रूसो के अनुसार शिक्षण विधि |Method of teaching according to Rousseau

रूसो के अनुसार शिक्षण विधि  (Method of teaching according to Rousseau)

रूसो के अनुसार शिक्षण विधि |Method of teaching according to Rousseau
 

रूसो के अनुसार शिक्षण विधि  (Method of teaching according to Rousseau)


रूसो अपने प्रकृतिवादी सिद्धान्तों को शिक्षण - विधि का आधार बनाता है। बच्चे को पढ़ाये जाने की क्रिया को वह बचपन का अभिशाप मानते है । अगर बच्चे में जानने या सीखने की इच्छा जागृत हो जायेगी तो वह स्वयं सीख लेगा। रूचि सीखने की पहली शर्त है। हमलोग वैसे पाठ से कुछ भी नहीं सीख सकते जिसे हम नापसन्द करते हैं। उसने शिक्षण-विधि में निम्नलिखित दो सिद्धान्तों को महत्व दिया- 

 

(अ) अनुभव के द्वारा सीखना: 

  • रूसो एमिल को किताबों की बजाय अनुभव के द्वारा शिक्षित होते देखना चाहता था। रूसो पुस्तकों का विरोधी था क्योंकि उसकी दृष्टि में पुस्तक वैसी चीजों के बारे में बोलना सिखाता है जिसे हम जानते नहीं हैं। रूसो प्रथम बारह वर्षों तक बच्चे को पुस्तकों की दुनिया से अलग रखना चाहता था । केवल राबिन्सन क्रूसो नामक पुस्तक को छोड़कर । यह किताब मानव की प्राकृतिक आवश्यकताओं का बड़े ही सरल ढंग से विश्लेषण करता है। बच्चा इसे आसानी से समझ सकता है और इन आवश्यकताओं को कैसे संतुष्ट किया जाय यह भी सीख सकता है .

 

(ब) कर के सीखना: 

  • रूसो शब्दों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा उस हद तक प्रभावशाली नहीं मानता था जिस हद तक कर के सीखने की प्रक्रिया को वह रट कर सीखने का विरोधी था । वह बच्चों में तर्कविश्लेषण एवं संश्लेषण की शक्ति को विकसित करना चाहता था। रूसो परम्परागत शिक्षण-विधि का प्रबल विरोधी था । वह छात्रों को स्वयं निरीक्षण अनुभव एवं विश्लेषण द्वारा सीखने का पक्षपाती था। बच्चे के मस्तिष्क में अध्यापक अपने ज्ञान को ढूँढ़ने का प्रयास न कर उसकी जिज्ञासा को बढ़ाये ताकि वह स्वयं समस्या का समाधान ढूंढ़ सकें जिससे उसका मस्तिष्क विकसित होगा। विज्ञान जिज्ञासानिरीक्षणप्रयोग एवं अनुसंधान के माध्यम से ही सर्वोत्तम ढंग से पढ़ाया जा सकता है। रूसो के इन्हीं विचारों के आधार पर बाद में ह्यूरिस्टिक विधि का विकास किया गया। लम्बे व्याख्यान बच्चे के शिक्षण को अवरोधित करते है क्योंकि यह नई चीजो के लिए बच्चे के भूख को समाप्त करता है। व्याख्यान की जगह बच्चों को स्वयं कर के सीखने का अवसर मिलना चाहिए यह अनुचित है कि पहले हम एक शिक्षण-विधि का विकास कर लें और फिर बच्चे को उस विधि के अनुरूप बनाने का प्रयास करें ।

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