औषधि महत्व वाले पौधे और उनकी जानकारी और उपयोग|औषधि महत्व वाले पौधे| Medicinal plants Details in Hindi

औषधि महत्व वाले पौधे और उनकी जानकारी, Medicinal plants Details in Hindi

औषधि महत्व वाले पौधे और उनकी जानकारी और उपयोग|औषधि महत्व वाले पौधे| Medicinal plants Details in Hindi


औषधि महत्व वाले पौधे और उनकी जानकारी

कंकेडा-

'कुकुरबिटेसी' कुल के इस पादप को वानस्पतिक भाषा में 'मेमोरडिका डायोका' तथा स्थानीय भाषा में कंकेडा,   गोलकन्दरा, जंगली करेला, मुरेला आदि नामों से जाना जाता है. इस आरोही अथवा फैलने वाली झाड़ी की जड़ एवं फल उपयोगी हैं. 

इसकी भूनी हुई जड़ का उपयोग बवासीर में, रक्तस्राव रोकने में, मूत्राशय की शिकायत, उच्च ज्वर, अल्पकालीन मतिभ्रम, सर्पदंश, बिच्छु के डंक लगने पर किया जाता है. इसका रस कीटाणुनाशक एवं फल शाक (Herb) के रूप में प्रयुक्त होते हैं. 

 

सुगंध रोहिशा (Cymbopagon citratus) - 

इसे सुगंध रोहिशा अग्याघास, गंधत्रणा आदि नामों से जाना जाता है. इसे वानस्पतिक भाषा में 'सिम्बोपोगोन स्ट्रिटस' कहते हैं. यह बहुवर्षीय घास, कुल 'पोएसी' का सदस्य है तथा इसकी पत्तियाँ उपयोगी हैं. इसमें 'सिट्राल' नामक रसायन पाया जाता है. इसकी पत्तियों का निचौड़ उत्तेजक के रूप में, श्लेष्म झिल्ली की जलन के साथ बहती नाक की रोकथाम में उपयोगी है. इसका तेल वायु विकार कम करने, हैजा रोग में, सुगंध के रूप में, सौन्दर्य प्रसाधनों में, स्वाद बढ़ाने एवं चाय के प्रतिस्थापक के रूप में उपयोगी है.

 

मरुवा - 

इसे वानस्पतिक भाषा में 'मेजोराना होरटेन्सिस' कहते हैं. यह शाक (Herb) पादप 'लेविएटी' कुल का पादप है तथा इसका सम्पूर्ण पादप भाग उपयोगी है. 

इसका उपयोग वायुविकार, कफ एवं बलगम के निष्कासन में एवं कोलिक में होता है. सुगंधित तेल का उपयोग तीव्र अतिसार, मोच, त्वचा छिलने, अकड़े हुए एवं लकवाग्रस्त जोड़ों के उपचार में, दाँत दर्द एवं इत्र तथा साबुन निर्माण में किया जाता है.

 

पिनडारा -

इसे सुखदर्शन, पिनडारा आदि स्थानीय नामों से जाना जाता है. इस शाक (Herb) पादप का वानस्पतिक नाम 'क्रीनम - एसियाटिकम' है तथा यह कुल एमऐलिडेसी (Amaryllidaceae) का सदस्य है. इसका कंद, जड़, बीज एवं पत्तियाँ उपयोगी हैं. इसमें लाइकोरिन (Lycorin) एवं क्राइनामिन (Crinamine) सक्रिय रसायन पाए जाते हैं. 

इसके कंद का उपयोग पोषक द्रव्य (Tonic) की तरह, स्नेहक, कफ तथा बलगम निष्कासन, उल्टी रोकने, धीमा एवं दर्दयुक्त मूत्रसाव में किया जाता है. इसकी ताजी जड़ उल्टी पैदा करती हैं एवं स्वेद स्राव बढ़ाती हैं. इसका बीज स्नेहक के रूप में, मासिक स्राव वृद्धि, मूत्र वृद्धि एवं पोषक द्रव्य के रूप में उपयोगी है. इसकी पत्तियाँ त्वचा रोग एवं जलन कम करने में उपयोगी हैं.

 

अर्जुन -

इस वृक्ष पादप का नाम वानस्पतिक भाषा में 'टरमिनेलिया अर्जुना' है तथा यह कुल कोम्ब्रीटेसी (Combertacee) का सदस्य है. इसकी छाल, फल तथा पत्तियाँ उपयोगी हैं. 

