गुजरात की प्रमुख जनजातियाँ और उनकी जानकारी |गुजरात की प्राचीन आदिकालीन जनजातियाँ| Gujrat Tribes Details in Hindi

 गुजरात की प्रमुख जनजातियाँ और उनकी जानकारी  (Gujrat Tribes Details in Hindi)

गुजरात की प्रमुख जनजातियाँ और उनकी जानकारी |गुजरात की प्राचीन आदिकालीन जनजातियाँ| Gujrat Tribes Details in Hindi

गुजरात की प्रमुख जनजातियाँ और उनकी जानकारी

2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल जनसंख्या 604.39 लाख थी जिनमें से जनजातीय लोगों की संख्या कुल 89.17 लाख अर्थात् 14.76 प्रतिशत थी । अनुसूचित जनजातीय लोगों की साक्षरता दर बढ़कर 62.5 प्रतिशत हो गई है। 2001 के बाद से जनजातियों की साक्षरता दर में बराबर सुधार आया है। यह अंतराल 21.4 प्रतिशत से घटकर 15.4 प्रतिशत हो गया है। इसलिए ज़रूरी है कि अनुसूचित जनजातियों और विशेषकर इनकी महिलाओं की साक्षरता दर बढ़ाई जाए। 

गुजरात राज्य में अनुसूचित जनजातियों के कुल 26 समूह हैं। प्रमुख जनजातीय समुदाय हैं: भील, गरासिया और ढोली भील; तलाविया, हलपति; ढोढ़िया; नायकड़ा, नायक; गमित गमाता, कठोड़ी, पड़हार, सिद्दि, कोलघा और कोतवालिया सहित ये आदिकालीन जनजातीय समूह हैं। गुजरात में अनुसूचित जनजातियाँ राज्य की पूर्वी सीमा से लगे क्षेत्रों में रहती हैं।

 

1. भील

 

भील शब्द द्रविड शब्द बिल्लु से बना है जिसका अर्थ होता है। तीर कमान से तीर छोड़ना। भील प्राचीन काल से ही तीर लेकर चलते हैं और इसी कारण उन्हें भील कहा जाता है। 2011 की जनगणना के अनुसार भीलों के कुल 7,58,046 परिवार हैं और भीलों की जनसंख्या 42,15,603 है जो राज्य की कुल जनजातीय जनसंख्या का 46.28 प्रतिशत है। इनमें से 21,33,216 पुरुष और 20,82,387 महिलाएँ हैं। भील लोग मुख्य रूप से बनासकांठा, साबरकांठा, अरावली, पंचमहल, दाहोद, डांग, भरूच, नर्मदा, तापी, सूरत आदि जिलों में रहते हैं। भीलम, तविथाडभील, गरासिया घेली भील, डूंगरी भील, मेवासी भील, रावल भील, ताड़की भील, भगाली, पवारा, वल्वी, वसव और वसावे जैसी मुख्य भील प्रजातियाँ इनमें से प्रमुख हैं।

 

2. हलपति

हलपति जनजातियाँ गुजरात के दक्षिणी जिलों सूरत, तापी, नवसारी, वलसाड़ और भरूच में रहती हैं। 2011 की जनगणना के  अनुसार इस जनजाति की कुल जनसंख्या 6,43,120 है जो राज्य की आबादी का 7.21 प्रतिशत है। इनके कुल 1,48,512 परिवार हैं जो बीस उपजातियों में बंटे हुए हैं। ये उपजातियाँ हैं- तलाविया, रछोड़िया, वोरिया, दमारिया, वलसाड़िया, ओलपड़िया, माँडवी और उबी ।

 

3. राठवा

 

