मध्यप्रदेश की कोल जनजाति की जानकारी | MP Koal Tribes Details in Hindi

मध्यप्रदेश की कोल जनजाति की जानकारी  (MP Koal Tribes Details in Hindi) 

मध्यप्रदेश की कोल जनजाति की जानकारी | MP Koal Tribes Details in Hindi




मध्यप्रदेश की कोल जनजाति की जानकारी 


कोल जनजाति की जनसंख्या 

इसकी कुल जनसंख्या 1167694 आंकी गई हैैं, जो प्रदेश की कुल जनसंख्या का 1.608 प्रतिशत हैं।

 

कोल जनजाति निवास क्षेत्र 

कोल जनजाति की जनसंख्या जिला श्योपुंर, मुरैना, भिण्ड, ग्वालियर,  गुना, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, सागर, दमोह, सतना, रीवा, उमरिया, शहडोल, सीधी, नीमच, मंदसौर, रतलाम, उज्जैन,  देवास, झाबुआ, धार, इन्दौर,  बड़वानी, पूर्वी निमाड़, पश्चिम निमाड़, राजगढ़, विदिशा, भोपाल, सीहोर, रायसेन, बैतूल, हरदा, होशगाबाद, कटनी, जबलपुर, नरसिंहपुर, डिण्डौरी, मण्डला, छिंदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट में पायी गई है।

 

कोल जनजाति गोत्र 

इस जनजाति के प्रमुख गोत्र ठाकुरिया, रातुल, बरवार, चेरो, बारगिया, मवासी, बर्न, सोतवानी, कुम्हारिया, कथरिया, भुवार, रंकटा, करपतिया, कटोलिया, नभुनिया, दाहित, रतुआ आदि हैं।

 

कोल जनजाति रहन-सहन 

कोल जनजाति के लोग प्रायः अलग टोले में रहना पसंद करते हैंे। घर अत्यन्त साधारण स्तर का होता हैं। लकड़ी की बल्लियां गाड़कर उस पर आडे़ डंडे रखकर फिर उस पर आड़ी लकड़ियां रखते हैं। इसके ऊपर खपरैल छाते हैं। घर की दीवारें बांस, मिट्टी की बनी होती हैं। जिसे कुड़ कहते हैं। घर में खिड़किया नही होती हैं। घर के आस पास कांटेदार बागढ़ लगाते हैं। घर में प्रायः दो या तीन कमरे व बरामदा होता है। बरामदे मेें गाय, बैल, बकरियां बांधते हैं। कोल जनजाति का रहन सहन बहुत  ही सादा होता है। दैनिक जीवन में पहनने के वस्त्र के अलावा इनके घर में बिछाने के लिए मोटी कम्बल होती है। खाना बनाने का मिट्टी का चूल्हा, एल्यूमोनियम, मिट्टी, लोहे के बर्तन, अनाज पीसने का पत्थर का जाता, अनाज रखने की मिट्टी का कुठिया  आदि।

 

कोल जनजाति खान-पान 

इनका मुख्य भोजन मकई, ज्वार, बाजरा, गेहूॅ की रोटी, कोदो, कभी कभी चावल का भात, चना, उड़द, तुवर की दाल मौसमी घर की बाड़ी में  उगाई हुई सब्जियां, भोजन प्रायः दिन में दोपहर एवं रात्रि में किया जाता है। इनमें अपने देवी देवताओं की पूजा करने के उपरान्त ये मांस मछली खाने का बहुत प्रचलन हैं।

 

कोल जनजाति वस्त्र-आभूषण 

वस्त्र विन्यास में कोल जनजाति के लोग निर्धनता के कारण कम वस्त्र धारण करते हैं। पुरूष धोती, कमीज सिर पर सफेद रंग बिरंगे साफे पहनते हैं। स्त्रियाँ चोली, घाघरा और लुगड़ा, ओड़नी  पहनती हैं। कोल जनजाति की स्त्रियाँ गहनों की शौकिन होती हैं। इनके गहने चांदी, गिलट व कांसे के होते हैं। गिलट के गहनों का इनमें अधिक हैं। सिर में बोर, राखड़ी, छिवरा, कानों में टोकड़ी, झांझर, बलियां, नाक में नाक काटा, नथ, गले में तागली, हाथों मे  कांच की चूड़ियाँ, पैरों में बाकड़िया, तोड़ा आदि पहनती हैं।