इसकी छाल का उपयोग हृदय रोग में, पोषक द्रव्य की तरह, घाव भरने, बुखार कम करने में, पित्त विकार, छालों एवं विष के तोड़ के रूप में किया जाता है. इसका फल पोषक द्रव्य के रूप में एवं पत्तियों का रस कान की पीड़ा के उपचार में उपयुक्त किया जाता है.

 

मोलसरी - 

माइमोसोप्स इलैन्जी' नामक वानस्पतिक नाम वाले 'सेपोटेसी' कुल के वृक्ष को स्थानीय भाषा में मोलसरी, बकुला, बकुल आदि कहते हैं. इसकी छाल, पत्तियाँ एवं फल उपयोगी हैं. 

इसकी छाल का उपयोग त्वचा सिकोड कर घाव भरने, पोषक द्रव्य की तरह एवं बुखार में किया जाता है. इसकी पत्तियाँ सर्पदंश में उपयोगी हैं एवं पके फल के गूदे का उपयोग त्वचा सिकोड कर घाव भरने एवं पेचिश की बिगड़ी अवस्था में किया जाता है.

 

हरड - 

इसे वानस्पतिक भाषा में 'हरमिनोलिया चिबुला' कहते हैं. यह  'क्रॉम्बीटेसी' (Combertaceae) का वृक्ष पादप है तथा स्थानीय भाषा में इसे हरीर या हरड़ कहा जाता है. इसके फल एवं छाल उपयोगी हैं. 

इसके फलों का उपयोग घाव भरने, स्नेहक (Laxatine) के रूप में, अव्यवस्थित पोषण एवं शारीरिक तंत्र की कार्य प्रणाली के सुधार के लिए नासूर एवं घाव में, छिद्र युक्त दाँतों के उपचार मसूड़ों में छाले व रक्तस्राव में किया जाता है. छाल का उपयोग मूत्रवर्धन एवं मूत्रसाव तथा हृदय के पोषक द्रव्य (Tonic) की भाँति किया जाता है.

 

इमली-

अम्ली, इमली आदि नामों से जाने वाले इस वृक्ष पादप का वानस्पतिक नाम 'टेमोरिनडस इंडिका' है. यह कुल 'सीजलपीनियेसी' का पादप है, जिसके फल उपयोगी हैं. इसमें ऑक्जेलिक अम्ल एवं टारटोरिक अम्ल नामक रसायन पाए जाते हैं. 

इसके फल ताजगी प्रदान करते हैं, वायुविकार मिटाते हैं. यह पाचक, स्नेहक एवं कुपित पित्त से सम्बन्धित रोगों में उपयोगी है. 


कदम्ब 

इसे वानस्पतिक भाषा में 'मित्रागाइना पारबिफोलिया' कहते हैं. यह वृक्ष पादप कुल 'रूबियेसी' का सदस्य है, जिसकी छाल एवं जड़ उपयोगी हैं. इसकी छाल एवं जड़ बुखार एवं मरोड़ में दिए जाते हैं. इसकी छाल को घिसकर मांसपेशियों के दर्द पर लगाया जाता हैं. 


मीठा नीम- 

इसे गंधेला, मीठा नीम, कढ़ी नीम आदि नामों से जाना जाता है. इस वृक्ष पादप का वानस्पतिक नाम 'मुरार्या कोइनिगी' कहते हैं तथा यह कुल 'रूटेसी' का सदस्य है. इसकी पत्तियाँ, छाल एवं जड़ उपयोगी हैं. 

इस पौधे का उपयोग पोषक द्रव्य, पाचन एवं भूख बढ़ाने के लिए किया जाता है. इसकी पत्तियाँ पेचिश, त्वचा छिलने पर, बुखार कम करने में एवं सर्पदंश में उपयोगी है.

 

रक्त चंदन

इसे लाल चंदन भी कहते हैं. इस वृक्ष पादप का वानस्पतिक नाम 'टेरोकारपस सेन आलेनियस' है तथा यह 'पेपिलियोनेसी' कुल का सदस्य है जिसकी लकड़ी उपयोगी है. 

इसकी लकड़ी का उपयोग घाव भरने, पोषक द्रव्य की तरह, जलन, सिरदर्द, चर्मरोग, बुखार, वृण, दृष्टि सुधारने एवं बिच्छू के डंक में किया जाता है.