मुंबई गज़ेटियर में उपलब्ध जानकारी के अनुसार राठवा भील मध्य प्रदेश के निकट अलीराजपुर के मूल निवासी हैं जहाँ से वे आकर गुजरात के छोटाउदेपुर, पंचमहल और दाहोद जिलों में बस गए। 2011 की जनगणना के अनुसार इनकी आबादी 7.2 प्रतिशत (6,42,348) हैं, जिनमें 3,25,550 पुरुष और 3,16,798 महिलाएँ हैं और इनके कुल परिवारों की संख्या 1,14,073 है। इन लोगों का मुख्य व्यवसाय खेतीबाड़ी, पशुपालन, मुर्गीपालन, वानिकी और मज़दूरी है। ये लोग खाद, बाँस, लकड़ी, घास ओर कंदमूल बनाने का काम करते हैं।

 

4. ढोड़िया 

गुजरात के यह जनजाति विशेषकर दक्षिण गुजरात के डांग, नवसारी, वलसाड़ और तापी ज़िलों में पाई जाती है। 2011 की जनगणना के अनुसार इनकी कुल जनसंख्या 7.13 प्रतिशत अर्थात् 6,25,695 हैं, जिनमें 3,17,608 पुरुष और 3,18,087 महिलाएँ हैं तथा इनके कुल परिवारों की संख्या 142.534 है। भीली जिले में छत को ढूड़ा कहते हैं और उसके नीचे रहने वालों को टूडिया या ढोडिया या ढोडी कहा जाता है। वे आजीविका के लिए खेत में काम करते हैं या मज़दूरी करके अथवा मछली पालन, वन्य उत्पादों को इक्ट्ठा करके या निजी सरकारी क्षेत्र में काम करके जीवनयापन करते हैं। इनके 'तूर' और 'पेरेया' नृत्य बहुत लोकप्रिय हैं।


5. नायक-नायकड़ा 

2011 की जनगणना के अनुसार गुजरात की कुल जनजातीय जनसंख्या का 5.16 प्रतिशत इन नायक नायकड़ा प्रजातियों का है और इनकी कुल आबादी 4,59,908 हैं, जिनमें 2,32,965 पुरुष और 2,26,943 महिलाए हैं तथा इनके साबरकांठा, महिसागर, नवसारी, वलसाड़, सूरत और तापी जिलों में पाई जाती हैं। इस समूह में पटेल, नायक, चोलीवाला नायक, कापड़िया नायक, मोटा नायक और नाना नायक जैसी उपजातियाँ शामिल हैं। 


6. गमित

गमित या मावची जनजातियाँ दक्षिण गुजरात में रहती हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार इनकी आबादी कुल 4.24 प्रतिशत अर्थात् 3,78,445 हैं, जिनमें 1,87,673 पुरुष और 1,90,772 महिलाएँ हैं और इनके परिवारों की कुल संख्या 85,331 है । गमित असल में भीलों की ही उपजाति है क्योंकि जो भील गाँव या स्थान पर बस गए उन्हें गमित कहा जाने लगा। 


7. कोकना / कुकना 

ये लोग भारत के कोंकण क्षेत्र से आए थे। इनका रंग काला होता हैं और ये लंबे होते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार इस जनजाति की कुल आबादी 4.05 प्रतिशत अर्थात् 361587 है जिनमें 1,80,075 पुरुष और 181512 महिलाएँ हैं तथा इनके परिवारों की कुल संख्या 72090 है ये लोग मुख्य रूप से सूरत, नवसारी, वलसाड़, तापी और डांग जिलों के भीतरी इलाकों में रहते हैं। इनके घर खाद, मिट्टी, लकड़ी और खजूर के पत्तों से बने होते हैं जिनकी छत पिरामिड अथवा शंकु आकार की होती है। ये लोग खेतीबाड़ी खेतिहर मज़दूरी, पशुपालन, मछलीपालन, मार्पा खेती और दिहाड़ी मजदूरी करके गुजर-बसर करते हैं। 


