रूसो के अनुसार बच्चे में अनुशासन |रूसो की दृष्टि में अध्यापक (शिक्षक) की भूमिका| Discipline in the child according to Rousseau

 रूसो के अनुसार बच्चे में अनुशासन

रूसो के अनुसार बच्चे में अनुशासन |रूसो की दृष्टि में अध्यापक (शिक्षक) की भूमिका| Discipline in the child according to Rousseau
 

रूसो के अनुसार बच्चे में अनुशासन

  • बच्चे में उचित अनुशासन की भावना की विकास के लिए रूसो के अनुसारबच्चे को पूर्ण स्वतंत्रता देनी चाहिए। यह अनुशासन के लिए पहला कदम है। बच्चे को अनावश्यक बंधन में रखने से उसमें अनुशासन की भावना के विकास को बाधित करना है। बच्चा अगर प्राकृतिक वातावरण में स्वतंत्र रहेगा तो उसकी अन्तर्निहित शक्तियों का बेहतर विकास होगा। 
  • रूसो दण्ड देने के विरूद्ध थे क्योंकि उनका मानना था बच्चे को गलतियों का प्राकृतिक परिणाम के रूप में आना चाहिए। रूसो के अनुसार बच्चे को गलत और सही की समझ नहीं रहती है - लेकिन जब गलती करता है तो उसे पीड़ा या दंड मिलता है और जब वह सही करता है तो आनन्द । इस प्रकार वह प्राकृतिक परिणाम के अनुभव के द्वारा प्रकृति के नियमों को पालन करना सीखता है। अनुशासन के संदर्भ में व्याख्यान उसे अनुशासन से उदासीन बनायेगा। प्रकृति के के परिणाम के द्वारा स्वयं बेहतर अनुशासित व्यक्ति बन सकता है। रूसो के अनुसार व्यक्ति को कभी भी आज्ञाकारिता के कारण नहीं बल्कि आवश्यकता के कारण कर्म करना चाहिए।

 

रूसो की दृष्टि में अध्यापक (शिक्षक) की भूमिका

 

  • रूसो की दृष्टि में अध्यापक की भूमिका प्रशासक की नहीं होनी चाहिए न ही वह सारे ज्ञान का स्रोत है जो बच्चों को मिलना चाहिए। अध्यापक की भूमिका वस्तुतः निरीक्षक (गाइड) एवं सहयोगी की है। अध्यापक उसके दिमाग को सूचनाओं से भरने का प्रयास नहीं करेगा न ही उसके चरित्र को प्रभावित करने का प्रयास करेगा। बच्चा जब किसी चीज को सीखने की आवश्यकता अनुभव करे तो अध्यापक उन परिस्थितयों के निर्माण में सहायता कर सकता है जिससे बच्चा स्वयं सीख सके । मान्टेसरी पद्धति रूसो के इसी सिद्धान्त पर आधारित है। शिक्षा बच्चे की रूचि के अनुसार होनी चाहिए। अध्यापक को अपने को पृष्ठभूमि में रखना चाहिए ताकि बच्चा अपनी रूचि को प्रदर्शित कर सके और उसके अनुरूप शिक्षा ग्रहण कर सके. 

 

  • रूसो के द्वारा प्रतिपादित निषेधात्मक शिक्षा में अध्यापक बच्चे की गतिविधि में हस्तक्षेप नहीं करेगा पर उसकी गतिविधियों पर अपनी दृष्टि रखेगा। वह बच्चे से सहानुभूति और स्नेह रखेगा। वह बालक की निश्छलता एवं सादगी को अपने में बनाये रखेगा और बच्चों के साथ खेलतेदौड़ते उन्हीं में से एक हो जायेगा तभी वह बच्चों को धनात्मक परिवेश दे सकता है।

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