 

बलराज - 

इसे बला, बलराज, बरियारा, खरेटा आदि नामों से जाना जाता है. इस झाड़ी पादप का वानस्पतिक नाम 'साहडा एक्यूटा' है तथा यह मालवेसी कुल का सदस्य है. इसकी जड़ तथा पत्तियाँ उपयोगी हैं. 

इसकी जड़ शीतल, पोषक द्रव्य, घाव भरने में तंत्रिका तंत्र एवं मूत्राशय सम्बन्धित रोग में, रक्त एवं पित्त की समस्या, बुखार कम करने, भूख एवं पाचन बढ़ाने एवं कामशक्ति बढ़ाने में उपयोगी है. इसकी पत्तियों का उपयोग गठिया रोग में किया जाता है.

 

भूमि आँवला-

इसे जर आँवला, भूमि आँवला, भुई आँवला आदि नामों से जाना जाता है. इस शाकीय पादप का वानस्पतिक नाम भूमि आँवला (Phyllanthus Nirun) का सम्पूर्ण पादप भाग उपयोगी है तथा इसमें फाइलेन्थिन, हाइपोफाइलेन्थिन नामक रसायन पाए जाते हैं. यह पादप मूत्रसाव बढ़ाता है तथा गोनोरोहिया रोग, मूत्राशय सम्बन्धित रोगों में एवं पेचिस आदि में उपयोगी है. इसकी ताजी जड़ पीलिया में, पत्तियाँ पाचन एवं भूख बढ़ाने एवं दूधिया रस घाव भरने में उपयोगी है.

 

चिरमी (लाल ) - 

इसे चिमनी (लाल) गुमनी, रत्ती आदि नामों से जाना जाता है. इस आरोही झाड़ी (Climbing shrub ) का वानस्पतिक नाम ऐक्रस प्रिकेटोरियस' है तथा यह कुल 'पोपीलियोनेसी' का सदस्य है. इसके बीज एवं जड़ उपयोगी हैं तथा इसमें 'एब्रिन' एवं ग्लूकोसाइड रसायन पाए जाते हैं. 

इसके बीज तीव्र स्नेहक (Laxative), उल्टी पैदा करने, पोषक द्रव्य, काम क्षमता वृद्धि, तंत्रिकाओं सम्बन्धी समस्या एवं गर्भपात में सहायक है. इसकी जड़ उल्टी पैदा करती है.

 

चिरमी (काली) - 

इसे भी चिरमी (काली), गुमनी, रत्ती आदि नामों से तथा वानस्पतिक भाषा में 'एबस प्रिकेटोरियस' काली कहते हैं. इस आरोही झाड़ी (Climbing Shrub) का बीज एवं जड़ उपयोगी है तथा यह कुल 'पेपिलियोनेसी' का सदस्य है. इसमें भी सक्रिन तथा ग्लूकोसाइड रसायन पाए जाते हैं. 

इसके बीज तीव्र स्नेहक, उल्टी पैदा करने, पोषक द्रव्य काम क्षमता वृद्धि, तंत्रिकाओं सम्बन्धी समस्या एवं गर्भपात में सहायक हैं. इसकी जड़ उल्टी पैदा करती है.

 

चिरमी (सफेद) - 

इसका स्थानीय नाम चिरमी (सफेद) गुमची, रत्ती एवं वानस्पतिक नाम 'एबस प्रिकेटोरियस' (सफेद) है. यह आरोही झाड़ी 'पोपीलियोनेसी' की सदस्य है तथा इसके बीज एवं जड़ उपयोगी हैं. इसमें एब्रिन व ग्लूकोसाइड पाए जाते हैं. 

इसके बीज तीव्र स्नेहक, उल्टी पैदा करने, पोषक द्रव्य, काम क्षमता वृद्धि, तंत्रिकाओं सम्बन्धी समस्या एवं गर्भपात में सहायक है. इसी प्रकार इसकी जड़ उल्टी पैदा करती है.

 

सफेद मूसली 

सफेद मूसली को वानस्पतिक भाषा में 'क्लोरोफाइटम बोरिविलिएनम' कहते हैं. यह शाक (Herb) कुल 'लिलियेसी' का सदस्य है जिसके कंद औषधीय महत्व के हैं. 

इसके कंद का उपयोग शारीरिक शिथिलता दूर करने, दुग्ध सावण एवं मात्रा बढ़ाने (स्त्रियों में), प्रसवोपरान्त होने वाली शिथिलता दूर करने, मधुमेह में एवं कामशक्ति वृद्धि के लिए किया जाता है.