8. वरली 

'वरली' शब्द की उत्पत्ति 'चराल' से हुई है जिसका अर्थ होता है ज़मीन का छोटा-सा टुकड़ा। वरली समुदाय के लोग छोटी-छोटी आकार वाली जोतों में खेती करते हैं। एक मान्यता के अनुसार वरली लोग भील समुदाय की ही एक उपजाति है। शूद्र, मुडे, दावर और मिहिर लोगों की उपजातियाँ और 24 कबीले हैं। वरली पेंटिंग्स समूचे देश में और विदेशों में भी बहुत लोकप्रिय हैं जो मुख्यतया गोबर - मर्ती की दीवारों पर चावल को पानी में भिगोकर कीकर (बबूल) और बाँस की छड़ियों से संग्रहालयों में प्रद बनाई जाती हैं तथा इन पेंटिंग्स में इन लोगों की सामाजिक-सांस्कृतिक धारणाएँ और कार्यशैली दशाई जाती है। 

9. चौधरी 

दक्षिण गुजरात के जिलों में रहने वाले चौधरी समुदाय के लोग स्वयं को राजपूतों के वंशज मानते हैं। इनकी तीन मुख्य जातियाँ हैं पावगढ़ी, तकरिया और वलवई। 2011 की के सिक्कों से बनाए जनगणना के अनुसार इस कबीले के लोगों सुनार चाँदी तथा अ की आबादी 3,02,958 (3.40 प्रतिशत ) है, जिनमें 1,50,446 पुरुष और 1,52,512 महिलाएँ हैं और इनके कुल परिवारों की संख्या 68,639 है। 


10. धानक 

यह जाति भरूच, छोटाउदेपुर, दाहोद और पंचमहल में पाई जाती है। एक लोककथा के अनुसार ये मूलतः चौहान राजपूत थे। इनकी तीन उप-प्रजातियाँ हैं- (1) ताड़वी, (2) वाल्वी और ( 3 ) तेतारिया । 2011 की जनगणना के अनुसार इस जनजाति की आबादी 2,80,949 (3.15 प्रतिशत) है जिनमें से 1,44,948 पुरुष और 136,001 महिलाएँ हैं और इनके परिवारों की कुल संख्या 59,650 है। 


11. पटेलिया 

पावगढ़ में पटाई रावल समुदाय के पतन के बाद दाहोद, लिमखेड़ा, संतरामपुर आदि वनक्षेत्रों में आकर बसे राजपूत और क्षत्रिय ही पटेलिया नाम से जाने जाते हैं। वे गाँवों के प्रधान बन गए और गाँवों की पूरी व्यवस्था उन्होंने ही संभाल ली तथा इस प्रकार वे लोग 'ग्राम पटेल' कहलाने लगे। ये 'पटेल' ही आगे चलकर 'पटेलिया' बन गए और अब यह समूची जनजाति 'पटेलिया' कहलाती है। 2011 की जनगणना के अनुसार इस जनजाति की आबादी 1.28 प्रतिशत (1,44,414) है जिनमें 58,290 पुरुष और 56,124 महिलाएँ हैं और इनके परिवारों की कुल संख्या 21,378 है।

 

12. पोमला

बड़ोदा ( वड़ोदरा) की जनगणना के आधार पर कहा जा सकता है कि यह जनजाति करीब 200 वर्ष पहले तमिलनाडु के मद्रास (चेन्नई) से विस्थापित होकर आई थी। उनकी भाषा और बोली में तेलुगु का ज्यादा पुट है जिससे उनके संबंधों का अनुमान भी लगाया जा सकता है। 2011 की जनगणना के अनुसार इस जनजाति की जनसंख्या मात्र 687 (0.07 प्रतिशत) है जिनमें 358 पुरुष और 329 महिलाएँ हैं। और इनके परिवारों की कुल संख्या 134 है।

 

