PPP मॉडल क्या होते हैं ? |PPP के प्रमुख मॉडल | PPP Models Details in Hindi

PPP मॉडल क्या होते हैं ? PPP के प्रमुख मॉडल  (PPP Models Details in Hindi)

PPP मॉडल क्या होते हैं ? |PPP के प्रमुख मॉडल | PPP Models Details in Hindi



PPP मॉडल क्या होते हैं ?

  • PPP सार्वजनिक संपत्ति और/या सार्वजनिक सेवाओं के प्रावधान के लिये सरकारी एवं निजी क्षेत्र के बीच एक व्यवस्था है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी बड़े पैमाने पर सरकारी परियोजनाओंजैसे- सड़कोंपुलों और अस्पतालों को निजी वित्तपोषण के साथ पूरा करने की अनुमति देती है।
  • इस प्रकार की साझेदारी में निजी क्षेत्र की संस्था द्वारा एक निर्दिष्ट अवधि के लिये निवेश किया जाता है।
  • समय पर एवं बजट के भीतर काम पूरा करने के लिये निजी क्षेत्र की प्रौद्योगिकी और नवाचार के साथ सार्वजनिक क्षेत्र के प्रोत्साहन के संयोजन से इस साझेदारी को सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • चूँकि PPP में सेवाएँ प्रदान करने के लिये सरकार द्वारा ज़िम्मेदारी का पूर्ण प्रतिधारण शामिल हैइसलिये यह निजीकरण के समान नहीं है।
  • इसमें निजी क्षेत्र और सार्वजनिक इकाई के बीच जोखिम का सुपरिभाषित आवंटन शामिल है।


PPP मॉडल की चुनौतियाँं:

  • PPP परियोजनाओं के समक्ष मौजूदा अनुबंधों में विवादपूंजी की अनुपलब्धता और भूमि अधिग्रहण से संबंधित नियामक बाधाएँ जैसे मुद्दे मौजूद हैं।
  • मेट्रो परियोजनाएँ क्रोनी कैपिटलिज़्म से ग्रसित हो जाती हैं और निजी कंपनियों द्वारा भूमि एकत्रण करने का एक साधन बन जाती हैं।
  • माना जाता है कि बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये ऋण प्रदान करने में भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के गैर-निष्पादित परिसंपत्ति पोर्टफोलियो का एक बड़ा हिस्सा शामिल है।
  • PPP में फर्म कम राजस्व या लागत में वृद्धि जैसे कारणों का हवाला देकर अनुबंधों पर फिर से बातचीत करने के लिये हर अवसर का उपयोग करती है।
  • बार-बार होने वाली बातचीत के परिणामस्वरूप सार्वजनिक संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा इसमें समाप्त हो जाता है।


PPP के प्रमुख मॉडल:

इंजीनियरिंगखरीद और निर्माण (EPC):

इस मॉडल के तहत लागत पूरी तरह से सरकार द्वारा वहन की जाती है। सरकार निजी कंपनियों से इंजीनियरिंग कार्य के लिये बोलियाँ आमंत्रित करती है। कच्चे माल की खरीद और निर्माण लागत सरकार द्वारा वहन की जाती है।

हाइब्रिड वार्षिकी मॉडल (HAM):

भारत में नया HAM BOT-एन्युइटी और EPC मॉडल का मिश्रण है। डिज़ाइन के अनुसारसरकार वार्षिक भुगतान के माध्यम से पहले पाँच वर्षों में परियोजना लागत का 40% योगदान देगी। शेष भुगतान सृजित परिसंपत्तियों और विकासकर्त्ता के प्रदर्शन के आधार पर किया जाएगा।

बिल्ड-ओन-ऑपरेट (BOO):

इस मॉडल में नवनिर्मित सुविधा का स्वामित्व निजी पार्टी के पास रहेगा।

पारस्परिक रूप से नियमों और शर्तों पर सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदार परियोजना द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की 'खरीदकरने पर सहमति बनाई जाती है।

बिल्ड-ओन-ऑपरेट-ट्रांसफर (BOOT):

BOOT के इस प्रकार में समय पर बातचीत के बाद परियोजना को सरकार या निजी ऑपरेटर को स्थानांतरित कर दिया जाता है।

BOOT मॉडल का उपयोग राजमार्गों और बंदरगाहों के विकास के लिये किया जाता है।

बिल्ड-ओन-लीज़-ट्रांसफर (BOLT):

इस मॉडल में सरकार निजी साझेदार को सार्वजनिक हित की सुविधाओं के निर्माण हेतु कुछ रियायतें देती हैसाथ ही इसके डिज़ाइनस्वामित्त्वसार्वजनिक क्षेत्र के पट्टे का अधिकार भी देती है।

डिज़ाइन-बिल्ड-फाइनेंस-ऑपरेट (DBFO):

इस मॉडल में अनुबंधित अवधि के लिये परियोजना के डिज़ाइनउसके विनिर्माणवित्त और परिचालन का उत्तरदायित्त्व निजी साझीदार पर होता है।

लीज़-डेवलप-ऑपरेट (LDO):

इस प्रकार के निवेश मॉडल में या तो सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र के पास नवनिर्मित बुनियादी ढाँचे की सुविधा का स्वामित्व बरकरार रहता है और निजी प्रमोटर के साथ लीज़ समझौते के रूप में भुगतान प्राप्त किया जाता है। इसका पालन अधिकतर एयरपोर्ट सुविधाओं के विकास में किया जाता है।

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