मालकांगनी - 

मालकांगनी को 'सिलास्ट्रस पेनिकुलेटस' नामक वानस्पतिक नाम से पुकारा जाता है. यह आरोही झाड़ी पादप कुल 'सिलास्ट्रेसी' का सदस्य है, जिसकी छाल एवं बीज उपयोगी हैं. इसमें ग्लूकोसाइड, सिलास्ट्रीन एवं पेनिकुलेटिन नामक रसायन पाए जाते हैं. 

इसकी छाल का उपयोग गर्भपात के लिए होता है. इसके बीज स्नेहक, उल्टी पैदा करने, उत्तेजक के रूप में, कामशक्ति बढ़ाने हेतु, गठिया, कोद, ज्वर एवं लकवे में उपयोगी हैं. इसके बीज का तेल उत्तेजक एवं 'बेरी-बेरी रोग में उपयोगी है.

 

पोई

इसे स्थानीय भाषा में पोई, लालवाचलु, बसेला, अल्वा आदि नामों से एवं वानस्पतिक भाषा में 'बसेला अल्वा' के नाम से जाना जाता है. यह आरोही मांसल झाड़ी (Twining Succulent Shrub) कुल 'बसेलेसी' की सदस्य है तथा इसकी पत्तियाँ औषधीय महत्व की हैं. 

इसकी पत्तियाँ त्वचा एवं श्लेष्म झिल्ली को शांत करती हैं. यह मूत्रवर्धन एवं मूत्र निष्कासन तथा गोनोरोहिया रोग में लाभकारी है. इसकी पत्तियों का रस कब्ज दूर करता है. इसकी नरम शाखाएं एवं पत्तियाँ शाक के रूप में उपयोगी हैं. 


पाडल

इसे पारल, पाडल के स्थानीय नामों से एवं स्टीरियोस्परमम सुवियोलेन्स' के वानस्पतिक नामों से जाना जाता है. यह वृक्ष पादप 'बिगनोनियेसी' का सदस्य है तथा इसकी जड़ की छाल एवं पुष्प औषधीय महत्व के हैं. इसकी जड़ की छाल, शीतलता प्रदान करती है. इसे द्रव्य (Tonic) की तरह, मूत्रवर्धन एवं मूत्रसाव बढ़ाने में भी प्रयुक्त किया जाता है. यह दशमूल औषधियों में भी प्रयुक्त होता है. इसके फूलों का उपयोग शहद के साथ हिचकी आने पर किया जाता है तथा यह कामशक्ति भी बढ़ाता है.

 

उतरान-

इसे उतरान, सदोवनी के स्थानीय नाम से एवम् वानस्पतिक भाषा में इसे 'परगुलेरिया एक्सटेन्सा' कहते हैं. यह कुल 'एस्कलीपिडेसी' की आरोही झाड़ी है तथा इसकी पत्तियाँ, फूल एवं जड़ की छाल उपयोगी है. इसमें पाए जाने वाला ग्लूकोसाइड रसायन उपयोगी है. 

इनकी पत्तियों का रस कफ एवं बलगम निष्कासन में उपयोगी है. यह उल्टी पैदा करने शिशुओं के अतिसार में, दमा, गठिया, सर्पदंश आदि में उपयोगी है. इसकी पत्तियों की पुलटिस गुखरू (Carbuncle) में उपयोगी है. इसकी जड़ की छाल गाय के दूध के साथ स्नेहक का कार्य करती है. इसकी पत्तियाँ एवं फूल खाने योग्य भी है.

 

पुर्ननवा

इसे सांटा, सांठी, पुर्ननवा आदि नामों से स्थानीय भाषा में एवं 'बोहराविया डिफ्यूजा' के वानस्पतिक नाम से जाना जाता है. इस शाक (Herb) पादप का सम्पूर्ण पादप भाग उपयोगी है तथा यह कुल 'निकटेन्जिरेसी' का सदस्य है. इसमें सक्रिय तत्व 'पुर्ननविन' होता है. इसकी जड़ का उपयोग मूत्रवर्धन में, स्नेहक की तरह, कफ एवं बलगम निष्कासन, दमा, भूख एवं पाचन में सुधार हेतु, जलोदर, रक्त अल्पता, पीलिया, मूत्र रुकावट, आंतों की जलन एवं सर्पविष के तोड़ / उपचार में होता है. 


बड़ा चन्द्रिका-

इसे वानस्पतिक भाषा में 'राऊलोज्यिा ट्रेटाफिला' कहते हैं. यह झाड़ीनुमा पादप 'एपोसाइनेसी' कुल का पादप है.