13. पड़घी 

ये जनजातियाँ मुख्य रूप से सूरत, वलसाड़, भरूच, पंचमहल, बड़ोदरा, साबरकांठा, डांग, खेड़ा, गाँधीनगर, भावनगर, अमरेली, जूनागढ़, जामनगर, कच्छ, राजकोट, सुरेन्द्रनगर और बनासकांठा जिलों में रहती हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार इनकी कुल आबादी 3,450 (0.04 प्रतिशत) है जिनमें 1,831 पुरुष और 1,619 महिलाएँ हैं तथा इनके परिवारों की कुल संख्या 779 है। 


14. चारण 

इस जनजाति के लोग गिर सोमनाथ और जूनागढ़ के जिलों में रहते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार इनकी कुल आबादी 2890 (0.03 प्रतिशत) है जिनमें 1,483 पुरुष और 1,407 महिलाएँ हैं तथा इनके कुल परिवारों की संख्या 493 है। 


15. भारवाड 

गिर, बारड़ा और अलेच के नेस इलाकों में भारवाड़ जनजातीय लोगों को अनुसूचित जनजातियों में गिना जाता है। 2011 की 1 जनगणना के अनुसार इस जनजाति के लोगों की आबादी 1,672 (0. 02 प्रतिशत) है जिनमें 853 पुरुष और 819 महिलाएँ हैं तथा इनके कुल परिवारों की संख्या 636 है। 


16. रबाड़ी 

इन्हें नेस इलाके में रहने के कारण अनुसूचित जनजातियों में शामिल किया गया है। 2011 की जनगणना के अनुसार इनकी आबादी 59,995 (0.62 प्रतिशत) है जिनमें 30,804 पुरुष और 29.191 महिलाएँ हैं तथा इनके परिवारों की कुल संख्या 9927 है। 

17. बरदा 

2011 की जनगणना के अनुसार इस जनजाति के लोगों की आबादी 748 (0.01 प्रतिशत) है जिनमें 408 पुरुष और 340 महिलाएँ हैं। इन्हें बरिया भील, खंडेशी भील, लिनिया या लहिलिया भील नामों से भी जाना जाता है और ये लोग कच्छ, अहमदाबाद, गाँधीनगर, पोरबंदर, जूनागढ़, सूरत और वड़ोदरा जिलों में रहते हैं। 

18. बावचा 

बावचा जनजातीय लोग मूल रूप से यादव या पांडव वंश से हैं। ऐसा इनके अपने ममेरे ( मामा के परिवार में) भाई-बहनों से विवाह करने के चलन के आधार पर माना जाता है। बुजुर्गों से सुनी बातों के अनुसार बावचा समुदाय सामाजिक-राजनीतिक कारणों से महाराष्ट्र से निकलकर गुजरात में बस गए थे। उन्होंने यह भी बताया कि बावचा लोग बेहद चुस्त और फुर्तीले होने के कारण छत्रपति शिवाजी की सेना में शामिल किए गए थे। 2011 की जनगणना के अनुसार इस जनजाति के लोगों की आबादी 2,889 (0.03 प्रतिशत ) है जिनमें 1,536 पुरुष और 1,353 महिलाएँ हैं और इनके परिवारों की कुल संख्या 171 है। 

19. गोंड - राजगोंड 

गोंड जनजातीय लोगों की बोली गोंडी है जो तमिल, तेलुगु का मिलाजुला रूप है। इसलिए माना जा सकता है कि ये लोग दक्षिण भारत से मध्य प्रदेश तक के क्षेत्र से आए थे। ये लोग गोदावरी नदी के रास्ते चांदना और फिर इंद्रावती नदी के ऊपरी हिस्सों से होते हुए दक्षिण और पूर्व की पहाड़ियाँ पार करके छत्तीसगढ़ के मैदानों के रास्ते वर्धा और सतपुड़ा की पहाड़ियों पर पहुँचे होंगे। कहा जाता है कि गोंड समुदाय ने कई सौ वर्षों तक चांदमा पर शासन किया था। वहाँ उनके तेलुगु लोगों से संबंध विकसित हो गए और उनका नाम 'गौंड' पड़ गया। इसी नाम और पहचान के साथ ये लोग पूर्वी दिशा में बढ़े होंगे। गुजरात में ये लोग मुख्य रूप से सूरत, भरूच, वड़ोदरा और पंचमहल ज़िलों में रहते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार इनकी कुल आबादी 0.03 प्रतिशत है जिसमें 1,593 पुरुष और 1,372 महिलाएँ हैं तथा इनके परिवारों की कुल संख्या 670 है