कोल जनजाति तीज-त्यौहार 

इस जनजाति के प्रमुख त्यौहार दीवाली, दशहरा, रक्षाबंधन, होली, आखातीज, दिवासा, नागपंचमी आदि हैं।


कोल जनजाति व्यवसाय 

इस जनजाति का मुख्य व्यवसाय कृषि तथा वनोपज संग्रह हैं।

 

कोल जनजाति जन्म-संस्कार 

प्रसव पति के घर पर ही स्थानीय दायी द्वारा कराया जाता हैं। छह दिन तक सोर माना जाता हैं। सातवे दिन सोर उठने के बाद महिला घर के काम करने लगती हैं। इस अवसर पर बच्चे का मुण्डन कन्छेदन कराया जाता है। साता पूजन होती है, जिसमें बच्चे व प्रसूता को नहलाकर देवी देवता को प्रणाम कराते हैं। रिश्तेदारों को चावल दाल तथा गुड़ खिलाया जाता है।

 

कोल जनजाति विवाह-संस्कार 

कोल जनजाति में विवाह की अपनी विशिष्ट प्रथाएं हैं। विवाह एक गोत्र के लड़के लड़कियों एवं उक्त संबंधियों के बीच नही करते। विवाह तय करने के लिए लड़के वालों को ही पहल करनी पड़ती है। विवाह का प्रस्ताव फूफा के द्वारा (माध्यम से) लड़की वालों के घर पहुॅचाया जाता है। विवाह तय (पक्का) होने पर “गोड़धोबा” कार्यक्रम होता हैं। इसमें लड़की पक्ष द्वारा लड़के पक्ष के सदस्यों के पैर धोये जाते हैं। इसके पश्चात सभी भोजन करते हैं। इस अवसर पर महिलाएँ एवं पुरूष “कोलदहका” गीत गाते हैें। इस जनजाति में विवाह उम्र लड़कियों की 15 तथा लड़को की 17-18 वर्ष मानी जाती हैं।  इनमें वधू मूल्य प्रथा प्रचलित हैं। वधूूमूल्य का निर्धारण प्रायः मगंनी के पूर्व दोनों पक्षों की सहमति के आधार पर तय किया जाता हैं। इसे हथनैना कहते हैं। विवाह की रस्म जाति के बुजुर्ग व्यक्ति संपन्न कराते हैं। सामान्य विवाह के अतिरिक्त विनिमय विवाह, सेवा विवाह भी पाया जाता है। सहपलायन, घुसपैठ को भी सामाजिक जुर्माना लेकर विवाह मान लिया जाता है। विधवा पुनर्विवाह की सामाजिक अनुमति है।

 

कोल जनजाति मृत्यु संस्कार 

इस जनजाति में अविवाहित एवं कम उम्र के व्यक्ति की मृत्यु होने पर दफनाया जाता हैं। विवाहित एवं बुुजुर्ग लोगों की मृत्यु होने पर शव को जलाते हैं। मृत्यु के तीसरे दिन चिता से राख फूल उठाये जाते हैं। जिन्हें पास की नदी में या गंगाजी में विसर्जित करते हैं। घर की शुध्दिकरण का कार्य मृत्यु के दसवे दिन किया जाता हैं। परिवार के सभी पुरूष सिर के बाल मुंड़ाते हैं तथा मृतक के घर भोजन करते हैं। इसे दशे कहा जाता हैें। इस जनजाति में  मृत्यु भोज या दशे अनिवार्य माना जाता है। मृत्यु भोज के लिए समाज के सभी लोग अनाज देकर मृतक परिवार को सहयोग देते हैं।

 

कोल जनजाति देवी-देवता 

कोल जनजाति द्वारा पारम्परिक रूप से पूजे जाने वाले देवी देवता काली देवी, शारदा देवी, बाबा साहिब, मैहर देवी, शीतला देवी, भैरो, कालभैरो, हरदौल, दूल्हादेव आदि इसके अतिरिक्त हिन्दू देवी देवताओं की भी पूजा करते हैं।

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