 

सालममिश्री

इसे स्थानीय भाषा में सालपमिश्री, सालममिश्री आदि नामों से जाना जाता है. वानस्पतिक भाषा में इसे 'ओरकिस लेक्सीफलोरा' कहते हैं. यह 'ओरकिडेसी' (Orchidaceae) कुल का . सदस्य है. इस शाक पादप की मांसल जड़ें उपयोगी हैं. 

इसकी मांसल जड़ पोषक होती है, इसका उपयोग अतिसार, कफ एवं बलगम निष्कासन एवं घाव भरने के लिए किया जाता है.

 

सिन्दूरी

इसे वानस्पतिक भाषा में 'बिस्सा ओरिलाना' तथा स्थानीय भाषा में सिन्दूरी, लटकन आदि नामों से जाना जाता है. यह झाड़ी पादप कुल 'बिक्सेसी' का सदस्य है तथा इसका फल, जड़ की छाल, बीज एवं पत्तियाँ उपयोगी हैं. 

इसका फल स्नेहक का कार्य करते हैं एवं घाव भरने में उपयोगी है. जड़ की छाल, बुखार कम करने में सहायक है. इसके बीज घाव भरने, बुखार कम करने एवं गोनोरोहिया में उपयोगी है. इसकी पत्तियाँ पीलिया, सर्पदंश में उपयोगी हैं. इस पौधे से रंजक तत्व प्राप्त किया जाता है, जो दुग्ध एवं खाद्य उद्योग में काम आता है. 


शहतूत - 

शहतूत, तूत, तूल आदि नामों से जाने वाले इस वृक्ष पादप का वानस्पतिक नाम 'मोरस अल्वा' है तथा यह कुल 'मोरेसी' का सदस्य है. इसके फल एवं छाल उपयोगी हैं. 

इसका फल बुखार में ताजगी प्रदान करता है. उनका उपयोग गले के छालों, बिगड़े पाचन तंत्र एवं मानसिक अवसाद की स्थिति में किया जाता है. इसकी छाल एक तीव्र स्नेहक एवं उदर-कृमि नाशक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है.

 

सत्यानाशी

इसे स्थानीय भाषा में सत्यानाशी, कटेली, शियालकांटा, कंदियारी आदि नामों से जाना जाता है. इसे वानस्पतिक भाषा में 'आर्जीमोन मैक्सिकाना' कहते हैं तथा यह कुल 'पेपावरेसी' का सदस्य है. इस शाक पादप के जड़ एवं बीज उपयोगी हैं. इसमें बारबोरिन एवं प्रोटोपाइन नामक रसायन पाए जाते हैं. 

इसकी जड़ का उपयोग अव्यवस्थित पोषण एवं शारीरिक तंत्रों की कार्य प्रणाली में सुधार के लिए एवं त्वचा रोगों के लिए किया जाता है. इसके बीज स्नेहक, उल्टी पैदा करने, कफ एवं बलगम निष्कासन, त्वचा एवं श्लेष्म झिल्ली को शांत करने एवं सर्प विष के तोड़ के रूप में प्रयोग होते हैं. पौधे से प्राप्त होने वाला पीला द्रव्य जलोदर (Dropsy) एवं पीलिया में उपयोगी है. तेल स्नेहक का कार्य करता है.

 

सनिया - 

इसे सनिया, झामो आदि स्थानीय नामों से एवं वानस्पतिक भाषा में 'कोटोलेरिया बुरहिया' कहते हैं. यह झाड़ी पादप कुल 'पेपिलियोनेसी' का सदस्य है, जिसकी पत्तियाँ एवं शाखाएं शीतलता प्रदान करने वाली औषधि एवं चारे के रूप में उपयोगी है. तने से प्राप्त रेशा, रस्सी एवं बाँधने में भी प्रयुक्त किया जाता है.

 

तीखुर- 

इसे वानस्पतिक भाषा में 'करक्यूमा एंग्युस्टिफोलिया' कहते हैं तथा स्थानीय भाषा में तीखुर, तिकोरा कहते हैं. यह झाड़ी पादप 'जिजिबरेसी' कुल का सदस्य है, जिसका कंदमूल भाग उपयोगी है. 

इसका कदमूल पोषक है एवं असली आरारोट (Arrowrrol) के अतिस्थापक के रूप में उपयोग किया जाता है एवं त्वचा तथा श्लेष्म झिल्ली को शांत करता है.

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