 

20. कुंबी 

कुंबी जनजाति के लोग मुख्य रूप से डांग जिले में रहते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार इस समुदाय की कुल आबादी 60646 (0.68 प्रतिशत) है जिनमें 30,376 पुरुष और 30,270 महिलाएँ हैं तथा इनके परिवारों की कुल संख्या 670 है।

 

गुजरात की प्राचीन आदिकालीन जनजातियाँ गुजरात में कुल

 

पाँच जनजातीय समूह विशेष कमजोर स्थिति वाले (पीवीटीजी) माने जाते हैं। 


1. सिद्दि

 

सिद्दि जनजातीय समूह भारत के अनेक राज्यों में, विशेषकर गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और केरल में रहते हैं। कर्नाटक, अंकोला, हरपाल, पेलापुर और मोंगरोल तालुकों में भी ये जनजातीय लोग बसे हुए हैं। गुजरात में इनकी ज़्यादा संख्या जूनागढ़ तालुके में हैं। इसके अलावा अमरेली, जूनागढ़, राजकोट, भावनगर और पोरबंदर में भी ये समूह रहते हैं। आंग्ल-भारतीय मूल के जो अफ्रीकी जनजातीय लोग भारत के विभिन्न राज्यों में आकर बस गए थे वही सिद्दि कहलाते हैं। ये समुदाय आदिकालीन (प्राचीन) जनजातीयों में से हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार इन जनजातीय लोगों की कुल आबादी 8,661 (0.10 प्रतिशत) है जिनमें 4,273 पुरुष और 4388 महिलाएँ हैं तथा इनके परिवारों की कुल संख्या 1.726 है। रंगारंग और खुशी के माहौल में रहने वाले सिद्दि जनजातीय लोग अपने लोकप्रिय 'धमाल नृत्य' के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं। 


2. पड़हार 

पड़हार आदिकालीन जनजातीय समूह के लोग गुजरात के अहमदाबाद और सुरेंद्रनगर जिलों में रहते हैं। 2011 की जनगणना ने के अनुसार इनकी कुल आबादी 30,932 (0.35 प्रतिशत) है जिनमें 15911 पुरुष और 15021 महिलाएँ हैं तथा इनके परिवारों की कुल 1 संख्या 5,566 है। ये लोग चूने, घासफूस और लकड़ी से बने घरों में रहे हैं जिन्हें 'कुबा' कहा जाता है। 


3. कोतवालिया

यह जनजाति सूरत, नवसारी, नर्मदा, भरूच, वलसाड़ और पुत्रा जिलों के जागल या खांप्रास इलाके में रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार इन लोगों की कुल आबादी 24249 (0.27. ग प्रतिशत) है जिनमें 12,155 पुरुष और 12,094 महिलाएँ हैं तथा इनके कुल परिवारों की संख्या 5674 है। इनका मुख्य व्यवसाय बाँस पर ते आधारित है और ये लोग बाँस को कल्पवृक्ष मानते हैं। 


