजस्व मण्डल' तथा सबसे नीचे के स्तर पर तहसीलदार का न्यायालय होता है।

 

(3) लघुवाद न्यायालय- 

ये न्यायालय भी दीवानी का निस्तारण करते हैं। ये न्यायालय पाँच हजार रुपए तक के उन लघुवादों की सुनवाई करते हैं, जिनमें धन वसूली की माँग की गई हो। इसके अतिरिक्त लघुवाद न्यायालय किराया वसूली व मकानों दुकानों से किरायेदार की बेदखली के 25 हजार रुपए मूल्य तक के वादों की सुनवाई कर सकते हैं।

 

Q  क्या निर्वाचन आयोग निष्पक्ष और स्वतंत्र संस्था है? 

उत्तर- 

लोकतंत्र की सफलता और उसका भविष्य निर्वाचन व्यवस्था की निष्पक्षता व स्वतंत्रता पर निर्भर करता है। लोकतंत्रीय व्यवस्था में निर्वाचनों का विशेष महत्व है, क्योंकि निर्वाचन ही एक माध्यम है, जिसके द्वारा सरकार को वैधानिकता प्राप्त होती है और शासन सत्ता का शान्तिपूर्ण ढंग से हस्तान्तरण होता है। इसीलिए लोकतंत्री शासन व्यवस्था वाले देशों में एक कुशल व निष्पक्ष निर्वाचन तंत्र की व्यवस्था की जाती है। भारतीय संविधान में भी निर्वाचन प्रक्रिया के इस महत्व हेतु संविधान के भाग 15 में अनुच्छेद 324 से 329 तक निर्वाचन आयोग की व्यवस्था की है। 

भारत में निर्वाचन आयोग की नियुक्ति तथा हटाने की उचित प्रक्रिया को अपनाया गया है जिससे चुनाव आयोग की निष्पक्षता सुनिश्चित होती है। इसी तरह 15वीं लोकसभा तक का अनुभव भी यही कहता है कि भारतीय निर्वाचन आयोग निष्पक्ष व स्वतंत्र संस्था के रूप में कार्य कर रहा है।

 

Q  जो सबसे आगे वही जीते।"

उत्तर- 

बहुमत प्रणाली के अंतर्गत यह प्रयोजन है कि जब एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र में तीन या तीन से अधिक उम्मीदवार खड़े हो और मतदाता उनमें से किसी एक उम्मीदवार को अपना वोट देता है, तब जब जिस उम्मीदवार को अन्य प्रत्येक उम्मीदवार की तुलना में सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है। इसका मुख्य नियम है 'जो सबसे आगे, जीत उसकी।' इसमें निर्वाचित उम्मीदवार के लिए पूर्ण बहुमत प्राप्त करना जरूरी नहीं होता, अर्थात् यह नहीं देखा जाता कि उसे कुल मान्य वोटों में से 50 प्रतिशत से अधिक वोट प्राप्त हो या न हो। यह प्रणाली ब्रिटिश संसद अमेरिकी प्रतिनिधि सभा, भारत की लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं, इत्यादि के चुनाव के लिए व्यापक रूप से अपनाई जाती है. इसके विरोधी यह तर्क देते हैं कि यह अल्पसंख्यक वर्गों के प्रति अन्यायपूर्ण है, क्योंकि यदि वे अधिकांश निर्वाचन क्षेत्रों में थोड़े-थोड़े वोटों से हार जाते हैं तो सदन में उनका समुचित प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता। इसके समर्थक यह तर्क देते हैं कि यह दो दलीय प्रणाली को बढ़ावा देती है, जिसमें सरकार और विपक्ष के बीच संतुलन बना रहता है; यह अल्पसंख्यक वर्गों की पृथकतावादी प्रवृत्तियों को रोकते हुए उन्हें राष्ट्र की मुख्य धारा के साथ जुड़ जाने की प्रेरणा देती है और बहुमत को अल्पमत के प्रति संवेदनशील बनाती है; और सबसे बढ़कर, यह अपेक्षाकृत स्थिर सरकार बनाने में सहायता करती है।

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