4. काठोड़ी

काठोड़ी जनजातीय लोग कटकारी भी कहलाते हैं। ये नाम । उनके कटीह तैयार करने के व्यवसाय के आधार पर पड़ा है। इनके दो उप-जनजातीय समुदाय हैं- सोन काठोड़ी और ढोर काठोड़ी। ढोर काठोड़ी लोग गोमांस खाते हैं परन्तु सोन काठोड़ी समुदाय वाले लोग गोमाँस का सेवन नहीं करते। उनकी बोली, शक्लसूरत और अन्य रीति रिवाज़ों के आधार पर उन्हें भीलों की उपजाति माना जाता है परन्तु स्वयं काठोड़िया लोग अपने को हनुमान का वंशज मानते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार इस जनजाति की कुल आबादी 13,632 (0.15 प्रतिशत) है जिनमें 6,787 पुरुष और 6845 महिलाएँ हैं तथा इनके परिवारों की कुल संख्या 2.981 है।

 

5. कोल्घा 

दक्षिण गुजरात के बलसाड़, भरूच, डांग वड़ोदरा, नवसारी जिलों में रहने वाली प्राचीन जनजाति कोल्घा के लोग हेरकोली, टोकरे, कोली, कोल्चा, आदि नामों से जाने जाते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार इस जनजाति के लोगों की कुल आबादी 67.119 (0.75 प्रतिशत) है जिनमें 34009 पुरुष और 33,110 महिलाएँ हैं। इनके परिवारों की कुल संख्या 14,222 है। 


गुजरात जनजातीय संस्कृति

 

घरेलू सामान : 

इनके घरेलू सामान में खाना पकाने के और कुछ अन्य बर्तन हैं जिनमें से अधिकांश मिट्टी के बने होते हैं तथा कुछेक बर्तन पीतल या एल्यूमिनियम के भी होते हैं। 

गहने (आभूषण): 

परम्परागत रूप से जनजातीय पुरुष और महिलाएँ आभूषणों और गहनों के बहुत शौकीन होते हैं हालांकि अब इन समुदायों के पुरुषों में गहने पहनने की आदत बहुत कम हो गई है। संग्रहालयों में प्रदर्शित आभूषणों के आकर्षक एवं मनमोहक डिज़ाइनों को देखकर गहनों के प्रति जनजातीय लोगों के लगाव का अंदाजा लगाया जा सकता है। पहले के दौर में तो ये आभूषण चूना पत्थर, कौड़ियों, जंगली घास, ब्रिटिश काल के चाँदी के सिक्कों से बनाए जाते थे तथा हिंदू सुनार चाँदी तथा अन्य मिश्रित धातुओं के आभूषण भी तैयार करते थे।

 

कला पिथोरा और वरली पेंटिंग्स: 

मध्य गुजरात के राठवा अपने घरों की बाँस से बनी दीवारों पर चूने का प्लस्तर लगाते हैं और अपने पुजारी - कलाकार को आमंत्रित करके दीवारों पर स्थानदेवता 'पिथोरादेव' की छवि अंकित कराके 'आभार व्यक्ति' अथवा 'थैंक्स गिविंग' का त्यौहार मनाते हैं। मौजूदा जनजातियों में दीवारों की यह सजावट सबसे उत्कृष्ट मानी जाती है। 

दक्षिण गुजरात में दीवारों की पेंटिंग्स में विवाह समारोह की परम्परागत सजावट और आकर्षक दृश्य बनाए जाते हैं। दक्षिण गुजरात के वरली जनजातीय लोग वैवाहिक आयोजन के पारम्परिक दृश्य दीवारों पर पेंट कराते हैं। गाँव की महिलाएँ वधू के घर की दीवारों पर चावल के पाउडर से और फिर चूने के प्लस्तर से सजावटी डिज़ाइन बनाती हैं।

 

पोशाकों के डिज़ाइन : 

हर जनजाति और हर स्थान के पोशाकों के डिज़ाइन अलग-अलग होते हैं। पूर्वोत्तर गुजरात में भील समुदाय के लोग तीर-कमान, बंदूक, तलवार जैसे शस्त्रों से लैस रहते हैं। दक्षिण गुजरात में भील लोग लंगोटी पहने रहते हैं। नर्मदा क्षेत्र की भील महिलाएँ 'चनिया' (स्कर्ट पहनती हैं जबकि दक्षिण क्षेत्र की महिलाओं की पोशाक साड़ी है। उत्तर-पूर्व क्षेत्र की महिलाएँ - भील, राठवा पटेल्या, नायकड़ा कई प्लेटों वाली चनिया ( स्कर्ट) के ऊपर झूलरी पहनती हैं। 

उत्तरी गुजरात में जनजातीय पुरुष धोती, कमीज़ और फालिया (पगड़ी या साफा) पहनते हैं। पंचमहल क्षेत्र के जनजातीय पुरुष बंडी (ब्लैकंडी) और लुंगी पहनते हैं। राठवाल जनजाति के पुरुष लुंगी, खमिश (कमीज़ ) और सिर पर पगड़ी पहनते हैं और इस जनजाति की महिलाएँ रंगीन चनिया ( स्कर्ट ), रंगीन कब्ज़ा ( ब्लाउज़ ) और ओढ़नी पहनती हैं। उत्तर में भील महिलाएँ कलाई से कोहनी तक बलोया (एक तरह का चूड़ा) और पैंजनिया (पैरों का आभूषण) पहनती हैं। पंचमहल की जनजातीय महिलाएँ पीतल या चाँदी के कड़े या बंगड़ी पहनती हैं और कलाई से कंधे तक बलोया (एक प्रकार की चूड़ियाँ) और एड़ी से घुटनों तक पीतल या चाँदी के आभूषण पहनती हैं। 

दक्षिण गुजरात में चौधरी, गमित, ढोढ़िया और कुकना - जनजातियों के पुरुष धोती या हॉफ पैंट (निक्कर) और पायजामा, खमीश (कमीज़) और फैंटा ( पगड़ी) या टोपी पहनते हैं। महिलाएँ मोटे कपड़े की पीली या चमकदार रंगीन कछोरा स्टाइल की साड़ी तथा कब्ज़ा ( ब्लाउज) पहनती हैं। गमित जनजाति की  महिलाएँ गर्दन में पत्थर के आभूषण पहनती हैं। पूर्वोत्तर भाग के भील पुरुष तीर-कमान, बंदूक और धारिया ( धारदार) गंडासा हाथ में लिए रहते हैं। 

उत्तर से दक्षिण तक के जनजातीय लोगों के रीति-रिवाज़ और उनकी पोशाक हर क्षेत्र के अनुरूप भिन्न होती है। उत्तरी भाग में लोगों के रहन-सहन और पोशाक में राजस्थानी प्रभाव और । दक्षिणी भाग के लोगों में महाराष्ट्र का प्रभाव दिखाई देता है। हर । जनजातीय समुदाय के लोगों का पहनावा अलग-अलग होता है। 


जनजातीय चिकित्सा प्रणाली- भागर भाव 

जनजातीय चिकित्सक या भगत गुजरात के जनजातीय क्षेत्रों में और विशेषकर डांग, नर्मदा, वलसाड़ तथा दाहोद, पंचमहल, साबरकांठा और बनासकांठा के वनक्षेत्रों में उपलब्ध हैं। ये भगत इन जनजातीय लोगों के धार्मिक और राजनीतिक जीवन में तथा स्वास्थ्य के मामले में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

सरकार ने वनबंधु कल्याण योजना- वीकेवाई के तहत अनेक पहलें शुरू करके गुजरात के जनजातीय समुदायों के समेकित सामाजिक आर्थिक विकास का लक्ष्य प्राप्त करने में सफलता पाई है। वीकेवाई का मुख्य उद्देश्य आजीविका, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, पेयजल, सिंचाई और बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराके जनजातीय समुदायों का समेकित, समग्र और समावेशी विकास करना है। इसके लिए आवश्यकता पर आधारित, परिणामोन्मुख और मिशन मोड में योजनाएँ और विभिन्न उपाय लागू किए गए. 

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